Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्र पद्यमानकापेक्षया मानुषी वा ऐर्यापथिकं कर्म बध्नाति २ 'मणुस्सा वा बंधति ३' मनुष्या वा बध्नन्ति ३, 'मणुस्सीओ वा बंधति४' मानुष्यः-मनुष्यस्त्रियो वा बध्नन्ति, अथ द्विकसंयोगेन चतुरो विकल्पानाह-अहवा मणुस्सो य मणुस्सी य बंधइ५,' अथवा मनुष्यश्च मानुषी च वध्नाति५, 'अहवा मणुस्सो य मणुस्सीओय बंधति ६' अथवा मनुष्यश्च मानुष्यामनुष्यस्त्रियश्च बध्नन्ति६ 'अहवा मणुस्साय मणुस्सीय बंधंति७ अथवा मनुष्याश्च मानुषी च बध्नन्ति७, 'अहवा माणुस्सा य मणुस्सीओ य बंधंति ८' अथवा मनुष्याश्च मानुष्यः-मनुष्यस्त्रियश्च ऐर्यापथिकं कर्म बध्नन्ति ८, एतेषां च पुंस्त्वपथिक कर्म का बंध करती है २ ‘मणुस्सा वा बंधंति ३ ' अनेक मनुप्य ऐर्यापथिक कर्म का बंध करते हैं ३, ‘मणुस्सीओ वा ४' अथवा अनेक मनुष्यस्त्रियां ऐपिथिक कर्म का बंध करती हैं ४। इस तरह से " एक मनुष्य और अनेक मनुष्य, एक मनुष्य स्त्री और अनेक मनुष्यस्त्रियां प्रतिपद्यमान की अपेक्षा ऐर्यापथिक कर्म का बंध करती हैं ये चार विकल्प एक एक के एकत्व और बहुत्व को लेकर कहे गये हैं। अब द्रिक के योग में जो चार विकल्प होते हैं वे इस प्रकार से है-' अहवा मणुस्सो य मणुस्सी य बंधइ' एक मनुष्य एक मनुष्यस्त्री ऐपिथिक कर्म का बंध करती है १, 'अहवा मणुस्मो य मणुस्सीओय बंधंति' अथवा एक मनुष्य और अनेक मनुष्यस्त्रियां ऐर्यापधिक कर्मका बंध करती हैं २ 'अहवा मणुस्साय मणुस्सी य बंधति३' अथवा-अनेक मनुष्य और एक मनुष्यस्त्री ऐर्यापथिक कर्म का बंध करती है ३। ' अहवा-मणुस्सा य, से मनुष्य स्त्री मेयोपथि भनि म ४२ छ. (3) "मणुस्सा वा बंधति" भने भनुष्य। मर्या५थि भनी म ४२ छ. (४) “ मणुस्सीओ वा" અથવા અનેક મનુષ્ય સ્ત્રીઓ ઐર્યાપથિક કર્મને બંધ કરે છે એ જ પ્રમાણે એક મનુષ્ય અને અનેક મનુષ્ય, એક મનુષ્ય અને અનેક મનુષ્ય સ્ત્રીઓ પ્રતિપદ્યમાનની અપેક્ષાએ ઐર્યાપથિક કર્મને બંધ કરે છે. આ ચાર વિકલ્પ એક એકના એકત્વ અને બહુત્વની દષ્ટિએ કહેવામાં આવ્યા છે હવે દ્વિકના યોગથી
या विपी भने ते नीय प्रमाणे सभावा-" अहवा मणुस्सो य मणुम्सीय बधइ" अथवा से मनुष्य भने से मनुष्य स्त्री अर्या५थि भने। म १३ छे. (२) “ अहवा मणुस्सो य मणुस्सीओ य बधांति" अथ। मे मनुष्य भने भने मनुष्य सीमा मेयोपथि भनि। म ४२ छ. (3) अहवा मणुस्सा य मणुस्सी य बंधति” अथवा भने मनुष्य सने से श्री भैया. પથિક કર્મને બંધ કરે છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭