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मानव जीवन का ध्येय
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का गला काट कर मिले। ग़रीब जनता के गर्म खून से सना हुआ पैसा ' भी उसके लिए पूज्य परमेश्वर है, उपास्य देव है। उसका सिद्धान्त सूत्र , अनादि काल से यही चला आ रहा है कि 'सर्वं गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति ।' 'श्राना अंशकला प्रोका रूप्योऽसौ भगवान् स्वयम् ।' परन्तु क्या मानव जीवन का यही ध्येय है कि धन के पीछे पागल बनकर घूमता रहे ? क्या धन अपने आप में इतना महत्वपूर्ण है ? क्या तेली के बैल की तरह रात-दिन धन की चिन्ता में घुल-घुल कर ही जीवन की अन्तिम घडियो के द्वार पर पहुंचा जाय ? यदि दुनिया भर की बेईमानी करके कुछ लाख का धन एकत्रित कर भी लिया तो क्या बन जायगा ? रावण के पास कितना धन था ? सारी लंका नगरी ही सोने की थी। लका के नागरिक सोने की सुरक्षा के लिए आजकल की तरह-तिजौरी तो न रखने होगे ? जिनके यहाँ घर की दीवार, छत और फर्श भी सोने के हो, भला वहाँ सोने के लिए तिजौरी रखने का क्या अर्थ ? और भारत की द्वारिका नगरी भी तो सोने की थी ! क्या हुआ इन सोने की नगरियो का ? दोनो का ही अस्तित्व खाक में मिल गया । सोने की लंका ने रावण को राक्षस बना दिया तो सोने की द्वारिका ने यादवों को नर-पशु ! लका और द्वारिका के धनी मनुष्यत्व से हाथ धो बैठे थे,, दुराचारों में फंस गए थे। धन के अतिरेक ने उन्हें-अधा बना दिया था । आज कुछ गोरव है, उन धनी मानी नरेशो का ? मै दिल्ली और आगरा मे बिखरे हुए मुगल सम्राटो के वैभव को देख रहा हूँ। क्या लाल किला और ताज इमीलिए बनाए गए थे कि उन पर चॉद सितारे के मुस्लिम झंडे के स्थान पर अँग्रेजो का यूनियन जैक फहराए । आज कहाँ हैं, मुगल सम्राटो के उत्तराधिकारी ? कितने अत्याचार किए, कितने निरीह जनसमूह कतल किए ?- परन्तु वे सिहासन, जिनके पाये पाताल मे गाड कर मजबूत किए जा रहे थे, उखड़े चिना न रहे। और वह यूनियन जैक भी कहाँ है, जो समुद्रों पार से तूफान की तरह बढ़ता, हाहाकार मचाता भारत मे आया था ? क्या वह वापस लौटने के इरादे