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कायोत्सर्ग-आवश्यक प्रतिक्रमण-अावश्यक के बाद कायोत्सर्ग का स्थान है । यह श्रावश्यक भी बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है । अनुयोगद्वार सूत्र में कायोत्सर्ग का नाम व्रणचिकित्सा है। धर्म की आराधना करते समय प्रमादवश यदि कहीं अहिंसा एवं सत्य श्रादि व्रत में जो अतिचार लग जाते हैं, भूले हो जाती हैं, वे संयम रूप शरीर के घाव हैं । कायोत्सर्ग उन घावों के लिए मरहम का काम देता है। यह वह औषधि है, जो घावों को पुर करती है और संयम शरीर को अक्षत बनाकर परिपुष्ट. करती है । जो वस्त्र मलिन हो जाता है, वह किससे धोया जाता है ! जल से ही धोया जाता है न ? एक बार नहीं, अनेक बार मलमल कर धोया जाता है। इसी प्रकार संयम रूप वस्त्र को जब अतिचारो का मल लग जाता है, भूलो के दाग लग जाते हैं तो उसे प्रतिक्रमण रूप जल से धोया जाता है। फिर भी कुछ अशुद्धि का अंश रह जाता है तो उसे कायोत्सर्ग के उष्ण जल से दुबारा धोया जाता है। यह जल ऐसा जल है, जो जीवन के एक एक सूत्र से मल के कण-कण को गला कर साफ करता है और संयम जीवन को अच्छी तरह शुम बना देता है।
कायोत्सर्ग एक प्रकार का प्रायश्चित है। वह पुराने पापों को धोकर साफ कर देता है। आवश्यक सूत्र के उत्तरीकरण सूत्र में यही कहा है कि संयम जीवन वो विशेषरूप से परिष्कृत करने के लिए, प्रायश्चित करने के लिए, विशुद्ध करने के लिए, आत्मा को शल्य रहित बनाने के लिए, पाप कर्मों के निर्यात के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है।"