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प्रत्याख्यान यावश्यक
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होते है । इसके भी दो प्रकार हैं- देश उत्तर गुण' प्रत्याख्यान और सर्व उत्तर गुण प्रत्याख्यान । तीन गुणव्रत और चार शिक्षा व्रत, देश उत्तर गुण प्रत्याख्यान है, जो श्रावकों के लिए होते हैं । अनागत श्रादि दश प्रकार का प्रत्याख्यान, सर्व उत्तरगुण प्रत्याख्यान होता है, जो साधु और श्रावक दोनो के लिए है।
अनागत आदि दश प्रत्याख्यान इस भॉति हैं :
(१) अनागत-पर्युषण आदि पर्व में किया जाने वाला विशिष्ट तप उस पर्व से पहले ही कर लेना, ताकि पर्वकाल में ग्लान, वृद्ध श्रादि की सेवा निर्वाध रूप से की जा सके।
(२) अतिक्रान्त-पर्व के दिन वयावृत्य श्रादि कार्य में लगे रहने के कारण यदि उपवास प्रादि तप न हो सका हो तो उसे आगे कमी-अपर्व के दिन करना।
(३) कोटि सहित-उपवास आदि एक तप जिस दिन पूर्ण हो उसी दिन पारणा किए बिना दूसरा तप प्रारम्भ कर देना, कोटि सहित तप है । कोटि सहित तप में प्रत्याख्यान की आदि और अन्तिम कोटि मिल जाती हैं।
(४) नियंत्रित-जिस दिन प्रत्याख्यान करने का संकल्प किया हो उस नियमित दिन में रोग आदि की विशेष अडचन एवं विघ्न बाधा आने पर भी दृढता के साथ वह सकल्पित प्रत्याख्यान कर लेना नियंत्रित प्रत्याख्यान है। यह प्रत्याख्यान प्रायः चतुर्दश पूर्व के धर्ता, जिनकल्पी और दश पूर्व धर मुनि के लिए होता है । आज के युग में इस की परम्परा नहीं है, ऐसा प्राचीन आचार्यों का स्पेष्टीकरण है।
(५) साकार-प्रत्याख्यान करते समय श्राकार विशेष अर्थात् अपवाद की छूट रख लेना, साकार तय होता है ।
(६) निराकार-श्राकार रक्खे बिना प्रत्याख्यान करना, निराकार तप है । यह दृढ धैर्य के बल पर होता है।