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प्रत्याख्यान आवश्यक .
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केवल साक्षी के तौर पर अगीतार्थ गुरु से अथवा माता पिता आदि से प्रत्याख्यान ग्रहण किया जाय तो यह भंग शुद्ध माना जाता है । यदि । श्रोध सज्ञा के रूप में गीतार्थ गुरुदेव के विद्यमान रहते भी अगीतार्थ से प्रत्याख्यान ग्रहण किया जाय तो यह भंग भी अशुद्ध ही माना गया है।
(४) प्रत्याख्यान लेने वाला भी अगीतार्थं विवेक शून्य हो और प्रत्याख्यान देने वाला गुरु भी शास्त्रज्ञान से शून्य अविवेकी हो तो यह चतुर्थ भंग है । यह पूर्ण रूप से अशुद्ध माना जाता है !
यह प्रत्याख्यान आवश्यक सयम की साधना में दीप्ति पैदा करने वाला है, त्याग वैराग्य को दृढ करने वाला है, अतः प्रत्येक साधक का कर्तव्य है कि प्रत्याख्यान अावश्यक का यथाविधि पालन करे और अपनी आत्मा का कल्याण करे ।
प्रत्याख्यान पर अधिक विवेचन, इस अभिप्राय से किया गया है.. कि आज के युग में बड़ी भयंकर अन्ध परंपरा चल रही है। जिधर देखिए उधर ही चतुर्थ भंग का राज्य है। न कुछ शिष्य को पता है, और न. गुरुदेव नामधारी जीव को ही। एकमात्र 'बोसिरे के ऊपर अंधाधुन्ध प्रत्याख्यान कराये जा रहे हैं । आशा है, विज्ञ पाठक ऊपर के लेख से प्रत्याख्यान के महत्त्व को समझ सकेंगे।