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आवश्यक का आध्यात्मिक फल
१५७.
प्रत्याख्यान
पच्चक्खाणेणं भंते । जीवे कि जणयइ ?
पच्चच्खाणण आसवदाराइ निरु भइ, पच्चक्खाणेणं इच्छानिरोहं जणयइ, इच्छानिरोह गए णं जीवे सव्वदव्वेसु विणीयतराहे सीईभूए विहरइ।
'भगवन् ! प्रत्याख्यान करने से आत्मा को किस फल की प्राप्ति होती है ??
'प्रत्याख्यान करने से हिंसा आदि आश्रव-द्वार बन्द हो जाते हैं एवं इच्छा का निरोध हो जाता है, इच्छा का निरोध होने से समस्त विषयों के प्रति वितृष्ण रहता हुआ साधक शान्त-चित्त होकर विचरण करता है।'
[उत्तराध्ययन-सूत्र, २६ वॉ अध्ययन]