Book Title: Aavashyak Digdarshan
Author(s): Amarchand Maharaj
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 194
________________ १६२ श्रावश्यक-दिग्दर्शा मनुष्य जीवन और पशुजीवन में फ़रक क्या है ? इसका सम्पूर्ण विचार करने से हमारी काफी मुसीबतें हल होती हैं। मनुष्य जब अपनी हद से बाहर जाता है, हद से बाहर काम करता है, हद से बाहर विचार भी करता है, तब उसे व्याधि हो सकती है, क्रोध आ सकता है। हमारी गन्दगी हमने जब बाहर नहीं निकाली है, तब तक प्रभु की प्रार्थना करने का हमें कुछ हक है क्या ? गुनाह छिपा नहीं रहता । वह मनुष्य के मुख पर लिखा रहता है। उस शास्त्र को हम पूरे तौर से नहीं जानते, लेकिन बात साफ है। ग़लती, तब ग़लती मिटती है जब उसकी दुरस्ती कर लेते हैं। ग़लती जब देवा देते हैं, तब वह फोड़े की तरह फूटती है और भयंकर स्वरूप ले लेती है। प्रात्मा को पहचानने से, उसका ध्यान करने से और उसके गुणों का अनुसरण करने से मनुष्य ऊँचे जाता है। उलटा करने से नीचे जाता है। अन्धा वह नहीं जिसकी श्रॉख फूट गई है। अन्धा वह है जो अपने दोप ढॉकता है! __क्यों नाहक दूसरों के ऐब ढूँढने चलते हो ? माना कि सभी पापी है, सभी अन्धे हैं, सभी गुनहगार हैं। लेकिन, तुम दूसरों को क्या

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