Book Title: Aavashyak Digdarshan
Author(s): Amarchand Maharaj
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 197
________________ प्रतिक्रमणं पर जन चिन्तन . २६५ हृदय ही की सुनो । .........."शुद्ध हृदय ही सत्य के प्रतिबिम्ब के , लिए सर्वोत्तम दर्पण है। . ' हृदय को सर्वदा अधिकाधिक पवित्र बनायो, क्योकि भगवान् के कार्य हृदय द्वारा ही होते हैं । ......"अगर तुम्हारा हृदय काफी शुद्ध होगा. तो दुनिया के सारे सत्य उसमे आविर्भूत हो जायेंगे । हम दुर्बल है-इस कारण गलती करते हैं और हम अज्ञानी हैं, ' इसलिए दुर्बल हैं। हमें अज्ञानी कौन बनाता है ? हम स्वयं ही। हम अपनी ऑखों को अपने हाथों से ढंक लेते हैं और अँधेरा है कहकर रोते हैं। -स्वामी विवेकानन्द धर्म का सार तत्त्व है, अपने ऊपर से परदे का हटाना अर्थात् अपने आपका रहस्य जानना । अपने प्रति सच्चे बनिए, और संसार की अन्य किसी बात की ओर ध्यान न दीजिए। x संसार में व्यथा का प्रधान कारण यह है कि हम लोग अपने भीतर नहीं देखते। आँखों से मत देखो। वरन् सदा अपने अपने श्रापको दूसरों की अन्दर देखो।

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