Book Title: Aavashyak Digdarshan
Author(s): Amarchand Maharaj
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 207
________________ प्रश्नोत्तरी गुरुदेव के चरणों में चन्दन करना चाहिए और उनके समक्ष पूर्व चिन्तित अतिचारों की आलोचना करनी चाहिए । (३) इस प्रकार प्रतिक्रमण करने के बाद प्रायश्चित्त स्वरूप कायोत्सर्ग करना चाहिए। (४) कायोसर्ग पूर्ण करके गुरुदेव को वन्दन तथा स्तुति मंगल करना चाहिए । यह दिवस प्रतिक्रमण की विधि है। यहाँ आवश्यक के अन्त में प्रत्याख्यान का विधान नहीं है । रात्रिक प्रतिक्रमण का क्रम इस प्रकार निरूरण किया है--(१) सर्व प्रथम कायोत्सग में रात्रि सम्बन्धी, ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप सम्बन्धी अतिचारों का चिन्तन करना चाहिए । (२) कायोत्सर्ग पूर्ण करके गुरु को वन्दन करना चाहिए और उनके समक्ष पूर्व चिन्तित अतिचारों की आलोचना करनी चाहिये । (३) इस प्रकार प्रतिक्रमण करने के बाद गुरु को वन्दन पोर तदनन्तर दुबारा कायोत्सर्ग करना चाहिए । (४) इस कायोत्सर्ग में अपनी वर्तमान स्थिति के अनुकूल ग्रहण करने योग्य तपरूप प्रत्याख्यान का विचार करना चाहिए। (५) कायोत्सर्ग पूर्ण करने क्षेत्र में अवतीर्ण हुआ है ? यह सोचना ही अतिचार चिन्तन है। बॅधे हुए पाठो के द्वारा यह यात्म प्रकाश नहीं मिल सकता है। , १-उत्तराव्ययन सूत्र मे यह नहीं कहा गया कि कायोत्सर्ग में क्या विचारना चाहिए ? कायात्सर्ग प्रायश्चित्त स्वरूप है अतः वह अपने श्राप मे स्वय एक व्युत्सर्ग तप है। जो कष्ट हाँ उन्हें समभाव से सहना ही कायोत्सर्ग का ध्येय है । कायोत्सर्ग में समभाव का चिन्तन ही मुख्य है । इसीलिए मूल मूत्र म कायोत्सर्ग में पठनीय पाठ विशेष का उल्लेख नहीं हैं । परन्तु सभो साधक इस उच्च स्थिति में नहीं होते, इस कारण बाद में 'लोगल्स' पढने की परम्परा चालू हो गई, जो आज भी मलित हैं। २-आज झगडा है कि कायोत्सर्ग में कितने लोगस्स का पाठ करना चाहिए ? परन्तु आप देख सकते है कि मूलसूत्र में लोगस्स का

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