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. प्रतिक्रमण : जीवन की एक रूपता । १५६ क्यों लम्बी बातें करें, जितने मुँह उतनी बाते हैं ! आप तो मुझ से मालूम करना चाहते होगे कि कहिए, आपका क्या विचार है ? भला, मैं अपना क्या विचार बताऊँ ? मेरे विचार वे ही हैं, जो भारतीय संस्कृति के निर्माता आत्मतत्त्वावलोकी महापुरुषों के विचार हैं । मैं भी आपकी ही तरह भारतीय साहित्य का एक स्नेही विद्यार्थी हूँ, जो पढ़ता हूँ, कहने को मचल उठता हूँ। हॉ, तो भारतीय संस्कृति के एक अमर गायक ने इस प्रश्न-चर्चा के सम्बन्ध में क्या ही अच्छा कहा हैमनस्येकं वचस्येक
कर्मण्येकं महात्मनाम् । मनस्यन्यद् वचस्यन्यत्
कर्मण्यन्यद् दुरात्मनाम् ।। . प्रस्तुत श्लोक के अनुसार सर्वश्रेष्ठ, महात्मा महान् पुरुष वही है, जो अपने मन में जैसा सोचता है, विचारता है, समझता है, वैसा ही जबान से बोलता है, कहता है। और जो कुछ बोलता है, वही समय पर करता भी है । और इसके विपरीत दुरात्मा, दुष्ट, नीच वह है, जो मन में सोचता कुछ ओर है, बोलता कुछ और है, और करता कुछ
और ही है। ____ मन का काम है सोचना विचारना । वाणी का काम है बोलनाकहना । और शेष जीवन का काम है, हस्तपादादि का काम है, जो कुछ सोचा और बोला गया है, उसे कार्य का रूप देना, अमली जामा पहनाना । महान् आत्माश्रो में इन तीनों का सामंजस्य होता है, मेल होता है, और एकता होती है। उनके मन, वाणी और कर्म मे एक ही बात पाई जाती है, जरा भी अन्तर नहीं होता। न उन्हें दुनिया का धन पथ-भ्रष्ट कर सकता है और न मान अपमान ही। लोग खुश होते हैं या नाराज, कुछ परवाह नही । जीवन है या मरण, कुछ चिन्ता नहीं। भले ही दुनिया इधर से उधर हो जाय, फूलों की वर्षा हो या जलते