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प्रतिक्रमण : तीसरी औषध श्राचार्य हरिभद्र श्रादि ने प्रतिक्रमण के महत्त्व का वर्णन करते हुए एक कथा का उल्लेख किया है । वह कथा बडी ही सुन्दर, विचारप्रधान तथा प्रतिक्रमण के श्रावश्यकत्व का स्पष्ट प्रतिपादन करने वाली है।
पुराने युग में क्षितिप्रतिष्ठ एक नगरी थी और जितशत्रु उसके राजा थे । राजा को ढलती हुई आयु मे पुत्र का लाभ हुआ तो उस घर अत्यन्त स्नेह रखने लगे । सदैव उसके स्वास्थ्य की ही चिन्ता रहने लगी। पुत्र कभी भी बीमार न हो, इस सम्बन्ध में परामर्श करने के लिए अपने देश के तीन सुप्रसिद्ध वैद्य बुलवाए और उनसे कहा कि कोई ऐसी औषध बताइए, जो मेरे पुत्र के, लिए सब प्रकार से लाभ कारी हो।
तीनों वैद्यों ने अपनी-अपनी औषधियों के गुण-दोष, इस प्रकार बतलाए।
पहले वैद्य ने कहा-मेरी औषधि बडी ही श्रेष्ठ है । यदि पहले से कोई रोग हो तो मेरी औषधि तुरन्त प्रभाव डालेगी और रोग को नष्ट कर देगी। परन्तु यदि कोई रोग न हो, और औषधि खा ली जाय तो फिर अवश्य ही नया रोग पैदा होगा, और वह रोगी मृत्यु से बच न सकेगा।