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श्रावश्यक दिग्दर्शन पापाणं उस्सगो,
एसा पुण होइ जिणमुद्दा ।।७।। मुत्तासुत्ती मुद्दा,
समा जहिं दोवि गन्भिया हत्था। ते पुण निलाद - देसे, लग्गा भएणे अलग्गत्ति ॥७६||
-प्रवचन सारोद्धार । १ द्वार। चतुर्विशतिस्तव आदि स्तुति पाठ प्रायः योग मुद्रा से किए जाते हैं । वन्दन करने की क्रिया एवं कायोत्सर्ग में जिन मुद्रा का प्रयोग होता है । वन्दन के लिए मुक्ताशुक्ति मुद्रा का भी विधान है। इस सम्बन्ध में मैं इस समय अधिक लिखने की स्थिति में नहीं हूँ। विद्वानों से विचार विमर्श करने के बाद ही इस दिशा में कुछ अधिक लिखना उपयुक्त वेगा।
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