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आवश्यकों का क्रम जो अन्तष्टि वाले साधक हैं, उनके जीवन का प्रधान उद्देश्य समभाव अर्थात् सामायिक करना है। उनके प्रत्येक व्यवहार में, रहनसहन में समभाव के दर्शन होते हैं।
अन्तर्दृष्टि वाले साधक जब किन्हीं महापुरुषों को समभाव की पूर्णता के शिखर पर पहुँचे हुए जानते हैं, तब वे भक्ति-भाव से गद्गद् होकर उनके वास्तविक गुणों की स्तुति करने लगते हैं।
अन्तष्टि वाले साधक अतीव नन, विनयी एवं गुणानुरागी होते हैं । अतएव वे समभाव स्थित साधु पुरुषों को यथा समय बन्दन करना कभी भी नहीं भूलते।
श्रन्तहटि वाले साधक इतने अप्रमत्त, जागलक तथा सावधान रहते हैं कि यदि कभी पूर्ववासनावश अथवा कुसंस्कार वश अात्मा समभाव से गिरजाय तो यथाविधेि प्रति क्रमण -यानो बना पश्चात्तार यादि करके पुन' अपनी पूर्व स्थिति को पा लेते हैं और कभी-कभी तो पूर्व स्थिति से आगे भी बढ़ जाते हैं। ___ध्यान ही आध्यात्मिक जीवन की कुझी है। इस लिए अन्न टि साव: बरवार ध्यान कायो-म करते हैं। ध्यान से संत्रम के प्रति एकाग्रता की भावना परिपुष्ट होती है।
धान के द्वारा विशेष चित शुद्धि होने पर ग्रामटि तापक प्रात्न