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: १६ : आवश्यक से लौकिक जीवन की शुद्धि यह ठीक है कि आवश्यक क्रिया लोकोत्तर साधना है । वह हमारे आध्यात्मिक क्षेत्र की चीज है। उसके द्वारा हम अात्मा से परमात्मा के पद की ओर अग्रसर होते हैं। परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से भी श्रावश्यक की कुछ कम महत्ता नहीं है। यह हमारे साधारण मानव- . जीवन में कदम कदम पर सहायक होने वाली साधना है।
अन्य प्राणियों के जीवन की अपेक्षा मानव-जीवन की महत्ता और श्रेष्ठता जिन तत्वों पर अवलम्बित है, वे तत्त्व लोक भाषा में इस प्रकार हैं:
(१) समभाव अर्थात् शुद्ध श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र का सम्मिश्रण।
(२) जीवन को विशुद्ध बनाने के लिए सर्वोत्कृष्ट जीवन वाले महापुरुषों का आदर्श।
(३) गुणवानों का बहुमान एवं विनय करना ।
(४) कर्तव्य की स्मृति तथा कर्तव्य पालन में हो जाने वाली भूलों का निष्कपट भावं से संशोधन करना ।
(५) ध्यान का अभ्यास करके प्रत्येक वस्तु के स्वरूप को यथार्थरीति से समझने के लिए विवेक शक्ति का विकास करना ।
(६.) त्यागवृत्ति द्वारा सन्तोष तथा सहन शीलता को बढ़ाना। भोग ही जीवन उद्देश्य नहीं है, त्यागमय ,उदारता ही मानव की महत्ता बढ़ाती है । जितना त्याग उननी ही शान्ति ।
उपयुक्त तत्वों के आधार पर ही अावश्यक साधना का महल