________________
- : कायोत्सर्ग-यावश्यक तक उसके प्रति घुणा बनी रहती है। परन्तु जब 'व: धोकर साफ कर लिया, जाता है तो फिर उसी पहले जैसे स्नेह से पहना जाता है। यही जात पाप शुद्धि के लिए किए जाने वाले प्रायश्चित्त के सम्बन्ध में भी है । प्रायश्चित्त के अनेक रूप हैं । जैसा दोष होता है, उसी प्रकार का प्रायश्चित्त उसकी शुद्धि करता है। जीवन व्यवहार में इधर-उधर जो संयम जीवन में भूले हो जाती हैं, ज्ञात या अज्ञात रूप मे कहीं इधरउधर जो कदम लडखडा जाता है, कायोत्सर्ग उन सब पापों का प्रायश्चित्त है । कायोत्सर्ग के द्वास वे सब पाप धुल कर साफ हो जाते हैं। फलतः श्रात्मा शुद्ध निर्मल एवं निष्पाप हो जाता है।
भगवान् महावीर ने पापकर्मों को भार कहा है। जेठ का महीना हो, मंजिल दूर हो, मार्ग ऊँचा नीचा हो, और मस्तक पर मैन भर पत्थर का बोझ गर्दैन की नस-नस को तोड़ रहा हो, बताइए, यह कितनी विकट स्थिति है । इस स्थिति मे भार उतार देने पर मजदूर को कितना अानन्द प्राप्त होता है। यही दशा पापों के भार की भी है । कायोत्सर्ग के द्वारा इस भार को दूर फेक दिया जाता है। कायोत्सग वह विश्राम भूमि है, जहाँ पाप कर्मों का भार हल्का हो जाताहै, सब ओर प्रशस्त धर्म स्थान का वातावरण तैयार हो जाता है, फलतः श्रात्मा स्वस्थ, सुखमय एवं अानन्दमय हो जाता है।
'काउसग्गेणं तीयपडप्पन्नं पायच्छितं विसोहेइ विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे निव्वुयहिए अोहरिय भरुव्व भारबहे पसत्थज्माणोवगए सुहं सुद्देणं विहरइ ।
-उत्तराध्ययन २६ । १२ । .. कायोत्सर्ग मे दो शब्द हूँ-काय और उत्सर्ग। दोनों का मिल कर
अर्थ होता है-काय का त्याग । प्रतिक्रमण करने के बाद साधक अमुक , १'कायोत्सर्गकरणतः प्रागुपात्तकर्मक्षयः प्रतिपाद्यते । '
- हरिभद्रीय आवश्यक