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प्रत्याख्यान आवश्यक संसार में जो कुछ भी दृश्य ‘तथा अदृश्य वस्तुममूह है, वह सब न तो एक व्यक्ति के द्वारा भोगा ही जा सकता है और न भोगने के योग्य ही है । भोग के पीछे पड़कर मनुष्य कदापि शान्ति तथा श्रानन्द नहीं पा सकता । वास्तविक अात्मानन्द तथा अक्षय शान्ति के लिए भागों का त्याग करना ही एक मात्र उपाय है। अतएव प्रत्याख्यान आवश्यक के द्वारा साधक अपने को व्यर्थ के भोगों से बचाता है, यासक्ति के बन्धन से छुडाता है, और स्थायी यात्मिक शान्ति पाने का प्रयत्न करता है ।
प्रत्याख्यान का अर्थ है-'त्याग करना ।' 'वृत्ति प्रतिकूलतया श्रामर्यादया ख्यान 'प्रत्याख्यानम् ।। योग शास्त्र वृत्ति ।
१ प्रत्याख्यान में तीन शब्द है-प्रति + आ + पारयान । अविरति एवं असंयम के प्रति अर्थात प्रतिकूल रूप में, या अर्थात् मर्यादा स्वरूप आकार के साथ, याख्यान अर्थात् प्रतिज्ञा करना, प्रत्याख्यान है । 'अविरतिस्वरूप प्रभृति प्रतिकूलतया या मर्यादया आकारकरणस्वरूपया पाख्यान-कथनं प्रत्याख्यानम् ।'-प्रवचनसारोद्धार वृत्ति ।
अात्मस्वरूप के प्रति या अर्थात् अभिव्याप्त रूप से जिमस श्रनाशंसा रूप गुण उत्पन्न हो, इस प्रकार का आख्यान-कथन करना, प्रत्याख्यान है । ___भविष्यकाल के प्रति या मर्यादा के साथ अशुभयोग से निवृत्ति और शुभ योग में प्रवृत्ति का पाख्यान करना, प्रत्यारल्यान है।