________________
कायोत्सर्ग श्रावश्यक. निर्ममत्वं · भवेन्नून,... -महाधर्म-सुखाकरम् - ॥१८ १८४|| - ;
प्रश्नोत्तर श्रावकाचार - -~-कायोत्सर्ग के द्वारा ज्ञानी साधको का शरीर पर से ममत्रभाव.. छूट जाता है, और शरीर पर से ममत्वभाव का छुट जाना ही वस्तुतः महान् धर्म और सुख है। ___कायोत्सर्ग के सम्बन्ध में श्राज की क्या स्थिति है ? इस पर भी प्रसगानुसार कुछ विचार कर लेना आवश्यक है। आजकल प्रतिक्रमण करते समय जब ध्यान स्वरूप कायोत्सर्ग किया जाता है, तब मच्छरों से अपने को बचाने के लिए अथवा सरदी आदि से रक्षा करने के लिए शरीर को सब भोर से वस्त्र द्वारा ढक लेते हैं । यह दृश्य बडा ही। विचित्र होता है । यह ममत्व त्याग का नाटक भी क्या खूब है ? यह कायोत्सर्ग क्या हुआ ? यह तो उल्टा शरीर का मोह है। कायोत्सर्ग तो कष्टों के लिए अपने आपको खुला छोड देने में है । कष्ट सहिष्णु होने के लिए अपने को वस्त्र रहित बनाकर नंगे शरीर से कायोत्सर्ग किया जाय तो अधिक उत्तम है। प्राचीन काल मे यहीं परम्परा थी। प्राचार्य धर्मदास ने उपदेश माला में प्रतिक्रमण और कायोत्सर्ग करते-समय प्रावरण अोढने का निषेध किया है। कायोत्सर्ग करते समय-न बोलनाहै, न हिलना है । एक स्थान पर पत्थर की चट्टान के समान निश्चल , एवं निःस्पन्द जिन मुद्रा में दण्डायमान खड़े रहकर अपलक दृष्टि सेशरीर का ममत्व बोसराना है, आत्मध्यानमे रमण करना है । प्राचार्य भद्रबाहु आवश्यक नियुक्ति में इस ममत्व त्याग पर प्रकाश डालते हुए कहते हैंवासी-चंदणकप्पो,
जो मरणे जीविए य समसएए देहे य अपडिबद्धो,
काउस्सग्गो हवइ तस्स ॥१५४८॥ ..