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सामायिक आवश्यक . 'समभावरूप सामायिक के धारण करने से मानव-जीवन कष्टमय नहीं होता, क्यों कि संसार में जो कुछ भी मन, वचन, एव शरीरका कष्ट होता है, वह सब. विषमभाव से ही उत्पन्न होता है। और वह विषमभाव सामायिक में नहीं होता है।
नाम, स्थापना, द्रव्य, काल, क्षेत्र और भाव-उक्त छह भेदों से साम्यभावरूप सामायिक धारण किया जाता है:
(१) नाम सामायिक-चाहे कोई शुभनाम हो, अथवा अशुभ नाम हो, सुनकर किसी भी प्रकार का राग-द्वेष नहीं करना, नाम सामायिक है।
सामायिकधारी आत्मा शुभाशुभ नामो के प्रयोग पर, स्तुति-निन्दा के शब्दों पर, विचारता है कि किसी ने शुभ नाम अथवा अशुभ नाम का प्रयोग किया तो क्या हुआ? आत्मा तो शब्द की सीमा से अतीत है। अतएव मै व्यर्थ ही राग द्वेष के संकल्पों में क्यों फंसू?
(२) स्थापना सामायिक-जिस किसी स्थापित पदार्थ की सुरूपता अथवा कुरूपता को देखकर रागद्वेप नहीं करना, स्थापना सामायिक है।
सामायिक धारी आत्मा विचारता है कि जो कुछ यह स्थापित पदार्थ है वह मैं नहीं हूँ, अतः मुझे इसमें रागद्वेष क्यों करना चाहिए ? मै पात्मा हूँ, मेरा इम से कुछ भी हानि-लाभ नहीं है।
(३) द्रव्य सामायिक-चाहे सुवर्ण हो, चाहे मिट्टी हो, इन सभी अच्छे बुरे पदार्थों मे समदर्शी भाव रखना, द्रव्य सामायिक है।
सामायिक धारी आत्मा विचारता है कि यह पुद्गल द्रव्य स्वतः सुन्दर तथा असुन्दर कुछ भी नहीं हैं। अपना मन ही सुन्दरता, असुन्दरता, वहुमूल्यता, अल्पमूल्यता आदि की कल्पना करता है। श्रात्मा की दृष्टि से तो स्वर्ण भी मिट्टी है, मिट्टी भी मिट्टी है । हीरा और ककर दोनो ही जड पदार्थ की दृष्टि से समान हैं।