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वन्दन आवश्यक. वन्दन आवश्यक की शुद्धि के लिए यह जान लेना आवश्यक है कि वन्दनीय कैसे होने चाहिएँ ? वे कितने प्रकार के हैं ! अथच अवन्दनीय कौन है ? अवन्दनीय लोगों को वन्दन करने से क्या दोष होता है ? वन्दन करते समय किन-किन दोपो का परिहार करना जरूरी है ? जब तक साधक उपयुक्त विषयो की जानकारी न कर लेगा, तब तक वह कथमपि वन्दनावश्यक के फल का अधिकारी नहीं हो सकता।
मानव मस्तक बहुत उत्कृष्ट वस्तु है । वह व्यर्थ ही हर किसी के. चरणों में रगडने के लिए नहीं है । सबके प्रति नम्र रहना और चीज है, और पूज्य समझ कर सर्वात्मना आत्मसमर्पण कर वन्दना करना, दूसरी चीज है । जैनधर्म गुणों का पूजक है । वह पून्य व्यक्ति के. सद्गुण देख कर ही उसके श्रागे शिर झुकाता है। आध्यात्मिक क्षेत्र की-तो. बात दूसरी है। यहाँ जैन इतिहास में तो साधारण सासारिक गुणहीन. व्यक्ति को वन्दन करना भी पाप समझा जाता है। असंयमी को, पतित को वन्दन करने का अर्थ है-पतन को और अधिक उत्तेजन देना । जो. समाज इस दिशा में अपना विवेक खो देता है, वह पापाचार, दुराचार को निमत्रण देता है। प्राचार्य भद्रबाहु आवश्यक नियुक्ति मे कहते. है कि-'जो मनुष्य गुणहीन अवद्य व्यक्ति को वन्दन करता है, न तो उस के कर्मों की निर्जरा होती है और न कीर्ति ही। प्रत्युत असयम का, दुरागर का अनुमोदन करने से कर्मों का बन्ध होता है। वह बन्दन व्यर्थ का कायक्लेश-है.।' |
पासस्थाई वंदमाणस्स
नेव कित्ती न निज्जरा होई। काय:किलेसं एमेव
• कुणई तह कम्मबंधं च ॥११०८।। अवन्ध को वन्दन करने से वन्दन करने वाले को ही दोष होता है और वन्दन कराने वाले को कुछ पाप नही लगता, यह बात नही है। प्राचार्य भद्रबाहु स्वामी आवश्यक नियुक्ति मे कहते हैं कि यदि,
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