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श्रावश्यक दिग्दर्शन
करना चाहिए, कषाय का परिहार कर क्षमा आदि धारण करना चाहिए, और संसार की वृद्धि करने वाले अशुभ व्यापारों को छोड़ कर शुभ योगों को अपनाना चाहिए:
मिच्छत्त-पडिक्कमणं,
तहव असंजमे य पडिक्कमणं। कसायाण पडिक्कमणं, जोगाण य अध्पसस्थाणं ॥१२५०।।
--आवश्यक नियुक्ति प्राचार्य भद्रबाहु स्वामी, आवश्यक नियुक्ति में प्रतिक्रमण के सम्बन्ध में बहुत गम्भीर विचार धारा उपस्थित करते हैं। उन्होंने साधक के लिए चार विषयों का प्रतिक्रमण बतलाया है। प्राचार्यश्री के ये चार कारण सूक्ष्म दृष्टि से चिन्तन करने योग्य हैं
(१) हिसा, असत्य आदि जिन पार कर्मों का श्रावक तथा साधु के लिए प्रतिषेध किया गया है। यदि कभी भ्रान्तिवश वे कर्म कर लिए जायँ तो प्रतिक्रमण करना चाहिए।
(२) शास्त्र रवाध्याय, प्रतिलेखना, सामायिक आदि जिन कार्यों के करने का शास्त्र में विधान किग है, उनके न किए जाने पर भी प्रतिक्रमण करना चाहिए। कर्तव्य कर्म को न करना भी एक पाप ही है।
(३) शास्त्र प्रतिपादित आत्मादि तत्वों की सत्यता के विषय में सन्देह लाने पर, अर्थात् अश्रद्धा उत्पन्न होने पर प्रतिक्रमण करना चाहिए । यह मानसिक शुद्धि का प्रतिक्रम,ए है।
(४.) आगमविरुद्ध विचारों का प्रतिपादन करने पर, अर्थात् हिमा आदि के समर्थक विचारों की प्ररूपणा, करने पर भी अवश्य प्रतिक्रमण करना चाहिए । यह वचन शुद्धि का प्रतिक्रमण है।