________________
१४
श्रावश्यक-दिग्दर्शन ___ मैं पूछता हूँ किसी भी दुर्बल की रक्षा करना, किसी गिरते हुए जीच को सहारा देकर बचा लेना, किसी मारते हुए सबल को रोककर निर्बल की हत्या न होने देना, इस में कौन-सा सावध योग है ? कौन-सा पापकर्म है ? प्रत्युत मन में निस्वार्थ करुणा-भाव का संचार होने से यह तो सम्यक्त्व की शुद्धि का मार्ग है, मोक्ष का मार्ग है ! अनुकम्मा हृदय क्षेत्र की वह पवित्र गंगा है, जो पापमल को बहाकर साफ कर देती है। अनुकम्मा के विना सामायिक का कुछ भी अर्थ नहीं है। अनुकम्पा के प्रभाव में सामायिक की स्थिति ठीक वैसी ही है जैसे जमोतिहीन दीपक की स्थिति । ज्योतिहीन दीपक, दीपक नहीं, मात्र मिट्टी का पिंड है। सामायिक का सच्चा अधिकारी ही वह होता है, जो अनुकम्पा के अमृतरस से भरपूर होता है । प्राचार्य हरिभद्र आवश्यक बृहदवृत्ति मे लिखते हैं--'अनुकम्पाप्रवणचित्तो जीयः सामायिकं लभते, शुभपरिणामयुक्रत्वादु वैद्यवत् ।'
प्राचार्य भद्रबाहु स्वामी ने आवश्यक नियुक्ति में सामायिक के सामायिक, समयिक, सम्य वाद आदि आठ नामों का उल्लेख किया है। उसमें से समयिक शब्द का अर्थ भी सब जीवों पर सम्यका से दया करना है। प्राचार्य हरिभद्र समयिक की व्युत्पत्ति करते हैं'समिति सम्यक शब्दार्थ उपसर्गः, सम्यगअयः समयः-सम्यग दयापूर्वक जीवेषु गमनमित्यर्थः। समयोऽस्यास्तीति, अत इनि ठना (पा० ५-२-११५) विति ठन् समयिकम् ।
सामायिक के सम्बन्ध में बहुत लम्बा लिख चुके हैं। इतना लिखना आवश्यक भी था। अधिक जिज्ञासा वाले सज्जन लेखक का सामायिव-सूत्र देख सकते हैं।