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सामायिक आवश्यक 'सम्' उपसर्गपूर्वक 'गति' अर्थ वाली 'इण धातु से 'समय' शब्द बनता है ।' सम् का अर्थ एकीभाव है और अय का अर्थ गमन है, अस्तु जो एकी भावरूप से बाह्य परिणति से वापस मुड कर आत्मा की
ओर गमन किया जाता है, उसे समय कहते हैं। समय का भाव सामायिक होता है।"
उपर्युक्त निर्वचन का सक्षेप में भाव यह है कि-श्रात्मा को मन, पचन, काय की पापवृत्तियों से रोक कर आत्मकल्याण के एक निश्चित ध्येय की ओर लगा देने का नाम सामायिक है। सामायिक करने वाला साधक, बाह्य सांसारिक दुवृत्तियों से हट कर आध्यात्मिक केन्द्र की ओर मन को वश में कर लेता है, वचन को वश में कर लेता है, काय को वश में कर लेता है, कषायों को सर्वथा दूर करता है, राग-द्वप के दुर्भावो को हटाकर शत्रु मित्र को समान दृष्टि से समझता है, न शत्रु पर क्रोध करता है और न मित्र पर अनुराग करता है । हाँ तो वह महल और मसान, मिट्टी और स्वर्ण सभी अच्छे बुरे सांसारिक द्वन्द्वों में
___१ सम्' एकीभांचे वर्तते । तद्यथा, संगतं घृतं संगतं तैलमित्युच्यत एकीभूतमिति गम्यते । एकत्वेन अयनं गमनं समयः, समय एब सामायिकम् । समयः प्रयोजनमस्येति वा विगृध सामायिकम् ।'
-सर्वार्थ सिद्धि ७।११