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. . श्रावश्यक के छः प्रकार और केवल साधु ही नहीं, अपितु दोनों ही षडावश्यक का समान अधिकार रखते हैं । अतः जैन आवश्यक की साधना मानव मात्र के लिए कल्याण एवं मंगल की भावना प्रदान करती है।
अनुयोग द्वार सूत्र में आवश्यक के छः प्रकार बताए गए हैं'सामाइयं, चउवीसत्थो, वंदणयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं ।।
१सामायिक-समभाव, समता। २ चतुर्विशतिस्तव-वीतराग देव की स्तुति।। ३ वन्दन-गुरुदेवों को वन्दन । ४ प्रतिक्रमण-संयम में लगे दोपों की आलोचना । ५ कायोत्सर्ग-शरीर के ममत्व का त्याग । ६ प्रत्याख्यान-श्राहार आदि की आसक्ति का त्याग।
अनुयोग द्वार सूत्र मे प्रकारान्तर से भी छः आवश्यकों का उल्लेख किया गया है । यह केवल नाम भेद है, अर्थ-भेद नहीं।
सावज्जजोग-विरई,
, उक्कित्तण गुणवत्रो य पडिवत्ती। खलियस्स निदणा,
वणतिगिच्छ गुणधारणा चेव ॥ (१) सावद्ययोगविरति-प्राणातिपात, असत्य आदि सावध योगो का त्याग करना । अात्मा में अशुभ कमजल का आश्रव पापरूप प्रयत्नो द्वारा होता है, अतः सावध व्यापारो का त्याग करना ही सामायिक है।
(२) उत्कीर्तन-तीर्थंकर देव स्वयं कर्मों को क्षय करके शुद्ध हुए हैं और दूसरो को प्रात्मशुद्धि के लिए सावद्ययोगविरति का उपदेश दे गए हैं, अतः उनके गुणों की स्तुति करना उत्कीर्तन है। यह चतुर्विशतिस्तव आवश्यक है।