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'श्रमण' शब्द का निर्वचन
७५ यह निष्कर्ष हम ही नहीं निकाल रहे हैं, अपित सनातन धर्म के सुपसिद्ध भक्तराज जयदयालजी गोयनका भी गोरखपुर से प्रकाशित गीतांक मे लिखते हैं-'सत्त्व, रज और तम-इन तीनों गुणो के कार्य को 'गुण्य' कहते हैं । अतः समस्त भोग और ऐश्वर्य मय पदार्थों और उनकी प्राप्ति के उपायभूत समस्त कर्मों का वाचक यहाँ 'गुण्य' शब्द है। उन सब का अङ्ग-प्रत्यङ्गों सहित वर्णन जिन (ग्रन्थों) में वर्णन हो, उनको 'गुण्यविषयाः' कहते हैं । यहाँ वेदों को 'गुण्यविषयाः, बतला कर यह भाव दिखलाया है कि वेदों में कर्मकाण्ड का वर्णन अधिक होने के कारण वेद 'गुण्यविषय' हैं।"
केवल वेद ही नहीं, अन्यत्र भी आपको अनेकों ऐसे प्रसंग मिलेगे, जहाँ ब्राह्मण संस्कृति के भौतिक वाद का मुक्त समर्थन मिलता है। श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध में ईश्वरीय अवतार कहे जानेवाले श्रीकृष्णचन्द्रजी के जीवन का वर्णन कितना भोग-प्रधान है, कितना नग्न शृगारमय है, इसे हर कोई पाठक देख-सुन सकता है । जब कि ईश्वरीय रूप रखने वालों की यह स्थिति है, तब साधारण जनता की क्या स्थिति होनी चाहिए, यह स्वयं निर्णय किया जा सकता है। ___ अधिक लिखने का यहाँ प्रसग नहीं है । अतः अाइए, प्रस्तुत की चर्चा करे । श्रमण सस्कृति का मूलाधार स्वयं 'श्रमण' शब्द ही है। लाखों-करोडो वर्षों की श्रमण संस्कृति-सम्बन्धी चेतना आप अकेले श्रमण । शब्द मे ही पा सकते हैं । श्रमण का मूल प्राकृत 'समण' है । समण के संस्कृत रूपान्तर तीन होते हैं श्रमण, समन और शमन । 'समण' संस्कृति का वास्तविक मूलाधार इन्ही तीन संस्कृत रूपों पर से व्यक्त होता है । प्राचीन ग्रन्थों की लबी चर्चा न करके श्रीयुत इन्द्रचन्द्र एम. ए वेदान्ताचार्य के सक्षिप्त शब्दों मे ही हम भी अपना विचार प्रकट कर रहे हैं
(१) श्रमण' शब्द 'श्रम्' धातु से बना है। इसका अर्थ है श्रम करना । यह शब्द इस बात को प्रकट करता है कि व्यक्ति अपना विकास