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आवश्यक का निर्वचन निर्वचन का अर्थ है-सयुक्त पद को तोड कर अर्थ का स्पष्टीकरण करना । उदाहरण के लिए पकज शब्द को ही लीजिए । पंकज का शाब्दिक निर्वचन है- पंकाज्जायते इति पंकजा। 'जो पंक से उत्पन्न हो, वह कमल ।' इसी. निर्वचन की दृष्टि को लेकर प्रश्न है कि आवश्यक का शाब्दिक निर्वचन क्या है ?
श्रावश्यक का निर्वचन अनेकों प्राचार्यों ने किया है। अनुयोगद्वारसूत्र के सुप्रसिद्ध टीकाकार प्राचार्य मलधारी हेमचन्द्र, आवश्यक सूत्र के टीकाकार प्राचार्य हरिभद्र और मलयगिरि, और विशेषावश्यक महाभाष्य के टीकाकार प्राचार्य कोटि इस सम्बन्ध में बहुत ही सुन्दर वर्णन करते हैं। पाठकों की जानकारी के लिए हम यहाँ कोट्याचार्य के द्वारा विशेषावश्यकटीका मे बताये गए निर्वचन उपस्थित करते हैं।
(१) अवश्य करणाद् आवश्यकम् ।' जो अवश्य किया जाय वह आवश्यक है। साधु और श्रावक दोनो ही नित्य प्रति अर्थात् प्रति दिन क्रमशः दिन और रात्रि के अन्त में सामायिक श्रादि की साधना करते हैं, अतः वह साधना श्रावश्यक-पद-वाच्य है। उक्त निर्वचन अनुयोगद्वार-सूत्र की निम्नोक्त गाथा से सहमत है :
समणेण सावएण या
अवस्स कायव्वयं हवइ जम्हा । १ 'अवश्यंकर्तव्यमावश्यकम् । श्रमणादिभिरवश्यम् उभयकालं क्रियत इति भावः।-प्राचार्य मलयगिरि ।