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श्रमण-धर्म
.६३ योग के १२ भंग हो जाते हैं। इसी प्रकार वचन के १२ और शरीर १२, सब मिलकर सत्य महाव्रत के ३६ भंग होते हैं।
. अचौर्य महाव्रत • अचौर्य, अस्तेय एवं अदत्तादानविरमण सब एकार्थक हैं । अचौर्य, अहिसा और सत्य का ही विराट रूप है । केवल छिपकर या बलात्कार-' पूर्वक किसी व्यक्ति की वस्तु एवं धन का हरण कर लेना ही स्तेय नहीं है, जैसा कि साधारण मनुष्य समझते हैं। अन्यायपूर्वक किसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र का अधिकार हरण करना भी चोरी है। जैन-धर्म का यदि सूक्ष्म निरीक्षण करे तो मालूम होगा कि भूख से तंग आकर उदरपूर्त के लिए चोरी करने वाले निधन एवं असहाय व्यक्ति स्तेय पाप के उतने अधिक अपराधी नहीं हैं जितने कि निम्न श्रेणी के बड़े माने जाने वाले लोग।
(१) अत्या वारी राजा या नेता, जो अपनी प्रजा के न्यायप्राप्त राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा नागरिक अधिकारो का अपहरण करता है।
(२) अपने को धर्म का ठेकेदार समझने वाले संकीर्ण हृदय, समृद्धिशाली, ऊँची जाति के सवर्ण लोग; भ्रान्तिवश जो नीची जाति के कहे जाने वाले निर्धन लोगों के धार्मिक, सामाजिक तथा नागरिक अधिकारों का अपहरण करते हैं।
(३) लोभी जमींदार, जो गरीब किसानो का शोषण करते हैं, उन पर अत्याचार करते हैं।
(४) मिल और फैक्ट्रियों के लोभी मालिक, जो मजदूरों को पेट-भर अन्न न देकर सबका सब नफा स्वयं हडप जाते हैं।
(५) लोभी साहूकार, जो दूना-तिगुना सूद लेते हैं और ग़रीब लोगों की जायदाद आदि अपने अधिकार में लाने के लिए सदा सचिन्त रहते हैं।