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श्रावक धर्म
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. . ३-अचौर्य व्रत ___ दूसरे की सम्पत्ति पर अनुचित अधिकार करना चोरी है। मनुष्य को अपनी आवश्यकताएँ अपने पुरुषार्थ के द्वारा प्राप्त हुए साधनों से ही पूर्ण करनी चाहिएँ । यदि कभी प्रसंगवश दूसरों से भी कुछ लेना हो तो वह सहयोग पूर्वक मित्रता के भाव से दिया हुआ ही लेना चाहिए । किसी भी प्रकार का बलाभियोग अथवा अनधिकार शक्ति का उपयोग करके कुछ लेना, लेना नहीं है, छीनना है।
गृहस्थ साधक पूर्णरूप से चोरी का त्याग नहीं कर सकता तो कम से कम सेन्ध लगाना, जेब कतरना, डाका डालना इत्यादि सामाजिक एव धार्मिक दृष्टि से सर्वथा अयोग्य चोरी का त्याग तो करना ही चाहिए। अस्तेय व्रत की प्रतिज्ञा है कि मै स्थूल चोरी न स्वयं करूँगा और न दूसरों से करवाऊँगा।
अस्तेय व्रत की रक्षा के लिए निम्नलिखित कार्यों का त्याग आवश्यक है
(१) चोरी का माल खरीदना । (२) चोरी के लिए सहायता देना। (३) राष्ट्रविरोधी कार्य करना, कर श्रादि की चोरी करना । (४) झूठे तोल माप रखना । (५) मिलावट करके अशुद्ध वस्तु वेचना ।
४-ब्रह्मचर्य व्रत स्त्री-पुरुष सम्बन्धी संभोग क्रिया में भी जैन-धर्म पाप मानता है। प्रकृतिजन्य कहकर वह इस कार्य की कभी भी उपेक्षा करने के लिए नहीं कहता। संभोग क्रिया में असंख्य सूक्ष्म जीवों की हिंसा होती है । और कामवासना स्वयं भी अपने आप में एक पाय है। यह अात्मजीवन की एक प्रमुख बहिर्मुख क्रिया है। यदि गृहस्थ पूर्णरूप से ब्रह्मचर्य धारण नहीं