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कृष्ण लेश्या की अशुभतरता बढने के कारण मारने आदि की वृत्ति बन जाती है । जिसके कारण हिंसानुबंधी रौद्रध्यान कहलाता है । रौद्रता, भयंकरता, क्रूरता, कठोरता, दुष्टता, निष्ठुरता, निर्दयता आदि अनेक प्रकार की वृत्ति बन जाती है। ऐसे खराब परिणामों की वृद्धि कषाय की तीव्रता के कारण बनती है । तथा अशुभतर ऐसी कृष्णलेश्या खराब ज्यादा बन जाती है । तब हिंसा करने के, कराने आदि के क्रूर विचार रौद्रध्यान है। आर्त की अपेक्षा इसमें क्रूरता ज्यादा है । इससे वह मारने तथा मरवाने के लिए तैयार हो जाता है ।
निरंतरं निर्दयतास्वभावः, स्वभावतः सर्वकषायदीप्तः ।
मदोद्धत्तः पापमतिः कुशीलः स्यान्नास्तिको यः स हि रौद्रगेहम् ॥ ८४ ॥
ध्यानदीपिकाकार रौद्रध्यान की उत्पत्ति का कारण बताते हुए कहते हैं कि..... . हमेशा ही निर्दय वृत्ति का स्वभाववाला, ऐसे स्वभाव से सर्व प्रकार के क्रोधादि की प्रदीप्ति, अभिमान में आकर उद्धताइ, पापमय बुद्धि, कुशीलता और नास्तिकता ये रौद्रध्यान की उत्पत्ति का मूलस्थान है । स्वाभाविक ही है कि निर्दय दयारहित क्रूर व्यक्ति जल्दी ही क्रोधातुर होकर — हिंसा करने प्रेरित हो जाता है ।
अन्य जीवों को मारने के उपाय सोचता रहे, गोत्रदेवी - देवतादि की तुष्टि के लिए बकरा, मुर्गी मारना आदि प्रकार की हिंसा करता रहे, जलचर - स्थलचरादि को मारता रहे, अरे ! आकाशी पक्षियों को भी मारता रहे। उनके अंगों को काटता रहे, आंखे फोड दे । इत्यादि हिंसानुबंधी रौद्रध्यान की स्थिति है ।
२) दूसरा प्रकार मृषानुबंधी रौद्रध्यान में झूठ बोलने की वृत्ति है । दूसरों को ठगने के लिए ... शस्त्र बनाना, संचय करना, दूसरों को दुःख में फसाना, और अपना वांछित सुख भोगना, असत् कल्पनाओं के द्वारा मन मलीन करना, मृषावाद बोलकर किसी को मरवाना, बंदी बनाना आदि मृषानुबंधी रौद्रध्यान है । यह दुष्ट वचन, मर्मभेदक शब्दों को बोलने की अशुभ चिन्ता से जन्मता है । विश्वासघात करने की वृत्ति किसी को बोलकर चिडाने, परेशान करने आदि में ज्यादा आनन्द माननेवाला मृषानुबंधी रौद्रध्यान है ।
३) तीसरा प्रकार स्तेयानुबंधी रौद्रध्यान है । चोरी करने के क्रूर चिन्तन की सतत वृत्ति से यह उत्पन्न होता है । किसी का माल - पैसा चुराना, चोरने के लिए सोचते ही रहना, या चोरी करने के पश्चात् चोरी के अपराध में पकडा न जाय इसके लिए दाव-पेच खेलना, या पकडनेवाले को भी कैसे मारकर खतम करना, या मुझे चोरी करते कोई देख ले उसको भी कैसे मारना, चोरी करने के लिए नित्य नई नई योजना बनाते रहना, चोरी करते करते आध्यात्मिक विकास यात्रा
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