Book Title: Tirth Darshan Part 3
Author(s): Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publisher: Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MKARANAYAPAR STAVAN तीर्थ दर्शन तृतीय खंड Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 --------------------------------------------------------------------------  Page #4 --------------------------------------------------------------------------  Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिंसा परमो धर्म: तीर्थ दर्शन तृतीय खंड प्रकाशक : श्री जैन प्रार्थना मन्दिर ट्रस्ट (रजि.) (श्री महावीर जैन कल्याण संघ प्रांगण) चेन्नई - 600007. 6383 000000000000000000000000eerenvencengengenoege0000000000000000000oo0oo0oogoop00000000000000 481 श 69 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Research - Study - Compilation First Published in 1980 by Shree Mahaveer Jain Kalyan Sangh 96, Vepery High Road, Chennai - 600 007. Copyright's Registered Second Publication & Future Reprints (As authorised by Shree Mahaveer Jain Kalyan Sangh) By Shree Jain Prarthana Mandir Trust (Regd.) 96, Vepery High Road, Chennai - 600007. Year 2002. आवश्यक आवेदन अंजनशलाकायुक्त प्रतिष्ठित प्रभु प्रतिमाओं के फोटु प्रभु स्वरुप हैं, जिनमें दैविक परमाणुओं की उर्जा अवश्य रहती है । आजकल इन प्रभु प्रतिमाओं के फोटु के लेन्डर, पोस्टर, पत्रिकाओं आदि में छापे जा रहे हैं, क्या इन्हें संभालकर सही स्थान में रखना संभव है ? कब तक? आशातना से बचने हेतु इसके अंत परिणाम व अंत विसर्जन पर थोडा अवश्य सोचें व उचित निर्णय लें। कृपया इसमें छपे फोटु ओं आदि की किसी भी प्रकार कापी न करें । आवश्यकता पर संपर्क करें । अवश्य सहयोग दिया जायेगा । -प्रकाशक Printed at: "Srinivas Fine arts Ltd", Sivakasi - 626123. 482 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय प्रारंभ से इस पावन ग्रंथ की परिकल्पना, संकलन संशोधन व सम्पादन कार्य में हुवा मेरा नीजी अनुभव आदि का सविस्तार वर्णन इसके प्रथम प्रकाशन में व इस द्वितीय प्रकाशन के प्रथम व द्वितीय खण्ड में भी दिया गया है, जिन्हें पाठकगण कृपया अवश्य पढ़े ताकि पूरी जानकारी होकर आप में भी प्रभु भक्ति की तंरग अवश्य पैदा होगी । मैं तो पाठकों से यही कहूँगा कि इस प्रकाशन में दैविक शक्ति का प्रारंभ से हाथ है, अन्यथा यह असंभवसा कहा जानेवाला कार्य न पूर्व में हो पाता व न पुनः अभी भी । लोद्रवा पार्श्वनाथ तीर्थ पर दिनांक 1-4-1975 को अधिष्टायक देव द्वारा प्रत्यक्ष प्रकट होकर प्रदानित आशिरवाद के अतिरिक्त हमारे उसी भ्रमण में जगह-जगह आचार्य,मुनि भगवन्तों आदि के भी प्रत्यक्ष आशीर्वाद प्राप्त हुवे थे । पूरे नाम भी याद नहीं । परन्तु कहीं-कहीं हुई वार्तालय व अंतः करण से प्रदानित आशीर्वाद आज भी याद है । जैसे कुंभोजगिरि के निकट बाहुबली में आ. भ. श्री समन्तभद्रसागरजी, बम्बई में आ. भ. श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी,आ. भ. श्री धर्मसूरीश्वरजी, अहमदाबाद में आ. भ. श्री नन्दनसूरीश्वरजी, पिन्डवाडा में श्री भद्रंकर विजयजी, जालोर में श्री कल्याणविजयजी,जयपुर के निकट आ. भ. श्री तुलसीजी, हस्तीनापुर में साध्वीजी श्री मृगावती म.सा., दिल्ली में प्रवर्तनी साध्वीजी श्री विचक्षणश्रीजी म.सा., राजगिरि में श्री अमरमुनिजी आदि । श्री जिनेश्वरदेव अधिष्टायक देव-देवियों एवं सभी गुरु भगवंतो के आशीर्वाद ही इसकी सफलता का मूल कारण है । मैं तो बारबार आपसे यही कहूँगा कि इस पावन ग्रंथ को पढ़ने, अवलोकन करने या दर्शन करने आदि में ज्यादा से ज्यादा उपयोग मे लें व दूसरों को भी यही प्रेरणा दें । जिससे तीर्थों के प्रति श्रद्धा व प्रभु के प्रति भक्ति बढ़ेगी जो पुण्यफल प्रदायक रहेगी । इस प्रकाशन में अध्यात्मयोगी प. पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयकलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. ने भी पाठकों व दर्शकों के हितार्थ इस पावन ग्रंथ की उपयोगिता व उससे प्राप्त होनेवाले फल की अति ही सुन्दर ढंग से व्याख्या की है । जिसका इस ग्रंथ के तीनों खण्डों में समावेश है । पाठकगण उसे अवश्य ध्यानपूर्वक पढ़ें । इस पावन ग्रंथ के किसी भी अंश का किसी भी प्रकार दुरुपयोग न हो उसीको ध्यान में रखकर इसकी कापी राइट रिजर्व करवाकर रजिस्टर करवाई है । पाठकों से यह मैं अवश्य कहना चाहता हूँ कि कम से कम ग्रंथों में छपे प्रभु के फोटुओं की किसी भी प्रकार किसी भी कारण बिना हमारी लिखित अनुमति के कापी न करें व न किसी को करने दें । प्रतिष्ठित प्रभु प्रतिमा के फोटु भी प्रभु के स्वरूप है उनमें परमाणुओं की उर्जा अवश्य रहती है । आवश्यकता होने पर सम्पर्क करें, उनपर अवश्य गौर किया जायेगा । आजकल प्रायः देखा जाता है कि प्रतिष्ठित प्रभु प्रतिमाओं के फोटु भी केलेन्डर, पोस्टर, पेम्पलेट, पत्रिकाओं आदि में जगह-जगह यहाँ-तहाँ छापे जाते हैं । जरा हम सब मिलकर इसके अंत परिणाम व होनेवाली अंत स्थिती था विसर्जन पर थोड़ा शांतीपूर्वक सोचें तो हमें खुदकों सही स्थिती महसूस होगी । अतः मैं तो पाठकों व दर्शकों से यही निवेदन करता हूँ कि कृपया प्रभु के फोटु ऐसी जगह ही छपावें जो दर्शन या स्वाध्याय आदि हेतु काम में आते हो या संभालकर सही जगह रखने या रहने की संभावना हो अन्यथा उसे रोकें व दूसरों को भी यही प्रेरणा दें । ऐसे महान कार्य अनेकों के सहयोग से ही सफलता पूर्वक पूर्ण होते है अतः प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप में सहयोग प्रदान करने वाले सभी महानुभावों व शुभ चिन्तकों का मैं आभारी हूँ व हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। ____अंत में पुनः सभी तीर्थाधिराज भगवंतो, जिनेश्वरदेव, अधिष्टायक देव-देविओं, आचार्य, मुनिभगवंतों को आभार प्रदर्शित करते हुवे प्रार्थना करता हूँ कि आपका आशीर्वाद निरन्तर बना रहे व ऐसे पावन कार्य करने की हमें क्षमता प्रदान करें इसी आत्मिक कामना के साथ..... सम्पादक व संस्थापक मानन्द मंत्री चेन्नई, मार्च 2002 यू, पन्नालाल वैद 483 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग - 1 بیا بیا بی به به به به 180 182 184 به به 186 به 188 190 به अनुक्रमणिका (नाम-विशिष्टता-पृष्ठ संख्या) 2. वारंग 3. कारकल 4. मूडबिद्री 5. श्रवणबेलगोला 6. धर्मस्थल 7. हेमकूट-रत्नकूट तमिलनाडु 1. जिनगिरि 2. विजयमंगलम 3. पोन्नूरमलै 4. मुनिगिरि 5. तिरुमलै 6. जिनकांची 7. मनारगुड़ी 8. पुड़ल (केशरवाड़ी) केरला 1. कलिकुण्ड 2. पालुकुन्नू महाराष्ट्र 1. रामटेक 2. भद्रावती 3. अंतरिक्ष पार्श्वनाथ 4. बलसाणा 5. मांगी तुंगी 6. गजपंथा 7. पद्मपुर 8. अगासी 105 9. कोंकण 10. दहीगांव 11. कुंभोजगिरि 114 12. बाहुबली भाग - 2 192 196 199 به به به به 204 206 209 212 214 216 به बिहार 1. क्षत्रियकुण्ड 2. ऋजुबालुका 3. सम्मेतशिखर 4. गुणायाजी 5. पावापुरी 6. कुण्डलपुर 7. राजगृही 8. काकन्दी 9. पाटलीपुत्र 10. वैशाली 11. चम्पापुरी 12. मन्दारगिरि बंगाल 1. जियागंज 2. अजीमगंज 3. कठगोला 4. महिमापुर 5. कलकत्ता उडीसा 1. खण्डगिरि -उदयगिरि उत्तर प्रदेश 1. चन्द्रपुरी 2. सिंहपुरी 3. भदैनी 4. भेलुपुर 5. प्रभाषगिरि 6. कौशाम्बी 7. पुरिमताल 8. रत्नपुरी 9. अयोध्या 10. श्रावस्ती 11. देवगढ़ 12. कम्पिलाजी 13. अहिच्छत्र 14. हस्तिनापुर 15. इन्द्रपुर 16. सौरीपुर 17. आगरा आन्ध्र प्रदेश 1. कुलपाकजी 2. गुड़िवाड़ा 3. पेदमीरम् 4. अमरावती 5. गुम्मीलेरु कर्नाटका 1. हुम्बज به به NNNN FNNN 110 112 به به با 226 228 119 124 128 بی 130 بی 132 134 138 राजस्थान 1. पद्मप्रभुजी 2. महावीरजी 3. रावण पार्श्वनाथ 4. अजयमेरु 5. माण्डलगढ़ 6. नागौर 7. खिंवसर 8. फलवृद्धि पार्श्वनाथ 9. कापरड़ा 10. मान्डव्यपुर 11. गांगाणी 12. ओसियाँ 13. तिंवरी 14. विजयपुरपत्तन 15. जैसलमेर 254 256 258 260 262 264 266 268 140 144 23 148 152 154 276 156 158 280 282 286 162 56 484 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 406 NNN 408 290 296 298 300 302 306 308 310 314 318 320 322 324 328 410 412 414 416 418 420 422 424 426 428 430 433 436 438 440 442 444 446 448 452 454 456 458 462 330 332 334 65. झाड़ोली 66. आहोर 67. सियाणा 68. लाज 69. नाणा 70. काछोली 71. कोजरा 72. पिण्डवाड़ा 73. हंडाऊद्रा 74. धवली 75. दंताणी 76. भाण्डवाजी 77. स्वर्णगिरि 78. भिनमाल 79. सत्यपुर 80. किंवरली 81. कासीन्द्रा 82. देलदर 83. डेरणा 84. मुण्डस्थल 85. जीरावला 86. वरमाण 87. मण्डार 88. ओर 89. अचलगढ़ 90. देलवाड़ा (आबू) पंजाब 1. सरहिन्द 2. होशियारपुर हिमाचल प्रदेश 1. कांगडा दिल्ली 1. इन्द्रप्रस्थ 338 16. लोद्रवपुर 17. अमरसागर 18. ब्रह्मसर 19. पोकरण 20. नाकोड़ा 21. नागेश्वर 22. चंवलेश्वर 23. चित्रकूट 24. केशरियाजी 25. आयड़ 26. डुंगरपुर 27. पुनाली 28. वटपद्र 29. राजनगर 30. करेड़ा 31. नागहृद 32. देवकुलपाटक 33. नाइलाई 34. मुछाला महावीर 35. राणकपुर 36. नाडोल 37. वरकाणा 38. हथुण्डि 39. बालि 40. जाखोड़ा 41. कोरटा 42. खीमेल 43. पाली 44. वेलार 45. खुडाला 46. सेवाड़ी 47. कोलरगढ़ 48. सेसली 49. राड़बर 50. उथमण 51. सांडेराव 52. सिरोही 53. गोहिली 54. मीरपुर 55. वीरवाड़ा 56. बामनवाड़ा 57. नान्दिया 58. अजारी 59. नीतोड़ा 60. लोटाणा 61. दियाणा 62. सीवेरा 63. धनारी 64. वाटेरा 340 346 w w w 348 350 352 354 356 358 360 362 364 366 368 370 372 374 376 470 473 475 w 477 भाग - 3 378 12 1 2 3 491 494 496 نا نا गुजरात 1. कुंभारियाजी 2. प्रहलादनपुर 3. दांतपाटक 4. जूनाडीसा 5. थराद 6.ढीमा 7. वाव 8. भोरोल 9. जमणपुर 10. पाटण 11. मेत्राणा 12. तारंगा 13. खेड़ब्रह्मा 380 382 384 386 389 392 394 396 398 400 402 404 498 500 502 504 506 508 بنا نه 510 www 513 515 520 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 646 N AN N 649 N 652 N 530 657 532 534 537 660 662 664 544 668 670 672 548 674 550 676 678 NNNNNNNNNNNNNNNNNNNNNNN 552 555 684 558 560 562 686 688 690 564 566 14. वड़ाली 15. ईडर 16. देवपत्तन 17. मोटा पोसीना 18. वालम 19. मेहसाणा 20. आनन्दपुर 21. रत्नावली 22. गांभु 23. मोढेरा 24. कम्बोई 25. चाणश्मा 26. शियाणी 27. चारुप 28. भीलड़ियाजी 29. भद्रेश्वर 30. तेरा 31. जखौ 32. नलिया 33. कोठारा 34. सुथरी 35. कटारिया 36. गिरनार 37. नवानगर 38. वामस्थली 39. चन्द्रप्रभाष पाटण 40. अजाहरा 41. दीव 42. देलवाड़ा (गुजरात) 43. ऊना 44. दाठा 45. महवा 46. तालध्वजगिरि 47. घोघा 48. कदम्बगिरि 49. हस्तगिरि 50. शत्रुजय 51. वल्लभीपुर 52. धोलका 53. शंखेश्वर 54. उपरियाला 55. वामज 56. भोयणी 57. पानसर 58. महुड़ी 59. शेरीशा 60. कर्णावती 61. मातर 62. खंभात 63. पावागढ़ 64. कावी 65. गंधार 66. भरुच 67. झगड़ीया 68. दर्भावती 69. बोड़ेली 70. पारोली मध्य प्रदेश 1. लक्ष्मणी 2. तालनपुर 3. बावनगजाजी 4. पावागिरी 5. सिद्धवरकूट 6. माण्डवगढ़ 7. धारानगरी 8. मोहनखेड़ा 9. भोपावर 10. अमीझरा 11. इंगलपथ 12. बिबडौद 13. सेमलिया 14. परासली 15. दशपुर 16. वही पार्श्वनाथ 17. भलवाड़ा पार्श्वनाथ 18. कुंकुंटेश्वर पार्श्वनाथ 19. अवन्ती पार्श्वनाथ 20. उन्हेल 21. अलौकिक पार्श्वनाथ 22. बदनावर 23. मक्षी 24. विदिशा 25. सोनागिर 26. थुवौनजी 27. अहारजी 28. पपोराजी 29. नैनागिरि 30. द्रोणगिरि 31. खजुराहो 32. कुण्डलपुर 568 570 577 580 582 585 588 698 700 702 704 و 706 708 590 به 591 710 594 712 596 714 به 717 720 602 605 به به به به 607 724 726 128 به به به 730 731 734 به 626 628 به به 630 632 به 2 - به 634 3 - 1 - पुरातन क्षेत्र भोजनशाला की सुविधायुक्त चमत्कारीक क्षेत्र या मुनियों की तपोभुमि 4 - कल्याणक भूमि पंचतीर्थी 6 - कलात्मक 636 638 642 644 س به با 486 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRESIASIS 2020 COM UVODXOOX Da RESE SOBA ISGAUSITE T15** Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 488 1. कुंभारियाजी 2. प्रहलादनपुर 3. दांत पाटक 4. जूनाडीसा 5. थराद 6. ढ़ीमा 7. वाव 8. भोरोल 9. जमणपुर 10. पाटण 11. मेत्राणा 12. तारंगा 13. खेडब्रह्मा 14. वड़ाली 15. ईडर 16. देवपत्तन 17. मोटा पोसीना 18. वालम 19. मेहसाणा 20. आनन्दपुर 21. रत्नावली 22. गांभु 23. मोढेरा 24. कम्बोई 25. चाणश्मा 26. शियाणी 27. चारुप 28. भीलड़ियाजी 29. भद्रेश्वर 30. तेरा 491 494 496 498 500 502 504 506 508 510 513 515 520 522 524 526 528 530 532 534 537 540 542 544 546 548 550 552 555 558 गुजरात 31. जखौ 32. नलिया 33. कोठारा 34. सुथरी 35. कटारिया 36. गिरनार 560 562 564 566 568 570 37. नवानगर 577 38. वामस्थली 580 39. चन्द्रप्रभाष पाटण 582 40. अजाहरा 585 41. दीव 588 42. देलवाड़ा (गुजरात) 590 43. ऊना 591 594 596 599 602 605 607 611 44. दाठा 45. महुवा 46. तालध्वजगिरि 47. घोघा 48. कदम्बगिरि 49. हस्तगिरि 50. शत्रुंजय PAKISTAN BHUJ RANN OF KACHCHH JAMNAGAR JUNAGADH 51. वल्लभीपुर 52. धोलका 53. शंखेश्वर 54 उपरियाला JAIN PILGRIM CENTRES STATE CAPITAL DISTRICT HEADQUARTERS DISTRICT BOUNDARIES 55. वामज 56. भोयणी 57. पानसर 58. महुड़ी 59. शेरीशा 60. कर्णावती 61. मातर 62. खंभात 63. पावागढ़ 64. कावी 65. गंधार 66. भरुच 67. झगड़ीया 68. दर्भावती 69. बोड़ेली 70. पारोली AMRELI ARABIAN SEA APALAN MAHESAN SURENDRANAGAR AHMEDABAD HIMATNAGAR AGANDHINAGAR BHAWNAGAN KHEDA GULF OF KHAMBHAT RAJASTHAN VADODARA • SURAT GODHRA JAHWA 613 620 620 6.2 630 632 634 636 638 642 644 646 649 652 654 657 660 662 664 MAHARASHTRA Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GUJARAT JAIN PILGRIM CENTRES Bhorolo Dhimao Gadh sipu 13 THARAD Duva DHANERA Panthavada o Piluda Dhakao Kuchavada Amirgadh Poshingi Ramsan V Malan V . 17 Chitrasani BANASKAN Lakhmi Ambe 1 Kumbharia Bhadatho DANTIWADA Balaram Iqbalgadh Magadh o DESA Chandisar Hadado 4. Chadotar 40 VAV ardva Madka BHILDI Khimanao DANTA 7. PALANPUR f Aseda ( 2 Agio o 38 Navawas Gadh \VADGAM; W Suigam Benap DEODER Roiya O PLABUAR BHABHAR 21 SIHORI (KANKREJ) Morvada Jo Devgam o Thara Mervada KHEDBRAHMA Vakos Memadpur Mokeshwar Umerdas Sabarmati 13 7 y Rader Mena Dharoi Tarang Laxmipur Arjuni SVAGDODI 12 Sampa KHERALU 39 VADALIC 14 Kanader 15 ADER Bhilot RADHANPURK SIDHPURA 29 PATAN Anavda 10 Balisana 220 UNZA Roda Sipor O Gochana Gotarka Adiyao PATAN sandhial 20 Waswantgadh Badoli Miradataro C OVADNAGAR 16 lojamla Unavaa ma oransicuro. Ransipuro Davad Lnaramali Davad, bDaramali Bar Ranud24 Valai VISNAGAR ado UMATNAGAR 24 2500 23 1inch Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ____“तीर्थ - 'दर्शन" पावन ग्रंथ का उपयोग एवं प्रतिफल इस पावन ग्रंथ में सभी तीर्थाधिराज जिनेश्वर भगवंतों की अंजनशलाका युक्त प्रतिष्ठित प्रतिमाओं के मूल फोटु रहने के कारण यह ग्रंथ शुभ दैविक परमाणुओं की उर्जा से ओत प्रोत है। जिसे हमेशा, र सभय ध्यान में रखते हुर निम्न प्रकार उपयोग में लें। 1. उस पावन ग्रंथ को जिनेश्वर देवों का स्वरूप ही. समझकर अच्छे से अच्छे उच्च, गुह, साफ क-पवित्र स्थान में ही रखें जिससे वहां के परभाओं में शुद्धता व निर्मलता अवश्य रहेगी व शांति की अनुभुति होगी। पात दिन अगर बन सके तो सामायिक ग्रहण करके कम से कम 48 मिनर दर्शनार्थ उपयोग में लें जिससे सामायिक लाभ के साथ चित्त प्रभु में एकाग्र होने के कारण पुन्योपार्जन व निर्जग का लाभ निरंतर मिलता रहेगा) 3. प्रतिदिन कम से कम एक तीर्य का इतिष अवश्य पटें व दूसरों को पढ़ने की प्रेरणा देवे जिससे सबको यात्रार्च जाने की भावना जागृत होगी व वह जाने से विषेश आनंद की अनुभुति होगी जो पुग्यो पार्जन का साधन होगा। 4. कृष्या झूठे मुंह, गये पथों व वस्पल आदी पहनकर इस पावन ध का उपयोग न करें और नहीं इसे आवित्र जगह रखें ताकि पाप कर्म व आशातना से बच सकें। 5. हमेशा दर्शन स्वाध्याय करने से कान: शनैः दैविक परमाणुओं में वृही होथी जो सुख समृदि का कारण बनेगा। यह तीर्थ दर्शन गंध है। जिसके भ) शम से हमें घर के बेटे ही मानस यात्रा - भाव यात्रा करने का लाभ प्राप्त होता है। मूतिकी तरह चित्र भी शुभ भाव जगाने में कामयाब होने है। इस दृष्टि से उस ग्रंथ का उपयोग आत्मा के लिये हितकर रहेगा। परमात्मा के प्रति जो भक्ति भाव हमारे हृदय में प्रदिप्त होंगे वह हमें आत्मिक नसन्ता एवं आतिभक उन्नति की और ले जायेंगे, यह निश्चित बात है। लिसिरियल 490 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कुम्भारियाजी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री नेमिनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 2.13 कि. मी. (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल अम्बाजी गाँव से एक कि. मी. दूर दान्ता मार्ग पर एकान्त जंगल में ।। प्राचीनता इसका प्राचीन नाम आरासणा था, जिसका कुम्भारिया नाम में कब परिवर्तन हुआ - यह पता लगाना कठिन है । शिलालेखों से प्रतीत होता है कि लगभग विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी तक इसका नाम आरासणा रहा होगा । यहाँ के आसपास पड़े अवशेषों व उपलब्ध शिलालेखों से ज्ञात होता है कि किसी समय यह विराट नगरी रही होगी, व उसमें सैकड़ों जिन मन्दिर रहे होंगे । हो सकता है किसी समय भूकंप में यह नगरी धरातल हुई हो । आज यहाँ सिर्फ 5 जिन मन्दिर विद्यमान हैं । एक प्रसिद्ध किंवदन्ति के अनुसार मंत्री श्री विमलशाह द्वारा ये मन्दिर लगभग विक्रम सं. 1088 में निमित किये बताये जाते हैं । इस समय सबसे बड़ा मन्दिर श्री नेमिनाथ भगवान का है । अतः इसे मुख्य मन्दिर कहते हैं । यहाँ से आबू तक सुरंग थी, ऐसा कहा जाता है । तप्पागच्छ पट्टावली के अनुसार श्री वादीदेवसूरिजी ने विक्रम सं. 1174 से 1226 के दरमियान आरासणा में श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराई थी । 'उपदेशसप्तती में कही कथा के अनुसार आरासणा निवासी श्री गोगा मंत्री के पुत्र श्री पासिल ने श्री नेमिनाथ भगवान का मन्दिर बनवाकर श्री वादीदेवसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा करवाई थी । श्री नेमिनाथ भगवान मन्दिर-कुंभारियाजी 491 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्य मन्दिरों के परिकरों, गादियों व देरियों आदि पर विक्रम सं. 1118 से 1138 तक के लेख उत्कीर्ण हैं । विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी में जीर्णोद्धार होकर विक्रम सं. 1675 माघ शुक्ला 4 के दिन श्री विजय देवसूरिजी के हाथों पुनः प्रतिष्ठा होने का लेख विद्यमान है । इन सबसे सिद्ध होता है कि आरासणा नगरी में अनेकों प्राचीन मन्दिर थे । लेकिन वर्तमान मन्दिर लगभग विक्रम की 12 वीं शताब्दी के हैं । विशिष्टता उपदेशसप्तती में कही कथानुसार श्री गोगामंत्री के पुत्र श्री पासिल इस नगरी में रहते थे। उनकी पूर्व संचित पुण्याई कम हो जाने पर उनपर लक्ष्मी की कृपा कम हो गई थी । एक दिन व्यापार हेतु वे पाटण गये तब देव दर्शनार्थ राजविहार मन्दिर गये व खूब ध्यानपूर्वक निरीक्षण करने लगे । वहाँ उपस्थित हाँसी नाम की श्रीमंतश्राविका ने उनकी कृपण अवस्था देखकर मजाक करते हुए कहा कि क्या तुम्हे ऐसा मन्दिर बनवाना है, जो इतनी बारीकी से निरीक्षण कर रहे हो? दुखी हृदयी श्री पासिल ने नम्रता पूर्वक उत्तर दिया कि बहिन, यह कार्य मेरे लिए दुर्लभ है । लेकिन अगर मैने ऐसा मन्दिर बनवाया तो आपको आना होगा, यह मेरी विनती है । पासिल के हृदय में हाँसी श्राविका की बात गूंज रही थी । उसने श्री अंबिका देवी की आराधना आरंभ की । भाग्य योग से श्री अंबिका देवी प्रत्यक्ष हुई व सीसा नामक धातु की खान चान्दी हो जाने का वरदान दिया । वरदान सफल होंने पर श्री पासिल ने आरासणा में छटा युक्त पहाड़ियों के बीच, विभिन्न प्रकार की कलाओं से परिपूर्ण-देवविमान तुल्य श्री नेमिनाथ भगवान के भव्य मन्दिर का निर्माण कार्य प्रारंभ किया । एक वक्त उधर विचरते गुरु महाराज ने पूछा कि पासिल, चैत्य निर्माण का कार्य सुचारु रूप से चल रहा है न, पासिल ने उत्तर दिया कि देव और गुरु कृपा से ठीक चल रहा है । इस जबाब से देवी को क्रोध आया कि इसने मेरा आभार नहीं माना । देवी के क्रोध के कारण मन्दिर का कार्य शिखर तक आकर रुक गया। पासिल ने दीर्घ द्रष्टि से सोचकर पाटण से गुरु महाराज को व हाँसी श्राविका को पधारने के लिए निमंत्रण भेजा । आचार्य श्री वादीदेवसूरिजी ने आकर अपने सुहस्ते प्रतिष्ठा बड़े समारोह के साथ सम्पन्न करवाई । आश्चर्यचकित हाँसी श्राविका ने भी पासिल से आज्ञा लेकर एक विशाल मेघनाद मण्डप बनवाया जिसमें नौ लाख रुपये खर्च हुए । सिर्फ मण्डप में नौ लाख रुपये खर्च हुवे तो पूरे मन्दिर में कितने रुपये खर्च हुए होंगे? यह स्थान प्राचीनता व विशिष्ट घटनाओं के कारण तो विशेषता रखता ही है, साथ में शिल्पकला में भी अपना विशेष स्थान रखता है । प्रतिवर्ष माघ शुक्ला पंचमी को सभी मन्दिरों में ध्वजा चढ़ाई जाती है । ___ अन्य मन्दिर 8 इस मन्दिर के पास ही इसके अतिरिक्त 4 और विशाल व कलापूर्ण श्री महावीर भगवान, श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्री शान्तिनाथ भगवान व श्री संभवनाथ भगवान के मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य यह स्थल जंगल में पहाड़ों के बीच में रहने के कारण यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य अत्यन्त मनोरम है ही, यहाँ की शिल्पकला भी बेजोड़ है । यहाँ की कला देखते ही आबू देलवाड़ा, राणकपुर, जैसलमेर, गिरनार व खजुराहो आदि याद आ जाते हैं । श्री महावीर भगवान के मन्दिर के छतों में पत्थर पर बारीकी से की हुई शिल्पकला देखते ही बनती है । जैसे भावी चौबीसी के माता-पिता व छत्रघर, वर्तमान चौबीसी तथा उनके माता-पिता, चौदह स्वप्न, मेरु पर्वत पर इन्द्र महाराज द्वारा जन्माभिषेक, पंचाग्नि तप करते हुए कमठ योगी को श्री पार्श्वनाथ कुमार अहिंसा की बात समझाकर जलते हुए काष्ठ में से नाग-नागिन को निकलवाते हुए, भगवान को श्री धरणेन्द्रदेव नमस्कार करते हुए, श्री शान्तिनाथ भगवान का समवसरण श्री नेमिनाथ भगवान के पाँच कल्याणक आदि अनेकों भावपूर्ण प्रसंग पाषाण में उत्कीर्ण है । सारे मन्दिरों में भिन्न-भिन्न प्राचीन कला के नमूने है, जिनका जितना वर्णन करें, कम है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन आबू रोड़ लगभग 22 कि. मी. है । यहाँ का बस स्टेण्ड अम्बाजी है, जो कि यहाँ से एक कि. मी. है । वहाँ टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है । मन्दिर तक पक्की सड़क है । यह स्थल अहमदाबाद से हिम्मतनगर ईडर, खेड़ब्रझा होते हुए 180 कि. मी. दूर है । यहाँ से तारंगाजी 55 कि. मी. माऊन्ट आबू 55 कि. मी. दूर है । सभी जगहों से बस व टेक्सी की सुविधा है । 492 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ N बहाये S GETANT sifreinine LathalCE ducassentenderSTORIA Nement KUMCARIA 4050AL श्री नेमिनाथ भगवान-कुंभारियाजी पोस्ट : अम्बाजी-385110. जिला : बनासकांठा, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02749-62178. सुविधाएँ ठहरने के लिए सुन्दर धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधाएँ उपलब्ध है। नये ब्लाक भी बने हुए है। __ पेढ़ी श्री आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी, कुम्भारियाजी जैन तीर्थ, 493 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के कारण पहले यह मन्दिर श्री प्रहलादन पार्श्वनाथ मन्दिर के नाम से विख्यात था । अभी यह पल्लवीया पार्श्वनाथ मन्दिर के नाम से प्रचलित है ।। विशिष्टता कहा जाता है, परमार वंशी पराक्रमी राजा श्री प्रहलादन ने आबू देलवाड़ा की धातुमयी एक विशाल प्रतिमा को गला कर अचलेश्वर महादेव मन्दिर के लिये नन्दी बनवाया था, जिसके कारण राजा कुष्ठ रोग से पीड़ित होकर अत्यन्त कष्ट सहने लगे । अन्त में राजा व्याकुल होकर जंगल में चले गये । जंगल में आचार्य श्री शालिभद्रसूरीश्वरजी से उनकी भेंट हुई । राजा ने सारा वृत्तांत सुनाया व निवारण पाने के लिये प्रार्थना करने लगे । आचार्य श्री ने कुष्ठ रोग से पीड़ित राजा को आशीर्वाद देकर प्रायश्चित स्वरूप श्री पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर बनवाकर प्रभु प्रतिमा का न्हवण जल शरीर पर लगाने की सलाह दी । आचार्य श्री के उपदेशानुसार भव्य मन्दिर का निर्माण हुआ । देवाधिदेव श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा को अति ही विराट महोत्सव के साथ हर्षोल्लास श्री पल्लवीया पार्श्वनाथ मन्दिर दृश्य पूर्वक प्रतिष्ठित करवाया गया । प्रभु प्रतिमा के न्हवण जल का उपयोग करने पर राजा का कुष्ठ रोग निवृत्त हुआ । भक्तजन प्रभु को पल्लविया पार्श्वनाथ श्री प्रहलादनपुर तीर्थ कहने लगे । राजा अपने को कृतार्थ समझने लगा व जैन धर्मावलम्बी बनकर धर्म प्रभावना व उत्थान के तीर्थाधिराज श्री पल्लवीया पार्श्वनाथ भगवान, अनेकों कार्य किये । राजा खुद भी विद्वान थे, अतः श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 45 सें. मी. अनेकों ग्रन्थों की रचनाएँ की । उनके द्वारा रचित ग्रंथों (श्वे. मन्दिर) । में 'पार्श्व पराक्रम-व्यायोग' नाम का ग्रन्थ विख्यात तीर्थ स्थल 8 पालनपुर गाँव में । प्राचीनता 8 आबू के पराक्रमी राजा श्री सुप्रसिद्ध राणकपुर तीर्थ प्रतिष्ठाचार्य युगप्रधान आचार्य धारावर्षदेव के भाई श्री प्रहलादन ने अपने नाम पर श्री सोमसुन्दरसूरीश्वरजी का जन्म वि. सं. 1430 में प्रहलादनपुर नगरी बसाई थी । बाद में इसका नाम इसी नगरी में हुआ था । अकबर प्रतिबोधक आचार्य पालनपुर में परिवर्तित हुआ । इसका इतिहास विक्रम श्री हीरविजयसूरीश्वरजी की भी जन्म भूमि यही है । की तेरहवीं सदी के प्रारंभ का माना जाता है । इनका जन्म वि. सं. 1583 में यहाँ हुआ था । इस चमत्कारिक घटनाओं के पश्चात् राजा प्रहलादन जैन मन्दिर के सामने महिलाओं का उपाश्रय है । उसी स्थान पर आचार्य श्री हीरविजयसूरीश्वरजी का जन्म धर्म के अनुयायी बने व इस मन्दिर का निर्माण करवाकर श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित हुआ माना जाता है । करवाई थी, ऐसा उल्लेख है । वि. सं. 1274 अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में यहाँ इसके अतिरिक्त फाल्गुन शुक्ला पंचमी के शुभ दिन कोरंटगच्छाचार्य ___ 14 और मन्दिर हैं । श्री कक्कसूरीश्वरजी के शुभहस्ते वर्तमान प्रतिमा की कला और सौन्दर्य 8 इस मन्दिर में और भी प्रतिष्ठा संपन्न हुई । राजा प्रहलादन द्वारा निर्मित होने प्राचीन कलात्मक प्रतिमाएँ दर्शनीय है । श्री अम्बिका 494 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्रहलवीया पार्श्वनाथ भगवान-प्रहलादनपुर देवी की प्रतिमा पर सं. 1315 फाल्गुन शुक्ला पंचमी का लेख उत्कर्ण है । एक और गुरु प्रतिमा पर वि. सं. 1274 फाल्गुन शुक्ला पंचमी का लेख उत्कीर्ण है। अम्बिका देवी की प्रतिमा पर श्री 'विसलराय विहार' अंकित है, जो संशोधनीय है । अन्य मन्दिरों में भी प्राचीन प्रतिमाओं के दर्शन होते है । मार्ग दर्शन अहमदाबाद-आबू रोड़ रेल व सड़क मार्ग में पालनपुर रेल्वे स्टेशन है । रेल्वे स्टेशन व बस स्टेण्ड से मन्दिर लगभग एक कि.मी. है । टेक्सी व आटो की सुविधाएँ उपलब्ध है । मन्दिर तक कार व बस जा सकती है । सुविधाएँ ठहरने के लिए निकट में ही सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ पर भोजनशाला की सुविधा भी उपलब्ध है । पेढ़ी श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, श्री पल्लविया पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर, हनुमानसेरी, पोस्ट : पालनपुर जिला : बनासकांठा (गुज.), फोन : 02742-53731. 495 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री दांतपाटक तीर्थ तीर्थाधिराज 8 श्री आदिनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 67 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल बनास नदि के तटपर बसे दांतीवाड़ा प्राचीन गाँव में । प्राचीनता प्राचीन काल का दांतपाटक गांव आज दांतीवाड़ा के नाम से विख्यात है ।। यह मन्दिर लगभग ग्यारहवीं सदी पूर्व का निर्मित माना जाता है । इसके पूर्व बने मन्दिरों का पता लगाना कठिन है । इस मन्दिर में मूलनायक श्री आदीश्वर प्रभु की प्रतिमा पर उल्लेखित लेख के अनुसार वि. सं. 1236 में राउल राजा गजसिंहजी के राज्यकाल में आचार्य श्री विजय सोमसुन्दरसुरिजी द्वारा प्रतिष्ठित किये का उल्लेख है । हो सकता है उस वक्त इस मन्दिर का जीर्णोद्धार होकर भी पुनः प्रतिष्ठा हुई हो लेकिन इसके पूर्व के इतिहास का पता लगाना कठिन है । श्री शान्तिनाथ भगवान-प्राचीन प्रतिमा (नया मन्दिर) GOI6ICE श्री आदिनाथ जिनालय-दांतपाटक 496 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथ प्रभु की प्राचीन प्रतिमा आज भी विद्यमान है, परन्तु बनास नदि पर बांध बांधने का कार्य प्रारंभ होने के कारण सरकार ने इस गांव का ज्यादातर हिसा खाली होना आवश्यक समझकर आदेश जारी किया अतः सुरक्षार्त इस मन्दिर में विराजित प्रभु प्रतिमाओं को उत्थापन करना आवश्यक समझकर स्थानांतर करके यहाँ के पुराने उपाश्रय में विराजमान किया गया, पूजा-पाठ नियमित रूप से चालू है । श्रावकों ने भी अपना-अपना निवास स्थान आदि बदलना आवश्यक समझकर स्वेच्छानुसार जगहों पर बदला । इस प्रभु प्रतिमा व अन्य प्रतिमाओं को पुनः प्रतिष्ठित करवाने हेतु नये मन्दिर का निर्माण कार्य प्रारंभ किया जो अभी तक चल रहा है । कुछ श्रावकों ने सरकार द्वारा बसाये नये स्थान पर अपना निवास बदला व एक और अन्य मन्दिर का निर्माण कार्य प्रारंभ किया जो अभी तक चालू है । जहाँ श्री शांतीनाथ भगवान की भव्य व अलौकिक प्राचीन प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई जायेगी, जो इसी मन्दिर में थी । पूजा-पाठ नियमित चालू है । श्री आदिनाथ प्रभु का पुराना मन्दिर जहाँ से प्रतिमाएँ उत्थापन की गई, वह भी अभी तक सुरक्षित है । प्रभु से प्रार्थना है कि पुराने मन्दिर की जगह पूर्ण सुरक्षित घोषित होकर प्रभु प्रतिमा वहीं पुनः प्रतिष्ठित हो, ताकि मन्दिर का तीर्थ रूपी प्राचीन इतिहास कायम रहे, व यात्रिओं का आवागमन बना रहे । प्रारंभ किया श्री आदिनाथ भगवान-दांतपाटक गया नया मन्दिर भी शीध्र तैयार होकर प्रतिष्ठा सम्पन्न हो ताकि निकट रहने वाले श्रावकों को नियमित प्रभु-पूजा सेवा का लाभ मिलता रहे । विशिष्टता इस तीर्थ की प्राचीनता ही यहाँ की मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन मुख्य विशेषता है । अगर मन्दिर की पुरानी जगह पुनः पालनपुर 28 कि. मी. व डीसा 30 कि. मी. दूर हैं, सुरक्षित घोषित होकर वहीं पुनः प्रतिष्ठा हई तो यहाँ की जहाँ पर टेक्सी, बस व आटो की सवारी का साधन और विशेषता बढ़ेगी । संभवतः प्रभु कृपा से अवश्य है। यहाँ पर भी आटो की सवारी का साधन है । कार होगा । व बस मन्दिर तक जा सकती है । अन्य मन्दिर वर्तमान में उक्त उल्लेखानुसार सुविधाएँ फिलहाल ठहरने हेतु कोई खास एक और शान्तिनाथ भगवान के मन्दिर का निर्माण सुविधा नहीं हैं । कार्य चालू है। - कला और सौन्दर्य 88 श्री आदिनाथ प्रभु की । पेढ़ी श्री आदिनाथ भगवान जैन श्वे. मन्दिर, पाचीन पतिमा अतीव आकर्षक व प्रभावशाली है । नये श्री जैन उपाश्रय , पोस्ट : दातीवाडा - 385 505. मन्दिर में विराजित श्री शान्तिनाथ प्रभु की प्राचीन जिला : बनासकांठा, (गुज.), प्रतिमा भी अतीव मनोरम व दर्शनीय है । फोन : 02748-78025 पी.पी. 497 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LATHIHAR श्रीम AERPAN श्री महावीर भगवान-जूना डीसा से इस शहर को ही नहीं, हर श्रावक के घर को पवित्र बनाया । यहाँ के एक श्रावक की इच्छा हुई कि उसके घर में भी आचार्य श्री पधारे । यह श्रावक इतना शक्तिमान नहीं था । परंतु पत्नी के कहने पर उसने आचार्य श्री के पास जाकर विनती की, जिसपर तुरन्त ही आचार्य श्री ने मंजूरी दी व घर पधारे । श्रावक ने भक्तिभाव पूर्वक सामान्य चादर आचार्य श्री को बहराई। आचार्य श्री का जब पाटण शहर में विराट महोत्सव के साथ प्रवेश हुआ उस अवसर पर आचार्य श्री ने यही चादर धारण करके प्रवेश किया । राजा कुमारपाल आदि श्रेष्ठीगणों ने इस अतिसाधारण चादर धारण करने का कारण पूछा । तब आचार्य श्री ने कहा कि यह चादर भी एक परम भक्त द्वारा भेंट की गयी है । अगर आपको शर्म आती हो तो उन स्वधर्मी भाईयों को ऊँचा उठाओ, जिनकी स्थिति कमजोर है । राजा कुमारपाल ने इस बात पर गौर किया व तुरन्त ही आवश्यक कदम उठाया । उस श्रावक को भी बुलाकर सम्मान के साथ हजार मुद्राएँ भेंट दी । स्वधर्मी के प्रति आचार्य श्री द्वारा किया गया कार्य अति ही उल्लेखनीय है । आचार्य श्री विजय हीरसूरीश्वरजी द्वारा सूरीमंत्र की आराधना करने पर यहीं पर शासन देवी प्रसन्न हुई थीं । शासन देवी ने आशीर्वाद देकर कहा था कि जयविमलमुनिजी को आपके पट्टधर बनाने के बाद आप के द्वारा एक महान राजा प्रतिबोधित होगा जो जैन शासन की प्रभावना बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगा । तत्पश्चात् ही सम्राट अकबर ने आचार्य श्री से प्रतिबोध पाकर अपना गुरु माना व धार्मिक कार्यों के लिए अनेकों फरमान जाहिर किये । जयविमलमुनिजी बाद में आचार्य श्री सेनसूरीश्वरजी के नाम से प्रख्यात हुए । प्रतिवर्ष माघ शुक्ला 6 को ध्वजा चढ़ाई जाती है । अन्य मन्दिर वर्तमान में यहाँ इसके अतिरिक्त एक और श्री महावीर भगवान का मन्दिर व एक दादावाड़ी है, जहाँ आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयभद्रसूरीश्वरजी महाराज आदि की चरणपादुकाएँ है। कला और सौन्दर्य 8 कलात्मक प्रभु प्रतिमा अति ही सुन्दर व भावात्मक है । मार्ग दर्शन 8 नजदीक का रेल्वे स्टेशन डीसा लगभग 6 कि. मी. हैं, जहाँ से टेक्सी व बस की श्री जूना डीसा तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 45 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल जूना डीसा गाँव के मध्यस्थ । प्राचीनता यह तीर्थ क्षेत्र विक्रम की तेरहवीं सदी पूर्व का माना जाता है । पूज्य शुभशील गणीवर्य द्वारा रचित "प्रबन्ध पंचशतिका" में कलिकाल सर्वज्ञश्री हेमचन्द्राचार्य जब डीसा पधारे तब प्रवेश महोत्सव बहुत ही ठाठपूर्वक हुए का उल्लेख आता है । गत शताब्दियों में यहाँ अनेकों मन्दिर बने होंगे । इस मन्दिर का जीर्णोद्धार होकर पुनः प्रतिष्ठा वि. सं. 1888 में संपन्न हुई थी । विशिष्टता 8 विक्रम की तेरहवीं सदी में जब कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य मारवाड़ की तरफ से बिहार करके यहाँ पधारे तब बहुत ही ठाठपूर्वक यहाँ प्रवेश उत्सव हुआ था । आचार्य श्री ने अपने आगमन 498 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CHRE श्री आदीश्वर भगवान जूना डीसा सुविधा है । यहाँ से चारूप 35 कि. मी. भीलडीयाजी 30 कि. मी. व मेत्राणा 40 कि. मी. दूर है । सुविधाएँ गाँव में उपाश्रय व धर्मशाला भी है, जहाँ यात्रियों के लिए ठहरने की व भोजन की व्यवस्था हो सकती हैं । #R 2222 पेढ़ी श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, जूना डीसा, पोस्ट : जूना डीसा -385 540. जिला : बनासकांढा, प्रान्त गुजरात, फोन : 02744-22035 व पी.पी. 02744-23337. 499 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 500 श्री महावीर भगवान प्राचीन प्रतिमा श्री थराद तीर्थ तीर्थाधिराज श्वेत वर्ण (श्वे. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल मोहल्ले में । श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ, प्राचीनता इस नगरी के प्राचीन नाम विरपुर, थिरादि, थरापद्र, थिरापद्र आदि थे । यह गाँव थिरपाल धरु ने वि. सं. 101 में बसाया था व उसकी बहिन हरकु ने 1444 स्वंभों युक्त विशाल गगनचुम्बी बावन जिनालय मन्दिर बनवाया था, ऐसा उल्लेख है । श्री आदिनाथ भगवान मन्दिर थराद थराद गाँव के मोटा देरासर के कहा जाता है वर्तमान में बाद में स्थित श्री अजितनाथ भगवान की पद्मासनस्थ 31 इंची अलौकिक धातु प्रतिमा मुसलमानों के राज्यकाल में आक्रमणकारियों के भय से यहीं से बाव भेजी गयी थी। वह प्रतिमा वि. सं. 136 श्रावण अमावस्या के दिन इस मन्दिर में प्रतिष्ठित की गयी थी, ऐसा भी उल्लेख मिलता है। - FAM Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विक्रम की सातवीं सदी तक यहाँ थिरपाल धरु के वंशजों ने राज्य किया । बाद में नाडोल के चौहाण वंशजों ने राज्य किया । विक्रम की लगभग नवमी सदी में थिरापद्रगच्छ की यहाँ स्थापना हुई मानी जाती है । कुमारपाल राजा द्वारा यहाँ 'कुमार विहार' मन्दिर बनवाने का उल्लेख है । तेरहवीं सदी में श्रेष्ठी श्री अशलाद्दन दण्डनायक द्वारा यहाँ श्री आदीश्वर भगवान के मन्दिर में श्री चन्द्रप्रभ भगवान, सीमन्धर स्वामी, अंबिका देवी, भारती देवी आदि की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करवाने का उल्लेख है । चौदहवीं सदी में श्री विनयप्रभ उपाध्यायजी द्वारा रचित तीर्थ माला में यहाँ का उल्लेख है । सं. 1340 में माण्डवगढ़ के मंत्री श्री झाँझणशाह जब श्री शत्रुजयगिरि संघ लेकर गये तब यहाँ के श्रीमाल ज्ञाति के श्रेष्ठी श्री आभू भी संघ लेकर पहुंचे हुए थे । श्रेष्ठी श्री आभू को 'पश्चिम मॉडलिक' व संघ को 'लघु काश्मीर' की उपाधियाँ दी गयी थी । किसी वक्त यह एक विराट नगरी थी व सहस्रों सुसम्पन्न जैन श्रावकों के घर थे, जिन्होंने जगह जगह पर धर्म उत्थान के कार्य किये, वे उल्लेखनीय हैं । विशिष्टता यह मन्दिर विक्रम की पहली शताब्दी में राजा थिरपाल धरु की बहिन द्वारा निर्मित श्री आदीश्वर भगवान-थराद हुआ था । इन्होंने, जैन धर्म की प्रभावना के अनेकों कार्य किये । सुविधाएँ वर्तमान में ठहरने के लिए विशाल आचार्य श्री वटेश्वरसूरीश्वरजी ने थिरापद्रगच्छ की। धर्मशाला है, जहाँ बिजली, पानी, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने स्थापना यहीं की थी । के वस्त्र व भोजनशाला की भी सुविधा हैं । अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में इसके अतिरिक्त 10 पेढ़ी श्री थराद जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, मन्दिर और हैं । मैन बाजार, पोस्ट : थराद - 385565. कला और सौन्दर्य यहाँ के मन्दिरों में अनेकों जिला : बनासकांढा, प्रान्त : गुजरात, प्राचीन कलात्मक प्रतिमाओं के दर्शन होते है। फोन : 02737-22036. मार्ग दर्शन नजदीक का रेल्वे स्टेशन डीसा लगभग 55 कि. मी. हैं, जहाँ से बस व टेक्सी का साधन है । नजदीक का गाँव भोरोल 22 कि. मी. है। IIIIIAN मन्दिर तक कार व बस जा सकती है । यहाँ से अहमदाबाद, बम्बई बड़ौदा व राजकोट आदि के लिए बस सेवा उपलब्ध है। गाँव में टेक्सी, आटो की सुविधा है । 501 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ढीमा तीर्थ तीर्थाधिराज तीर्थ स्थल प्राचीनता इस तीर्थ की प्राचीनता का इतिहास मिलना कठिन सा है । श्री कुमारपाल राजा ने इस तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया था, ऐसी किंवदन्ति है । विशिष्टता कुमारपाल राजा द्वारा जीर्णोद्धार करवाये जाने के कारण इस प्राचीन तीर्थ की मुख्यतः विशेषता है । अभी पुनः जीर्णोद्धार का काम चल रहा है। अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त यहाँ और कोई मन्दिर नहीं हैं । कला और सौन्दर्य कला विशिष्ट है । प्रभु प्रतिमा की प्राचीन 502 श्री पार्श्वनाथ भगवान (श्वे. मन्दिर ) । ढ़ीमा गाँव में । मार्ग दर्शन नजदीक का रेल्वे स्टेशन डीसा हैं। I जहाँ से टेक्सी व बस की सुविधा है । मन्दिर तक कार व बस जा सकती है । यहाँ से थराद तीर्थ 14 कि. मी. भोरोल तीर्थ 9 कि. मी. व वाव तीर्थ 12 कि. मी. दूर है । सभी जगहों से बस व टेक्सी का साधन है। सुविधाएँ मन्दिर के निकट उपाश्रय है, परन्तु वर्तमान में ठहरने की कोई खास सुविधा नहीं है । अतः निकट के तीर्थ स्थलों में ठहरकर आना सुविधाजनक है । पेढ़ी श्री श्वेताम्बर जैन मूर्तिपूजक संघ, पोस्ट : दीमा -385 566. जिला : बनासकांढा, प्रान्त: गुजरात, फोन : 02740-26427. 02740-26411 पी.पी. श्री पार्श्वनाथ मन्दिर ढ़ीमा Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAGIACHOlane श्री पार्श्वनाथ भगवान-ढीमा 503 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहा जाता है थराद के राजा थिरपाल धरु द्वारा वि. सं. 136 में थराद के मन्दिर में प्रतिष्ठित यह प्रतिमा आक्रमण-कारियों के भय से यहाँ लायी गयी थी । प्रतिमाजी के परिकर पर अंकित लेख में सं. 136 वर्ष श्रा. व. 15 बुधे.........इत्यादि लिखा प्रतीत होता है। विशिष्टता 8 जनश्रुति के अनुसार यह मूर्ति यहाँ से 12 कि. मी. की दूरी पर स्थित थराद (थारापद्र) नगर में थी । सोने की मूर्ति थराद में है , यह सुनकर जब बादशाह अलाउद्दीन थराद पर चढ़ाई करनेवाला था, तब दूरदर्शी श्रावणकगण सुरक्षा के लिए इस प्रभावमयी मूर्ति को वाव नगर ले आये । कहा जाता है जब बादशाह थराद आया उस वक्त भक्तों ने एक दूसरी प्रतिमाजी पर सोने के वरक अच्छी तरह चिपका दिये थे ताकि बादशाह को शंका न हो । कितने दूरदर्शी, हिम्मती व प्रभु भक्त थे हमारे पूर्वज । प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला छठ को ध्वजा चढ़ती है । अन्य मन्दिर इस मन्दिर के निकट ही श्री गौडी पार्श्वनाथ भगवान का एक और मन्दिर है । __ कला और सौन्दर्य तीर्थाधिराज श्री अजितनाथ भगवान की परिकरयुक्त पंचधातु से निर्मित यह प्रतिमा अत्यन्त प्रभावशाली और चमकीली है । ऐसी अलौकिक प्रतिमा के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ हैं । मार्ग दर्शन नजदीक का रेल्वे स्टेशन डीसा 70 कि. मी. हैं, जहाँ पर बस व टेक्सी की सुविधा है। यहाँ से भोरोल तीर्थ 22 कि. मी. ढीमा तीर्थ 12 कि. मी. व थराद तीर्थ 12 कि. मी. दूर है । इन जगहों से भी बस का साधन है । मन्दिर तक बस व कार जा सकती है । यहाँ से पक्का रास्ता ओक थराद, सांचोर होता हुवा राजस्थान तरफ जाता है, दूसरा पालनपुर होता हुवा अहमदाबाद आदि जाता है, तीसरा राधनपुर होता हुवा कच्छ व काठियावाड़ तरफ जाता है। सुविधाएँ गाँव में ठहरने के लिए संघ की वाड़ी है, जहाँ पानी, बिजली की सुविधा हैं । पेढ़ी 8 श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, पेढ़ी । पोस्ट : वाव - 385575. जिला : बनासकांढा (गुज.) फोन : 02740-27113. श्री अजितनाथ भगवान मन्दिर-वाव श्री वाव तीर्थ तीर्थाधिराज 8 श्री अजितनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, सर्वधातुमयी प्रतिमा लगभग 85 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल 8 वाव गाँव के मध्यस्थ । प्राचीनता यह तीर्थ क्षेत्र तेरहवीं सदी का माना जाता है । कहा जाता है जब थराद के चौहाण राजा श्री पूंजाजी, मुसलमानों के साथ युद्ध में मारे गये तब उनकी पत्नी सौढ़ी राणी अपने पुत्र बजाजी को लेकर यहाँ से नजदीक युंडला टेकरी पर दीपा भील के आश्रय में रही थी । बजाजी ने बड़े होने पर यहाँ एक वाव बनायी थी, वि. सं. 1244 में उन्होंने यहाँ अपनी राजधानी बसायी व नाम वाव रखा । 504 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अजितनाथ भगवान-वाव 505 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नेमिनाथ जिनालय भोरोल श्री भोरोल तीर्थ तीर्थाधिराज श्री नेमिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्याम वर्ण, लगभग 76 सें. मी. (श्वे. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल भोरोल गाँव के मध्य । प्राचीनता यहाँ पर भूगर्भ से प्राप्त अनेकों प्राचीन प्रतिमाओं व अवशेषों से ही इस तीर्थ की प्राचीनता के प्रमाण मिल जाते है । प्राचीन काल में यह क्षेत्र पीपलपुर, पीपलपुर पाटण, पीपलग्राम वगैरह नामों से विख्यात था । अंचलगच्छ के वल्लभी शाखा के आचार्य श्री पुण्यतिलकसूरीश्वरजी के उपदेश से विक्रम सं. 1302 में कात्यायनगोत्र के श्रीमाल सेठ पूंजाशाह द्वारा यहाँ शहर के बाहर 1444 स्थंभों वाला बहत्तर देवकुलिकाओं सहित भव्य मन्दिर तथा एक बावड़ी सवा करोड़ रुपयों की धनराशि खर्च करके निर्मित करवाने का उल्लेख है । उक्त बावड़ी अभी भी जीर्णावस्था में मौजूद है । तालाब के पास हिंगलाज माता के मन्दिर में अंबिका देवी की एक खण्डित प्रतिमा व एक खण्डित परिकर है । परिकर पर विक्रम सं. 1261 ज्येष्ठ शुक्ला 2 को श्री जयप्रभसूरिजी द्वारा श्री नेमिनाथ भगवान के बिंव की प्रतिष्ठापना होने का उल्लेख है । इससे यह सिद्ध होता है कि सेठ पूंजाशाह नें विशाल मन्दिर का निर्माण करवाया उसके पहले भी यहाँ मन्दिर विद्यमान थे । 506 शिलालेखों से प्रतीत होता है कि विक्रम सं. 1355 तक तो इसका नाम पीपलग्राम था । संभवतः विक्रम सं. 1414 में रामजी चौहान ने सूंवर राजपूतों को हराकर इस गाँव पर कब्जा किया उस वक्त या कुछ उसके पूर्व नाम बदला हो । वर्तमान मन्दिर लगभग विक्रम की बारहवीं शताब्दी का निर्मित बताया जाता है। सं. 2022 में जीर्णोद्धार के समय चौवीस जिनालयरूप निर्मित इस मन्दिर में यहाँ भूगर्भ से प्राप्त श्री नेमिनाथ प्रभु की इस भव्य व चमत्कारिक प्रतिमा को मूलनायक रूप में व भूगर्भ से प्राप्त अन्य प्रतिमाओं को विभिन्न देवकुलिकाओं में पुनः प्रतिष्ठित करवाया गया । प्रतिमाजी पर कोई लेख नहीं है, परन्तु कलाकृति आदि से दशवीं सदी के पूर्व की प्रतीत होती है । संभवतः वि. सं. 1261 में श्री जयप्रभसूरीश्वरजी द्वारा प्रतिष्ठित यही प्रतिमा हो परन्तु प्रतिमा का निर्माण पहिले हुवा हो । अभी भी जीर्णोद्धार का कार्य चालू I विशिष्टता संभवतः पिप्पलगच्छ का उत्पत्ति स्थान यही होगा । किसी समय यहाँ अनेकों जैन मन्दिर व सैकड़ों जैन श्रावकों के घर थे । लगभग पन्द्रहवीं शताब्दी तक यह स्थल खूब ही जाहोजलाली पूर्ण रहा, ऐसा भूगर्भ से प्राप्त पत्थरों, ईंटों व खण्डहरों से अनुमान लगाया जाता है । यहाँ पर शोध कार्य किया जाय तो प्राचीन इतिहास प्रकाश में आ सकता है। श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा अति ही चमत्कारिक है । प्रतिवर्ष कार्तिक व चैत्री पूर्णिमा को मेला भरता है । हजारों जैन-जैनेतर आते रहते हैं । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त अन्य कोई मन्दिर नहीं हैं । कला और सौन्दर्य प्राचीन काल में अति जाहोजलाली पूर्ण क्षेत्र रहने के कारण भूगर्भ से अनेक कलात्मक अवशेष प्राप्त होते है । नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमा अति ही कलात्मक व प्रभावशाली है । इस मन्दिर की अन्य सारी प्रतिमाएँ भूगर्भ से प्राप्त हुई हैं। सारी प्रतिमाएँ राजा सम्प्रतिकाल की अत्यन्त सुन्दर व यथावत् हैं, जो दर्शनीय हैं । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन डीसा 60 कि. मी. भीलडीयाजी 40 कि. मी. व भामर 40 कि. मी. थराद 22 कि. मी. व ढ़ीमा 9 कि. मी. दूर है । इन जगहों से बस व टेक्सी की सुविधा है। कार व बस मन्दिर तक जा सकती है । Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एमासु yat) ((થીસંદોને અર્પણ TALLICE श्री नेमिनाथ भगवान-भोरोल जिला : बनासकांढा, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02737-24321. सुविधाएँ 28 ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त विशाल धर्मशाला व ब्लॉक हैं, जहाँ भोजनशाला भी हैं । पेढ़ी श्री नेमिनाथ भगवान जैन पेढ़ी, पोस्ट : भोरोल - 385 565. 507 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FORS 100.POROS के परिकर की गादी पर वि. सं. 1126 वैशाख कृष्णा 11 का लेख उत्कीर्ण है । यह परिकर राँतेज से लाया बताया जाता है । अभी-अभी पुनः जीर्णोद्धार हुवा है। विशिष्टता 'जामणकीयगच्छ' का उत्पत्ति स्थान यही है । गाँव के आसपास अनेकों जीर्ण इमारतें व पत्थरों के ढेर पड़े हैं । इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किसी समय यह एक विराट नगरी रही होगी । ___ अन्य मन्दिर वर्तमान में यहाँ इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर नहीं हैं । कला और सौन्दर्य प्रभु प्रतिमा की कला अति मनोरम है । मार्ग दर्शन 8 नजदीक का रेल्वे स्टेशन व गाँव हारीज लगभग 8 कि. मी. शंखेश्वर 22 कि. मी. व पाटण 27 कि. मी. दूर है । जहाँ पर बस, टेक्सी व आटो की सुविधा है । सुविधाएँ फिलहाल यहाँ ठहरने हेतु कोई सुविधा नहीं हैं । यात्रियों हेतु चाय व नास्ते की सविधा है । पूजा हेतु नहाने की सुविधा है । पेढ़ी 8 श्री चन्द्रप्रभु जैन देरासर पेढ़ी, पोस्ट : जमणपुर - 384 240. तहसील : हारिज, जिला : पाटण, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02733-86232 पी.पी. श्री चन्द्रप्रभ भगवान मन्दिर-जमणपुर श्री जमणपुर तीर्थ तीर्थाधिराज श्री चन्द्रप्रभ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल जमणपुर गाँव में । प्राचीनता एक धातु प्रतिमा पर सं. 1285 के लेख में श्री जामणकीयगच्छ का उल्लेख आता है । एक कथनानुसार मंत्रीश्वर श्री वस्तुपाल के पुत्र मंत्री श्री जैत्रसिंह ने अपनी पत्नी जमणदेवी के नाम पर यह नगरी बसायी थी । वस्तुपाल का जन्म वि. सं. 1240-42 का माना जाता है । इससे यह सिद्ध होता है कि यह तीर्थ क्षेत्र तेरहवीं सदी पूर्व का है । अंतिम जीर्णोद्धार होकर पुनः प्रतिष्ठा वि. सं. 1964 वैशाख शुक्ला 10 को हुई थी । मूलनायक भगवान 508 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चन्द्रप्रभ भगवान-जमणपुर 509 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पाटण तीर्थ शास्त्रानुसार अणहिल भरवाड़ द्वारा बतायी गयी जगह पर जैन श्रेष्ठी श्री चांपा की सलाह से नागेन्द्र गच्छाचार्य श्री शीलगुणसूरिजी ने विक्रम सं. 802 अक्षय तृतीया तीर्थाधिराज श्री पंचासरा पार्श्वनाथ भगवान, सोमवार के शुभदिन जैन विधि विधान से मंत्रोच्चारण पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 1.2 मीटर के साथ इस नगर की स्थापना करके नगरी का नाम (श्वे. मन्दिर) । अणहिलपुर पाटण रखा । पराक्रमी जैन राजा तीर्थ स्थल 8 पाटण शहर के मध्य । श्री वनराज चावड़ा को श्रीदेवी श्राविका द्वारा राजतिलक प्राचीनता इस नगरी का इतिहास विक्रम सं. करवाके गादी पर बिठाया गया । तत्पश्चात् राजा 802 से प्रारंभ होता है लेकिन यह पंचासरा पार्श्वप्रभु वनराज ने अपने पूर्वजों की राजधानी के गाँव पंचासरा की प्रतिमा उससे भी पुरानी है । इस नगरी का से श्री पार्श्वनाथ भगवान की इस अलौकिक प्रतिमा को इतिहास प्राचीन तो है ही, अति गौरवशाली व विशाल जनसमुदाय सहित नाना प्रकार के वाहनों व संशोधनीय भी है । वल्लभी व भीनमाल के पतन की विविध प्रकार की वाद्य-ध्वनि के साथ लाकर यहाँ पूर्ति कर सके, ऐसी समर्थ भूमि की खोज में चावड़ा नवनिर्मित भव्य जिनालय में महामहोत्सव पूर्वक हर्षोल्लास वंश के पराक्रमी राजा श्री वनराज लग्नशील थे, ताकि के साथ श्री शीलगुणसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा कराई, वहाँ अपनी वैभवशील राजधानी बना सकें । उन्होंने जिससे यह तीर्थ पंचासरा पार्श्वनाथ के नाम से तार्किक शिरोमणि गोपालक अणहिल भरवाड से चर्चा विख्यात हुआ । वनराज के बाद नवमी शताब्दी से की एवं उपयुक्त भूमी की खोज करने के लिए कहा । चौदहवीं शताब्दी तक चावड़ावंश के क्षेमराज, भुवड, अणहिल भरवाड़ ने सरस्वती नदी से निर्मल होती इस बज्रसिंह, रत्नादित्य, सामंतसिंह आदि राजा हुए । बाद सर्वोत्तम जगह पर कुत्ती व सियार को देखा । अतः में चालुक्य (सोलंकी) वंशज कुमारपाल आदि भी जैन उसने उत्तम शकुन समझकर इसी जगह राजधानी राजा हुए । इनके काल में यहाँ अनेकों मन्दिर बनने बसाने की श्री वनराज चावड़ा को सलाह दी । जैन का उल्लेख है । जैसे वनराज विहार, मूलराज वसहिका, श्री पंचासरा का विख्यात मन्दिर-पाटण 510 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ L श्री पंचासरा पार्श्वनाथ भगवान पाटण विहार, त्रिभुवन विहार, कुमार विहार, आदि भव्य मन्दिर बने । इनके अलावा भी सैकड़ों मन्दिर बने । कालक्रम से विक्रम सं. 1353 से 1356 के समय अलाउद्दीन के सेनापति के हाथों इस नगरी का विनाश होना शुरु हुआ । अनेकों मन्दिर नष्ट हुए । जाहोजलालीपूर्ण इस नगरी का पतन हुआ । पं. श्री कल्याणविजयजी द्वारा किये शोध मुजब विक्रम सं. 1370 के आसपास फिर से नया पाटण बसा व अनेकों मन्दिरों का फिर से निर्माण शुरु हुआ । खरतरगच्छ संबंधी विधिचैत्य मुजब श्री जिनकुशलसूरिजी के सुहस्ते विक्रम सं. 1379 से 1381 के अन्तर्गत अनेकों जिन मन्दिरों व आचार्य गुरु मूर्तियों की प्रतिष्ठाएँ हुई । वि. सं 1417 से 1422 तक भी अनेकों मन्दिरों की प्रतिष्ठा होने का उल्लेख है । विक्रम सं. 1648 में श्री ललितप्रभसूरिजी द्वारा रचित पाटण चैत्य परिपाटी में उस समय विशाल जैन मन्दिरों की संख्या 101 व देरासरों की संख्या 99 बताई है। इन मन्दिरों में हजारों प्रतिमाएँ थीं । जिनमें 38 अजोड़ रत्नों की प्रतिमाएँ भी थीं । विक्रम सं. 1729 में श्री हर्षाविजयजी द्वारा रचित चैत्य परिपाटी में 95 विशाल मन्दिर व 500 देरासर बतायें हैं। आज भी यहाँ सैकड़ो मन्दिर विद्यमान है । 511 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहा जाता है पाटण के पुनः उद्धार के समय इस शाह द्वारा आबू व गिरनार पर किये गये कार्य जग मन्दिर का भी उद्धार हुआ था । लेकिन वही प्राचीन विख्यात है । विक्रम सं. 1371 में शत्रुजय का उद्धार प्रतिमा अभी भी विद्यमान है । करवाने वाले श्री समरशाह भी यहीं के थे । ऐसे यहाँ विशिष्टता 8 पाटण ही एक ऐसी नगरी है, जहाँ के अन्य श्रेष्ठियों ने भी धर्म कार्य में अपनी शक्ति का पर (विक्रम सं. 802 से) नगरी की स्थापना से लेकर पूर्ण सदुपयोग किया है । पाटण के ज्ञान भण्डार भी आज तक सैकड़ों जिन मन्दिर रहे । बीच में बिलकुल विख्यात है । पाटण अपनी शूरता, सत्यता, पवित्रता, थोड़े समय के लिए तीर्थ विच्छेद रहा । वह समय तो व साहसिकता के लिए प्रसिद्ध है । पाटण में जैन यहाँ के लिए ही नहीं, सारे देश के लिए पतन का समय था । जैनाचार्य द्वारा जैन विधिविधान से नगरी साहित्य, कला व संस्कृति का खजाना है । की स्थापना करवाने का अवसर संभवतः यहीं प्रथम अन्य मन्दिर 88 इसके अतिरिक्त आज भी यहाँ हुआ, जो जैन इतिहास में उल्लेखनीय है । पाटण के के 55 मोहल्लों में 84 विशाल मन्दिर व 115 देरासर राजाओं, मंत्रीयों व श्रेष्ठियों ने यहाँ पर ही नहीं, लेकिन हैं । श्री हेमचन्द्राचार्य ज्ञान मन्दिर व अन्य अनेकों विभिन्न तीर्थ स्थानों, व कई जगहों में जिनालय बनवाये संस्थाएँ भी है । व धार्मिक एवं जन कल्याण के अनेकों कार्य किये ___ कला और सौन्दर्य यहाँ पर अनेकों प्राचीन जिनका जगह-जगह पर उल्लेख आता है । विक्रम की मन्दिर हैं, जिनमें प्राचीन प्रतिमाएँ व अन्य कलाकृतियों नवमी से चौदहवीं सदी तक यहाँ खूब जाहोजलाली के दर्शन होते हैं उन सबका वर्णन संभव नहीं । इनके रही। इस बीच सारे शूरवीर व धर्मवीर जैन राजा व मंत्री हुए । राजा वनराज चावड़ा के मंत्री भीनमाल अतिरिक्त कई मस्जिदों की कलाकृतियों के अवलोकन निवासी जैन श्रेष्ठी श्री नानाशाह के वंशज, लहर, वीर, करने से प्रतीत होता है कि पाटण के विनाश के समय नेढ़, विमल, धवल, आनन्द, पृथ्वीपाल वगैरह मंत्री कलात्मक मन्दिर मस्जिदों में परिवर्तित किये गये हों। हुए। इनके अतिरिक्त जाम्ब, चम्पक, मुंजाल, सांतु, यह नगर प्राचीन काल से अति जाहोजलाली पूर्ण रहने सज्जन, उदयन, बाहड़, आशुक, आलिग, सोलाक, के कारण यहाँ जगह जगह प्राचीन कला के नमूने कपर्दि, कुमारसिंह, वाधुयन, अम्बड़ आदि भी धर्म प्रेमी नजर आते है । व राजनीतिज्ञ जैन मंत्री व श्रेष्ठी हुए, जिन्होंने जगह मार्ग दर्शन 8 मन्दिर से पाटण रेल्वे स्टेशन व जगह पर धर्म प्रभावना के अनेकों कार्य किये जो सराहनीय है । श्री सोमप्रभसूरिजी द्वारा रचित कुमारपाल बस स्टेण्ड 2 कि. मी. है । यहाँ से मेहसाना लगभग प्रतिबोध में बताया गया है कि जब श्री हेमचन्द्राचार्य 50 कि. मी. सिद्धपुर 30 कि. मी., चारुप तीर्थ 12 ने पाटण में प्रवेश किया तब इस नगरी का घेराव 13 कि. मी., शंखेश्वर 70. कि. मी. चाणस्मा 19 कि. मी, कि. मी. का था व 84 चौक व 84 बाजार थे । प्रवेश डीसा 50 कि. मी. व अहमदाबाद लगभग 130 कि. अवसर पर 1800 करोड़पति श्रावक इकट्ठे हुए थे व मी. दूर है । सभी जगहों से बस व टेक्सी की सुविधा सारी नगरी लाखों दीपकों से झगमगा उठी थी । है। कार व बस मन्दिर तक जा सकती है । हेमचन्द्राचार्य ने यहाँ अनेकों ग्रन्थों की रचना की । सुविधाएँ ठहरने के लिये सर्वसुविधायुक्त 2 ___ श्री हेमचन्द्राचार्य, श्री अभयदेवसूरि, श्री मलयगिरि, ____धर्मशालाएँ व अतिथिगृह आदि है । जहाँ पर भोजनशाला, श्री यशचन्द्र, श्री सोमप्रभाचार्य, प्रज्ञाचक्षु, राजकवि, चाय, नास्ता व भाते की भी सुविधा है । श्रीपाल आदि विद्वानों से पाटण एक विद्या केन्द्र बन चुका था । लगभग सारे गच्छों के जैन आचार्यों ने यहाँ पेढ़ी श्री पंचासरा पार्श्वनाथजी जैन देरासर पदार्पण करके धर्म प्रचार में भाग लिया था । ट्रस्ट, हेमचन्द्राचार्य रोड़, आजाद चौक, बी. एम. हाई देवसुरिजी को वादी की पदवी से विभुषित यहीं किया। स्कुल के पास । गया था । यहाँ के राजा भीमदेव के दण्डनायक पोस्ट : पाटण - 384 265. जिला : पाटण (गुज.), विमलशाह व राजा सिद्धराज के दण्डनायक सज्जन फोन : 02766-22278 व 20559. 512 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथ भगवान-मत्राणा श्री मेत्राणा तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदिनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 30 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल मेत्राणा गाँव के मध्य । प्राचीनता उपलब्ध शिलालेखों के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि यह तीर्थ चौदहवीं शताब्दी पूर्व का है । क्योंकि विक्रम सं. 1343 आषाढ़ शुक्ला 2 सोमवार के दिन “देव सन्मुख धाडु पड्यो” ऐसा उल्लेख यहाँ पर उपलब्ध एक शिलालेख में है । कालक्रम से कुछ काल तक यह तीर्थ विच्छिन्न रहा। 513 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्पश्चात् वि. सं. 1899 में एक भाग्यवान श्रावक को आये स्वप्न के अनुसार इस प्रतिमाजी के साथ भूगर्भ से श्री आदिनाथ भगवान, श्री शांतिनाथ भगवान, श्री कुंथुनाथ भगवान व श्री पद्मप्रभ भगवान की प्रतिमाएँ भी प्राप्त हुई थीं। श्री संघ द्वारा निर्मित, विशाल मन्दिर में विक्रम सं. 1947 अक्षय तृतीया के शुभ दिन प्रतिमाओं को पुनः प्रतिष्ठित करवाया गया । एक प्रतिमाजी की गादी पर सं. 1351 का लेख उत्कीर्ण है । विशिष्टता प्राचीन काल में श्रावकगण धर्म के लिए मर मिटते थे । यहाँ पर उपलब्ध एक शिलालेख में उत्कीर्ण लेख के अनुसार विक्रम सं. 1343 आषाढ़ शुक्ला 2 सोमवार के दिन यहाँ डाकुओं द्वारा हुए लूटमार में मन्दिर की रक्षा के लिए श्रावक जयंतसिंह ने अपना प्राण त्याग दिया व साथ में उनकी धर्मपत्नी श्राविका भी सती हो गयी । ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा, चैत्री पूर्णिमा व माघ शुक्ला 13 के दिन मेला भरता है। यहाँ अखण्ड 514 ज्योत में कई वर्षों से निरन्तर केसरिया काजल के दर्शन होते हैं । अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त वर्तमान में यहाँ कोई मन्दिर नहीं हैं । कला और सौन्दर्य भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन प्रतिमाओं की कला दर्शनीय है। मार्ग दर्शन नजदीक का रेल्वे स्टेशन सिद्धपुर लगभग 12 कि. मी. है सिद्धपुर से व मंत्राणा गाँव में टेक्सी, आटो की सुविधा उपलब्ध है। यहाँ से पाटण 35 कि. मी. व पालनपुर 40 कि. मी. दूर है । सुविधाएँ ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त विशाल धर्मशाला हैं । जहाँ पर भोजनशाला की सुविधा उपलब्ध है । 384 290. पेढ़ी श्री रिखबदेव भगवान श्री जैन श्वेताम्बर देरासर कारखाना, पोस्ट मेत्राणा जिला पाटण (गुज.) फोन : 02767-81242. श्री आदिनाथ भगवान मन्दिर - मेत्राणा : Shinkal 0 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारंगा तीर्थ लगभग वीर नि. की छठी शताब्दी (विक्रम की पहली शताब्दी के पूर्व का है।) विशिष्टता इस श्वेताम्बर मन्दिर के दखिण तीथोधिराज 8 श्री अजितनाथ भगवान, दिशा में लगभग 1.0 कि. मी. दूर कोटिशिला स्थल है पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 2.75 मी. (१ फुट) जो कि इस पर्वत की ऊँची टेकरी पर है । कहा जाता (श्वेताम्बर मन्दिर) । है यहाँ अनेकों मुनिगण घोर तपश्चर्या करके मोक्ष श्री आदीश्वर भगवान (दिगम्बर मन्दिर) । सिधारे हैं । दिगम्बर मान्यतानुसार यहाँ से साढ़े तीन तीर्थ स्थल 88 तारंगा हिल रेलवे स्टेशन से क्रोड़ मुनि मोक्ष गये हैं जिनमें प. पूज्य मुनि श्री लगभग 5 कि. मी. (3 मील) दूर पहाड़ पर । सागरदता महाराज व मुनिश्री वरदता महाराज मुख्य प्राचीनता जैन ग्रंथों में इसका प्राचीन नाम हैं। 230 फुट लम्बे चौडे चौक के मध्य भाग में स्थित तारउर, तारावरनगर, तारणगिरि, तारणगढ़ आदि दिया यह श्वेताम्बर मन्दिर 142 फुट ऊँचा, 150 फुट लंबा है । वीर नि. सं. 1710 (विक्रम संवत् 1241) में व 100 फुट चौड़ा है । इस मन्दिर का शिखर आचार्य श्री सोमप्रभसूरिजी ने 'कुमार पाल प्रतिबोध' 27.5 मी. (करीब 90 फुट ऊँचा) व रंगमण्डप नामक ग्रन्थ की रचना की, जिसमें वीर नि. की छठी अतिविशाल है। मन्दिर का शिल्प प्राचीन व शताब्दी (विक्रम की पहली शताब्दी) में श्री बप्पुटाचार्य मनमोहक है । के उपदेश से यहाँ के राजा वत्सराय ने जैन धर्म अन्य मन्दिर पहाड़ पर इस मन्दिर के अंगीकार करके शासनाधिष्ठात्री श्री सिद्धायिकादेवी का अतिरिक्त 4 और श्वेताम्बर मन्दिर व 5 दिगम्बर मन्दिर यहाँ बनवाने का उल्लेख है, परन्तु बीच के मन्दिर हैं । मुख्य श्वेताम्बर मन्दिर के दक्षिण तरफ इतिहास का उल्लेख नहीं है । हो सकता है कालक्रम लगभग 1.0 कि. मी. दूर पहाड़ की ऊँची टेकरी पर से इस बीच यह तीर्थ विच्छेद रहा हो विर्तमान श्वेताम्बर कोटिशिला स्थल है जो अनेकों मुनियों की तपोभूमि है, मन्दिर जैनाचार्य शासनप्रभावक श्री हेमचन्द्रसूरिजी द्वारा जिसे यहाँ की पहली टूक कहते हैं । मोक्षबारी नामक प्रतिबोधित गुर्जर नरेश श्री कुमारपाल राजा द्वारा वीर दूसरी ट्रॅक यहाँ से पूर्व दिशा में 1.0 कि. मी. दूर है नि. सं. 1690 (विक्रम सं. 1221) में निर्माणित किये जिसे पुण्यबारी भी कहते हैं । यहाँ देरी में अजितनाथ का उल्लेख मिलता है । वीर नि. सं. 1753 (विक्रम प्रभु आदि की प्राचीन चरण पादुकाएँ हैं । देरी में संवत् 1284) के फाल्गुन शुक्ला 2 को संघपति श्री परिकरयुक्त भगवान की मूर्ति है । परिकर प्राचीन है वस्तुपाल द्वारा श्री नागेन्द्र गच्छाचार्य श्री विजयसेनसूरिजी और उसकी गादी पर विक्रम सं. 1235 वैशाख शुक्ला के हार्थों इस जिनालय में दो आलों में श्री आदिनाथ तृतीया का लेख उत्कीर्ण है । तीसरी सिद्धशिला ट्रॅक है प्रभु की दो प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करवाने का उल्लेख अब जो यहाँ से वायव्य दिशा में आधा मील दूर है । यहाँ भी इस मन्दिर में सुरक्षित है। ये दोनों प्रतिमाएँ तो पर देरी में चौमुखजी एवं अतिजनाथ भगवान की चरण विद्यमान नहीं हैं, पर शिलालेख वाले दोनो आसन पादुकाएँ है । उनपर विक्रम सं. 1836 का लेख है । मन्दिर में मौजूद हैं । वीर नि. सं. 1948 (विक्रम कला और सौन्दर्य पहाड़ पर का अनूठा संवत 1479) में ईडर निवासी श्री गोविन्द श्रेष्ठी द्वारा प्राकृतिक दृश्य व पुण्य भूमि का शुद्ध वातावरण आत्मा आचार्य श्री सोमसुन्दरसूरिजी के सुहस्ते इस तीर्थ का को परम शान्ति देता है । श्वेताम्बर मन्दिर का चार उद्धार किये जाने का उल्लेख है। अंतिम उद्धार वीर नि. मंजिल में चन्दन वर्ण पाषाण का कलात्मक नयनाभिराज सं. 2111 (विक्रम संवत् 1642) में आचार्य श्री गगनचुम्बी शिखर अत्यन्त विशाल चौक के बीच विजयसेनसूरिजी के हाथों करवाये जाने के लेख हैं । विशाल रंग मण्डप के साथ दिव्य लोक जैसा प्रतीत इनके अतिरिक्त तेरहवीं व चौदहवीं शताब्दी में इस होता है। कहा जाता है राजा कुमारपाल ने राणा मन्दिर में और जिन बिम्ब प्रतिष्ठित करवाने व गोखले अर्णोराज पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में यह आदि निर्माणित करवाने के उल्लेख भी मिलते हैं । मन्दिर बनवाया था और मन्दिर का शिखर 32 मंजिल इसलिए इन सबसे यह सिद्ध होता है कि यह तीर्थ का बनवाया था। हो सकता है जीर्णोद्धार के समय 515 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिखर की ऊँचाई कम हुई हो । श्री अजितनाथ प्रभु की विशालकाय भव्य प्रतिमा के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ ह । दिगम्बर मन्दिर पहाड़ की ओट में श्वेत वर्ण का अत्यन्त मनोरम प्रतीत होता है । मार्ग दर्शन 8 यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन तारंगाहिल लगभग 61/2 कि. मी. दूर है । जो कि मेहसाना-तारंगा रेल मार्ग का अन्तिम स्टेशन है । तारंगा हिल स्टेशन से तलेटी लगभग 5 कि. मी. है व उसके बाद पहाड़ की चढ़ाई करीब 1 1/4 कि. मी. है। तारंगाहिल से रखेरालू लगभग 24 कि. मी. वीसनगर 51 कि. मी. मेहसाना लगभग 72 कि. मी. व अहमदाबाद 150 कि. मी. दूर है। जहाँ से सीधी टेक्सी व बस का साधन मिलता है । पहाड़ तक पक्की सड़क है । सुविधाएँ तारंगाहिल स्टेशन के निकट ही ठहरने के लिए श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ हैं, जहाँ बिजली, पानी, बर्तन की सुविधाएँ हैं । पहाड़ पर सर्वसुविधायुक्त श्वेताम्बर पेढ़ी की तीन धर्मशालाएँ है । भोजनशाला की भी सुविधा है जो अलग ट्रस्ट द्वारा संचालित है । दिगम्बर धर्मशाला भी है जहाँ पर भी भोजनशाला की सुविधा उपलब्ध है । पेढ़ी 1. श्री आनन्दजी कल्याणजी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन पेढ़ी, पोस्ट : तारंगाजी - 384 350. तालुका : सतलासणा जिला : मेहसाणा, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02761-53411. 2. श्री तारंगाजी दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र कोठी, पोस्ट : टीम्बा - 384 350. फोन : 02761-53439. 516 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अजितनाथ भगवान-तारंगा 517 Page #42 --------------------------------------------------------------------------  Page #43 --------------------------------------------------------------------------  Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिर लगभग 500 वर्ष पूर्व का होगा-ऐसा अनुमान लगाया जाता है । विशिष्टता यह तीर्थ क्षेत्र अति ही प्राचीन होने के कारण यहाँ की विशेष महत्ता है । यहाँ हाटकेश्वर महादेवजी का मन्दिर भी है । इस स्थान को हिन्दू लोग भी अपना तीर्थ स्थान मानते है । गाँव से एक कि. मी. दूर श्री अम्बाजी का भी प्राचीन मन्दिर है। कहा जाता है अम्बाजी के मन्दिर जीर्णोद्धार के समय खोद कार्य करते वक्त भूगर्भ से अनेकों जिन प्रतिमाएँ प्राप्त हुई थीं, जिनमें यह अम्बाजी की प्रतिमा भी थी, जिसे प्राचीन समझकर प्रतिष्ठित किया गया । इससे अनुमान लगाया जाता है कि किसी समय यहाँ श्री नेमिनाथ भगवान का विशाल मन्दिर रहा होगा व श्री नेमिनाथ भगवान की अधिष्ठायिका श्री अम्बाजी की यह प्रतिमा भी उसी मन्दिर में रही होगी ।। अन्य मन्दिर * इसके अतिरिक्त श्री आदीश्वर भगवान का एक प्राचीन मन्दिर हैं । ___ कला और सौन्दर्य के श्री महावीर भगवान व श्री आदीश्वर भगवान की प्रतिमाएँ दर्शनीय हैं । श्री हाटकेश्वर महादेवजी के मन्दिर व श्री अम्बाजी के मन्दिर के पास अनेकों प्राचीन मन्दिरों के कलात्मक ध्वंसावशेष नजर आते हैं, जो यहाँ की प्राचीनता को प्रमाणित करते हैं । मार्ग दर्शन * यहाँ से खेड़ब्रह्मा रेल्वे स्टेशन आधा कि. मी. दूर है । बस स्टेण्ड भी आधा कि. मी. दूर है । इन जगहों से आटोरिक्शों की सुविधा है । मन्दिर तक कार व बस जा सकती है । यह स्थान कुंभारियाजी से 40 कि. मी., ईडर से 20 कि. मी. व अहमदावाद से 125 कि. मी. अहमदाबाद-अम्बाजी सड़क मार्ग में हैं। सुविधाएँ , ठहरने के लिए पुरानी धर्मशाला हैं । जहाँ पानी व बिजली की सुविधा हैं । पेढ़ी के श्री दशापोरवाल जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक पंचमहाजन, पोस्ट : खेड़ब्रह्मा - 383 255. जिला : साबरकांटा, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02775-20068 व 20108 पी.पी. श्री महावीर भगवान मन्दिर-खेडब्रह्मा श्री खेडब्रह्मा तीर्थ तीर्थाधिराज ॐ श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, बादामी वर्ण, लगभग 90 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल * खेड़ब्रह्मा गाँव में । प्राचीनता शास्त्रों में उल्लेखानुसार यह तीर्थ अति ही प्राचीन है । सतयुग में इस नगरी का नाम ब्रह्मपुर, त्रेतायुग में अग्निखेट, द्वापरयुग में हिरण्यपुर व कलियुग में तुलखेट था ऐसा पद्मपुराण में उल्लेख है। कोई समय यहाँ अनेकों दिगम्बर मन्दिर भी रहने का 'पुरातन ब्रह्मक्षेत्र' ग्रन्थ में उल्लेख है । यहाँ की एक प्राचीन अदिति वाव में वि. सं. 1256 का शिलालेख उत्कीर्ण है । इस पुरातन क्षेत्र का अनेकों बार उत्थान पतन हुआ होगा ऐसा प्रतीत होता है । वर्तमान 520 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीर भगवान-खेडब्रह्मा Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वड़ाली तीर्थ જળનવક Moodi श्री शान्तिनाथ भगवान-वड़ाली तीर्थाधिराज * श्री अमीझरा पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्याम वर्ण, लगभग 90 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल * वड़ाली गाँव में ।। प्राचीनता इसका प्राचीन नाम वाटापल्ली रहने का उल्लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान का यह मन्दिर लगभग बारहवीं सदी पूर्व का माना जाता है । श्री वटपल्ली गच्छ का उत्पत्ति स्थान यही माना जाता है। मारवाड़ के नानरोणा गाँव में एक प्रतिमा पर वि. सं. 1189 का लेख उत्कीर्ण है, जिसमें वटपल्ली गच्छ का उल्लेख है । यहाँ श्री शान्तिनाथ भगवान के बावन जिनालय भव्य मन्दिर में भमती के एक देहरी के पबासन पर वि. सं. 1275 वैशाख शुक्ला 4 को मन्दिर का जीर्णोद्धार होकर आचार्य श्री सोमसुन्दरसूरीश्वरजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा होने का उल्लेख है । 'प्रशस्तिसंग्रह' में भी इस तीर्थ का वर्णन हैं इन सब से इस तीर्थ की प्राचीनता स्वतः सिद्ध हो जाती है । विशिष्टता किसी वक्त प्रभु प्रतिमा से असीम मात्रा में निरन्तर अमी झरते रहने के कारण भक्तजन प्रभु को अमीझरा पार्श्वनाथ भगवान कहने लगे प्रतिमा अति ही चमत्कारिक है । श्री वटपल्ली गच्छ के आचार्यों ने जगह-जगह पर अनेकों धर्म प्रभावना के कार्य किये हैं । वे उल्लेखनीय हैं । अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में इसके अतिरिक्त श्री शान्तिनाथ भगवान का व श्री आदिनाथ भगवान का मन्दिर हैं । ये दोनों मन्दिर भी वि. की बारहवीं सदी पूर्व के माने जाते हैं । एक और मन्दिर खण्डहर रुप में विद्यमान हैं, जिसे भी श्री शान्तिनाथ भगवान का मन्दिर बताते है । __ कला और सौन्दर्य के सब मन्दिरों में प्राचीन जिन प्रतिमाओं के दर्शन होते है । सब प्रतिमाओं की कलाकृति अति ही सौम्य व दर्शनीय है । मार्ग दर्शन यहाँ का वड़ाली स्टेशन मन्दिर से लगभग एक कि. मी. है । यह स्थान अहमदाबाद-खेडब्रह्मा मार्ग में खड़ब्रह्मा से पहला स्टेशन है । यह स्थान ईडर श्री अमीझरा पार्श्वनाथ मन्दिर-बड़ाली 522 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अमीझरा पार्श्वनाथ भगवान-वड़ाली तीर्थ से 14 कि. मी., हिम्मतनगर से 44 कि. मी. व खेड़ब्रह्मा तीर्थ से 14 कि. मी. दूर है । गाँव में आटोरिक्शों का साधन है । मन्दिर तक कार व बस जा सकती है । सुविधाएँ * ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला हैं । जहाँ पर भोजनशाला व भाते की सुविधा भी है । पेढ़ी श्री वड़ाली जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, पोस्ट : वडाली - 383235. जिला : साबरकांठा, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02778-22419. 523 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वारा निर्मित मन्दिर का जीर्णोद्धार श्री गोविन्द श्रेष्ठी द्वारा होने का उल्लेख किया है । तत्पश्चात् श्री हेमविमलसूरिजी के शिष्य श्री अनन्तहंसजी द्वारा रचित "ईला-प्राकार" चैत्य परिपाटी में इस मन्दिर का जीर्णोद्धार श्री चंपक श्रेष्ठी द्वारा होने का उल्लेख है । लगभग विक्रम सं. 1681 में आचार्य श्री विजयदेवसूरीश्वरजी द्वारा श्री आदीश्वर प्रभु की नवीन प्रतिमा प्रतिष्ठित किये का उल्लेख है । इन सबसे यह सिद्ध होता है कि कुमारपाल राजा द्वारा अनेकों प्राचीन तीर्थों के जीर्णोद्धार करवाये गये । उसी भाँति श्री संप्रति राजा द्वारा निर्मित इस तीर्थ का भी जीर्णोद्धार करवाया गया होगा व उसके बाद समय-समय पर आवश्यक जीर्णोद्धार होते रहे । सत्रहवीं सदी के बाद श्री संघ द्वारा पुनः जीर्णोद्धार करवाकर श्री शान्तिनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई गई । अन्तिम जीर्णोद्धार विक्रम सं. 1970 में होकर आचार्य श्री लब्धिसूरीश्वरजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । यहाँ के इतिहास व उपलब्ध प्राचीन ध्वंसावशेषों से पता श्री श्वे. जैन मन्दिर-ईडरगढ़ लगता है कि किसी समय यह एक विराट नगरी थी व हजारों सुसम्पन्न श्रावकों के घर थे । विशिष्टता इस तीर्थ का इतिहास प्राचीनता के साथ अनेकों प्रकाण्ड आचार्य भगवन्तों व दानवीर श्रावकों की जन्मभूमि रहने के कारण विशेष महत्वपूर्ण है । आचार्य श्री आनन्दविमल सूरीश्वरजी का जन्म वि. तीर्थाधिराज श्री शान्तिनाथ भगवान, श्वेत ___ सं.1547 में यहीं हुआ था। आचार्य श्री विजयदेवसूरीश्वरजी वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 78 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। । का जन्म भी वि. सं. 1656 में यहीं हुआ था । अनेकों तीर्थ स्थल ईडर गाँव से एक कि. मी. दूर आचार्य भगवन्तों ने यहाँ रहकर कई ग्रंथों की रचनाएँ स्थित ईडर गढ़ की तलेटी से 12 कि. मी. चढ़ाई पर, की । आज भी यहाँ हस्तलिखित ग्रंथ भन्डार हैं, जिनमें रमणीय वनयुक्त पहाड़ी के मध्य ।। अनेकों ग्रंथ उपलब्ध हैं । प्राचीनता * किसी समय यह पहाड़ ईलापद्र राजसम्मान प्राप्त श्री गोविन्द श्रेष्ठी, श्रीपाल व ईलादुर्ग, ईयदर आदि नामों से विश्यात था । भगवान सहजपाल कोठारी, श्रेष्ठी वीसल, सहजूशाह, ईश्वर महावीर के 285 वर्षों पश्चात् श्री संप्रति राजा द्वारा श्री सोनी आदि अनेकों दानवीर श्रेष्ठी यहाँ हए जिन्होनें धर्म शान्तिनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाने का प्रभावना व जनकल्याण के अनेकों कार्य किये । वे प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है । श्री कुमारपाल आज भी अमर हैं । यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक व चैत्री राजा के राज्यकाल में आचार्य श्री जिनपति सूरीश्वरजी पूर्णिमा को मेले भरते हैं । द्वारा रचित "तीर्थ माला" में श्री चोलुक्य नरेश अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त वर्तमान में पहाड़ (राजा कुमारपाल) द्वारा मन्दिर निर्मित करवाकर श्री पर एक दिगम्बर मन्दिर है । ईडर गाँव में पाँच आदीश्वर भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाने का श्वेताम्बर मन्दिर व तीन दिगम्बर मन्दिर है । गाँव से उल्लेख है । आचार्य श्री मुनिसुन्दरसूरीश्वरजी ने 2 कि. मी. दूर खड़कवाली टेकरी पर श्रीमद् राजचन्द्र "ईडरनायकऋषभदेवस्तवन" में श्री कुमारपाल राजा विहार है, जहाँ स्वाध्याय मन्दिर व एक और टेकरी पर 524 श्री ईडर तीर्थ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ans......... श्री शान्तिनाथ भगवान-ईडरगढ़ श्री चन्द्रप्रभ भगवान की देरी है । यहाँ से 3 कि. मी. दूर हाईवे पर पावापुरी नूतन मन्दिर व 8 कि. मी. हाईवे पर शत्रुजय धाम नूतन मन्दिर निमित हुवे हैं । कला और सौन्दर्य 8 यहाँ की प्राचीन कला यहाँ उपलब्ध ध्वंसावशेषों में लुप्त है । इस मन्दिर से शोटी दर रणमल की चौकी नाम का प्राचीन मन्दिर है, जो खण्डहर हालत में पड़ा है । मन्दिर में प्रतिमाजी नहीं है । इस मन्दिर में कुछ प्राचीन कला नजर आती लगभग 2 कि. मी. पर तारंगा रास्ते होकर जायेगा व हाई वे से लगभग एक कि. मी. होगा । यह स्थान अहमदाबाद-अम्बाजी सड़क मार्ग पर है। अहमदाबाद से 100 कि. मी. खेड़ब्रह्मा से 20 कि. मी. व कुम्भारियाजी से 65 कि. मी. दूर है । सविधाएँ ठहरने के लिए ईडर गाँव में धर्मशाला हैं, जहाँ बिजली, पानी, बर्तन व भोजनशाला की सुविधा है । पहाड़ पर भी सर्वसविधायक्त धर्मशाला व भोजनशाला की सुविधा उपलब्ध है । पेढ़ी शेठ आनन्दजी मंगलजीनी पेढ़ी, कोठारी वाडा. गोडीजी जैन देरासर के पास पोस्ट : ईडर - 383 430. जिला : साबरकांठा, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02778-50080, पहाड़ पर 50442. मार्ग दर्शन 8 अहमदाबाद-खेड़ब्रझा मार्ग में ईडर रेलवे स्टेशन है। टेक्सी व आटो की सुविधा उपलब्ध है। तलहटी तक कार व बस जा सकती है । रेलवे स्टेशन व ईडर गाँव से तलहटी एक कि. मी. व तलहटी से पहाड़ की चढ़ाई 1 1/2 कि. मी. है । 600 पगथीये बने हुए हैं । पगथीयों के दोनों तरफ लाईट है । पहाड़ के मन्दिर तक बस व कार द्वारा जाने हेतु सड़क निर्माण का कार्य चालु है, जो अम्बाजी हाईवे में 525 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यहाँ यही एक मन्दिर विद्यमान है जो लगभग सातवीं श्री देवपत्तन तीर्थ सदी पूर्व का माना जाता है, हो सकता है, उस वक्त जीर्णोद्धार हुवा हो क्योंकि मूलनायक भगवान की तीर्थाधिराज श्री पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, प्रतिमा राजा श्री सम्प्रति द्वारा भराई गई प्रतीत होती श्वेत वर्ण (श्वे. मन्दिर) । है । मन्दिर में अन्य 6 प्रतिमाएँ भी प्राचीन है । तीर्थ स्थल दावड़ गाँव में । विशिष्टता 8 इस प्राचीन तीर्थ पर स्थित प्राचीनता 8 आज का छोटासा दावड़ गांव प्राचीन सात वावडियाँ व 20 एकड के घेराव वाला प्राचीनकाल में दावड़पुर, देवकीपटन, देवपत्तन आदि । विशाल तालाब व एक शिखरबंद मन्दिर यहाँ की मुख्य नामों से विख्यात था । विशेषता है । यह विशाल तालाब श्री सिद्धराज जयसिंह यहाँ की टूटी-फूटी प्राचीन कलात्मक वावड़िया, की राणी हांसलदेवी द्वारा निर्मित है जो हांसलेसर के मन्दिर, देवालय आदि के खण्डहरों से प्रतीत होता है। नाम से विख्यात है । कि पूर्व में यह एक विराट नगरी रही होगी। मूलनायक प्रभु की प्रतिमा अतीव चमत्कारिक है । __ यहाँ एक मकान की नींव खोदते समय लगभग यहाँ के अधिष्ठायक कभी-कभी नागदेव के स्वरुप में 200 खण्डित जिनप्रतिमाएँ प्राप्त हुई थी, जो पुनः दर्शन भी देते हैं । तालाब में विसर्जन कर दी गई थी । यहीं एक और मकान की नींव खोदते समय श्री महावीर भगवान व आचार्य कमलसुरिजी के उपदेश से प्रभावित होकर धरणेन्द्र-पद्मावती सहित श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमाएँ प्राप्त यहाँ के जागीरदार ने यहाँ तालाब में मछली पकडने पर हुई थी जो यहाँ विराजित है । इससे प्रतीत होता है। प्रतिबंध लगाकर शिलालेख लगाया था जो आज भी कि किसी समय यहाँ अनेकों मन्दिर रहे होंगे । आज अमल में हैं । #s2નદેરાસર. श्री पार्श्वनाथ भगवान मन्दिर-देवपत्तन 526 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ URUVायकर या श्री पार्श्वनाथ भगवान-देवपत्तन ST अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त और कोई मन्दिर नहीं हैं । कला और सौन्दर्य मन्दिर में प्राचीन सात प्रतिमाएँ अतीव भावात्मक व कलात्मक है । मूलनायक भगवान की प्रतिमा भी प्राचीन व प्रभावशाली है । यहाँ टूटी-फूटी सात वावड़ियों में भी कलात्मक अवशेष आज भी नजर आते हैं । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन जादर लगभग 12 कि. मी. दूर है व ईडर 25 कि. मी. दूर, जहाँ से आटो व टेक्सी की सुविधा है। नजदीक का हवाई अड्डा अहमदाबाद है जो लगभग 100 कि. मी. दूर है । एँ वर्तमान में यहाँ ठहरने आदि की कोई सुविधा नहीं हैं । पेढ़ी 8 श्री पार्श्वनाथ भगवान जैन श्वे. मन्दिर, श्री दावड़ जैन देरासर ट्रस्ट, पोस्ट : दावड़ - 383 255. तालुक : ईडर, जिला : साबरकांठा (गुजराज), फोन : पी.पी. 02778-77231. 527 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मोटा पोसीना तीर्थ तीर्थाधिराज श्री विघ्नहरा पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 105 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल पहाड़ी के बीच स्थित ।। प्राचीनता कहा जाता है विक्रम की तेरहवीं सदी में यह प्रतिमा यहाँ पेड़ के नीचे भूगर्भ से प्रकट हुई थी । श्री कुमारपाल राजा ने मन्दिर का निर्माण करवाकर इस प्रभु प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया था-ऐसी किंवदन्ति है । यहाँ उपलब्ध शिलालेखों में उत्कीर्ण उल्लेखानुसार वि. सं. 1481 में इस तीर्थ का जीर्णोद्धार हुआ था । इससे यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि यह तीर्थ पंद्रहवीं सदी पूर्व का है । तत्पश्चात् विक्रम की सत्रहवीं सदी में आचार्य श्री विजयदेवसूरीश्वरजी के समय पुनः जीर्णोद्धार होने का उल्लेख है । विशिष्टता 8 यह एक प्राचीन तीर्थ स्थान है जिससे इसकी मुख्य विशेषता है । प्रति वर्ष गुजराती मिती वैषाख कृष्णा 11 को ध्वजा चढ़ती है, तब अनेकों यात्रीगण इकट्ठे होकर प्रभु-भक्ति का लाभ लेते हैं। यहाँ श्री महावीर भगवान के मन्दिर में श्री क्षेत्रपालजी वीरदादाजी अति ही चमत्कारी है । जैनेतर लोग भी प्रायः आते रहते हैं । यहाँ कई वर्षों से अखण्ड ज्योत में केशरिया काजल पड़ता है । अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त निकट ही तीन और मन्दिर हैं । ___ कला और सौन्दर्य सारे मन्दिरों की प्रतिमाएँ प्राचीन व कलात्मक हैं । सारे मन्दिर भी प्राचीन रहने के कारण कलात्मक प्रतिमाओं व अवशेषों के दर्शन होते है । मार्ग दर्शन नजदीक का रेलवे स्टेशन खेडब्रह्मा 45 कि. मी. व आबू रोड़ 52 कि. मी. है । जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है । यहाँ से कुंभारियाजी तीर्थ 29 कि. मी. दूर है । मन्दिर तक बस व कार जा सकती है । सुविधाएँ ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त नवीन धर्मशाला व ब्लॉक बने हुए हैं, जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधा हैं । पेढ़ी श्री मोटा पोसीनाजी जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक देरासर ट्रस्ट, पोस्ट : मोटा पोसीना- 383 422. जिला : साबरकांठा (गुज.) फोन : 02775-83471. श्री पार्श्वनाथ भगवान मन्दिर-मोटा पोसीना 528 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री विघ्नहरा पार्श्वनाथ भगवान-मोटा पोसीना 529 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वालम तीर्थ तीर्थाधिराज श्री नेमिनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 90 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल वालम गाँव के मध्य नागरवाड़े मोहल्ले में । प्राचीनता इस तीर्थ का इतिहास अति ही प्राचीन माना जाता है । श्री आषाढ़ी श्रावक द्वारा तीन जिन प्रतिमाएँ भराने का उल्लेख शास्त्रों में आता है । कहा जाता है उनमें यह भी एक प्रतिमा है । प्रतिमा पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है । परन्तु प्रतिमा की कलाकृति से ही इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है । गाँव के आसपास अनेकों प्राचीन कलात्मक अवशेष दिखायी देते हैं । इनसे यह प्रमाणित होता है कि यह प्राचीन क्षेत्र है । विशिष्टता यहाँ का विस्तृत इतिहास प्राप्त नहीं हो रहा है । इतनी प्राचीन व सुन्दर श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ हैं । आषाढ़ी श्रावक द्वारा भराई हुई प्रतिमा मानी जाने के कारण इसकी मुख्य विशिष्टता है । प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला 6 के दिन वर्षगाँठ मनाई जाती है । अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में इसके अतिरिक्त और कोई मन्दिर नहीं है । __ कला और सौन्दर्य नेमिनाथ भगवान की इतनी सुन्दर कलात्मक प्राचीन प्रतिमा के दर्शन अन्यत्र अति दुर्लभ है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन बीसनगर 8 कि. मी. ऊँझा 16 कि. मी. तारंगाजी 55 कि. मी. व महुडी 40 कि. मी. है, जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधा है । गाँव का बस स्टेण्ड 400 मीटर दूर है । छोटी गली रहने के कारण बस मन्दिर से 400 मीटर दूर ठहरानी पड़ती है । कार मन्दिर तक जा सकती है । 08 ठहरने के लिए मन्दिर के पास ही सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ भोजनशाला व भाते की सुविधा भी उपलब्ध है । पेढ़ी 8 श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक देरासर पेढ़ी, पोस्ट : वालम - 384 310. तालुका : बीसनगर, जिला : मेहसाणा (गुज.), फोन : 02765-85043. श्री नेमिनाथ भगवान जिनालय-वालम 530 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1100000100 श्री नेमिनाथ भगवान वालम 531 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Lીમધામ માં પ્રવેશદ્વાર EVERESEASESINESSIAS इसलिए यह सिद्ध होता है कि मेहसाणा पहले बस चुका था । अतः संभवतः 15 वीं सदी के पूर्व यहाँ मन्दिर होंगे ही । वर्तमान में सबसे बड़ा व प्राचीन मन्दिर बाजार में है, जहाँ के मूलनायक श्री मनमोहन पार्श्वनाथ भगवान है । उस मन्दिर में एक श्रावक मूर्ति पर वि. सं. 1257 आषाढ़ शुक्ला १ का लेख है। यहाँ श्री सुमतिनाथ भगवान के मन्दिर में एक आचार्यश्री की मूर्ति है, जिसपर भी वि. सं. 1257 आषाढ़ शुक्ला 9 का लेख है । संभवतः यह मूर्ति आचार्य श्री हेमचन्द्राचार्य की है । __ श्री सीमंधर स्वामी जिन मन्दिर का निर्माण परमपूज्य आचार्य श्री कैलाशसागरसूरीश्वरजी के सदुपदेश से वर्तमान शताब्दी में होकर विक्रम सं. 2028 वैशाख सुद 6 के दिन प्रतिष्ठा सुसंपन्न हुई थी । विशिष्टता 8 जैन शास्त्रानुसार श्री सीमंधर स्वामी केवलज्ञान के बाद अभी महाविदेह क्षेत्र में विचरते है । श्री सीमंधर स्वामी भगवान का इस ढंग का सुन्दर, विशाल परकोटे के मध्य, कलापूर्ण गगनचुंबी शिखर के साथ इतना भव्य मन्दिर भारत में यह प्रथम है । मन्दिर की निर्माण शैली दर्शनीय व प्रशंसनीय है। प्रभु की विशालकाय प्रतिमा अति ही सुन्दर व प्रभावशाली है । ऐसा लगता है जैसे श्री सीमंधरस्वामी साक्षात् विराजमान हैं । यह मन्दिर अपने आप में विशेषता रखता है । अन्य मन्दिर सीमंधर स्वामी जिन मन्दिर के अतिरिक्त गाँव में 14 मन्दिर हैं । गाँव में अनेकों जैन संस्थाएँ कार्य करती हैं, जिनमें श्री यशोविजय संस्कृत पाठशाला का कार्य प्रशंसनीय है । यहाँ से निकले हुए कई विद्यार्थियों ने दीक्षा भी ग्रहण की है । कई धार्मिक शिक्षक भी बने हैं । कला और सौन्दर्य श्री सीमंधर स्वामी जिन मन्दिर की निर्माण शैली दर्शनीय है । इतने विशाल व सर्व सुविधा के साथ अच्छे प्लानिंग से बने मन्दिर बहुत ही कम जगह पाये जाते है । प्रभु प्रतिमा की कला अति ही आकर्षक है । मार्ग दर्शन 8 मेहसाणा जंक्शन रेल्वे स्टेशन इस मन्दिर से 1 1/2 कि. मी. दूर है । गाँव के बस स्टेण्ड से यह मन्दिर 2 कि. मी. है । मन्दिर अहमदाबाद-दिल्ली मुख्य राजपथ (नेशनल हाई वे) पर है । इस स्थान श्री सीमंधर स्वामी जिनालय-मेहसाणा श्री मेहसाणा तीर्थ तीर्थाधिराज श्री सीमंधर स्वामी, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, 3.68 मीटर । (14574इंच) (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल 8 मेहसाणा गाँव के बाहर मुख्य मार्ग पर । प्राचीनता उपलब्ध शिलालेखों से प्रतीत होता है कि यह शहर वि. की 15 वीं सदी के पूर्व बसा होगा। जामनगर में श्री शान्तिनाथ भगवान के मन्दिर में एक धातु प्रतिमा पर मेहसाणा निवासी श्रेष्ठी श्री वीरपाल द्वारा उसे प्रतिष्ठित किये का उल्लेख है । 532 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सीमंधर स्वामी भगवान-मेहसाणा से अहमदाबाद 74 कि. मी. तारंगा 80 कि. मी. वालम 30 कि. मी. शेरीसा 60 कि. मी. महुडी 58 कि. मी. शंखेश्वरजी 100 कि. मी. व आबू लगभग 150 कि. मी. दूर है। सभी जगहों से बस व टेक्सी की सुविधा है । सविधाएँ 8 मन्दिर के प्रांगण में ही विशाल सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है जहाँ पर भोजनशाला व अल्पआहार की भी सुविधा है । गाँव में भी धर्मशाला व भोजनशाला है । _ पेढ़ी 8 श्री सीमंधर स्वामी जिन मन्दिर पेढ़ी, मुख्य राजपथ, पोस्ट : मेहसाणा - 384002. जिला : मेहसाणा (गुज.), फोन : 02762-51674 (पढ़ी), 02762-51087 (धर्मशाला)। 533 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किसी समय यह एक विराट नगरी थी । यहाँ पर सैकड़ों मन्दिर, वाव व कुवें आदि होने का उल्लेख है। यह भी कहा जाता है कि किसी समय यह श्री शत्रुजय गिरिराज की तलहटी थी ।। वि. सं. 523 में परम पवित्र पावन आगम ग्रंथ "कल्पसूत्र" की श्रावकों समक्ष प्रथम वांचना यहीं पर प्रारंभ हुई थी जो अभी तक सब जगह होती आ रही है । यह भी कहा जाता है कि यह वाचना समर्थ आचार्य भगवंत श्री धनेश्वर सूरीश्वरजी द्वारा यहाँ के राजा श्री ध्रुवसेन की राज्य-सभा में उपस्थित जनसमुदाय समक्ष हुई थी जो प्रथम वाचना थी । इससे यह सिद्ध होता है कि यह तीर्थ उससे भी पूर्व समय का है ।। ___ वि. सं. 1208 में श्री कुमारपाल राजा ने यहाँ भव्य किला बनाया था जिसके दरवाजे तोरण आदि आज भी उस समय की याद दिलाते हैं । वि. सं. 1524 में प्रतिष्ठिासोमजी द्वारा रचित सोम सौभाग्य काव्य में इस वृद्धनगर में समेला नाम के तालाब का व जीवितस्वामी एवं वीर नाम के दो विहारों (मन्दिरों) का उल्लेख है । संभवतः आज तक यहाँ अनेकों मन्दिरों का निर्माण हुवा होगा परन्तु वर्तमान में यहाँ सिर्फ 5 मन्दिर हैं जिनमें यह मन्दिर प्राचीनतम माना जाता है, इसे चोटावाला मन्दिर कहते हैं । कहा जाता है कि इसका निर्माण सम्प्रति राजा ने करवाया था । यहाँ श्री महावीर भगवान का मन्दिर भी उसी समय का माना जाता है जिसे हाथीवाला मन्दिर कहते हैं । कहा जाता है कि चोटावाला मन्दिर का भोयरा तारंगा तक जाता था । यहाँ का अंतिम जीर्णोद्धार वि. सं. 1845 में होने का उल्लेख है । विशिष्टता 8 जैन धर्म का कल्पतरुसम पावन आगम ग्रंथ "कल्पसूत्र" की जन समुदाय के समक्ष वाचना प्रारंभ होने का सौभाग्य इस पावन क्षेत्र को प्राप्त हुवा । उस समय यहाँ का नाम आनन्दपुर था। यह यहाँ की मुख्य विशेषता है ।। आचार्य श्री सोमसुन्दरसूरिजी ने यहीं पर श्रेष्ठी श्री देवराज द्वारा आयोजित विराट महोत्सव में श्री मुनिसुन्दरजी वाचक को आचार्यपद पर विभुषित किया था । यहीं से श्री आदिनाथ भगवान मन्दिर-आनन्दपुर श्री आनन्दपुर तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल वडनगर स्टेशन से लगभग एक कि. मी. दूर ऊँचे टेकरी पर बसे वडनगर गाँव में । प्राचीनता आज का वडनगर गांव प्राचीनकाल में चमत्कारपुर, मदनपुर, आनन्दपुर आदि नामों से विख्यात था । जैन ग्रंथों में इसका नाम वृद्धनगर व आनन्दपुर उल्लेखित है । 534 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथ भगवान-आनन्दपुर 535 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GUA Date श्री महावीर भगवान-आनन्दपुर देवराज श्रेष्ठी ने श्री मुनिसुन्दरसुरिजी के साथ शत्रुंजय व गिरिनार आदि के यात्रार्थ संघ निकाला था । नागरों का यह उत्पति स्थान है । नागर लोग जैन धर्मावलम्बी थे, जिन्होंने अनेकों प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई । कई जिनालयों का निर्माण करवाया जिसका उदाहरण आज भी यहाँ पाया जाता है । यहाँ के हाथीवाला देरासर में शिखरबंध बावन देवकुलिकाओं की प्रत्येक देहरी में भगवान महावीर की प्रतिमाएँ विभिन्न नागर वाणिकों द्वारा भरवाकर प्रतिष्ठित है जो आज भी अतीव आकर्षक व दर्शनीय है । 536 अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त चार और मन्दिर हैं। कला और सौन्दर्य इस मन्दिर के भोयरे में विराजित श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा अतीव सुन्दर कलात्मक व दर्शनीय है । इसी भोयरे में से तारंगा तक रास्ता था । ऐसा कहा जाता है । श्री महावीर भगवान के बावन जिनालय की निर्माणशैली व सभी बावन देवकुलिकाओं में श्री वीर प्रभु की प्रतिमाएँ दर्शनीय है । गुर्जरनरेश श्री कुमारपाल राजा द्वारा निर्मित भव्य किले के दरवाजों व तोरणों की शिल्पकला आज भी दर्शनीय है जो गुजरात की प्राचीन शिल्पकला का सर्वोत्तम नमूना माना जाता है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन मेहसाणा लगभग 35 कि. मी. दूर है । जहाँ पर टेक्सी व बस की सुविधा उपलब्ध है । यहाँ से वीसनगर 13 कि. मी. महुडी 35 कि. मी. व तारंगा 35 कि. मी. दूर है । यह स्थल खेरालु-तारंगा मार्ग पर स्थित है । मन्दिर से बस स्टेण्ड लगभग 1/2 कि. मी. दूर है, मन्दिर तक कार व बस जा सकती है । गांव में आटो व टेक्सी का साधन है । नजदीक का हवाई अड्डा अहमदाबाद लगभग 100 कि. मी. दूर है । सुविधाएँ ठहरने के लिये सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ भोजनशला की भी सुविधा उपलब्ध हैं । पेढ़ी श्री आदिनाथ भगवान जैन श्वे. मन्दिर, श्री वड़नगर श्वे. मूर्तिपूजक जैन संघ, महावीर मार्ग, जैन देरासर के पास । पोस्ट : वड़नगर - 384355. जिला : मेहसाणा (गुजराज ), फोन : पी. पी. 02761-22101. 02761-22337. Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री रत्नावली तीर्थ विशिष्टता यह तीर्थ प्राचीनता के साथ-साथ चमत्कारिक भी है। यह मन्दिर भी चमत्कारिक घटनाओं के साथ ही प्रकट हुवा था । यहाँ से लगभग 5 कि. तीर्थाधिराज श्री नेमिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, मी. दूर धनपुरा गाँव के एक श्रावक को स्वप्न में बार श्याम वर्ण, लगभग 59 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । बार हुवे दैविक संकेत के आधार पर खुदाई करने पर तीर्थ स्थल रांतेज गाँव के जैन मोहल्ले में । यह विशाल बावन जिनालय मन्दिर भूगर्भ से प्रकट प्राचीनता यहाँ का इतिहास लगभग 2500 हुवा था । परन्तु मन्दिर में कोई प्रतिमा नहीं थी। वर्ष पूर्व का माना जाता है । प्राचीन अवशेषों व श्रावक द्वारा की गई अठ्ठम तप की आराधना से प्रतिमाओं पर वर्णित उल्लेखों से प्रतीत होता है कि कोई प्रसन्न हुवे श्री अधिष्ठायक देव ने गाँव के पूर्व दिशा समय यह एक विराट नगरी थी व रत्नावली नगरी के में एक रबारी के मकान के पास भूगर्भ में प्राचीन जिन नाम से विख्यात थी । किसी समय यहाँ अनेकों जिन प्रतिमाएँ रहने का संकेत दिया, तदनुसार खुदाई करने मन्दिर रहने का संकेत मिलता है । __ पर 18 जिन प्रतिमाएँ प्राप्त हुई थी । उनमें एक भव्य वर्तमान का यह मन्दिर भी भूमिगत था जो देविक विलेपन की हुई प्रतिमा श्री नेमिनाथ भगवान की थी संकेतों के आधार पर भूमि खोदने पर प्रकट हुवा था। जो इस मन्दिर में मूलनायक के रूप में प्रतिष्ठित की जिसका जीर्णोद्धार वि. सं. 1100 में व अंतिम गई व अन्य प्रतिमाएँ मूल गंभारे में एवं बाहर भमती जीर्णोद्धार वि. सं. 1980 होने का उल्लेख है । में विराजित की गई जो आज भी विद्यमान है । 1110LULINE श्री नेमिनाथ जिनालय-रत्नावली 537 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभी भी घटती आ रही है, जैसे आये हुए चोरों को आँखों से दिखाई नहीं देना व प्रार्थना करते ही तुरन्त ठीक होकर पुनः दिखाई देना, समय-समय पर नागदेव का दर्शन होना, पद्मावती माता की प्रतिष्ठा के समय अमी झरना, कई बार रात के समय दिव्यनाद, गीत नृत्य की आवाज आना आदि । __ वर्तमान में प्रतिवर्ष माघ शुक्ला तेरस को ध्वजा चढ़ाई जाती है । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर नहीं है । __ कला और सौन्दर्य यहाँ भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन प्रतिमाओं की कला विशिष्ठ व अतीव दर्शनीय है, जिनमें सरस्वती माता की मूर्ति तो अत्यन्त सुन्दर व भावात्मक है । जो 111 सें. मी. की खड़ी महाचमत्कारिक अजोड़ प्रतिमा अतीव दर्शनीय है । मार्ग दर्शन यहाँ का रेल्वे स्टेशन रांतेज मन्दिर से सिर्फ एक कि. मी. दूर है, जहाँ पर आटो व टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है । यहाँ से मोढेरा 20 कि. मी. भोयणी 25 कि. मी. मेहसाणा 30 कि. मी. शंखेश्वर 40 कि. मी. व गांभु 28 कि. मी. दूर है । इन सभी स्थानों पर भी सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं । नजदीक का हवाई अड्डा अहमदाबाद 100 कि. मी. दूर है । सुविधाएँ ठहरने के लिए यहाँ सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ भोजनशाला की सुविधा भी उपलब्ध है। पेढ़ी श्री नेमनाथ महाराज कारखाना ट्रस्ट, पोस्ट : रांतेज - 384 410, तालुका : बेचराजी, व्हाया : बलोल, जिला : मेहसाणा, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02734-89320. श्रुतदेवी माता सरस्वती मन्दिर की भमती की देहरी नं. 34 में प्राचीन भोयरा है । कहा जाता है कि यह भोयरा मोढ़ेरा होता हुवा पाटण के पंचासरा मन्दिर के निकट श्री हेमचन्द्राचार्य उपाश्रय तक जाता था । भोयरे मे कई प्राचीन परिकर भी थे उनमें कई कदम्बगिरि तीर्थ पर भेजे गये थे । दो परिकर आज भी यहाँ भमती में हैं । जिनपर वि. सं. 1100 व 1300 के लेख उत्कीर्ण है । यहाँ पर और भी कई प्राचीन प्रतिमाएँ निकली थी जिनमें श्री महावीर प्रभु की एक सुन्दर प्रतिमा चमत्कारिक घटना के साथ यहाँ के एक पटेल के घर के नीचे भूगर्भ से प्राप्त हुई थी । इनके अतिरिक्त भी यहाँ अनेकों प्रकार की चमत्कारिक घटनाएँ घटी है व 538 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नेमिनाथ भगवान रत्नावली 539 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशिष्टता आचार्य श्री शीलंकाचार्य ने श्री गाँभ तीर्थ 'आचारांगसूत्र' की टीका इसी गाँव में विक्रम सं. 919 में की थी । प्राचीन बेधक ग्रंथ 'सुश्रुत' की रचना भी तीर्थाधिराज श्री गंभीरा पार्श्वनाथ भगवान, यहीं हुई थी । श्वेत वर्ण, लगभग 45 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । ___मंत्रीश्वर श्रीविमलशाह के पूर्वज नीना शेठ श्रीमाल तीर्थ स्थल गाँभू गाँव के मध्य । भीनमाल नगर से प्रथम यहीं आकर बसे थे । गूर्जर प्राचीनता यहाँ का इतिहास विक्रम की नवमी नरेश वनराज चावड़ा ने इनको पाटण में रहने का शताब्दी पूर्व का माना जाता है । किसी समय यह एक आमंत्रण यहीं पर भेजा था । उनके पुत्र लहर को विराट नगरी थी । उल्लेखों से पता चलता है कि पाटण पाटण का दंडनायक बनाया था । शक सं. 826 में बसने के पहले यह बस चुका था । इसका प्राचीन रचित 'श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र' को यहीं ताड़पत्र पर नाम गंभीरा व गंभता था । जिनालयों को प्रदान किये लिखा गया था । विक्रम सं. 1305 में 'उपाँग पंचक' भेंट पत्रों से प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में यहाँ की वृत्तियां यहीं लिखी गई थीं । इनके अलावा भी अनेकों जैन मन्दिर थे । यहाँ अनेकों जैन ग्रंथों की अनेकों ग्रंथों की यहाँ रचना होने का उल्लेख मिलता रचनाएँ हुई हैं । इधर उधर बिखरे हुए खण्डहर अवशेष है । प्रतिवर्ष माघ शुक्ला 4 को ध्वजा चढ़ाई जाती है। यहाँ की प्राचीनता के प्रमाण हैं । यह प्रतिमा राजा अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त वर्तमान में यहाँ संप्रतिकाल की मानी जाती है । यहाँ से अनेकों राजा कोई मन्दिर नहीं है । संप्रतिकाल की प्राचीन प्रतिमाएँ बम्बई आदि भेजी कला और सौन्दर्य प्रभु-प्रतिमा की कला गई हैं । अति ही शोभनीय है । लगता है जैसे प्रभु साक्षात् हँसते हुए विराजमान हैं । यहाँ अनेकों प्राचीन प्रतिमाएँ भूगर्भ से प्राप्त हुई थीं, जिनमें कुछ बम्बई, पालीताना, तलाजा आदि भेजी गईं व कुछ यहाँ के भोयरे में विराजमान हैं । यहाँ के शिखर की कला निराले ढंग की अति ही सुन्दर है । मार्ग दर्शन नजदीक का रेल्वे स्टेशन मेहसाणा 22 कि. मी. है, जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है । गाँव का बस स्टेण्ड मन्दिर के निकट ही है । बस व कार मन्दिर तक जा सकती है । मेहसाणा-मोढ़ेरा सड़क मार्ग से गणेशपुरा होकर गांभू आना पड़ता है । मोढ़ेरा यहाँ से 7 कि. मी. चाणस्मा 10 कि. मी. व कम्बोई 30 कि. मी. दूर है । सुविधाएँ ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला हैं, जहाँ पर भोजनशाला व भाते की भी सुविधा है । उपाश्रय भी है । पेढ़ी 8 श्री गाँभू जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ ट्रस्ट, बाजार जैन देरासर, पोस्ट : गाँभू - 384 011. तालुक : बेचराजी, जिला : मेहसाणा, प्रान्त : गुजरात, श्री पार्श्वप्रभु जिनालय-गाँभू फोन : 02734-82325. 540 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Deી ગલીશપાર્શ્વનાથે श्री गंभीरा पार्श्वनाथ भगवान-गाँभू Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐसा कहा जाता है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि अगर खोद कार्य करके खोज की जाय तो अनेकों प्राचीन कलात्मक अवशेष व प्रतिमाएँ प्राप्त हो सकती हैं, क्योंकि यह प्राचीन स्थान है । नवमी शताब्दी के पूर्व भी यहाँ जैन मन्दिर रहने के प्रमाण हैं । जैसे विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में जिनप्रभसूरिजी ने यहाँ श्री महावीर भगवान के मन्दिर का वर्णन करते हुए कहा है कि नवमी शताब्दी में श्री बप्पभट्टाचार्यजी इस मन्दिर का दर्शन करने हमेशा आकाश मार्ग से आते थे । विक्रम की आठवीं शताब्दी में आचार्य श्री सिद्धसेनसूरिजी यहाँ यात्रार्थ आये थे । अभी जीर्णोद्धार चालू है । विशिष्टता मोढ़ेरागच्छ का यह उत्पत्ति स्थान है । कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य मोढ़ वंश के थे। सुविख्यात धर्म प्रभावक मालवा नरेश प्रतिबोधक जैनाचार्य श्री बप्पभट्टाचार्य ने यहीं दीक्षा ग्रहण की थी । आचार्य श्री नियमानुसार हमेशा जहाँ भी रहते, वहाँ से आकाशगामिनी विद्या से यहाँ यात्रार्थ पधारते थे। उन्होंने कन्नौज के राजा आम को यहीं पर प्रतिबोध देकर जैन धर्म का अनुयायी बनाया था । महात्मा गाँधी भी मोढ़ जाति के थे व उनके पूर्वजों की भी यही जन्म-भूमि है । प्रतिवर्ष जेठ शुक्ला 3 को ध्वजा चढ़ाई जाती है । श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर-मोढेरा अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में यहाँ अन्य कोई मन्दिर नहीं है । कला और सौन्दर्य यह स्थान प्राचीन व ऐतिहासिक रहने के कारण प्राचीन प्रतिमाओं व कलाओं तीर्थाधिराज श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान, के अवशेष जगह-जगह पाए जाते हैं । यहाँ का श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 45 सें. मी. विशाल सूर्य मन्दिर भारतीय शिल्पकला के लिए (श्वे. मन्दिर)। प्रसिद्ध है । तीर्थ स्थल मोढेरा गाँव के मध्य । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन प्राचीनता 88 यह तीर्थ स्थल विक्रम की नवमी बेचराजी 13 कि. मी. है । जहाँ से बस व टेक्सी की शताब्दी पूर्व का माना जाता है । कयोंकि 'प्रभावक सुविधा है । यहाँ से चाणशमा 15 कि. मी. मेहसाणा चरित्र' में किये उल्लेखानुसार श्री बप्पभट्टसूरिजी ने 25 कि. मी. पाटण 35 कि. मी. व रांतेज 16 कि. विक्रम सं. 807 में यहीं पर आचार्य श्री सिद्धसेनसूरिजी ___मी. दूर है । बस व कार मन्दिर तक जा सकती है। के पास दीक्षा ग्रहण की थी । गाँव के बाहर प्राचीन सुविधाएँ फिलहाल ठहरने के लिए कुछ कमरे जैन मन्दिर के खण्डहर दिखाई देते हैं, मन्दिर के व हॉल है, भोजनशाला भी शीघ्र प्रारंभ होने वाली है। वेशाल कुण्ड है, जहाँ छोटी देवकुलिकाओं में पेढ़ी 8 श्री मोढ़ेरा जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक पद्मासनस्थ जिन प्रतिमाएँ दिखाई देती है । कुण्ड की तपागच्छ संघ, पोस्ट : मोढ़ेरा - 384 212. खुदाई काम करते वक्त कुछ प्रतिमाएँ प्राप्त हुई थी, जिला : मेहसाणा (गुज.), जिन्हें अधिकारियों ने पुनः जमीन में ही रख दिया था, फोन : 02734-84390 पी.पी. श्री मोढेरा तीर्थ 542 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રીમમીર તમિર દોહા HOODIE श्री चिन्तामणि पार्श्व नाथ भगवान-मोढेरा Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कम्बोई तीर्थ तीर्थाधिराज श्री मनमोहन पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 76 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल कम्बोई गाँव के मध्य । प्राचीनता कम्बोई गाँव लगभग विक्रम की ग्यारहवीं सदी पूर्व बसा होगा, ऐसा एक भेंटपत्र से साबित होता है । प्रतिमा की आकृति व कला से यह प्रतिमा राजा सम्प्रतिकाल की मानी जाती है । मन्दिर में अन्य प्रतिमाओं पर सोलहवीं शताब्दी के लेख हैं। सत्रहवीं शताब्दी की पाटण चैत्य परिपाटी में कम्बोई तीर्थ का उल्लेख है । विक्रम सं. 1638 की एक धातु प्रतिमा पर कम्बोई गाँव का उल्लेख है । अंतिम जीर्णोद्धार विक्रम सं. 2003 में संपन्न हुआ । विशिष्टता यह क्षेत्र प्राचीन तीर्थों में गिना जाता है । यहाँ प्रति वर्ष माघ शुक्ला पूर्णीमा को वार्षिक ध्वजा चढ़ाई जाती है । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर नहीं है । कला और सौन्दर्य 8 प्रभु प्रतिमा अति ही शांत व सुन्दर है । इसी मन्दिर में विराजित अन्य प्रतिमाएँ भी राजा सम्प्रतिकाल की होने के कारण कलात्मक हैं। गाँव में भी कहीं कहीं प्राचीन प्रतिमाएँ पाई जाती हैं, जो कलात्मक व दर्शनीय हैं । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन चाणश्मा लगभग 10 कि. मी. है, जहाँ से टेक्सी व बस का साधन है । कम्बोई रेल्वे स्टेशन व गाँव का बस स्टेण्ड 400 मीटर दूर है । कार व बस आखिर तक जा सकती है। यहाँ से शंखेश्वर तीर्थ लगभग 45 कि. मी., मेहसाणा 50 कि. मी., पाटण 30 कि. मी. मोढ़ेरा 30 कि. मी. व अहमदाबाद 200 कि. मी. दूर है । सुविधाएँ 28 ठहरने के लिए धर्मशाला है । जहाँ पानी, बिजली, बर्तन ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र, भोजनशाला व भाते की सुविधा भी उपलब्ध है । पेढी श्री मनमोहन पार्श्वनाथ तीर्थ कारखाना ट्रस्ट, पोस्ट : कम्बोई - 384230. तालुका : चाणश्मा, जिला : पाटण, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02734-81315. जिनालय का प्रवेश द्वार-कम्बोई 544 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INNN श्री मनमोहन पार्श्वनाथ भगवान-कम्बोई Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राय कि श्री जयन्त श्रावक ने नरेली से यहाँ अपने ससुराल श्री चाणश्मा तीर्थ के गाँव आकर निवास किया जब अंचलगच्छ के आचार्य श्री अजीतसिंहसूरिजी के सदुपदेश से यहाँ तीर्थाधिराज श्री भटेवा पार्श्वनाथ भगवान, सुन्दर मन्दिर का निर्माण करवाकर श्री भटेवा पार्श्वप्रभु धरणेन्द्र पद्मावती सहित, परिकरयुक्त पद्मासानस्थ, ताम्र प्रतिमा की प्रतिष्ठा वीर नि. सं. 1804 (विक्रम संवत् वर्ण, लगभग (23 सें. मी.) नौ इंच (श्वे. मन्दिर)। 1335) में करवायी थी । तीर्थ स्थल चाणश्मा गाँव के मध्य मोटी एक और उल्लेख से पता चलता है कि चाणश्मा वाणीयावाड़ मोहल्ले में । के रविचन्द्र श्रावक ने यहाँ मन्दिर बनवाकर वि. सं. प्राचीनता प्रमाणिक उल्लेखों से ज्ञात होता है 1535 में इस प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया था । हो कि इस तीर्थ की स्थापना विक्रम की चौदहवीं शताब्दी सकता है कि उस समय पुनः उद्धार हुआ हो । इन के पूर्व हुई होगी । कहा जाता है कि सदियों पहले सारे वृत्तांतों से सिद्ध होता है कि यह मनोरम प्रभु ईडर नगर के निकट भाटुआर गाँव के निवासी श्रावक प्रतिमा अति ही प्राचीन है, कालक्रम से अनेकों बार सूरचन्द को पुण्ययोग से यह प्रतिमा भूगर्म से प्राप्त उत्थान-पतन होने के कारण कुछ काल तक भूगर्भ में हुई। तत्पश्चात् दिन प्रतिदिन सूरचन्द श्रावक के घर में रही होगी । भाटुआर गांव में भूगर्भ से प्रकट होने के रिद्धि-सिद्धि की बृद्धि होती रही, जिससे उनकी ख्याति कारण प्रभु को भटेवा पार्श्वनाथ कहने लगे होंगे । बढ़ने लगी । सुसम्पन्न श्रावक के प्रति ईडर के राजा विशिष्टता बालू से निर्मित यह प्रतिमा अति के दिल में ईर्ष्या भाव पैदा हुई व प्रभु-प्रतिमा की माँग ही प्रभावशाली है । सूरचन्द श्रावक को प्रतिमा प्राप्त करने लगा । उस पर श्रावक ने प्रतिमाजी को भूगर्भ होते ही उनके घर में रिद्धि-सिद्धि अवर्णनीय रूप से में सुरक्षित रखा । बढ़ी थी । आज भी श्रद्धालु भक्तजनों को यह अतिशय वीशा श्रीमाली कुल की वंशावली से ज्ञात होता है प्रतीत होता है । मन्दिर का बाह्य दृश्य-चाणश्मा 546 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री भटेवा पार्श्वनाथ भगवान-चाणश्मा अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त एक मन्दिर व दादावाड़ी है । कला और सौन्दर्य धरणेन्द्र पद्मावती सहित परिकरयुक्त बालू की बनी प्रभु प्रतिमा अति ही मनोरम है । मन्दिर की निर्माण शैली भी अति सुन्दर है । मार्ग दर्शन मेहसाणा-हारीज मार्ग में मेहसाणा से 32 कि. मी. व यहाँ के रेल्वे स्टेशन से मन्दिर लगभग 1 कि. मी दूर है । मन्दिर तक कार व बस जा सकती है । यहाँ से कम्बोई तीर्थ 16 कि. मी. है। सुविधाएँ 88 ठहरने के लिए धर्मशाला है । जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधा उपलब्ध है ।। पेढ़ी श्री चाणश्मा जैन महाजननी पेढ़ी, नानी वाणीयावाडनी नाके, बाजार । पोस्ट : चाणश्मा -384 220. जिला : पाटण (गुज.) फोन : 02734-23296. 547 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शीयाणी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री शान्तिनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 32 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल शीयाणी गाँव में । प्राचीनता तीर्थ अति प्राचीन है । लेकिन सही प्राचीनता का पता लगाना कठिन है । कहा जाता है श्री शान्तिनाथ भगवान की मनोहर प्रतिमा श्री संप्रतिराजा द्वारा प्रतिष्ठित है । अनेकों बार जीर्णोद्धार होने के संकेत मिलते हैं । प्रथम जीर्णोद्धार वि. सं. 1076 में श्रेष्ठी श्री जेठाभाई माघवजी द्वारा हवे का उल्लेख है । विशिष्टता 8 प्रभु प्रतिमा संप्रति राजा द्वारा प्रतिष्ठित मानी जाने के कारण यहाँ का विशेष महत्व है । प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष शुक्ला पंचमी को ध्वजा चढ़ती है, जब हजारों यात्री प्रभु-भक्ति का लाभ लेने इकट्ठे होतें है । यह सुरेन्द्रनगर जिले का प्राचीनतम तीर्थ है। जैनेतर भी दर्शनार्थ प्रायः आते रहते हैं । अन्य मन्दिर 88 वर्तमान में इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर नहीं है । कला और सौन्दर्य कलात्मक प्रभु प्रतिमा अति ही आकर्षक है । भूगर्भ से प्राप्त अन्य प्रतिमाएँ भी प्राचीन व अतीव दर्शनीय है । मार्ग दर्शन 8 नजदीक का रेल्वे स्टेशन लीम्बड़ी 13 कि. मी. दूर है, जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है । मन्दिर तक कार व बस जा सकती है । सुविधाएँ 0 मन्दिर के निकट ही धर्मशाला है । जहाँ बिजली, पानी व भोजनशाला की भी सुविधा उपलब्ध है । पेढ़ी श्री शीयाणी जैन संघ (लीम्बड़ी) पोस्ट : शीयाणी - 363 421. तालुका : लीम्बड़ी, जिला : सुरेन्द्रनगर, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02753-51550. श्री शान्तिनाथ भगवान मन्दिर-शीयाणी AKUVONOV Veravadar SURENDRANAGAR Talsan SURENDRANAGAR Ronagadh o Tikar Oholidhala WADHAWAN ametar digsaro MUL. Rampare Kharva 26 Bel A Rarolo A_LIMEL 1SAYLA, Imdino Bhogavo Panshila ero Chudao SA a d Shruqupur 548 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પક રાહ Tી મહાવીર સ્વામી. શ્રી. પુવ श्री शान्तिनाथ भगवान-शीयाणी Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी इस तीर्थ का उल्लेख मिलता है । विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में आचार्य श्री तिलकसूरिजी द्वारा रचित 'चैत्य परिपाटी' में इस तीर्थ का उल्लेख है । विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी में श्री कीर्तिमेरुसूरिजी ने 'शाश्वत तीर्थ माला' में इसका उल्लेख किया है । विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी में श्री शांतिकुशलसूरिजी ने 'गोडी पार्श्वस्तवन' में इस तीर्थ का उल्लेख किया है। विक्रम की अठारहवीं शताब्दी में श्री मेघविजयजी उपायाय ने 'श्री पार्श्वनाथ नाममाला' में व श्री शीलविजयजी ने 'तीर्थ माला' में उल्लेख किया है। विक्रम की अठारहवीं शताब्दी के बाद कुछ वर्षों तक यह तीर्थ अस्त व्यस्त बन गया व जैनेतरों की देखभाल में रहा। विक्रम सं. 1938 के आसपास पाटण के श्रावकों ने इस तीर्थ की व्यवस्था पुनः संभाली । तत्पश्चात् इस विशाल मन्दिर का निर्माण करवाकर विक्रम सं. 1984 ज्येष्ठ शुक्ला 5 के शुभ दिन पुनः प्रतिष्ठा करवाई । विशिष्टता शासन प्रभावक श्री वीराचार्य, श्री शामला पार्श्वप्रभु मन्दिर-चारुप सिद्धराज नरेश के आमंत्रण पर मालवा से विहार करके पाटण पधार रहे थे । तब इस प्राचीन तीर्थ स्थल पर पाटण के नरेश ने स्वागतार्थ एक भव्य समारोह का आयोजन किया था, जो उल्लेखनीय है । श्री आषाढ़ी नाम के सुप्रसिद्ध श्रावक ने तीन जिन प्रतिमाएँ भराई तीर्थाधिराज श्री शामला पार्श्वनाथ भगवान, थीं । उनमें यह एक है । इसलिए यह तीर्थ स्थान पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 120 सें. मी. विशेष महत्व रखता है। (श्वे. मन्दिर)। अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में यहाँ इसके अतिरिक्त तीर्थ स्थल चारुप गाँव के मध्य। और कोई मन्दिर नहीं है । प्राचीनता इस प्रभु प्रतिमा का इतिहास अति ___ कला और सौन्दर्य प्रभु-प्रतिमा प्राचीन ही प्राचीन माना जाता है । कहा जाता है प्राचीन काल शिल्पकला का अद्वितीय नमूना है । प्रतिमा में कृशता, में सुप्रसिद्ध श्री आषाढ़ी श्रावक ने 3 प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित स्वस्थता, गंभीरता व निरागीपन के चिन्ह स्पष्ट दिखते करवाई थीं, उनमें यह भी एक है । वि. की नवमी हैं । ऐसी प्रतिमा के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ हैं । शताब्दी में नागेन्द्र गच्छ के श्री देवचन्द्रसूरिजी द्वारा ___मार्ग दर्शन 8 नजदीक का बड़ा स्टेशन पाटण चारुप महातीर्थ में श्री पार्श्वनाथ प्रभु के परिकर की 10 कि. मी. है,जहाँ से बस व टेक्सियों की सुविधा प्रतिष्ठापना करवाने का उल्लेख है । विक्रम की 13 वीं है। बस व कार आखिर मन्दिर तक जा सकती है। शताब्दी में नागोर निवासी श्रेष्ठी श्री देवचन्द्र द्वारा यहाँ । श्री आदिनाथ भगवान का मन्दिर निर्मित करवाने का सुविधाएं ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त उल्लेख है । विक्रम सं. 1320 के लगभग श्रेष्ठी श्री धर्मशाला है, जहाँ भोजनशाला की भी सुविधा हैं । पेथड़शाह द्वारा यहाँ श्री शान्तिनाथ भगवान का मन्दिर पेढ़ी 8 श्री चारुप जैन श्वेताम्बर श्री शामला बनवाने का उल्लेख है । श्री जिनप्रभसूरिजी द्वारा पार्श्वनाथजी महातीर्थ पेढ़ी, पोस्ट : चारुप-384 285. विक्रम सं. 1389 में रचित "विविध तीर्थ कल्प" में जिला : पाटण (गुज.) फोन: 02766-77568 व 77562. श्री चारुप तीर्थ 550 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शामला पार्श्वनाथ भगवान-चारुप 551 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री भीलडियाजी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री भीलड़िया पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, 53 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल भीलड़ी गाँव के बाहर मुख्य मार्ग पर । प्राचीनता जैन शास्त्रो में इसका प्राचीन नाम भीमपल्ली होने का उल्लेख आता है । परन्तु इसका इतिहास मिलना कठिन सा है । प्रभु प्रतिमा अति ही प्राचीन व परमपूज्य श्री कपिल केवली के सुहस्ते प्रतिष्ठित मानी जाती है। एक और किंवदन्ति के अनुसार संप्रति राजा के सयम की भी मानी जाती है। एक किंवदन्ति के अनुसार श्री श्रेणिक कुमार ने एक रूपवती भीलड़ी कन्या से शादी की थी व उसके जात के नाम पर यह नगरी बसाई थी । कालांतर में यह नगरी त्रंबावती के नाम से प्रसिद्ध हुई । कहा जाता है उस समय यहाँ सवा सौ शिखरबंध मन्दिर, सवा सौ कुएँ, अनेकों बावड़ियाँ, सुन्दर बाजार एवं इस मन्दिर के पश्चिम भाग में राजगद्दी थी । वह स्थान आज भी गद्दीस्थल के नाम से प्रसिद्ध है । वि. सं. 1218 फाल्गुन कृष्ण 10 के दिन भीमपल्लीपुर के जिनालय में श्री जिनचंद्रसूरिजी ने श्री जिनपतिसूरिजी को दीक्षा दी थी ऐसा उल्लेख है । विक्रम सं. 1317 में ओशवाल श्रेष्ठी श्री भुवनपाल शाह द्वारा इस मन्दिर के जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख है । विक्रम सं. 1344 में श्रेष्ठी श्री लखमसिंहजी द्वारा यहाँ श्री अम्बिका देवी की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाने का भी उल्लेख मिलता है । उल्लेखों से प्रतीत होता है कि यह नगरी (भीमपल्ली) विक्रम की 14 वीं सदी में जलकर भस्म हुई थी, संभवतः अलाउद्दीन ने वि. सं. 1353 में पाटण शहर पर आक्रमण किया, उसी समय इस नगरी का भी विनाश किया होगा । कहा जाता है आचार्य श्री सोमप्रभसूरीश्वरजी का उस समय यहाँ चतुर्मास था । उनको श्रुतज्ञान से ज्ञात हुआ कि इस नगरी का विनाश जल्दी होने वाला है । यह जानकर आचार्य देव व श्रावकगण प्रथम कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी को ही चौमासी प्रतिक्रमण करके नगर छोड़कर राधनपुर श्री भीलड़िया पार्श्वनाथ मन्दिर-भीलड़ी 552 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री भीलड़िया पार्श्वनाथ भगवान-भीलड़ी 553 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी अगर खोद कार्य किया जाय तो अति महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त होने की पूर्ण संभावना है । मार्ग दर्शन नजदीक का रेल्वे स्टेशन भीलड़ी है, जो कि मन्दिर से 1 कि. मी. दूर है । बस स्टेण्ड सिर्फ 100 मीटर दूर है । कार व बस मन्दिर तक जा सकती है । यह स्थान डीसा से 20 कि. मी. व पालनपुर - राधनपुर हाई वे मार्ग में राधनपुर से 60 कि. मी. दूर है। जहाँ से टेक्सी व बस की सुविधा उपलब्ध है । सुविधाएँ 8 ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त विशाल धर्मशाला व ब्लाक है, जहाँ पर भोजनशाला सहित सारी सुविधाएँ उपलब्ध है । पेढ़ी 8 श्री भीलडियाजी पार्श्वनाथ जैन देरासर तीर्थ पेढ़ी, पोस्ट : भीलड़ी - 385 530. जिला : बनासकांठा, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02744-33130. चले गये । जली हुई ईंटें, राख, कोयले आदि आज भी यहाँ पर भूगर्भ से जगह-जगह प्राप्त होते हैं। तत्पश्चात् विक्रम सं. 1872 में श्री धरमचन्द्र भाई कामदार ने इस प्राचीन मन्दिर के पास भीलड़िया गाँव पुनः बसवाया । उस समय यह मन्दिर जीर्णावस्था में विद्यमान था । पार्श्वप्रभु की यह प्रतिमा व अन्य प्रतिमाएँ भोयरे में विराजमान थीं । मन्दिर के आसपास भयानक जंगल हो चुका था । पार्श्वप्रभु की महिमा से प्रभावित होकर अनेकों भक्तगण प्रायः आते रहते थे । भीलड़ी के श्रावकों ने इसका कार्य भार संभालकर वि. सं. 1936 में जीर्णोद्धार करवाया था । अन्तिम जीर्णोद्धार वि. सं. 2027 में होकर ज्येष्ठ शुक्ला 10 के शुभ दिन आचार्य श्री भद्रसूरीश्वरजी महाराज के सुहस्ते प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । उपरोक्त सब वृत्तान्तों से इस क्षेत्र की प्राचीनता व कालक्रम से हुए हेर-फेर के बारे में ज्ञात हो जाता है । विशिष्टता यह प्रतिमा भी श्री कपिल केवलीमुनी के हाथों प्रतिष्ठित मानी जाने के कारण यहाँ की महान विशेषता है । विक्रम की सोलहवीं शताब्दी में भीमपल्ली गच्छ की स्थापना इसी तीर्थ क्षेत्र पर हुई बताई जाती है । कहा जाता है भीलड़िया गाँव पुनः बसने के पूर्व सरीयद गाँव के श्रावकों ने इस प्रभु प्रतिमा को अपने गाँव ले जाने का प्रयत्न किया था। उस समय यह मन्दिर विनाश हुए इस गाँव के भंयकर जंगल में खण्डहर रूप में था व यह प्रतिमा इस मन्दिर के भोंयरे में थी । श्रावकों ने प्रतिमा उत्थापन करके दरवाजे के बाहर लाने का प्रयत्न किया लेकिन दैविक शक्ति से प्रतिमा ने विराट रूप धारण किया व हजारों जंगली भँवरे मँडराने लगे । इस अतिशय को देखकर श्रावकों ने प्रतिमाजी को उस जगह पर पुनः स्थापित कर दिया। ऐसी अनेकों चमत्कारी घटनाएँ घटने के वृत्तांत मिलते हैं व अभी भी यहाँ आने से श्रद्धालु भक्तजनों के मनोरथ पूर्ण होते हैं । प्रति वर्ष पौष कृष्ण 10 के दिन मेला लगता है । अन्य मन्दिर से इसके अतिरिक्त गाँव में एक और मन्दिर व स्टेशन पर एक मन्दिर है । __ कला और सौन्दर्य यह स्थान प्राचीन रहने व भंयकर उत्थान पतन होने के कारण अभी भी भूगर्भ में व जगह-जगह पर कलात्मक अवशेष पाये जाते हैं। प्राचीन कलात्मक प्रतिमाएँ अति दर्शनीय हैं । यहाँ पर 554 Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री भद्रेश्वर तीर्थ तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 61 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल समुद्र के किनारे बसे भद्रेश्वर गाँव के बाहर, पूर्व भाग में लगभग आधा मील दूर एकान्त रमणीय स्थान पर । प्राचीनता इसका प्राचीन नाम भद्रावती नगरी था । इस नगरी का महाभारत में भी उल्लेख मिलता है । यहाँ भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन ताम्रपत्र में, विक्रम से लगभग पाँच सदी पूर्व व चरम तीर्थंकर भगवान महावीर के निर्वाण के 23 वर्ष पश्चात् भद्रावती नगरी के श्रावक श्री देवचन्द्र ने इस भूमि का शोधन करके तीर्थ का शिलारोपण किया व प्रभु के निर्वाण के 45 वर्षों के बाद परमपूज्य कपिल केवली मुनि के सुहस्ते भगवान श्री पार्श्वप्रभु की मनोहर प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई । उक्त सुअवसर पर इस नगरी के निवासी अखण्ड ब्रह्मचारी श्री विजय सेठ व विजया सेठाणी ने भगवती दीक्षा अंगीकार की थी, ऐसा उल्लेख है । विक्रम सं. 1134 में श्रीमाली भाइयों द्वारा व विक्रम सं. 1312-13 में सेठ जगइशाह द्वारा इस तीर्थ का उद्वार करवाने का उल्लेख है । कालक्रम से बाद में कभी इस नगरी को क्षति पहुँची । तब इस मन्दिर में स्थित पार्श्वप्रभु की प्रतिमा को एक तपस्वी मुनि ने सुरक्षित किया था । विक्रम सं. 1682 से 1688 के मन्दिर का अलौकिक दृश्य-भद्रेश्वर 555 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VEDIESELamol में भी अपना महल बनाया था, ऐसा उल्लेख है । उन्होंने अपने वाणिज्य में देश परदेशों में खूब ख्याति पाई व समस्त भारत में दानवीरों में मशहूर हुए । इन्होंने विक्रम सं. 1315 के भारी दुष्काल में जगह जगह दान शालाएँ व अन्न शालाएँ खुलवाकर भारत के विभिन्न नरेशों को सहायता दी थी, वह उल्लेखनीय है। इनके यहाँ विदेशों के अनेकों व्यापारी हमेशा आकर रहा करते थे जिनके सुविधार्थ मन्दिर व मस्जिदें भी बनवाई थी । यह उनकी उदारता का प्रतीक है। प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला 15 को ध्वजा चढ़ाई जाती है। अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में यहाँ इसके अलावा कोई मन्दिर नहीं है । ___ कला और सौन्दर्य लगभग ढाई लाख वर्ग फुट चौरस विशाल मैदान मे सुशोभित, देव विमान तुल्य यह मन्दिर अति ही आकर्षक लगता है । चरम तीर्थंकर श्री वीर प्रभु की यह प्रतिमा अति ही अद्भुत व मनोरम है, ऐसी प्रतिमा के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ है। केवली कपिल मुनि द्वारा प्रतिष्ठित श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा भी अति ही सुन्दर व प्रभावशाली है। मन्दिर का निर्माण बहुत ही सुन्दर ढंग से किया गया है । प्रवेशद्वार छोटा होते हुए भी प्रभु का दर्शन बाहर से श्री पार्श्वनाथ भगवान-भद्रेश्वर होता है । यहाँ का वातावरण अति ही शान्त है । बीच में सेठ वर्धमान शाह ने इस तीर्थ का उद्वार मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन करवाके श्री वीर प्रभु की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया। गाँधीधाम 35 कि. मी. हैं । मन्दिर के पास ही भद्रेश्वर था। तत्पश्चात् उस मुनि ने श्री पार्श्वप्रभु की प्राचीन का बस स्टेण्ड है । नजदीक का बड़ा गाँव मुन्द्रा 27 प्रतिमा पुनः संघ को सौंप दी, जो कि अभी मन्दिर में कि. मी. व भुज 80 कि. मी. दूर है । विद्यमान है । कहा जाता है उसके बाद एक बार यहाँ सुविधाएँ मन्दिर के निकट ही सर्वसुविधायुक्त के ठाकुर ने मन्दिर का कार्य भार संभाला था । विक्रम विशाल धर्मशाला व नवीन ब्लाक है । भोजनशाला व सं. 1920 में जैन श्रावकों ने ठाकुर साहब से पुनः भाते की भी सुन्दर व्यवस्था है । संघ वालों के लिए कार्यभार प्राप्त करके, जीर्णोद्धार करवाया । अंतिम अलग रसोडे की व्यवस्था है । लेकिन भूकम्प के कारण जीर्णोद्धार विक्रम सं. 1939 में मांडवी निवासी सेठ काफी नुकशान हुआ है । जीर्णोद्धार कार्य चालू है । मोणसी तेजशी की धर्मपत्नी मीठाबाई ने करवाया था, पेढ़ी 8 श्री वर्धमान कल्याणजी ट्रस्ट, वसई जैन ऐसा उल्लेख है । तीर्थ, महावीर नगर, पोस्ट : भद्रेश्वर - 370 411. विशिष्टता वीर प्रभु के निर्वाण के 45 वर्षों जिलाः कच्छ (गुज.),फोन: 02838-83361 व 83382 के पश्चात् परमपूज्य केवली कपिल मुनि द्वारा प्रतिष्ठित श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा अतीव प्रभावशाली व दर्शनीय है । उनके द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमाएँ बहुत ही कम जगह पाई जाती है । तेरहवीं शताब्दी में दानवीर सेठ जगडुशाह का जन्म यहीं हुआ था । उन्होंने कटारिया 556 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 00000 0:07 श्री महावीर भगवान-भद्रेश्वर 557 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिखरों की कला व बाह्य दृश्य अति रोचक हैं । यहाँ के ज्ञान मन्दिर में कलात्मक तीर्थ पट अति दर्शनीय है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन भुज 81 कि. मी. है, जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधाएँ उपलब्ध है । नलिया तीर्थ से यह स्थान 11 कि. मी. व जखौ तीर्थ से 13 कि. मी. दूर है । गाँव के बस स्टेण्ड से यह मन्दिर 400 मीटर है । मन्दिर तक पक्की सड़क है । सुविधाएँ ठहरने के लिए धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधा हैं । पेढ़ी 8 श्री जीरावला पार्श्वनाथ जैन देरासर ट्रस्ट, पोस्ट : तेरा - 370660, तालुका : अबड़ासा, जिला : कच्छ, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02831-89223 व 89224. श्री जीरावला पार्श्वनाथ मन्दिर-तेरा श्री तेरा तीर्थ तीर्थाधिराज श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, लगभग 68 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल तेरा गाँव के मध्य। प्राचीनता यह प्रतिमा लगभग 2200 वर्ष प्राचीन श्री संप्रति राजा द्वारा प्रतिष्ठित मानी जाती है। इस मन्दिर का पुनः निर्माण वि. सं. 1915 में हुआ था । अन्तिम जीर्णोद्धार वि. सं. 2027 में होकर आचार्य श्री गुणसागर सूरीश्वरजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा संपन्न हुई । विशिष्टता यह स्थल अबड़ासा पंचतीर्थी का एक स्थान माना जाने के कारण, अपनी विशेषता रखता है । इस मन्दिर के नव शिखरों की कला यहाँ की प्रसिद्धि है । अन्य मन्दिर ॐ इस के पास एक और श्री शामला पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर है । ___ कला और सौन्दर्य इस मन्दिर के नव 558 Netra Khanbhdi o Lodai MKATRAANCHCH *BHI 32 spro NALIAS 35 Rudramat ** BHUJ Deshalpero24TA Bitta Nayro Madhapur LABDA 233-agr 30A Kothare Waokuc346 Sunther kavat o Kotdi 829 Pathi Rayan Bindadar Gundore Chart MURERA Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान-तेरा 559 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जखौ तीर्थ तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 84 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल जखौ गाँव के मध्य। प्राचीनता यह स्थल कच्छ भुज के अबड़ासा की पंचतीर्थी का एक तीर्थ स्थान माना जाता है । इस मन्दिर की प्रतिष्ठापना विक्रम सं. 1905 में हुई थी। पुनः प्रतिष्ठा विक्रम सं. 2028 में हुई थी । विशिष्टता यह तीर्थ अबडासा पंचतीर्थी में रहने के कारण इसकी विशेषता है । इसे रत्नट्रॅक जैन देरासर कहते हैं । इसका निर्माण शेठ जीवराज रतनशी और शेठ भीमसी रतनसी ने करवाया था । प्रतिवर्ष जेठ शुक्ला 11 को वार्षिकोत्सव मनाया जाता है । अन्य मन्दिर 88 इसी परकोटे के अन्दर आठ और मन्दिर है । कला और सौन्दर्य एक ही परकोटे में निकटतम नव मन्दिरों की वैंकें रहने के कारण शिखरों का दृश्य अति ही शोभायमान प्रतीत होता है । मार्ग दर्शन 8 यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन भुज लगभग 108 कि. मी. हैं जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधा है । नलिया तीर्थ से यह स्थल 15 कि. मी. व तेरा से 28 कि. मी. दूर है । गाँव के बस स्टेण्ड से मन्दिर सिर्फ 400 मीटर है । बस व कार मन्दिर तक जा सकती है । सुविधाएँ 8 ठहरने के लिए धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधा उपलब्ध है । पेढ़ी 8 श्री जखौ रत्नहुँक जैन देरासर पेढ़ी, पोस्ट : जखौ - 370 640. तालुका : अबड़ासा, जिला : कच्छ, (गुज.) फोन : 02831-87224. श्री महावीर भगवान मन्दिर-जखौ 560 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ રાક પણ કરી છે કે તે in @insta). વ » kh श्री महावीर भगवान-जखौ 561 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कला और सौन्दर्य इस मन्दिर में पत्थर पर स्वर्ण कलम से किया हुआ कार्य अपनी विशिष्ट कला के लिए प्रसिद्ध है । काँच का काम भी सुन्दर ढंग से किया हुआ है । __ मार्ग दर्शन 88 यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन भुज लगभग 97 कि. मी. हैं जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है । यहाँ से तेरा तीर्थ 18 कि. मी. व कोठारा 20 कि. मी. दूर है । गाँव का बस स्टेण्ड मन्दिर से करीब 400 मीटर दूर है ।। सुविधाएँ ठहरने के लिए धर्मशाला है, जहाँ बिजली, पानी, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधा उपलब्ध है । नवीन अतिथी भवन का भी निर्माण अभी हुआ है । पेढ़ी श्री चन्द्रप्रभु तथा श्री शान्तिनाथजी जैन देरासर पेढ़ी, वीर वसही ढुक, पोस्ट : नलिया - 370 655. जिला : कच्छ, (गुज.) फोन : 02831-22327. श्री चन्द्रप्रभ भगवान मन्दिर-नलिया श्री नलिया तीर्थ तीर्थाधिराज श्री चन्द्रप्रभ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 75 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल नलिया गाँव के नागड़ा मोहल्ले में । प्राचीनता यह कच्छ भुज के अबड़ासा की पंचतीर्थी का एक तीर्थ माना जाता है । नरशीनाथा द्वारा निर्मित इस विशाल व भव्य मन्दिर की प्रतिष्ठापना विक्रम सं. 1897 में हुई थी। विशिष्टता यह अबड़ासा की पंचतीर्थी का एक स्थान रहने के कारण अपनी विशेषता रखता है । नरशीनाथा द्वारा निर्मित विशाल सोलह शिखर व चौदह मण्डपों वाला यह मन्दिर अपनी कला के लिए प्रसिद्ध है । प्रतिवर्ष माघ शुक्ला 5 को ध्वजा चढ़ाई जाती है। अन्य मन्दिर इसी कम्पाउण्ड में 3 और मन्दिर 562 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WORST DESI asraj ૨ાવેલ INDIAરિણlls. So, શ્રી મૂળનાયક ચંદ્રપ્રભુજી સ્વામ7. છે ! श्री चन्द्रप्रभ भगवान-नलिया Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कोठारा तीर्थ अन्य मन्दिर 8 इसके अतिरिक्त फिलहाल यहाँ कोई मन्दिर नहीं है । कला और सौन्दर्य इस मन्दिर में पत्थर पर तीर्थाधिराज श्री शान्तिनाथ भगवान, उत्कीर्ण कला सजीवसी लगती है । यहाँ की कला पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 90 सें. मी. देखते ही आबू-देलवाड़ा राणकपुर, जैसलमेर आदि का (श्वे. मन्दिर) । स्मरण हो आता है । तीर्थ स्थल इस गाँव के मध्य जैन मोहल्ले में। ___ मार्ग दर्शन 8 यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन प्राचीनता यह कच्छ भुज की अबड़ासा पंचतीर्थी का तीर्थ स्थान माना जाता है । यह इस पंचतीर्थी का भुज लगभग 80 कि. मी. दूर हैं जहाँ से बस व टेक्सी विशेष कलात्मक तीर्थ है, जो कि अपनी कला के लिए की सुविधा है । कोठारा गाँव का बस स्टेण्ड मन्दिर से विख्यात है । इस मन्दिर की प्रतिष्ठा वि. सं. 1918 सिर्फ 400 मीटर दूर है । यहाँ से सुथरी लगभग 10 माघ शुक्ला 13 के शुभ दिन अंचलगच्छ के आचार्य श्री कि. मी. नलिया 20 कि. मी. व जखौ लगभग 30 रत्नसागरसूरीश्वरजी के सुहस्ते संपन्न हुई थी । कि. मी. दूर है । सभी जगहों से बस व टेक्सी का विशिष्टता श्री शत्रुजय गिरिराज पर केशवजी साधन है । मन्दिर तक बस व कार जा सकती है । नायक ट्रॅक के निर्माता इसी गाँव के निवासी थे व इस ठहरने के लिए अतिथी गृह व मन्दिर के निर्माण कार्य में उन्होंने भी भाग लिया था। विशाल धर्मशाला है, जहाँ बिजली, पानी, बर्तन, उनके अलावा शेठ वेलजी मालू व शिवजी नेणशी ने भी ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधा है । भाग लिया था । आठ गगनचुंबी शिखरयुक्त इस मन्दिर के बाहर की व अन्दर की कला यहाँ की विशेषता पेढ़ी 8 कोठारा श्री शान्तिनाथजी जैन देरासर पेढ़ी, है । प्रतिवर्ष माघ शुक्ला 13 को ध्वजा चढ़ाई पोस्ट : कोठारा-370645. तालुका : अबड़ासा, जाती है । जिला : कच्छ, (गुज.), फोन : 02831-82235. सा कोठारा के कलात्मक मन्दिर का दृश्य 564 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HAH श्री शान्तिनाथ भगवान-कोठारा Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री घृतकलोल पार्श्वनाथ मन्दिर-सुथरी श्री सुथरी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री घृतकलोल पार्श्वनाथ भगवान, लगभग 30 सें. मी. श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, ( श्वे. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल सुथरी गाँव के मध्य । प्राचीनता यह स्थल कच्छ भुज की अबड़ासा पंचतीर्थी का एक मुख्य तीर्थ माना जाता है । इस मन्दिर की प्रतिष्ठा विक्रम सं. 1895 वैशाख शुक्ला अष्टमी को हुई थी । विशिष्टता इस प्रभु प्रतिमा का चमत्कार अति विख्यात है । कहा जाता है कि श्री उदेशी श्रावक की, किसी वक्त अपने प्रवास काल में एक ग्रामीण मनुष्य से भेंट हुई। उसके पास यह प्रभु प्रतिमा थी, जिसे देखकर उदेशी श्रावक अत्यधिक हर्षित हुए व उस व्यक्ति को मुँह माँगा धन देकर बड़े ही हर्षोल्लास व आदर-सत्कार पूर्वक प्रतिमा को अपने घर लाकर खाद्य पदार्थ के भण्डार में रखा । दूसरे दिन जब प्रभु प्रतिमा के दशनार्थ भण्डार का दरवाजा खोला तब भण्डार को खाद्य पदार्थो से भरपूर देखकर उदेशी श्रावक आश्चर्य 566 चकित हुए। गाँव में उपस्थित पूज्य यतिवर्य के पास जाकर घटित वृतान्त कहा । उस पर यतिजी ने मन्दिर बनवाकर इस चमत्कारिक प्रभु प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाने की सलाह दी। तदनुसार उदेशी श्रावक ने भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया । . प्रतिष्ठा के शुभ अवसर पर स्वामीवात्सल्य का आयोजन रखा गया, जिसमें एक ही बर्तन का घी आवश्यक प्रमाण बापरने पर भी बर्तन भरा ही रहा । इस आश्चर्यमयी घटना से उपस्थित भक्तगण प्रभावित होकर प्रभु को घृतकलोल पार्श्वनाथ कहने लगे । प्रतिमा को अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ जयध्वनि के बीच विधिपूर्वक प्रतिष्ठित किया गया। कहा जाता है कि अभी भी अनेकों बार चमत्कारिक घटनाएँ घटती हैं। जेसे हाल ही में भगवान श्री महावीर की 25वीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष्य में आयोजित विराट महोत्सव के समय यहाँ 4 साल से लगातार अकाल होने के कारण पानी की भयंकर समस्या हो गई थी, जिससे यहाँ का संघ अति चिन्तित था । उस समय एक भाग्यशाली श्रावक को स्वप्न में गाँव के बाहर तालाब के बीच 9 फुट गड्ढा खोदने पर पानी मिलने का दैविक संकेत मिला । संकेतित स्थान में गड्डा खोदने पर विपुल मात्रा में निर्मल जल प्राप्त हुआ । यह अभूतपूर्व चमत्कार देखकर गाँव के सारे लोग अत्यन्त प्रफुल्लित हुए व महोत्सव खूब ही हर्षोल्लासपूर्वक मनाया गया । वर्ष में दो दिन सूर्य की किरणें प्रभु प्रतिमा पर आकर चरण स्पर्श करती हैं । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त यहाँ पर कोई मन्दिर नहीं है । कला और सौन्दर्य मन्दिर के शिखर की कला अति ही आकर्षक है । ऐसी कला का अन्यत्र देखना दुर्लभ है। इसी मन्दिर में गौतमस्वामीजी व पद्मावती देवी की प्राचीन व निराले ढंग की बनी प्रतिमाएँ दर्शनीय हैं, जिनपर विलेपन किया हुआ है । मार्ग दर्शन नजदीक का रेल्वे स्टेशन भुज 96 कि. मी. व गाँधीधाम 161 कि. मी. हैं । इन स्थानों से बस व टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है। कोठारा से 12 कि. मी. मान्डवी तीर्थ से लगभग 75 कि. मी. दूर है । मन्दिर तक बस व कार जा सकती है । Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ મોં મા ! ચંદ્ર પ્રભુ श्री घृतकलोल पार्श्वनाथ भगवान-सुथरी सुविधाएँ 8 ठहरने के लिए मन्दिर से सिर्फ 100 मीटर पर सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधा है । पेढ़ी 8 श्री सुथरी घृतकलोल पार्श्वनाथ श्वेताम्बर जैन देरासर पोस्ट : सुथरी-370 490. तालुका : अबड़ासा, जिला : कच्छ, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02831-84223. Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कटारिया तीर्थ तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण (श्वे. मन्दिर) ।। तीर्थ स्थल कटारिया गाँव में । प्राचीनता 8 यहाँ का इतिहास लगभग सात सौ वर्ष से पूर्व का होना माना जाता है । कहा जाता है कि धर्मपरायण दानवीर शेठ श्री जगडूशाह का यहाँ भी महल था । वि. सं. 1312 में शेठ श्री जगडूशाह द्वारा श्री भद्रेश्वर महातीर्थ का जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख है अतः संभवतः यहाँ रहते समय वहाँ का जीर्णोद्धार करवाया होगा । यह भी कहा जाता है कि एक समय यह एक भव्य नगरी थी, अतः उस वक्त इनके अतिरिक्त इस नगरी में और भी कई श्रावकों का निवास अवश्य रहा ही होगा व कई मन्दिरों का भी निर्माण हुवा होगा । कालक्रम से वह विराट नगर एक छोटे से गांव में परिवर्तित हो गया । उन प्राचीन मन्दिरों व महलों-मकानों का पत्ता नहीं । संभवतः कभी भूकम्प आदि से भूमीगत हो गये होंगे । वर्तमान में यहाँ पर यही एक मन्दिर है जिसका पुण्य योग से किसी के मकान की नींव रखोदती वक्त पता लगा था । इसकी कला आदि को देखकर पुरातत्व विभाग वाले इसे लगभग पाँच सोह वर्ष पूर्वका मानते है । यह मन्दिर आचार्य भगवंत श्री हीरविजयसूरीश्वरजी के शिष्य विजयसेनसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित माना जाता है । भूगर्भ से प्राप्त मन्दिर की कला व प्राचीनता को देखते हो सकता है उस वक्त इसका जीर्णोद्धार हुवा हा। सुसंयोगवश निकट के गांव वांठिया में चातुर्मासार्थ विराजित श्री आत्मारामजी म.सा. के शिष्य श्री कनकविजयजी म.सा. का वि. सं. 1978 में यहाँ आगमन हुआ । गुरुभगवंत की प्रेरणा से भूगर्भ से प्राप्त मन्दिर के जीर्णोद्धार का कार्य भी प्रारंभ हुआ । यहाँ के संघ की भावनानुसार गुरुदेव की प्रेरणा व सद्प्रयास से मूलनायक श्री महावीर प्रभु की यह प्राचीन प्रतिमा (जो किसी समय यहीं से वांठिया ले जाई गई थी) वांठिया गांव से पुनः यहाँ लाकर वि. सं. 1978 में विराजमान की गई । जीर्णोद्धार का कार्य लगभग पूर्ण होने पर प्रतिष्ठा का मुहूर्त वि. सं. 1993 माघ शुक्ला पूर्णीमा निश्चय करके उन्हीं के हाथों प्रतिष्ठा करवाने का निश्चय किया गया, परन्तु संयोगवश उसके पूर्व ही गुरु भगवंत काल धर्म पा जाने के कारण कच्छ वागड देशोद्धारक प. पूज्य आचार्य भगवंत श्री कनकसूरीश्वरजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा का कार्य हर्षोल्लासपूर्वक उसी मुहूर्त में सुसम्पन्न हुवा। तत्पश्चात् उन्हीं के हाथों तलघर में भी श्री नेमिनाथ भगवान आदि प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । ____ कालक्रम से दुर्भाग्यवश लगभग 7 माह पूर्व वि. सं. 2057 माघ शुक्ला 2 दिनांक 26 जनवरी 2001 को कच्छ में आये भयंकर भूकंप के कारण इस मन्दिर को भी पुनः भारी क्षति पहुँची व सारा मन्दिर, धर्मशाला, भोजनशाला आदि सभी इमारते भूमीगत हो गई, परन्तु देवयोग से प्रभु प्रतिमाएँ सुरक्षित हैं व पूजा-सेवा निरन्तर चालू है । मन्दिर के पुनः जीर्णोद्धार की योजना चालू है । पेढ़ी वालों का कहना है कि प. पूज्य आचार्य भगवंत श्री कनकसूरीश्वरजी म.सा. के प्रशिष्यरत्न अध्यात्ययोगी श्री महावीर जिनालय-कटारिया 568 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य भगवंत श्री कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. के यहाँ पधारने पर ही संभव होगा । इस वर्ष आचार्य भगवंत का चातुर्मास फलोदी (राज.) में हैं । विशिष्टता चौदवीं सदी के प्रारंभ में हुवे दानवीर शेठ श्री जगडूशाह का यहाँ भी महल रहने का उल्लेख है अतः यहाँ का इतिहास प्राचीनता के साथ अतीव गौरवमयी है । जगडूशाह अतीव दानवीर धर्मवीर व कर्मवीर शेठ हुवे, जिन्होंने बिना किसी जाती, पंथ व समुदाय आदि भेद के सबके लिये दानशालाएँ ही नहीं अपितु पूजा-पाठ हेतु धर्म स्थानों का भी निर्माण करवाकर जैन शासन का गौरव बढ़ाते हुवे पुण्योपार्जन का कार्य किया जो आज भी याद दिलाता है व प्रेरणाप्रद है । यह तीर्थ कच्छ वागड का प्राचीन, गौरवमयी, कलात्मक व भव्य तीर्थ रहा है । प्रभु से प्रार्थना है इसका पुनः यथाशिघ्र जीर्णोद्वार होकर गौरवमयी इतिहास को सदा के लिये कायम रखे । इसके अतिरिक्त आज यहाँ और अन्य मन्दिर कोई मन्दिर नहीं हैं । कला और सौन्दर्य मनोरम व भावात्मक है । प्राचीन प्रभु प्रतिमा अतीव कलात्मक मन्दिर को भूकंप में क्षति पहुँचने के कारण सभी कलात्मक अवशेष भूमीगत हो चुके हैं । मार्ग दर्शन यहाँ का रेल्वे स्टेशन कटारिया मन्दिर से लगभग 1/2 कि. मी. दूर है । यहाँ से भुज 105 कि. मी. लाकडिया 7 कि. मी. दूर है । गांव में आटो, टेक्सी आदि सवारी का साधन है । सुविधाएँ हाल ही भुकंप के कारण क्षति पहुँचने से वर्तमान में यहाँ कोई सुविधा नहीं है । धर्मशाला आदि बनाने की योजना चालू है । पेढ़ी शेठ वर्धमान आनन्दजी पेढ़ी, वल्लभपुरी पोस्ट : कटारिया -370145. जिला : कच्छ (गुजराज), फोन : 02837-73341. (पेढ़ी) पी.पी. 02832-51816. फेक्स: 02832-52816. odai VA S H 64 H Dudhaio Tapero Lakhapar o श्री महावीर भगवान-कटारिया ANJAR Adipuro GANDHIDHAM Chobari Manfera BHACHAU Bhimaser (8A Chirai I Adho 28 Chitrod 35 Samakhiyari Lakadia Wandh Jangi 15 o Suraj Bart MALIA KH 569 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री गिरनार तीर्थ तीर्थाधिराज 1. श्री नेमिनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, 140 सें. मी. (श्वेताम्बर मन्दिर ) । 2. श्री नेमिनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, (दिगम्बर मन्दिर ) । तीर्थ स्थल जूनागढ़ के पास समुद्र की सतह से लगभग 3100 फुट (945 मीटर) ऊँचे गिरनार पर्वत पर । प्राचीनता श्वेताम्बर मान्यतानुसार पुराने जमाने में इसे उज्यन्तगिरी व रैवतगिरि आदि भी कहते थे । श्वे. जैन शास्त्रों में इसे नेमिनाथ पर्वत व शत्रुंजयगिरि की पाँचवीं टुंक भी बताया गया है । प्रथम तीर्थंकर के काल से लेकर अन्तिम तीर्थंकर के काल तक अनेक चक्रवर्ति, राजा व श्रेष्ठीगण संघ सहित श्री शत्रुंजय की यात्रा आये, तब प्रभासपाटण होते हुए रैवताचल की यात्रार्थ भी आये थे । इसलिए यह अनुमान लगाया जाता है कि यह तीर्थ नेमिनाथ भगवान के पूर्व का है। व उसके पूर्व भी अनेकों मुनिगण तपस्या करके यहाँ से मोक्ष सिधारे होंगे । वर्तमान चौवीसी के बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवान ने यहीं पर दीक्षा ग्रहण की व तपश्चर्या करते हुए केवलज्ञान पाकर मोक्ष सिधारे । रेवानगर के राजा श्री नेबुसदनेझर द्वारा वीर नि. सं. पूर्व पहली शताब्दी (ई. पूर्व छठी शताब्दी) में यहाँ नेमिनाथ भगवान का मन्दिर निर्मित करवाने का उल्लेख प्रभासपाटण में से प्राप्त एक ताम्रपत्र में मिलता है । आचारंगसूत्र में भी इस तीर्थ का उल्लेख किया गया है । काश्मीर के श्रेष्ठी श्री अजित शाह तथा रत्ना शाह द्वारा वीर नि. सं. 1079 (वि. सं. 609) में इस तीर्थ का उद्वार होने का उल्लेख है । बारहवीं शताब्दी में सिद्धराज के मंत्री श्री सज्जन शाह व वस्तुपाल तेजपाल द्वारा यहाँ जीर्णोद्धार होने का उल्लेख है । तेरहवीं शताब्दी में मंडलिक नाम के राजा ने यहाँ स्वर्ण पत्तरों से मन्दिर बनवाया था ऐसा उल्लेख है । चौदहवीं शताब्दी में सोनी समरसिंह, सत्रहवीं शताब्दी में व मान व पद्मसिंह नाम के भाइयों ने व बीसवीं शताब्दी में नरसी केशवजी ने इस तीर्थ का उद्धार करवाया था। इनके अलावा भी प्रियदर्शी राजा संप्रति, राजा कुमारपाल, मंत्री सामन्तसिंह, संग्राम सोनी, आदि अनेकों राजाओं, 570 विशिष्टता मंत्रियों व श्रेष्ठियों द्वारा यहाँ पर जीर्णोद्धार करवाने के व मन्दिर निर्मित करवाने के उल्लेख मिलते हैं । वि. सं 1222 में राजा कुमारपाल के मंत्री आम्रदेव ने पहाड़ का मार्ग सुगम (पाज) बनवाया था । यह शत्रुंजयगिरि की पाँचवी ट्रंक मानी जाती थीं । प्रथम तीर्थंकर श्री आदीश्वर भगवान के काल से चरम तीर्थंकर श्री महावीर भगवान के काल तक अनेकों चक्रवर्तियों, राजाओं व श्रेष्ठियों द्वारा रैवताचल की यात्रा किये का उल्लेख मिलता है । पूर्व काल में अनेक तीर्थंकरों का यहाँ पदार्पण हुआ है व अनेक मुनिगण यहाँ तपश्चर्या करके मोक्ष सिधारे हैं । कहा जाता है, भावी चौबीसी में बीस तीर्थंकर यहाँ से मोक्ष सिधारेंगे । एक किंवदन्ति के अनुसार श्वे. मन्दिर में स्थित श्री नेमिनाथ भगवान की यह प्रतिमा गई चौबीसी के तीर्थंकर श्री सागर के उपदेश से पाँचवें देवलोक के इन्द्र ने भराई थी, जो भगवान नेमिनाथ के काल तक इन्द्रलोक में थी व बाद में श्रीकृष्ण के गृहमन्दिर में रही । जब द्वारका नगरी भस्म हुई तब श्री अंबिका देवी ने इस प्रतिमा को सुरक्षित रखी व बाद में श्री रत्नाशाह की तपश्चर्या व अनन्य भक्ति से श्री अम्बिका देवी ने प्रसन्न होकर उन्हें प्रदान की, जिसे पुनः प्रतिष्ठित किया गया । वर्तमान चौबीसी के बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवान ने यहीं दीक्षा ग्रहण की थी व केवलज्ञान पाकर वे यहीं से मुक्ति को सिधारे । सती श्री राजुलमतीजी भी तपश्चर्या करती हुई यहीं पर से मोक्ष सिधारी थीं । भगवान नेमिनाथ सती राजिमती के साथ विवाह करने बरात लेकर आये व पशुओं की पुकार सुनकर उन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ । तुरन्त ही उन्होनें राजपाट का वैभव छोड़कर, बिना शादी किये ही वर्षीदान देकर दीक्षा ग्रहण करके इसी गहन जंगल में जाकर कठोर तपश्चर्या की । यह देखकर सती राजुलमतीजी को भी वैराग्य उत्पन्न हुआ व वह भी संसार का सुख त्याग कर इसी गहन जंगल में तपस्या करते हुए मोक्ष को सिधारी । दिगम्बर मान्यतानुसार श्री नेमिनाथ भगवान के बाद प्रद्युम्नकुमार, सांबकुमार, अनिरुद्ध व अनेकों मुनिगण यहाँ से मोक्ष सिधारे हैं । हिन्दू व मुसलमान भी इस जगह को अपना अपना तीर्थधाम मानते हैं व जगह-जगह उनके भी मन्दिर व Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PalaSHI SARDARMER यादव कुल तिलक श्री नेमिनाथ भगवान-गिरनार (श्वे. मन्दिर) 571 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थान बने हुए है । अतः वे भी हमेशा सैकड़ों की चौक में एक सुन्दर कुन्ड है । संख्या में दर्शनार्थ इस तीर्थ में आते हैं । आगे मेलकवसही ट्रॅक आती है, जो कि मुख्य ट्रॅक अन्य मन्दिर गिरनार पर्वत की तलहटी का के उत्तर दिशा में है । इस ट्रैक के मूलनायक नगर जूनागढ़ है । वहाँ वर्तमान में 2 श्वेताम्बर मन्दिर श्री सहसफणा पार्श्वनाथ भगवान हैं । इस ट्रॅक के व एक दि. मन्दिर हैं व तलहटी में एक श्वेताम्बर निर्माता श्री सिद्धराज के महामंत्री श्री सज्जन सेठ मन्दिर और एक दिगम्बर मन्दिर हैं । तलहटी के बताये जाते हैं । इसी ट्रॅक में श्री आदीनाथ भगवान मन्दिर के पास ही से पहाड़ की चढ़ाई शुरु की विशालकाय प्रतिमा है, जिसे अद्भुतजी कहते हैं । होती है । ___ आगे चलने पर श्री संग्राम सोनी की ट्रॅक आती है। चढ़ाई अति कठिन है । लगभग 3.0 कि. मी यानी यह मन्दिर ओसवाल ज्ञाति के सोनी समरसिंह और लगभग 4200 सीढ़ियाँ चढ़ने पर श्री नेमिनाथ भगवान मालदेव ने बनवाया था, ऐसा ग्रंथस्थ उल्लेख मिलता की मुख्य वैंक के कोट का दरवाजा आता है । यहाँ है । इस ट्रॅक का मुख्य मन्दिर दो मंजिल का है व श्वेताम्बर मन्दिर 190-130 फुट लम्बे-चौड़े विशाल सब मन्दिरों से ऊँचा है । यहाँ के मूलनायक भी श्री चौक के मध्य भाग में रमणीय छटा युक्त पहाड़ियों में सहसफणा पार्श्वनाथ भगवान है । सुशोभित है । इसके निर्माण काल का व उद्वार का आगे जाने पर श्री कुमारपाल राजा की ट्रॅक आती वर्णन आगे किया गया है । है । यह दूँक 13वीं शताब्दी में श्री कुमारपाल राजा इसके सामने ही मानसंग भोजराज की ट्रॅक है । द्वारा निर्मित हुए का उल्लेख है । यहाँ के मूलनायक मूलनायक श्री संभवनाथ भगवान हैं । इस मन्दिर के श्री अभिनन्दनस्वामी भगवान है । इस ट्रॅक के पास भीमकुंड व गजपदकुण्ड हैं । मुख्य मार्ग पर आगे जाते श्री वस्तुपाल-तेजपाल की ट्रॅक आती है । शिलालेखों के उल्लेखानुसार यह ट्रॅक वि. सं. 1288 में बनी थी । ट्रॅक में तीन मन्दिर हैं स्तम्भनपुरावतार श्री पार्श्वनाथ भगवान का; शत्रुजयावतार श्री ऋषभदेव भगवान का मुख्य मन्दिर और सत्यपुरावतार श्री महावीरस्वामी का । पीछे से शत्रुजयावतार नामक मुख्य मन्दिर में मूलनायक श्री शामला पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाजी विराजमान की गई । उस प्रतिमा पर वि. सं. 1305 का लेख उत्कीर्ण है । इस ट्रॅक से बाहर निकलने पर मुख्य मार्ग पर श्री संप्रतिराजा की ट्रॅक आती है । यह मन्दिर प्राचीन एवं विशाल है । यहाँ मूलनायक श्री नेमिनाथ भगवान हैं। बाद में चौमुखजी, श्री संभवनाथ भगवान की ट्रॅक, ज्ञानबावड़ी, श्री धर्मशी हेमचन्द्रजी की ट्रॅक, मल्लनी ट्रॅक, सती राजुलमतीजी की गुफा, चौमुखी की दूसरी ट्रॅक, चोरीबाले का मन्दिर, गौमुखी गंगा व चौबीस जिनेश्वर भगवान की पादुकाएँ हैं । उपरोक्त सारी श्वेताम्बर ढूंकें है । सती राजुलमतीजी की गुफा के ऊपरी भाग में एक सती श्री राजुलमतिजी-गिरनार कम्पाउन्ड में दिगम्बर मन्दिर है, जहाँ के मूलनायक श्री नेमिनाथ भगवान है । इसी कम्पाउन्ड में दो और 572 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ bar भीमनाथ भगवान जिरनार श्री नेमिनाथ भगवान-गिरनार (दि. मन्दिर) 573 Page #98 --------------------------------------------------------------------------  Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પ્રસ્તાવન जैन मन्दिरों का अतीव आकर्षक दृश्य- गिरनार पर्वत Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिर हैं। गोमुखी गंगा के आगे से एक रास्ता सहसाबन जाता है । वहाँ श्री नेमिनाथ भगवान की दीक्षा एवं केवलज्ञान कल्याणक स्थानों पर प्रभु की चरण पादुकाएँ प्रतिष्ठित हैं। गोमुखी गंगा से आगे मुख्य मार्ग पर श्री रहनेमि (श्री नेमिनाथ भगवान के भाई) का मन्दिर है । आगे जाने पर श्री अम्बाजी की ट्रॅक आती है । यह ट्रॅक मुख्य वैंक से 300 फुट ऊँची है । चढ़ने के लिए पगथीये बने हुए हैं । इसके निकट एक ओट पर अनिरुद्धकुमार की चरण पादुकाएँ हैं । अम्बाजी, श्री नेमिनाथ भगवान की अधिष्ठायिका देवी है । मंत्री वस्तुपाल-तेजपाल ने इस मन्दिर का निर्माण करवाया था, ऐसा कहा जाता है । पाँच ह्कों का विवरण निम्न प्रकार बताया गसा है: पहली ट्रॅक - श्री नेमिनाथ भगवान की । दूसरी ट्रॅक - श्री अंबाजी की । तीसरी ट्रॅक - ओघड़ शिखर, नेमीनाथ भगवान के चरण । निकट एक ओट पर सांबकमार की चरण पादुकाएँ हैं । चौथी ट्रॅक - ओघड शिखर के आगे एक अन्य शिखर पर (लगभग 1500 सीढ़ियां उतरने व चढ़ने पर) श्री नेमिनाथ भगवान के चरण हैं । एक और शिला पर प्रद्युम्नकुमार के चरण हैं । पाँचवी ट्रॅक - बीहड़ जंगल में पर्वत की ऊँची चोटी जिस पर श्री नेमिनाथ भगवान व गणधर वरदत्त मुनि की चरण पादुकाएँ हैं । यहाँ से एक रास्ता सहसावन की तरफ जाता है । लगभग 1500 सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती है । सहसावन से तलेटी की तरफ रास्ता जाता है। __ कला और सौन्दर्य पहाड़ पर विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों से भरपूर लहलहाते पेड़ों के साथ घने जंगल का प्राकृतिक दृश्य अति ही सुन्दर व मनोरम प्रतीत होता है । पहुँचने पर इतना आनन्द महसूस होता है कि उतरने का मन ही नहीं होता । श्वे. मुख्य मन्दिर में विभिन्न स्थानों पर, छत पर प्राचीन शिल्पकला का कार्य बहुत ही सुन्दर है, जो निहारने योग्य है । यहाँ पर हर मन्दिर में शिखरों पर, छतों पर व स्तम्भों पर की गई शिल्पकला अति दर्शनीय है । मार्ग दर्शन 8 नजदीक का रेल्वे स्टेशन जूनागढ़ है, जो कि तलहटी धर्मशाला से 61/2 कि. मी. व जूनागढ़ गाँव की धर्मशाला से 11/2 कि. मी. है। जूनागढ़ बस स्टेण्ड भी 11/2 कि. मी. हैं । इन जगहों से बस, टेक्सी व आटो की सुविधा है । गाँव की धर्मशाला से तलहटी की धर्मशाला 5 कि. मी. है व तलहटी से पहाड़ पर पहली ट्रॅक तक की चढ़ाई लगभग 3 कि. मी. है व लगभग 4200 पगथीयें बने हुए है। पहली ट्रॅक से पांचवी ट्रॅक की दूरी लगभग 3 कि. मी. है । राजुलगुफा जाने के लिये पहली ट्रॅक से 200 पगथीये बने हुए है । वयोवृद्धजनों के उपयोगार्थ डोलियों व बच्चों हेतु गोदी का साधन है । पालीताना 230 कि. मी. दूर है । सुविधाएँ जूनागढ़ गाँव जगमाल चौक में श्वेताम्बर व दिगम्बर विशाल धर्मशालाएँ है, जहाँ पर बिजली, पानी, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र आदि के साधन है । तलहटी पर भी श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ व ब्लोक है जहाँ पर भोजनशाला व अन्य सारी सुविधाएँ उपलब्ध है । पहाड़ पर भी ठहरने के लिए श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ है, जहाँ पूजा सेवा के लिए सारी व्यवस्था उपलब्ध है । रास्ते में चढ़ते वक्त जगह-जगह पानी की व्यवस्था है व अन्य चाय-पानी की दूकानें लगी हुई पेढ़ी 1. शेठ देवचंद, लक्ष्मीचंद ट्रस्ट (शेठ आणान्दजी कल्याणजी शाखा पेढ़ी) उपरकोट रोड़, जगमाल चौक, बाबूनों बन्डों जैन धर्मशाला । (पोस्ट बाक्स नं. 049)। पोस्ट : जूनागढ़ - 362 001. जिला : जूनागढ़, प्रान्त : गुजरात, फोन : 0285-650179, (पढ़ी) तलेटी - 620059. पहाड़ - 624309. 2. श्री बन्डीलाल दिगम्बर जैन कारखाना, जगमाल चौक पेढ़ी, पोस्ट : जूनागढ़ - 362 001. फोन : 0285-654108, तलेटी - 621519. 77Madam 1381 Sardargadh Saradiya BHESAN? A * * VANTHAU JUNAGADH JoGirmar 20 Banda MANAVADAR Shahp:36 Bilkha Orat R. 3 2 Bilkha Khadiyeo 576 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवानगर तीर्थ सिधानमना નવેતામ્બર-દેરાસ NEAVEA TA तीर्थाधिराज श्री नेमिनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 51 इंच (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल जामनगर शहर के महालक्ष्मी चौक में । प्राचीनता प्राचीन काल का नवानगर आज जामनगर के नाम से विख्यात है । इस नगरी की स्थापना सोलवीं सदी में हुई मानी जाती है । परन्तु श्री नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमा का इतिहास बहुत ही प्राचीन व प्रभावशाली है जिसका संक्षिप्त विवरण विशेषता में दिया गया है । इस नगर की स्थापना के समय ही ओसवाल वंशज भणशालीगोत्रीय श्री आनन्दशेठ व अबजीशेठ के पूर्वज यहाँ आकर बसे व नगर के निर्माण व उत्थान में अपना पूर्ण सहयोग व योगदान प्रदान किया जो जामनगर के इतिहास में हमेशा उल्लेखित रहेगा । नगर की स्थापना के साथ-साथ मन्दिरों का भी निर्माण हुवा अतः यहाँ के जैन मन्दिरों का इतिहास भी प्रारंभ हुवा । समय-समय पर आवश्यकतानुसार मन्दिरों का जीर्णोद्धार होता ही है उसी भांती यहाँ भी हुवा जिनमें मुख्य जीर्णोद्धार सं. 1788 में होने का उल्लेख है । विशिष्टता मूलनायक श्री नेमिनाथ भगवान की अलौकिक जीवित प्रतिमा प्रभु के काल में श्री कृष्ण वासुदेव के भ्राता श्री बलदेव द्वारा पूजित रहने के कारण व चमत्कारिक घटनाओं के साथ प्रकट होकर यहाँ पुनः प्रतिष्ठित होने के कारण इस मन्दिर की महान विशेषता श्री नेमिनाथ भगवान जिनालय प्रवेश द्वार-नवानगर साथ में यहाँ पर एक ही स्थान पर बने अनेकों भव्य व कलात्मक मन्दिरों के कारण इसे अर्धशत्रुजय महातीर्थ की उपमा दी है । यह भी यहाँ की मुख्य विशेषता है । कहा जाता है कि श्री ओसवाल वंशीय श्री मुहणसिंहशेठ के द्वारिका नगरी से जलमार्ग द्वारा यहाँ आते समय समुद्र में उनके वाहन से टकराकर यह भव्य चमत्कारिक प्रतिमा प्रकट हुई थी, जिसे प्रतिष्ठित करवाने हेतु शिखरबंध मन्दिर का निर्माण कार्य प्रारंभ किया परन्तु कोई दिव्य शक्ति के कारण दिन में हुवा काम रात में स्वतः गिर जाता था । यह घटना निरन्तर कई दिनों तक चलती रही । निराश हुवे शेठ जगह-जगह पूछताछ करते रहे । परन्तु कोई उपाय नहीं सूझ रहा था । भाग्योदय से आचार्य भगवंत श्री धर्ममूर्तीसूरीश्वरजी म. सा. का यहाँ पदार्पण हुवा, उन्हें सारी बात से अवगत करवाया गया । कारण का पता लगाने हेतु आचार्य श्री ने देवी की उपासना की । उपासना से संतुष्ट हुई अधिष्टायिका श्री महाकाली देवी ने प्रकट होकर कहा कि यह महान प्रभाविक प्रतिमा है जो श्री नेमिनाथ भगवान के समय उनके गणधर द्वारा घर दहेरासर मन्दिर में विधिसहित प्रतिष्ठित श्री बलदेव 577 Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विज्ञानी (भा देवकालीन शिखर श्री नेमिनाथ जिनालय - नवानगर द्वारा द्वारिका नगरी में पूजित थी । काल के प्रभाव से श्री द्वारिका नगरी ध्वंस होने के कारण यह प्रतिमा कई काल तक समुद्र में देवों द्वारा पूजित रही । जो पुण्य के प्रभाव से महेणशेठ को प्राप्त हुई है। यह प्रतिमा प्रभु के गणधर द्वारा घर दहेरासर में प्रतिष्ठित रहने के कारण अब भी उसी आकार के मन्दिर में रहेगी । इस चमत्कारिक घटना से खुश होकर मेहणशेठ ने उसी आकार के मन्दिर का निर्माण करवाकर आचार्य भगवंत श्री धर्ममूर्तीसूरीश्वरजी के शुभहस्ते सं. 1648 माघ शुक्ला वर्षात पंचमी के शुभ दिन पुनः प्रतिष्ठित करवाया जो आज भी विद्यमान है। प्रभु प्रतिमा बहुत ही चमत्कारिक है आज भी कई चमत्कारिक घटनाएँ घटती रहती है। प्रभु प्रतिमा जीवित स्वामी के नाम से विख्यात है। प्रभु का जन्म कल्याणक महोत्सव श्रावण शुक्ला पंचमी को अतीव ठाठ पूर्वक मनाया जाता 578 है, जिसमें हजारों जैन-जैनेतर भाग लेते है । अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त 15 और जिन मन्दिर हैं, जिनमें श्री वर्धमान शाह द्वारा सं. 1616 में निर्माणित श्री शांतिनाथ भगवान का मन्दिर व श्री रायशी शाह द्वारा सं. 1624 में निर्माणित श्री शांतिनाथ भगवान का मन्दिर (जो चौरीवालु देरासर के नाम से विख्यात है) बहुत ही विशाल व कलात्मक बावन जिनालय मन्दिर है । कला और सौन्दर्य यहाँ के मन्दिरों में विराजित प्राचीन प्रतिमाएँ अतीव सुन्दर व दर्शनीय है। हर मन्दिर का कलात्मक कार्य अपनी विशेषता रखता है। एक ही स्थान पर आये मन्दिर समूह का दृश्य दूर से ही मन्दिरों की नगरीसा प्रतीत होता है अतः इसे “ अर्धशत्रुंजय" महातीर्थ की उपमा दी गई है । मार्ग दर्शन यहाँ का जामनगर रेल्वे स्टेशन मन्दिर से लगभग 3 कि. मी. व बस स्टेण्ड लगभग 1 कि. मी. दूर है। स्टेशन से व शहर में सब तरह की सवारी का साधन है । मन्दिर व धर्मशाला तक कार व बस जा सकती है । सुविधाएँ ठहरने के लिये सर्वसुविधायुक्त धर्मशालाऐं हैं, जहाँ भोजनशाला की सुविधा भी उपलब्ध है । पेढ़ी शेठ रायसी वर्धमाननी पेढ़ी, जैन देरासर चौक, चान्दी बाजार, पोस्ट : जामनगर 361001 प्रान्त: गुजराज, फोन : 0288-678923. धर्मशाला : 0288-555946, 679916. Rozi Bet Hadiyana DHROL Bedi ** JAMNAGAR Alia Bada d Sanctuary 37 Lakhadavar o Pipartoda Kanalusar Debosang LALPUR GAR Devliya Latipur Savor Hadmatiya PADDHAR Khandera KALAVAD Motavadvala Kaged Sarpadad Khanadil Bedio 34 Sindhi RA Bhaktinaga * BA Khijsar 8B LODHIKAN Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तला P श्री नेमिनाथ भगवान-नवानगर 579 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वामस्थली तीर्थ तीर्थाधिराज श्री शीतलनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 150 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल वंथली गाँव के आजाद चौक में प्राचीनता आज का वंथली गांव पूर्वकाल में देवस्थली, वामस्थली आदि नामों से विख्यात था । यहाँ पर जगह-जगह पर स्थित प्राचीन भग्नावशेषों से पत्ता चलता है कि किसी समय यह अतीव जाहोजलालीपूर्ण विराट नगरी रही होगी । यहाँ पर अनेकों धर्मचुस्त जैन श्रावकगण हुवे का संकेत मिलता है । बारहवीं सदी में हुवे महाराजा श्री सिद्धराज जयसिंह के मंत्री क्रियाशील, व्रतधारी श्रावक श्री सज्जन शेठ की भी यह जन्म भूमि है । इन्होंने अपने जीवन काल में श्री गिरनार तीर्थ के जीर्णोद्धार करवाने में भाग लिया या वि. सं. 1185 में श्री शंखेश्वर तीर्थ का भी इनके द्वारा जीर्णोद्धार हुआ ऐसा उल्लेख है । उसी समय यहाँ के श्रेष्ठी श्री साकरिया द्वारा यहाँ जिन मन्दिर बनवाने व गिरनार पर श्री नेमीनाथ प्रभु को हीरों पन्नों का हार बनवाकर पहनाने का भी उल्लेख मिलता है । वि. सं. 1675 में श्री शत्रुंजय महातीर्थ की चौमुखजी ट्रैक पर बने मन्दिर (जो सवासोमा के नाम से विख्यात हैं) के निर्माता श्रावक श्री सवचन्द शेठ की 580 श्री शीतलनाथ भगवान जिनालय वामस्थली भी यही जन्म भूभि है। इनका इतिहास भी गौरवमयी है । यहाँ पर जगह-जगह स्थानों पर व निकट की ओसम पहाड़ी पर उपलब्ध प्राचीन खण्डहर मन्दिरों व ध्वंसावशेषों से लगता है कि यहाँ के श्रेष्ठीगणों ने अनेकों मन्दिरों का निर्माण करवाया होगा । परन्तु आज यहाँ सिर्फ दो मन्दिर विद्यमान है । इस मन्दिर के मूलनायक श्री शीतलनाथ प्रभु की विशालकाय प्राचीन प्रतिमा अत्यन्त भावात्मक व चमत्कारिक है । प्रतिमाजी की कलाकृति से महसूस होता है कि यह प्रतिमा श्री सम्प्रति राजा द्वारा भरवाई हुई है । श्री सम्प्रति राजा द्वारा अनेकों जगह मन्दिर बनवाकर प्रतिष्ठा करवाई जाने का उल्लेख आता है अतः यहाँ जगह-जगह पर अनेकों प्राचीन कलात्मक खण्डहर ध्वंसावशेषों को देखने से लगता है श्री सम्प्रति राजा ने यहाँ पर भी मन्दिर का निर्माण करवाकर श्री शीतलनाथप्रभु की यह भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई होगी । मन्दिर का नवनिर्माण होकर वि. सं. 1971 में पुनः प्रतिष्ठा चमत्कारिक घटनाओं के साथ सुसम्पन्न हुई । विशिष्टता यहाँ के धर्मचुस्त आवक व श्रेष्ठीगणों द्वारा धर्मप्रभावना व उत्थान हेतु समय-समय पर किया गया कार्य ही यहाँ का गौरवमयी इतिहास है, जो यहाँ की मुख्य विशेषता है। कुछ प्रमुख श्रेष्ठीगणों द्वारा किये गये कार्य का संक्षिप्त विवरण ऊपर प्राचीनता में दिया जा चुका है । अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त वर्तमान में एक और मन्दिर हैं । प्राचीन प्रभु प्रतिमाएँ कला और सौन्दर्य अतीव भावात्मक व दर्शनीय है । यहाँ के श्री पद्मप्रभु भगवान के मन्दिर में भूतल से प्राप्त प्राचीन प्रतिमाएँ भी अतीव चमत्कारिक मनमोहक व दर्शनीय है। गांव में जगह-जगह उपलब्ध प्राचीन कलात्मक अवशेष भी देखने योग्य है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन जूनागढ़ 15 कि. मी. दूर है। जहाँ से टेक्सी, बस व आटो की सुविधा है। यहाँ पर भी टेक्सी व आटो की सुविधा उपलब्ध है । यहाँ से प्रभाषपाटण लगभग 80 कि. मी. अजाहरा 160 कि. मी. व पालीताना 230 कि. मी. है दूर नजदीक का हवाई अड्डा राजकोट 125 कि. मी. है । 1 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___श्री शीतलनाथ भगवान-वामस्थली सुविधाएँ 8 वर्तमान में ठहरने के लिये मन्दिर के निकट ही धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन व ओढ़ने-बिछाने के वस्त्रों की सुविधा है । भोजनशाला की भी सुविधा है । पेढ़ी 8 श्री शीतलनाथ भगवान जैन श्वे. मन्दिर, श्री वंथली तपागच्छ जैन संघ, आजाद चौक, पोस्ट : वंथली - 362 610. जिला : जूनागढ़, (गुजराज), फोन : 02872-22264. पी.पी. 02872-22987. Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चन्द्रप्रभाष पाटण तीर्थ तीर्थाधिराज श्री चन्द्रप्रभ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 115 सें. मी. ( श्वे. मन्दिर ) । समुद्र किनारे बसे प्रभाष पाटण । सोमनाथ मन्दिर से सिर्फ लगभग तीर्थ स्थल गाँव के मध्य 400 मीटर । प्राचीनता इस तीर्थ की स्थापना श्री आदिनाथ प्रभु के पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती द्वारा हुई मानी जाती है। कहा जाता है जब भरत चक्रवर्ती ने श्री आदीश्वर प्रभु के उपदेश से अभिभूत होकर श्री सिद्धाचलजी का उद्धार करवाकर संघ निकाला, तब प्रयाण के समय यहाँ पर स्थित ब्राह्मी नदी (सरस्वती) के किनारे ठहरे थे । साथ में रहे श्री बाहुबलजी के पुत्र श्री सोमयशकुमार ने यहाँ 582 जंगल में अनेक मुनियों को घोर तपस्या करते हुए देखा व वार्तालाप होने पर मुनिवरों ने कहा कि हम वेताढ्य गिरि के विद्याधर हैं । हम श्री धरणेन्द्र देव से इस पवित्र व सर्व रोगों का निवारण करने वाली सरस्वती नदी के पास इस चन्द्रोद्यान का महत्व सुनकर आत्म क्षेमार्थ तपस्या कर रहे हैं । यहाँ पर आठवें भावी तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभ भगवान का समवसरण रचा जायेगा । यह वृत्तांत सोमयशकुमार ने संघपति श्री भरत - चक्रवर्ती को सुनाया । यह सुनकर भरत चक्रवर्ती ने यहाँ नगर बसाकर चन्द्रप्रभ भगवान के मन्दिर का निर्माण करवाया था । बाद में श्री सगर चक्रवर्ती, चन्द्रयशा, चक्रधर, राजा दशरथ, पाण्डव व हस्तिसेनराजा आदि यहाँ यात्रार्थ पधारे थे ऐसा उल्लेख है । लगभग वि. सं. 370 में श्री धनेश्वरसूरिजी द्वारा रचित श्री "शत्रुंजय महात्म्य" में इस तीर्थ का उल्लेख है । यह श्री चन्द्रप्रभ भगवान मन्दिर- प्रभाषपाटण 5 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चन्द्रप्रभ भगवान-प्रभाषपाटण 582 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षेत्र पुराने जमाने में देवपट्टण, पाटण, सोमनाथ, प्रभाष, चन्द्रप्रभाष, आदि नामों से विख्यात था । जैन आगम ग्रंथ "बृहत् कल्पसूत्र” में भी इस तीर्थ का उल्लेख है । विक्रम की चौथी शताब्दी में मलेच्छ राजाओं के आक्रमण से वल्लभीपुर भंग हुई तब आकाशमार्ग द्वारा वहाँ से अम्बादेवी आदि की मूर्तियाँ यहाँ लाने का उल्लेख मिलता है । चौदहवीं शताब्दी में जिनप्रभसूरिजी द्वारा रचित विविध तीर्थ कल्प में वि. सं. 1361 में श्री मेरुतुंगसूरिजी द्वारा रचित श्री प्रबंधचिन्तामणि ग्रंथ में भी इस तीर्थ का उल्लेख है । गुर्जर नरेश सिद्धराज जयसिंह, मंत्री वस्तुपाल - तेजपाल, पेथड़शाह समरशाह, राजसी संघवी आदि श्रेष्ठीगण यहाँ यात्रार्थ पधारे थे, ऐसा उल्लेख मिलता है । कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य के सदुपदेश से कुमारपाल राजा द्वारा यहाँ मन्दिर बनवाने का भी उल्लेख है । मोहम्मद गजनवी के समय व बाद में मुसलमानों के राज्यकाल में इस तीर्थ को भारी क्षति पहुँची थी, ऐसे उल्लेख मिलते हैं । जगतगुरु विजयहीरसूरीश्वरजी के शिष्य विजयसेनसूरिजी की निश्रा में वि. सं. 1666 पौष शुक्ला 6 से माघ शुक्ला 6 तक यहाँ पर 5 बार अंजनशलाका व प्रतिष्ठा होने का उल्लेख है । वि. सं. 1876 में विजयजिनेन्द्रसूरिजी के उपदेश से पुनः जीर्णोद्धार हुआ था । अंतिम जीर्णोद्धार होकर वि. सं. 2008 माघ शुक्ला 6 के दिन आगमोद्धारक आचार्य देव आनन्दसागरसूरिजी के पट्टविभूषण आचार्य श्री चन्द्रसागरसूरिजी के हस्ते प्रतिष्ठा संपन्न हुई । सब वृत्तांतों से इस तीर्थ की प्राचीनता स्वतः सिद्ध हो जाती है । विशिष्टता यह तीर्थ श्री आदिनाथ प्रभु के प्रथम पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती द्वारा स्थापित किया गया माना जाता है। प्रथम तीर्थंकर के काल से लेकर चरम तीर्थंकर के काल तक अनेकों चक्रवर्तियों, भाग्यशाली राजाओं, मंत्रियों व श्रेष्ठियों ने यहाँ की यात्रा की है। वि. सं. 1264 में श्री देवेन्द्रसूरिजी ने यहीं पर 5325 श्लोकों में श्री चन्द्रप्रभ चरित्र की रचना की थी । विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में श्री धर्मघोषसूरिजी ने यहीं पर मंत्रगर्भित स्तूति की रचना करके शत्रुंजय गिरि जूना कपर्दियक्ष को प्रतिबोधित किया था । प्रतिवर्ष माघ शुक्ला 6 को ध्वजा चढ़ाई जाती है । के अन्य मन्दिर इस मन्दिर के निकट ही 7 और 584 मन्दिर हैं व गाँव में एक मन्दिर है । इस मन्दिर के नीचे भाग में एक आगम मन्दिर है । पास के मन्दिर में श्री डोकरिया पार्श्वनाथ व श्री मल्लिनाथ भगवान की प्रतिमाएँ प्राचीन, सुन्दर व चमत्कारिक हैं । कला और सौन्दर्य सरस्वती नदी के तट पर समुद्र के किनारे बसे गाँव में इस मन्दिर का दृश्य अत्यन्त मनोरम है । मन्दिर की कला सराहनीय है । नव गंभारों से सुशोभित विशाल सभा मण्डप अि दर्शनीय है । इस ढंग का सभा मंडप अन्यत्र नहीं है। यह स्थान प्राचीन होने के कारण गाँव में स्थित मस्जिदों आदि में प्राचीन शिल्प कला के दर्शन होते है I कुछ मस्जिदों में स्थित पुरानी कलाकृतियों से यह प्रतीत होता है कि जैन मन्दिरों को मस्जिदों में परिवर्तित किया गया होगा मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन वेरावल लगभग 7 कि. मी. हैं, जहाँ से आटो, बस व टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है । बस स्टेण्ड मन्दिर से सिर्फ 100 मीटर है । मन्दिर तक पक्की सड़क है । बस व कार मन्दिर तक जा सकती है । । सुविधाएँ ठहरने के लिए निकट ही धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधा है । पेढ़ी श्री प्रभाष पाटण जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, जैन देरासरनी शेरी, पोस्ट प्रभाष पाटण - 362 268. जिला : जूनागढ़, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02876-31638. Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अजाहरा तीर्थ तीर्थाधिराज श्री अजाहरा पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, केशर वर्ण, लगभग 46 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल अंजारा गाँव के एक छोर पर । प्राचीनता प्रभु प्रतिमा अति ही प्राचीन है, जिसकी प्राचीनता का अनुमान लगाना कठिन है । कहा जाता है वर्तमान चौबीसी के बीसवें तीर्थंकर के काल में रघुवंश के वीर प्रतापी राजा अजयपाल का रोग निवारण जलकुण्ड से प्राप्त इस प्रभु प्रतिमा के न्हवण जल से हुआ था, जिसके कारण राजा अजयपाल ने यह गाँव बसाकर मन्दिर निर्मित करवाके इस चमत्कारिक प्रभु प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया था । यहाँ पर सैकड़ों प्राचीन बावड़ियाँ अभी भी मौजूद हैं व अनेकों प्राचीन प्रतिमाएँ भूगर्भ से प्राप्त हुई थी । चौदहवीं शताब्दी में उपाध्याय श्री विनयविजयजी द्वारा रचित 'तीर्थ माला' में भी इस तीर्थ का वर्णन आता है । भूगर्भ से प्राप्त काउसग्गिया मूर्तियों पर सं. 1323 जेठ शुक्ला 8 गुरुवार को श्री उदयप्रभसूरिजी के पट्टालंकार श्री महेन्द्रसूरीश्वरजी द्वारा प्रतिष्ठित होने का उल्लेख है । यहाँ पर प्राप्त एक घंटे पर 'श्री अजारा पार्श्वनाथ सं. 1014 शाह रायचन्द जयचन्द' उत्कीर्ण है । इन सबसे यह सिद्ध होता है कि यह प्राचीन क्षेत्र है व सदियों से यहाँ जाहोजलाली रही । विशिष्टता यह सौराष्ट्र के अजाहरा पंचतीर्थी का मुख्य स्थान है । कहा जाता है कि रत्नासार नाम का व्यापारी अपने जहाज में अनेकों व्यापारियों को साथ लेकर विदेश जा रहा था । समुद्र के बीच उसका जहाज अटक गया । जब सारे लोग अति व्याकुल होने लगे, इतने में दैविक अदृश्य आवाज हुई कि समुद्र में जहाज के नीचे श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा है, जिसके न्हवण जल से 107 रोगों से पीड़ित पराक्रमी राजा श्री अजयपालका रोग निवारण होगा । रत्नासार ने समुद्र से प्रभु प्रतिमा निकलवायी । प्रतिमा का दर्शन करने पर उसके हर्ष का पार न रहा । उसका जहाज भी सही सलामत समुद्र किनारे आ लगा । उस समय राजा अजयपाल अपनी सेना के साथ दीव बन्दर में पड़ाव डाले हुए थे व अनेकों रोगों से पीड़ित होते हए हात हुए अजाहरा पार्श्व प्रभु मन्दिर प्रवेश द्वार भी अनेकों योद्धाओं को हराते आ रहे थे । रत्नासार ने तुरन्त ही राजा अजयपाल को इस घटना का वृत्तांत कहलाया । राजा तुरन्त ही आकर प्रभु प्रतिमा को आदर-सत्कार पूर्वक बाजों-गाजों के साथ अपने यहाँ ले गये, सिर्फ 9 दिनों में राजा एकदम निरोग हो गये। उन्होंने यहीं पर अजयपुर नाम का नगर बसाकर भव्य मन्दिर का निर्माण करवाके इस प्रभु प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया । प्रभु प्रतिमा के न्हवण जल से राजा अजयपाल रोग से मुक्त होने के कारण भक्तगण प्रभु को अजाहरा पार्श्वनाथ कहने लगे । उसके बाद भी अनेकों चमत्कारिक घटनाएँ घटी हैं । अभी भी श्रद्धालु भक्तजनों के कई प्रकार के रोग इस प्रतिमा के न्हवण जल से निवारण होते है । अनेकों बार मन्दिर में रात्रि में देवों द्वारा नाट्यारंभ होने की आवाजें आती है । कहा जाता है कि एक वक्त यहाँ पर केशर की मामूली वर्षा हुई थी । श्री अजयपाल राजा द्वारा 585 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कला और सौन्दर्य यह एक प्राचीन क्षेत्र रहने के कारण यहाँ आसपास में अनेकों प्राचीन अवशेष पाये जाते है । मन्दिर के पास एक भोयरा है। उसमें से भी प्राचीन प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं। तीर्थाधिराज प्रभु प्रतिमा की कला अति दर्शनीय है । यह प्रतिमा बालू की बनी हुई है व विलेपन किया हुआ है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन ऊना 5 कि. मी. व देलवाड़ा 27 कि. मी. हैं, जहाँ से आटो की सवारी उपलब्ध है । बस व कार मन्दिर तक जा सकती है । सुविधाएँ ठहरने के लिए धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र, भोजनशाला व भाते की सुविधा उपलब्ध है । पेढ़ी श्री अजाहरा पार्श्वनाथ पंचतीर्थ जैन कारखाना पेढ़ी, गाँव : अजाहरा, पोस्ट : देलवाड़ा -362 510. जिला : जूनागढ़, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02875-21628 (अजाहरा), मुख्य पेढ़ी : ऊना - 362 560. फोन : 02875-22233. HINDI श्री अजाहरा पार्श्वप्रभु मन्दिर-अजाहरा प्रतिष्ठा होने के बाद अभी तक 14 उद्धार हुए हैं । लेकिन प्रतिमा वही है, ऐसा उल्लेख है । एक समय विलेपन का कार्य करते वक्त पुजारी ने कारीगरों से आरती उतारकर बाद में काम प्रारंभ करने का अनुरोध किया । परन्तु कारीगर न माने व कार्य शुरू करने गये । तुरन्त तोप की आवाज जैसी अदृश्य आवाज आयी व मन्दिर में लाल रंग फैल गया । प्रतिमा भी लाल दीखने लगी। कहा जाता है ऐसी चमत्कारिक घटनाएँ अनेकों बार घटती रहती है। हमेशा अनेकों जैन-जैनेतर आते रहते है व प्रभु-प्रतिमा के न्हवण जल को अमृतजल मानकर उपयोग करते है, जिससे उनके रोगोंका निवारण होता है, ऐसा अनेकों का अनुभव है । अभी दिनांक 17.9.78 रविवार के दिन एक और अपूर्व चमत्कार हुआ । श्री धरणेन्द्र देव, नागदेव के रूप में मन्दिर में प्रकट होकर प्रभु के सम्मुख ध्यानावस्था में तल्लीन हो गये। घंटों तक यह अद्भुत दृश्य रहा । इस दिव्य दर्शन का लाभ उपस्थित सैकड़ों भक्तजनों को प्राप्त हुआ । प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा, चैत्री पूर्णिमा व पौष कृष्णा 10 को मेला लगता है । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त और कोई मन्दिर नहीं है । 586 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Carefunera मजारो श्री अजाहरा पार्श्वनाथ भगवान 587 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवलखा पार्श्वनाथ मन्दिर-दीव श्रावकों के अनेकों घर थे, जिन्होंने धर्मप्रभावना के अनेकों कार्य किये । विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी में भी प्रभाषपाटण तीर्थ के जीर्णोद्धार में भाग लिया था । गिरनार एवं पालीताना के तीर्थो के जीर्णोद्धार में भी काफी योगदान दिया था । विजयहीरसूरीश्वरजी का ऊना में स्तूप बनवाने वाली श्राविका लाड़िका बहिन भी यहीं की थी । एक उल्लेखानुसार कहा जाता है, किसी वक्त प्रभु का मुकुट, हार व अंगी नव-नव लाख की बनाई गई थी । संभवतः इसी कारण प्रभु का नाम नवलखा पार्श्वनाथ प्रचलित हुआ होगा । __ अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त मन्दिर के पास ही 2 और मन्दिर है । __ कला और सौन्दर्य समुद्र के बीच बसे इस टापू का प्राकृतिक दृश्य अति मन लुभावना है । प्रभु प्रतिमा अति ही मनोहर व प्रभावशाली है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन देलवाड़ा 8 कि. मी. व ऊना 13 कि. मी. हैं, जहाँ से बस व आटो की सुविधा है । बस स्टेण्ड मन्दिर के निकट ही है । आखिर तक पक्की सड़क है । सुविधाएँ 8 ठहरने के लिए मन्दिर के परकोटे में ही कुछ कमरे बने हुए है, जहाँ सिर्फ पानी, बिजली की सुविधा उपलब्ध है । अजाहरा तीर्थ में ठहरकर आना ही सुविधाजनक है । पेढ़ी श्री अजाहरा पार्श्वनाथ पंचतीर्थ जैन कारखाना पेढ़ी, पोस्ट : दीव - 362 520. व्हाया : ऊना, जिला : जूनागढ़, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02875-22233 (ऊना) । श्री दीव तीर्थ तीर्थाधिराज श्री नवलखा पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, पीत वर्ण, लगभग 76 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल समुद्र के बीच बसे दीव गाँव के मध्य भाग में । प्राचीनता यह स्थान अति ही प्राचीन माना जाता है । जैसा अजाहरा के इतिहास में कहा गया है, राजा श्री अजयपाल ने अपनी सेना के साथ यहीं पर पडाव डाला था । 'बृहत कल्पसूत्र' में भी इस तीर्थ का उल्लेख है । चौदहवीं शताब्दी में उपाध्याय श्री विनयविजयजी द्वारा यहाँ की यात्रा करने का उल्लेख है । श्री कुमारपाल राजा द्वारा यहाँ श्री आदिनाथ भगवान का मन्दिर बनवाने का उल्लेख मिलता है । विक्रम सं 1650 में श्री हीरविजयसूरीश्वरजी श्री शत्रुजय की यात्रा करके यहाँ चतुर्मास करने पधारे थे। इन सबसे यह सिद्ध होता है कि यह प्राचीन क्षेत्र है व पूर्व शताब्दियों में यहाँ की जाहोजलाली अच्छी थी । प्रभु-प्रतिमा की कलाकृति से भी यहाँ की प्राचीनता सिद्ध हो जाती है। विशिष्टता यह सौराष्ट्र के अजाहरा पंचतीर्थी का एक तीर्थ माना जाता है । किसी समय यहाँ जैन 39 Somnath Prachi Ghontvad AVALO Patan Sindha Alidar Girgadhada SUTRAPADA UNA Ahmedpi43 Muldwarka KODINAR Mandvi 6 Delvada Sarkhadi. Gu 42 Prayag Velan 41 DIU IDAMAN R DIU) 588 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LunElduzu. ZALEC કરી છે श्री नवलखा पार्श्वनाथ भगवान-दीव Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री देलवाड़ा (गुजरात) तीर्थ तीर्थाधिराज श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 38 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल देलवाड़ा गाँव के मध्यस्थ। प्राचीनता यह मन्दिर कब बना उसका इतिहास उपलब्ध नहीं है । लेकिन वि. सं. 1784 में इसके जीर्णोद्धार होने का उल्लेख मिलता है । विशिष्टता यह तीर्थ अजाहरा पंचतीर्थी का एक तीर्थ स्थल माना जाता है । प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला 8 को ध्वजा चढ़ाई जाती है । __ अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में यहाँ पर इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर नहीं है । __कला और सौन्दर्य 8 वर्तमान में कोई भी कलात्मक कार्य नजर नहीं आता । मार्ग दर्शन 8 यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन देलवाड़ा लगभग 1 कि. मी. दूर है, जहाँ से आटो व टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है । देलवाड़ा गाँव का बस स्टेण्ड सिर्फ 200 मीटर दूर है । आखिर तक पक्की सड़क है । अजाहरा तीर्थ से यह स्थल सिर्फ 2 कि. मी. व ऊना से करीब 5 कि. मी. दूर है । सुविधाएँ ठहरने के लिए मन्दिर के पास ही कमरे बने हुए है, जहाँ बिजली, पानी की सुविधा है। अजाहरा में ठहरकर यहाँ आना ही सुविधाजनक है । पेढ़ी श्री अजाहरा पार्श्वनाथ पंचतीर्थ जैन कारखाना पेढ़ी, वासा चौक, पोस्ट : देलवाड़ा - 362 510. व्हाया : ऊना, जिला : जूनागढ़, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02875-22233 (ऊना) पिढ़ी का मुख्य कार्यालय ऊना है।) श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान-देलवाड़ा (गुजरात) मन्दिर का दृश्य-देलवाड़ा (गुजरात) 590 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकबर प्रतिबोधक विजय हीरसूरीश्वरजी महाराज श्री ऊना तीर्थ विक्रम सं. 1652 भादरखा शुक्ला 11 को यहीं देवलोक सिधारे थे । उनके स्मारक हेतु राजा अकबर तीर्थाधिराज श्री आदिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, ने जो 100 बीघा जमीन श्री संघ को भेंट दी, वहीं पीत वर्ण, लगभग 76 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । पर अग्नि संस्कार हुआ था। उस स्थान को शाहीबाग तीर्थ स्थल ऊना गाँव के मध्यस्थ । कहते हैं । कहा जाता है कि यहाँ पर अनेकों चमत्कार प्राचीनता 8 इसका प्राचीन नाम उन्नतपुर था । होते रहते हैं । अकबर ने गुरुदेव के इच्छानुसार बाद यह अति ही प्राचीन स्थल माना जाता है । यह भी । में अनेकों फरमान जारी किये । प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला कहावत है कि “ऊना, पूना अने गढ़जूना ऐ त्रण 11 को ध्वजा चढ़ती है । जूना" । इस मन्दिर का निर्माण राजा श्री सम्प्रतिकाल अन्य मन्दिर इस मन्दिर के निकट ही 5 और का बताया जाता है । चौदहवीं शताब्दी में उपाध्याय मन्दिर व एक उपाश्रय हैं । इस उपाश्रय को श्री विनयविजयजी ने 'तीर्थ माला' में भी इस तीर्थ की विजयहीरसूरीश्वरजी का उपाश्रय कहते हैं । यहीं पर व्याख्या की है। सत्रहवीं शताब्दी में अकबर प्रतिबोधक आचार्य श्री स्वर्ग सिधारे थे । यहाँ से आधा मील दूरी विजयहीरसूरीश्वरजी यहीं पर स्वर्ग सिधारे । कहा पर दादावाड़ी है जिसे शाहीबाग कहते हैं । जाता है एक समय यह खूब जाहोजलालपूर्ण विशाल विजयहीरसूरीश्वरजी महाराज के अग्निसंस्कार के स्थल नगरी थी । यहाँ सात सौ जैन पौषधशालाएँ थीं। पर छत्री बनी है, जहाँ चरण स्थापित है । इसी शाही विशिष्टता यह स्थान सौराष्ट्र अजाहरा की। बाग में कुल 12 देरियाँ है जहाँ पर इनके पंचतीर्थी का एक मुख्य तीर्थ है । जिस समय यहाँ पट्टधर विजयसेनसूरीश्वरजी आदि की चरणपादुकाएँ हैं। 700 पौषधशालाएँ थीं उस समय यह शहर कितना कला और सौन्दर्य वैसे तो यहाँ की सारी जाहोजलालीपूर्ण रहा होगा ? इस मन्दिर के भोयरे में प्राचीन प्रतिमाओं की कला दर्शनीय है ही, चौथे मन्दिर स्थित आदिनाथ भगवान की विशाल प्रतिमा दर्शनीय है। के मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा अति इसी के पास एक और भोयरे में श्री अमीझरा ही दर्शनीय है। पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा है । जिसमें अनेकों बार मार्ग दर्शन यहाँ का रेल्वे स्टेशन ऊना मन्दिर अमी झरती है । कभी-कभी एक वृद्ध सर्प प्रभु प्रतिमा से लगभग 1 कि. मी. दूर है, जहाँ से आटो व टेक्सी पर छत्र करता हुआ नजर आता है । की सुविधा उपलब्ध है | आखिर तक पक्की सड़क है। श्री आदिनाथ भगवान मन्दिर-ऊना 591 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ As Swy TU ASH louis Joces doo >IONES श्री आदिनाथ भगवान-ऊना 592 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शामला पार्श्वनाथ भगवान-ऊना यह स्थल पालीताना से 180 कि. मी. भावनगर से 200 कि. मी. राजकोट से 265 कि. मी. व वेरावल से 85 कि. मी. दूर है। सुविधाएँ ठहरने के लिए धर्मशाला है, जहाँ भोजनशाला के अतिरिक्त सारी सुविधाएँ उपलब्ध है । पेढ़ी श्री अजाहरा पार्श्वनाथ पंचतीर्थ जैन कारखाना पेढ़ी, वासा चौक, पोस्ट ऊना - 362560. जिला : जूनागढ़ (गुज.), फोन : 02875-22233. 593 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शान्तिनाथ जिनालय-दाठा श्री दाठा तीर्थ तीर्थाधिराज श्री शांतीनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 54 सें. मी. ( श्वे. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल दाठा गाँव के मध्य । प्राचीनता कहा जाता है यह मन्दिर बहुत प्राचीन है । पहिले यहाँ के मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान थे । जीर्णोद्धार के समय लगभग 155 वर्ष पूर्व वर्तमान मूलनायक श्री शांतीनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई गई । श्री शांतीनाथ भगवान की यह भव्य चमत्कारिक प्रतिमा समुद्र में से प्रकट होने का उल्लेख है । प्राचीन मूलनायक श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा भी यहीं मन्दिर में विराजमान है । 594 प्राचीन शिलालेख घिस जाने के कारण सही प्राचीनता का पता लगाना कठिन है परन्तु यह तीर्थ शत्रुंजय महातीर्थ की पंचतीर्थी में रहने के कारण अवश्य प्राचीन होगा । इसमें कोई सन्देह नहीं । विशिष्टता श्री शत्रुंजय शाश्वत महातीर्थ की पंचतीर्थी का यह तीर्थ होने के कारण मुख्य विशेषता है प्राचीन मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान की व वर्तमान तीर्थाधिराज समुद्र में से प्रकटित श्री शांतीनाथ भगवान की भव्य प्राचीन प्रतिमाएँ अतीव अलौकिक, चमत्कारिक व महा प्रभाविक है । अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त वर्तमान में यहाँ और कोई मन्दिर नहीं हैं । कला और सौन्दर्य प्रभु प्रतिमाएँ अतीव 8 मनोरम व आकर्षक है। मन्दिर में सभा मण्डप आदि में बने विभिन्न प्रसंगों के 33 पट, भावों को सहज ही में निर्मल बनाने वाले अतीव कलात्मक भव्य व रचनात्मक अतीव दर्शनीय है जो मन्दिर की शोभा व विशिष्टता और भी बढ़ाते हुवे यात्रीयों को भाव विभोर करते हैं । ऐसे पटों के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ है । मार्ग दर्शन यहाँ का नजदीक का रेल्वे स्टेशन पालीताना लगभग 55 कि. मी. दूर है। यह तीर्थ तलाजा से महुवा जाते वक्त हाईवे से 7 कि. मी. है। महुवा से 22 कि. मी. तलाजा से 22 कि. मी., भावनगर से 75 कि. मी व घोघा से यह स्थल 95 कि. मी. दूर है । सभी स्थानों से बस व टेक्सी की सुविधा है। आखिर तक पक्की सड़क है। मन्दिर तक कार व बस जा सकती है । समुद्र किनारा यहाँ से 7 कि. मी. दूर है। नजदीक का हवाई अड्डा भावनगर है। सुविधाएँ ठहरने के लिये सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है जहाँ भोजनशाला की भी सुविधा है । भाता भी दिया जाता है। मुनिभगवंतो हेतु अलग उपाश्रयों की सुविधा है । पेढ़ी श्री वीसा श्रीमाली जैन महाजन पेढ़ी, दाता पोस्ट : दाठा - 364 130. जिला भावनगर (सौराष्ट्र) गुजरात, फोन : 02842-83324. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शान्तिनाथ भगवान-दाठा 595 Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महुवा तीर्थ तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 91 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल महुवा गाँव के मध्यस्थ। प्राचीनता महवा का प्राचीन नाम मधुमती था. ऐसा प्राचीन ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है । सेठ जावड़शाह, जिन्होंने विक्रम सं. 108 में श्री शत्रंजय तीर्थ का तेरहवाँ उद्धार करवाया, उनकी जन्मभूमि यही है । प्रभु वीर की प्रतिमा को जीवित स्वामी कहते हैं, जिसका उल्लेख चौदहवीं शताब्दी में उपाध्यायजी श्रीविनयविजयजी में 'तीर्थ माला' में किया है । तीर्थोद्धारक आचार्य श्री नेमिसूरीश्वरजी की भी जन्म व स्वर्गभूमि यही है । यह स्थान शत्रुजय गिरिराज की पंचतीर्थी में आता है । इन सब से यह सिद्ध होता है कि यह अति ही प्राचीन तीर्थ स्थल है । इसका अन्तिम जीर्णोद्धार होकर पुनः प्रतिष्ठा विक्रम सं. 1885 माघ शुक्ला 13 को संपन्न हुई थी । विशिष्टता 8 शत्रुजय पंचतीर्थी का यह भी एक तीर्थ माना जाता है । यहाँ के तीर्थाधिराज प्रभु वीर की प्रतिमा को जीवित स्वामी कहते हैं, जो अन्यत्र बहुत ही कम जगह है । शासन प्रभावक सेठ जावड़शाह एवं तीर्थोद्धारक आचार्य श्री नेमिसूरीश्वरजी, आचार्य श्री विजयधर्मसूरीश्वरजी जेसे शासन सम्राटों ने यहाँ जन्म लेकर यहाँ का गौरव और भी बढ़ाया है । अन्य मन्दिर इस मन्दिर के अलावा 2 और मन्दिर है । श्री जीवितस्वामी मन्दिर-महुवा 596 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवित स्वामी श्री महावीर भगवान-महुवा Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेढ़ी 8 श्री महुवा वीसा श्रीमाली तपागच्छीय श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, केबीन चौक, पोस्ट : महुवा (बन्दर) - 364 290. जिला : भावनगर, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02844-22571 (पढ़ी) 02844-22259 (भोजनशाला) । कला और सौन्दर्य समुद्र के किनारे बसे इस गाँव का प्राकृतिक दृश्य अति ही मनलुभावना है । जहाँ देखो, नारियलों के पेड़ व हरियाली मलयागिरि की याद दिलाते हैं । इस मन्दिर में स्थित श्री पार्श्वनाथ भगवान की धातु प्रतिमा की कला दर्शनीय है, जिसपर सं. 1313 के लेख उत्कीर्ण हैं । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन महुवा लगभग 1/2 कि. मी. दूर है, जहाँ से आटो की सुविधा है । बस स्टेण्ड मन्दिर से करीब 100 मीटर दूर है । मन्दिर तक पक्की सड़क है | बस व कार आखिर तक जा सकती है । यह स्थान शत्रुजय तीर्थ से 75 कि. मी. दूर है ।। सुविधाएँ 8 मन्दिर के निकट ही धर्मशाला व अतिथीगृह है, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधा उपलब्ध है । IRTELLE मन्दिर समुह का मनोहर दृश्य-महुवा 598 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तालध्वजगिरि तीर्थ Hin मनोहर दृश्य-तालध्वजगिरि तीर्थाधिराज श्री साचा सुमतिनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ 79 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल शेव॒जय व सरिता नदी के संगम स्थान पर तलाजा गाँव के पास एक सुन्दरपहाड़ी पर। प्राचीनता 8 प्राचीन काल में यह शास्वत श्री शत्रुजय महा तीर्थ की दूंक मानी जाती थी । आज भी शत्रुजय पंच तीर्थी का यह एक तीर्थ स्थल माना जाता है । यहाँ की प्राचीनता पहाड़ पर स्थित अनेकों प्राचीन छोटी मोटी नाना प्रकार की गुफाओं से सिद्ध होती है। कहा जाता है जब श्री आदिनाथ भगवान के ज्येष्ठ पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती यहाँ यात्रार्थ पधारे तब उन्होंने भी यहाँ एक सुन्दर मन्दिर बनवाया था । ई. सं. 640 में चीनी प्रवासी हुएनसांग ने भी अपने यात्रा वृत्तांत में इस तीर्थस्थान का वर्णन किया है । ___ वर्तमान मन्दिर कुमारपाल राजा द्वारा बारहवीं शताब्दी में निर्मित होने का उल्लेख है । टीमाणा गाँव में प्राप्त वि. सं. 1264 के शिलालेख में “तलाजा महास्थान" का वर्णन है । उपाध्याय श्री विनयप्रभविजयजी ने "तीर्थ माला स्तवन" में इस तीर्थ का वर्णन किया है। साचा सुमतिनाथ भगवान की प्रतिमा राजा संप्रति काल की मानी जाती है । अन्तिम जीर्णोद्धार होकर विक्रम सं. 1872 वैशाख शुक्ला 13 के दिन पुनः प्रतिष्ठा सुसम्पन्न हुई थी । विशिष्टता यह श्री शत्रुजय की पंचतीर्थी का पावन स्थल है, जो कि पूर्वकाल में शत्रुजय की एक ट्रॅक मानी जाती थी । पहाड़ पर प्राचीन छोटी बड़ी लगभग 32 गुफायें बिना स्थम्भों के खड़ी हैं । इस भाँति की गुफाओं का दृश्य अन्यत्र नहीं है । प्रभु प्रतिमा अति ही चमत्कारी है । यह प्रतिमा विक्रम सं. 1872 में इसी गाँव में भूगर्भ से प्रकट होते ही गाँव में फैली हुई बीमारी समाप्त होकर शान्ति का वातावरण फैला था, जो उल्लेखनीय है । उसी समय से प्रभ को साचा सुमतिनाथ कहने लगे । प्रभु प्रतिमा को इस तीर्थ के अन्तिम उद्धार के समय यहाँ प्रतिष्ठित कराया गया । उसी दिन से अखण्ड ज्योत भी शुरू की गयी थी, जो अभी तक यथावत है, जिसमें केसरिया काजल पड़ता है । अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त इसी पहाड़ पर श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर, श्री महावीर भगवान मन्दिर, चौमुखी मन्दिर व एक गुरुमन्दिर हैं गुरुमन्दिर में गौतमस्वामीजी,सुधर्मास्वामीजी, जंबुस्वामीजी, कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी, वृद्धिचन्द्रसूरिजी आदि की व कुमारपाल राजा की मूर्तियाँ स्थापित हैं । गाँव में दो विशाल मन्दिर है, जहाँ के मूलनायक श्री शान्तिनाथ भगवान व श्री मल्लिनाथ भगवान है। कला और सौन्दर्य इस पहाड़ पर स्थित भव्य मन्दिरों का दृश्य अनेकों प्राकृतिक गुफाओं के साथ दूर से ही अनूठा-सा लगता है। गुफाओं की निर्मित कला देखने योग्य है जो कि अन्यत्र दुर्लभ है पहाड़ पर से एक ओर श्री शत्रुजय गिरिराज पर मन्दिर समूहों का अनूठा दृश्य व दूसरी ओर शत्रुजय व सरिता नदी का संगम स्थान देखकर यात्री प्रभु भक्ति में लीन हो जाते 599 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ COLLANUEL શ્રી ઋષભદેવ साचादेव श्री सुमतिनाथ भगवान-तालध्वजगिरि 600 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन तलाजा 1 1/2 कि. मी. दूर है, जहाँ से आटो की सुविधा है । पालीताना यहाँ से लगभग 38 कि. मी. दूर है, जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधा है । धर्मशाला से लगभग 200 मीटर पर तलाजा बस स्टेण्ड है । धर्मशाला से तलाजा गिरिराज की चढ़ाई लगभग 600 मीटर है, लेकिन चढ़ाई इतनी कठिन नहीं है । धर्मशाला तक पक्की सड़क है । कार व बस धर्मशाला तक जा सकती है । सुविधाएँ ठहरने के लिए तालध्वजगिरि की तलहटी में धर्मशाला है, जहाँ बिजली, पानी, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधा उपलब्ध है । यहाँ पर सर्वसुविधायुक्त नवीन धर्मशाला का निर्माण कार्य भी चल रहा है । पेढ़ी 8 श्री तालध्वज जैन श्वेताम्बर तीर्थ कमेटी, बाबू की जैन धर्मशाला, पोस्ट : तलाजा-364 140. जिला : भावनगर, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02842-22030 व 22313 पिढ़ी) 02842-22259 (पहाड़ अफिस) । श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान - तलाजा श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर - तलाजा 601 Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवखण्डा पार्श्वनाथ मन्दिर-घोघा श्री पोधा तीर्थ तीर्थाधिराज श्री नवखण्डा पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्याम वर्ण, लगभग 91 सें. मी. ( श्वे. मन्दिर ) । घोघा बन्दर गाँव में । तीर्थ स्थल प्राचीनता प्रतिमाजी पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है । कहा जाता है यह प्रतिमा प्राचीन काल में बड़वा गाँव के एक कुएँ में से प्राप्त हुई थी । यह कहा जाता है कि पीरमपेट में एक पत्थरकुण्ड में अन्य प्रतिमाओं के साथ यह प्रतिमा भी प्राप्त हुई थी । विक्रम संवत् 1168 में आचार्य श्री महेन्द्रसूरीश्वरजी के सुहस्ते प्रभु प्रतिमा की अंजनशलाका होने का व इस पुनीत कार्य में नाणावटी श्री हीरासेठ द्वारा अपनी चलायमान लक्ष्मी का सदुपयोग करने का उल्लेख है। विक्रम सं. 1430 में आचार्य श्री जिनेन्द्रसूरीश्वरजी की निश्रा में श्रेष्ठी श्री वीरा व पूर्णा ने यहाँ से श्री शत्रुंजय व गिरनार का संघ निकाला था। विक्रम सं. 1431 में श्री जिनोदयसूरीश्वरजी द्वारा भेजे गये विज्ञप्तिपत्र में यहाँ के श्री नवखण्डा पार्श्वनाथ भगवान को वन्दना की 602 है । इन से स्पष्ट सिद्ध होता है कि यह स्थल 12वीं सदी के पूर्व का है । परन्तु प्रतिमाजी उससे भी प्राचीन है । विशिष्टता कहा जाता है जब मुसलमान राजाओं के शासनकाल में अन्य मन्दिरों व प्रतिमाओं को उनके सिपाहियों द्वारा खण्डित किया गया था, उस समय इस प्रतिमा को भी खण्डित किया गया जिससे प्रतिमा के नौ टुकड़े हो गये । अधिष्ठायक देव से अदृश्य प्रेरणा पाकर श्रावकों ने उन टुकड़ों को लापसी में रखा, जिससे वापस प्रतिमा ज्यों की त्यों बन गई। लेकिन नव जगहों में निशान कायम रहे, जो अभी भी विद्यमान हैं । उसी दिन से भक्तगण प्रभु को नवखण्डा पार्श्वनाथ कहने लगे । कुछ वर्ष पूर्व प्रभु के अंगूठे से अमृत रूपी अमी झरती थी यहाँ पर अखण्ड ज्योत कई वर्षों से कायम है | । अन्य मन्दिर : इस मन्दिर के पास ही चार और मन्दिर व कुछ दूर गाँव में 2 मन्दिर है । पास ही श्री नेमिनाथ भगवान के मन्दिर में भूगर्भ से प्राप्त अनेकों प्राचीन प्रतिमाएँ हैं । इस मन्दिर में विक्रम सं. 1354 की दो गुरु प्रतिमाएँ हैं । कहा जाता है कि ये श्री हेमचन्द्राचार्य व आचार्य श्री धर्मघोषसूरीश्वरजी की है। पास ही समवसरण मन्दिर में धातु से निर्मित 16वीं शताब्दी आरम्भ का सुन्दर समवसरण है। मुख्य मन्दिर के आसपास ही श्री सुविधिनाथ भगवान व श्री शान्तिनाथ भगवान के मन्दिर हैं । गाँव में श्री चन्द्रप्रभु भगवान के मन्दिर की बनावट राजा श्री कुमारपाल के समय की मानी जाती है । इसी मन्दिर में श्री विजयदेव सूरीश्वरजी की चरण पादुका विक्रम सं. 1716 की प्रतिष्ठित है । अन्य अनेक प्राचीन अवशेष हैं । गांव के दक्षिण तरफ श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान का सुन्दर मन्दिर है । इस मन्दिर में विक्रम सं. 1357 में प्रतिष्ठित भव्य गुरु मूर्ति है। लेकिन लेख घिस जाने से आचार्य श्री के नाम का पता लगाना कठिन है । कला और सौन्दर्य यहाँ की प्रभु प्रतिमा की कला विचित्र तो है ही, इसके अतिरिक्त अनेकों प्राचीन प्रतिमाएँ व अवशेष हर मन्दिर में हैं, जो शंसोधनीय हैं। विशेषतः इस मन्दिर में पंचधातु की अनेक प्राचीन एवं विशिष्ट कलाकृति से युक्त प्रतिमाएँ हैं । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XOOKI श्री नवखण्डा पार्श्वनाथ भगवान-घोघा मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन भावनगर 21 कि. मी. दूर पर है, जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधाएँ उपलब्ध है । मन्दिर से लगभग 200 मीटर पर बस स्टेण्ड है । मन्दिर तक पक्की सड़क है । पालीताना यहाँ से 56 कि. मी. दूर है। __ सुविधाएँ 48 ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ पर भोजनशाला एवं भाते की सुविधा भी है । पेढ़ी 8 शेठ कालामीठानी पेढ़ी, श्री नवखण्डा पार्श्वनाथ जैन देरासर, पोस्ट : घोघा - 364 110. जिला : भावनगर, प्रान्त : गुजरात, फोन : 0278-82335. 603 Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्व चौबीसी के गणधर कदम्बमुनि के निर्वाण स्थल पर मन्दिर-समूहो का दृश्य-कदम्बगिरि 604 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कदम्बगिरि तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ, श्याम वर्ण, लगभग 2 मीटर (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल पालीताना से लगभग 19 कि. मी. बोदानोनेस (प्राचीन नाम कदम्बपुर) गाँव के पास कदम्बगिरि पर्वत पर एकान्त जंगल में । प्राचीनता इसकी प्राचीनता का संबंध श्री शत्रुजय गिरिराज से है । शत्रुजय गिरि का यह शिखर गिना जाता है व गिरिराज की तीन प्रदक्षिणाओं में एक 12 कोस की प्रदक्षिणा में यह स्थल भी शामिल है । गत चौबीसी के द्वितीय तीर्थंकर श्री निर्वाणी प्रभु के गणधर श्री कदम्बमुनि अनेकों मुनियों के साथ यहीं से मोक्ष सिधारे । इसी से इस पर्वत का नाम कदम्बगिरि पड़ा । अतः इस तीर्थ स्थल की प्राचीनता सहज में ही ज्ञात हो जाती है । विशिष्टता यह स्थल पुण्य पावन तीर्थ शत्रुजय की पंचतीर्थी में स्थान पाता है । गिरिराज की 12 कोस (38 कि. मी.) की प्रदक्षिणा में यह स्थल शामिल है । यहाँ गत चौबीसी के द्वितीय तीर्थंकर के गणधर श्री कदम्बमुनि व अनेकों मुनिगण मोक्ष सिधारे। इसलिए इस तीर्थ का अत्यन्त महत्व है । प्रतिवर्ष आसोज शुक्ला 10 को ध्वजा चढ़ाई जाती है। अन्य मन्दिर 8 कदम्बगिरि पर्वत पर इसके निकट ही दो और मन्दिर हैं जहाँ के मूलनायक श्री नेमिनाथ भगवान व श्री सीमधर स्वामी है । पहाड़ की चोटी पर 2 देरियाँ हैं, जिनमें निर्वाणी प्रभु व कदम्ब गणधर की चरण पादुकाएँ स्थापित हैं । पहाड़ पर ही एक तरफ और एक मन्दिर है, जिसके सामने ही नूतन प्रतिमाओं का भण्डार है, जहाँ छोटी बड़ी विभिन्न कलापूर्ण हजारों प्रतिमाएँ निर्मित कर एक ही जगह संग्रहीत की हुई हैं । पहाड़ की तलेटी बोदानोनेस गाँव में श्री वीर प्रभु का सुन्दर व विशाल मन्दिर है। कला और सौन्दर्य पहाड़ पर श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा भव्य व अति ही सुन्दर है । भंडार में स्थित विभिन्न ढंग की हजारों प्रतिमाओं की कला दर्शनीय है । पहाड़ पर का प्राकृतिक दृश्य हरा-भरा अति ही मनोरम व मनलुभावना प्रतीत होता है । 605 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदीश्वर भगवान-कदम्बगिरि मार्ग दर्शन नजदीक का रेल्वे स्टेशन पालीताना 19 कि. मी. दूर पर है, जहाँ से बस, टेक्सी व आटो की सुविधाएँ उपलब्ध है । यहाँ से नजदीक का गाँव भंडारिया 8 कि. मी. व बोदानोनेस 4 कि. मी. दूर है। बोदानोनेस से पहाड़ की चढ़ाई शुरू हो जाती है। कार व बस बोदानोनेस मन्दिर तक जा सकती है। सुविधाएँ बोदानोनेस में मन्दिर के निकट ही ठहरने के लिए धर्मशाला है, जहाँ बिजली, पानी, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र, भोजनशाला एवं भाते की सुविधा उपलब्ध है । डोली की भी व्यवस्था है । पेढ़ी शेठ श्री जिनदास धर्मदास धार्मिक ट्रस्ट कदम्बगिरि), गाँव : बोदानोनेस, पोस्ट : भंडारिया - 364 270. व्हाया : पालीताना, जिला : भावनगर, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02848-2215. 606 Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री हस्तगिरि तीर्थ तीर्थाधिराज 8 श्री आदीश्वर भगवान, चरणपादुका, फिरोजा वर्ण, लगभग 33 सें. मी. (13 इंच) (प्राचीन) (श्वे. मन्दिर)। श्री आदीश्वर भगवान, श्याम वर्ण पद्मासनस्थ । तीर्थ स्थल शेजी नदी के उत्तर तट पर स्थित एक पहाड़ी पर । प्राचीनता यह श्री आदीश्वर भगवान के समय का तीर्थ व श्री शत्रुजय पर्वत का एक शिखर माना जाता है । आदिनाथ प्रभु का यहाँ पर अनेकों बार पदार्पण हुआ । कहा जाता है कि आदीश्वर भगवान के ज्येष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती ने इस तीर्थ की स्थापना की थी । उस वक्त भव्य मन्दिर का अवश्य निर्माण हुवा ही होगा । अनेकों बार जीर्णोद्धार भी हुवा होगा। वर्तमान में पहाड़ की एक टेकरी पर एक प्राचीन देहरी है, जिसमें प्रभु की चरण पादुका प्रतिष्ठित है । प्राचीन देहरी में आदिनाथ प्रभु के प्राचीन चरण हस्तगिरि पर्वत पर आदिनाथ प्रभु की प्राचीन देहरी 607 Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरण पादुकाऐं अतीव प्राचीन है, जिनपर कोई लेख नहीं है । इसी पहाड़ पर एक विशाल मन्दिर, विशाल गच्छाधिपति श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी की प्रेरणा से निर्मित व प्रतिष्ठित है जिसका कार्य कई वर्षों से चल रहा था । संभवतः इसका निर्माण तीर्थ के जीर्णोद्धार स्वरूप ही है । अतीव कलात्मक व भव्य निर्मित हुवा है, जहाँ सभी तरह की सुविधा भी उपलब्ध है । श्री शत्रुंजय गिरिराज की 12 कोश की प्रदक्षिणा में यह तीर्थ आता है । विशिष्टता देवाधिदेव श्री आदिनाथ प्रभु का नवाबार पदार्पण होकर पावन बने श्री शत्रुंजय गिरिराज का यह भी एक मुख्य शिखर रहने व प्रभु के ज्येष्ठ पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती द्वारा इस तीर्थ की स्वापना होने के कारण यहाँ की मुख्य विशेषता है । कहा जाता है कि श्री आदीश्वर प्रभु के ज्येष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती भी 608 यहीं से मोक्ष सिधारे हैं । श्री भरत चक्रवर्ती के पुत्र श्री हस्तिसेनमुनिजी भी असंख्य मुनिगणों के साथ यहीं से मोक्ष सिधारे है, ऐसी मान्यता । यह भी कहा जाता है कि भरत चक्रवर्ती का हाथी भी अनशन कर यहीं स्वर्ग सिधारा था । इन्ही कारणो से इस पहाड़ी का नाम हस्तगिरि पड़ा । इनके अतिरिक्त तलेटी में दो अन्य मन्दिर मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य इस पहाड़ पर से एक तरफ शत्रुंजयगिरिराज पर मन्दिरों के समूहों व दूसरी ओर कदम्बगिरि पर्वत का दृश्य दिव्य नगरी जैसा प्रतीत होता है । परम पवित्र शेत्रुंजी नदी का मन्द मधुर पवन चित्त को प्रफुल्लित करता है । यहाँ के पवित्र वातावरण से आत्मा को अपूर्व शान्ति मिलती है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन पालीताना 16 कि. मी. है, जहाँ से बस या टेक्सी द्वारा जालीया (अमराजी) आना पड़ता है व वहाँ से पहाड़ी हस्तगिरि पर्वत पर आदिनाथ प्रभु की प्राचीन देहरी का दूर दृश्य Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 04 श्री आदिनाथ भगवान हस्तगिरि पर्वत 609 Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ningara Patna Chev, 151. VALBHIPUR Khopala Dadva PR Kaluphar R UMRALA BHAVNAGAR Mandwa Dholdsvishi sphasa o Rang lola Mandico ola Khodiar Sanosra Songadi SIHOR Vartej BHAVNAGA Motivavdi nagar) की चढ़ाई लगभग 27 कि. मी. है । ऊपर तक जाने के लिए सड़क है । कार व बस ऊपर तक जा सकती है । ऊपर जाने हेतु पगथिये भी बने हुए है । सुविधाएँ ठहरने के लिए तलेटी में सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ भोजनशाला व भाते की भी सुविधा है । उपाश्रय व पौषधशाला भी है । पेढ़ी 1. शेठ आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी, तलहटी रोड़, पालीताना - 364270. (प्राचीन देहरी के व्यवस्थापक) फोन : 02848-52148. 2. श्री चन्द्रोदय रिलीजीयस ट्रस्ट ऑफीस, (नूतन मन्दिरों व धर्मशाला के व्यवस्थापक) पोस्ट : जालीया (अमराजी), व्हाया : पालीताना - 364 270. जिला : भावनगर, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02848-52301-पालीताना ऑफीस Devgan 48 102 GARIADHAR Gheri Bhandaria PALITANA Dihor Grundi B dravalo Tansa verage sherun 49 Bagdad Trapaj ma TALAJA Baroda 46 Jesar Sendarda Dariya / 46 O Sartanpar Mangola (SMota Kuntvada o Malvav ozanzmer Tal Gajarda Waghagar Rajule/ o Gopnath Mahadev Ingar MAHUVA 45 Mahuva Port COKatpur GUI हस्तगिरि पर्वत पर नूतन मन्दिर का मनोहर दूर दृश्य 610 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शत्रुजय तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, शान्त व सुन्दर, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ (7 फुट 1 इंच) लगभग 2.16 मीटर (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल शेQजी नदी के किनारे पालीताना गाँव से करीब 6 कि. मी. दूर पर्वत पर । पर्वत की चढ़ाई लगभग 4 कि. मी. ।। प्राचीनता जैन शास्त्रानुसार यह तीर्थ, शास्वत तीर्थ माना जाता है । पुराने जमाने में इसे पुंडरीक गिरि कहते थे । शास्त्रों में इस महान तीर्थ के 108 नाम दिये गये हैं । इस तीर्थ के अनेकों उद्धार हुए, जिनमें इस अवसर्पिणी काल में निम्नांकित सोलह उद्धार हुए । पहला - श्री आदीश्वर भगवान के पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती द्वारा । दूसरा - श्री दण्डवीर्य राजा द्वारा । तीसरा - पहले व दूसरे तीर्थंकरों के बीच काल में श्री इशानेन्द्र द्वारा । चौथा - श्री महेन्द्र इन्द्र द्वारा । पाँचवाँ - पाँचवें देव लोक के इन्द्र द्वारा । छठवाँ - श्री इन्द्र चमरेन्द्र द्वारा । सातवाँ - श्री अजितनाथ भगवान के काल में श्री सगर चक्रवर्ती द्वारा । आठवाँ - श्री अभिनन्दन भगवान के काल में श्री व्यंतरेन्द्र द्वारा । नवाँ - श्री चन्द्रप्रभ भगवान के काल में राजा श्री चन्द्रयशा द्वारा । दसवाँ - श्री शान्तिनाथ भगवान के सुपुत्र श्री चक्रायुध द्वारा । ___ ग्यारहवाँ - श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान के काल में श्री रामचन्द्रजी द्वारा । बारहवाँ - श्री नेमिनाथ भगवान के काल में पाण्डवों द्वारा । तेरहवाँ - विक्रम संवत् 108 में महवा निवासी श्री जावड़ शाह द्वारा । चौदहवाँ - विक्रम संवत 1213 में राजा श्री कुमारपाल के समय श्री वाहड़ मन्त्री द्वारा । पन्द्रहवाँ - विक्रम संवत् 1371 में श्री समराशाह द्वारा । सोलहवाँ - विक्रम संवत् 1587 वैशाख कृष्ण 6 को चित्तौड़ निवासी श्री करमाशाह द्वारा । इनके अतिरिक्त राजा सम्प्रति, राजा विक्रमादित्य आम राजा, खंभात निवासी श्री तेजपाल सोनी तथा श्वेताम्बर जैन संघ द्वारा स्थापित आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी वगैरहों ने आवश्यक जीर्णोद्धार कराये । विशिष्टता 8 जैन शास्त्रानुसार यहाँ पर अनेक आत्माओं ने सिद्धपद प्राप्त किया, जैसे चैत्री पूर्णिमा को श्री आदीश्वर भगवान के प्रथम गणधर श्री पुण्डरीक स्वामी कार्तिक पूर्णिमा को द्राविड़, वारिखिल अनेक मुनियों के साथ मोक्ष सिधारे । फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी के दिन भावी तीर्थंकर श्री कृष्ण-वासुदेव के पुत्र शाम्ब व प्रद्युम्न शत्रुजय गिरिराज की सदभद्र नाम के चोटी पर से, जो पीछे से 'भाड़वा के डुंगर' के नाम से प्रसिद्ध हुई, अनेक मुनिवरों के साथ मोक्ष सिधारे, उस प्रसंग की स्मृति में छ: कोस (19.3 कि. मी.) की फेरी दी जाती है व बड़ा मेला लगता है । इन के अलावा सूर्ययशा, नमि, विनमि, नारदजी, श्री आदिनाथ भगवान के वंशज श्री आदित्य यशा राजा से लेकर श्री सगर चक्रवर्ती तक, श्री शेलकसूरि, श्री शुक परिव्राजक, पाँच पाण्डव इत्यादि अनेकों मुनियों के साथ मोक्ष को प्राप्त हुवे । श्री आदिश्वर भगवान का यहाँ अनेकों बार पदार्पण हुआ था । भगवान श्री नेमिनाथ के अतिरिक्त अन्य 23 तीर्थंकरों ने यहाँ पदार्पण करके इस महान पुण्य तीर्थस्थल की पुनः प्रतिष्ठा बढ़ायी । इस तीर्थ के रक्षक कपर्दी यक्ष हैं, जिनकी श्री कृष्ण ने यहाँ एक गुफा में साधना की थी, ऐसी दन्त कथा प्रचलित है । ___ भगवान आदीश्वर पूर्वनवाणु बार सिद्धाचल गिरिराज पर पधारे थे । इस पुण्य अवसर की पावन स्मृति में नवाणु यात्रा व चतुर्मास करने भारत के कोने-कोने से यात्रीगण यहाँ आते हैं । साधु सम्प्रदाय यहाँ हर समय सैकड़ों की संख्या में विराजते है । कार्तिक पूर्णिमा, चैत्र पूर्णिमा, फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी व अक्षय तृतीया 611 Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुंजय तलेटी का दिव्य दृश्य को यात्रा करने व पूजा का लाभ लेने हजारों यात्रीगण आकर अपने अपने मनोरथ पूर्ण कर, पुण्योपार्जन करते हैं । अक्षय तृतीया को वर्षीतप का पारणा करने हजारों तपस्यार्थी जगह-जगह से आते हैं। इसलिए यात्रीगणों की खूब भरमार होने के कारण उस दिन यहाँ का दृश्य अतीव मनोरंजक प्रतीत होता है । , प्रायः यात्री संघों का आना-जाना भी बना रहता है जिससे यहाँ नित्य मेला सा लगा रहता है । वार्षिक मेले निम्न प्रकार होते हैं । 1. कार्तिक पूर्णिमा 2. फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी प्रदक्षिणा 612 छह कोस की 3. चैत्री पूर्णिमा 4. वैशाख शुक्ला तृतीया (अक्षय तृतीया) वर्षीतप के पारणे का पर्व । 5. वैशाख कृष्ण छठ मंत्री करमा शाह द्वारा सोलहवें उद्धार का प्रतिष्ठा दिवस (दादा के मुख्य जिनालय की साल गिरह का दिन ) अन्य मन्दिर पालीताना गाँव से लेकर तलहटी तक अनेकों मन्दिर हैं, प्रायः हर धर्मशाला में मन्दिर हैं। उन सबका वर्णन संभव नहीं । पहाड़ पर चढ़ते वक्त तलहटी पर पादुकाओं के सम्मुख गिरिराज का चैत्य वन्दन करके यात्रीगण अपनी यात्रा आरम्भ करते 苦 । प्रथम अजीमगंज निवासी धनपतसिंहजी लक्ष्मीपतसिंहजी के द्वारा विक्रम संवत् 1950 के माघ शुक्ला 10 को प्रतिष्ठित एक भव्य बावन जिनालय मन्दिर आता है, जिसे धनवसही ट्रंक कहते हैं। आगे बढ़ने पर प्रायः हर विश्राम गृह के सामने कुछ देरियाँ हैं, जिनमें भरत चक्रवर्ती, नेमिनाथ भगवान के गणधर वरदत्त, आदीश्वर भगवान व पार्श्वनाथ भगवान की चरण पादुकाएँ एवं द्राविड़ वारिखिल, नारदजी, राम, भरत यावच्चापुत्र शुकपरिव्राजक, शेलकसूरी, जाली, मयाली, उवयाली व देवी इत्यादियों की मूर्तियाँ हैं । बीच में कुमारपाल कुण्ड, शाला कुण्ड आदि आते हैं । शाला कुण्ड के पास जिनेन्द्र ट्रैक है, जिसमें गुरुपादुकाएँ एवं मूर्तियाँ हैं । लगभग (40.6 से. मी.) 16 इंच की प्रभावशाली एवं सुन्दर पद्मावती देवी की मूर्ति है । सामने एक रास्ता नौ ट्रॅकों की ओर जाता है एवं एक दूसरा रास्ता मुख्य टँक श्री आदीश्वर भगवान की ट्रॅक की ओर । इस भव्य ट्रॅक की ओर जाने पर पहले रामपोल फिर वाघणपोल आते हैं। आगे हाथीपोल में प्रवेश करते समय सूरज कुण्ड, भीम कुण्ड, एवं ईश्वर कुण्ड मिलते हैं। एक विशाल टाँका भी हैं, जिसका पानी भगवान के प्रक्षालन के लिए उपयोग में लाया है । नवकों का विवरण निम्र प्रकार है :1. सेठ नरशी केशवजी की ट्रॅक सेठ नरशी केशवजी द्वारा विक्रम संवत् 1921 में निर्मित मूलनायक श्री शान्तिनाथ भगवान । - 2. चौमुखजी टँक - गिरि राज पर सर्वोच्च टँक है। बहुत दूर से ही इस ट्रॅक का शिखर दिखायी देता है, जिसका नव निर्माण विक्रम संवत् 1675 में सेठ सदासोमजी द्वारा किया गया था । इस ट्रैक के पीछे पाण्डवों के मन्दिर में पाँच पाण्डव, माता कुन्ती व सती द्रौपदी की मूर्तियाँ हैं । इसी ट्रॅक में श्री मरुदेवी माता का भी मन्दिर है, जो विशेष प्राचीन है। ट्रैक के Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युगादिदेव श्री आदिनाथ भगवान शत्रुंजयगिरि 613 Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिर - समूहों का चित्ताकर्षक दृश्य- शत्रुंजयगिरि Hand Page #139 --------------------------------------------------------------------------  Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलनायक श्री आदीश्वर भगवान हैं । चौमुखजी ट्रॅक आदीश्वर भगवान । के बाहरी हिस्से में चार मन्दिरों का समूह है । उसे 8. बाला वसही ट्रॅक - श्री बाला भाई द्वारा विक्रम खरतर वसही कहते हैं । संवत् 1893 में निर्मित मूलनायक श्री आदीश्वर 3. छीपा वसही ट्रॅक - छीपा भाइयों के द्वारा विक्रम भगवान । संवत 1791 में निर्मित मूलनायक श्री आदीश्वर भगवान। 9. मोतीशाह ट्रॅक - सेठ मोती शाह ने इसका 4. साकर वसही ट्रॅक - सेठ साकरचन्द्र प्रेमचन्द निर्माण करवाया व उसकी प्रतिष्ठा उनके सुपुत्र द्वारा विक्रम संवत् 1893 में निर्मित मूलनायक श्री श्री खीमचन्द्र द्वारा विक्रम संवत् 1893 में हुई । चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान। मूलनायक श्री आदीश्वर भगवान ।। 5. नन्दीश्वर ट्रॅक - सेठानी उजम बाई द्वारा (विक्रम उक्त ट्रॅकों में मुख्य मन्दिरों के अलावा और भी कई संवत् 1893 में निर्मित । इस ट्रैक के केन्द्र में (1) मन्दिरों का समूह पर्वत श्रेणियों के समान जान पड़ता ऋषभानन (2) चन्द्रानन (3) वारिषेण (4) वर्धमान - है । पहाड़ के पीछे घेटी की पाग है, जहाँ श्री आदीश्वर इन चार शाश्वत जिनेश्वर देवों की प्रतिमाओं की। भगवान की प्राचीन चरण पादुका है व दो नव निर्मित चतुर्मुखी विराजमान हैं । यहाँ के मूलनायक मन्दिर है । वहाँ पर जाने के लिए मुख्य ट्रॅक के पास श्री चन्द्रानन देव हैं । से सीढ़ियाँ बनी हुई है । यहाँ की यात्रा कर आने पर 6. हीम वसही ट्रॅक - अहमदाबाद निवासी हीमा दो यात्राओं का फल मिलता है । पास ही शेव्रुजी नदी भाई द्वारा विक्रम संवत् 1886 में निर्मित मूलनायक है, जिसे परम पवित्र मानते है । गिरिराज की तीन श्री अजितनाथ भगवान । प्रकार की प्रदक्षिणाएँ मानी जाती हैं-डेढ़ कोस (4.8 कि. 7. प्रेम वसही ट्रॅक - मोदीश्री प्रेमचन्द लवजी द्वारा मी.) की, छः कोस (19.3 कि. मी.) की व बारह कोस विक्रम संवत् 1843 में निर्मित - मूलनायक श्री (38.6 कि. मी.) की । नवाणु यात्रा करनेवाले व अन्य मन्दिर-समूहों का दृश्य तलहटी, पालीताना 616 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग्यशाली शत्रुजी नदी में स्नान कर, गिरिराज की प्रदक्षिणा देकर, अपने-अपने पापों का क्षय करते हैं । प्रेमवसही ट्रॅक के पास श्री आदीश्वर भगवान की एक भव्य प्रतिमा है, जिसे 'अद्भुत बाबा' कहते हैं । अद्भुत बाबा की दिव्य मूर्ति पद्मासनस्थ मुद्रा में 5.5 मी. (18 फुट) की है । मुख्य ट्रॅक के मन्दिर के पीछे प्राचीनतम रायण वृक्ष है । कहा जाता है श्री आदीश्वर भगवान ने यहाँ तपस्या की थी। इसलिए इस जगह व वृक्ष की विशेष महत्ता है । यहाँ पर आदीश्वर प्रभु की चरण पादुकाएँ स्थापित हैं, जिनकी साइज चाँदी की अंगी सहित (119 से. मी.-63.5 सें.मी.) 47'-25' है । यहाँ पर और भी अनेकों मन्दिर हैं । उन सब का वर्णन यहाँ शब्दों में कर पाना सम्भव नहीं । इस पावन तथा पुनीत तीर्थ की यात्रा कर अपना जीवन सफल बनावें । कला और सौन्दर्य पहाड पर पहुंचते ही ऐसा लगता है जैसे हम किसी देवलोक में आ पहुँचे हैं । सम्पूर्ण पहाड़ पर, सैकड़ों मन्दिरों का दृश्य जो विभिन्न सौन्दर्यात्मक कलाओं से युक्त है, देखते-देखते मनुष्य सारी सांसारिक चिन्ताएँ एवं कर्म कलाप भूलकर अपार भक्ति भाव में लीन हो जाता है । जब तक वहाँ रहे तब तक न भूख की इच्छा होती है न प्यास की । जगत् की पुण्यस्थली भारतवर्ष में एक ही पर्वत पर, इतने सारे मन्दिरों का एकात्मक दिव्य दृश्य अपने आप में अनूठा, अनुपम प्रतीत होता है । इस पहाड़ के एक ओर शत्रुजी नदी बहती है, जिसकी ठंडी-ठंडी मलयानिल रूपी पवन यानी हवा का स्पर्श बराबर यात्रियों को भाव-विभोर किये रहता है; दूसरी ओर गाँव के अनेक मन्दिर एक पुण्य आभा बिखेरते नजर आते हैं । मार्ग दर्शन तीर्थ स्थल पर पहुँचने के लिए निकट का रेल्वे स्टेशन पालीताना है जो कि भावनगर से 55 कि. मी. तथा सिहोर से 29 कि. मी. की दूरी पर स्थित है । अहमदाबाद से पालीताना तक सीधी रेल एवं बस की व्यवस्था है । स्टेशन गाँव से 12 कि. मी. है, जहाँ से तलहटी भी करीब 11/2 कि. मी. है । तलहटी से मुख्य वैंक की चढ़ाई 4 कि. मी. है। स्टेशन पर टेक्सी, आटो की सुविधाएँ है । तलहटी तक पक्की सड़क है । तलहटी से ऊपर तक 3216 सीढ़ियाँ है । यहाँ वयोवृद्ध यात्रियों के उपयोगार्थ डोली की व बच्चों हेतु गोदी की सुविधा है । यह अहमदाबाद से 200 कि. मी दूर है । सविा एँ पालीताना गाँव में लगभग 50 सर्वसविधायुक्त नवीन धर्मशालाएँ व 35 से 40 पुरानी धर्मशालाएँ है, जिनमें पानी, बर्तन, बिजली, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र इत्यादि की सुविधाएँ उपलब्ध है । यहाँ लगभग 10 धर्मशालाओं में भोजनालय की भी उत्तम व्यवस्था है, उनका पूर्ण विवरण यहाँ संभव नहीं । ___ अक्षय तृतीया पर आनेवाले यात्रियों को पहले से ही ठहरने के लिए इन्तजाम कर लेना जरूरी है, अन्यथा असुविधाएँ हो सकती है । पहाड़ पर रास्ते में पीने के लिए उबाले हुए तथा ठंडे दोनों प्रकार के पानी की समुचित व्यवस्था है । पूजा करनेवालों के लिए पहाड़ पर पानी, फूल और मालाएँ इत्यादि मिलती है चमड़े के जूते ऊपर ले जाना वर्जनीय है । तलहटी में नीचे उतरने पर भाते की सुव्यवस्था है । इस महान पुण्यतीर्थ की आशातना से बचते हए भक्ति भावपूर्ण यात्रा करके पुण्योपार्जन कर जीवन सफल बनावें । पेढ़ी शेठ आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी, तलहटी रोड़, पोस्ट : पालीताना - 364 270. जिला : भावनगर, (गुज.) फोन : 02848-42148 (पढ़ी) 02848-43348 (तलहटी) मुख्य कार्यालय अहमदाबाद - फोन : 079-6608255, 6608244. 617 Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वल्लभीपुर तीर्थ तीर्थाधिराज श्वेत वर्ण, लगभग ( श्वे. मन्दिर ) । श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ, ( 91 सें. मी. ) (3 फुट ) तीर्थ स्थल वल्लभीपुर गाँव में मुख्य मार्ग पर | प्राचीनता श्री वल्लभीपुर का इतिहास प्राचीन है । इसका प्राचीन नाम वमिलपुर था । मौर्यवंशी राजाओं की यह प्राचीन राजधानी थी जिन्होंने सदियों तक यहाँ राज्य किया व इस वंश के अनेकों राजा जैन धर्म के अनुयायी थे । जैन ग्रंथों से पता लगता है कि वीर नि. की 10वीं शताब्दी में मौर्य वंश के राजा 618 धर्मादित्य के पुत्र शिलादित्य ने 'द्वादशारनयचक्रवाल' के रचयिता प्रकाण्ड तार्किक शिरोमणि आचार्य मल्लवादीसूरिजी व 'शत्रुंजय महात्म्य' के रचयिता आचार्य श्री धनेश्वरसूरिजी का राज्य सभा में सम्मान किया था। उसी समय शिलादित्य राजा द्वारा शत्रुंजय तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाने का भी उल्लेख है । उस समय यहाँ 84 जिन मन्दिर विद्यमान थे । विक्रम संवत् 511 में श्री देवर्धिगणि क्षमाश्रमण व अन्य 500 आचार्यो ने यहीं पर श्री संघ को एकत्रित कर जैन आगमों को प्रथम बार लिपिबद्ध किया था । विक्रम संवत् 584 में यहाँ के मौर्य वंशी राजा ध्रुवसेन को उनके पुत्र की मृत्यु पर यहाँ विराजित चौथे कालकाचार्य ने उपदेश देकर पुत्र-शोक भुलाया था व श्री देवर्धिगणि क्षमा श्रमण आदि पाँच सौ आचार्यगण Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा ने पुत्र की आत्मा के क्षेमार्थ अनेकों जिनमन्दिर बनवाये थे । विक्रम संवत् 610 से 625 तक यहाँ गुहसेन प्रतापी राजा हुए उस समय यहाँ अनेकों जैन मन्दिर थे जिनमें आदीश्वर भगवान का एक विशाल मन्दिर था व आदीश्वर प्रभु की मनोहर प्रतिमा सफेद स्फटिक की थी । यहाँ पर उस समय हस्तलिखित अनेकों ग्रंथ थे, ऐसा श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने उल्लेख किया है । 'विशेषावश्यकभाष्य' ग्रन्थ की रचना यहीं हुई थी । विक्रम संवत् 676 के आसपास चीनी यात्री श्री हुएनसांग यहाँ आये । उस समय यह एक विराट नगरी थी व अनेकों श्रावकों के घर थे, जिनमें सैकड़ों करोड़पति श्रावक थे, ऐसा उल्लेख मिलता है । विक्रम II श्री आदीश्वर भगवान मन्दिर-वल्लभीपुर संवत् 845 के लगभग गुर्जरपति हम्मीर के समय इस नगरी का पतन हुआ व यहाँ से अनेकों प्राचीन प्रतिमाएँ उस समय देवपतन व श्रीमाल नगर ले जायी गयीं । अभी भी यहाँ, जहाँ-तहाँ, अनेकों प्राचीन भग्नावशेष प्राप्त होते रहते हैं । इस प्राचीन ऐतिहासिक तीर्थ का अंतिम उद्धार तीर्थोद्धारक आचार्य श्री नेमिसूरीश्वरजी के हाथों हुआ । विशिष्टता कहा जाता है किसी समय यह शत्रुजय तीर्थ की तलेटी थी । जैन आगमों को प्रथम बार लिपिबद्ध यहीं किया था । शत्रुजय महात्म्य ग्रंथ की रचना आचार्य श्री धनेश्वरसूरिजी द्वारा यहीं की गयी थी । किसी समय यहाँ पर भारत का बड़ा विश्व-विद्यालय था । यहाँ पर धार्मिक उत्थान के अनेकों कार्य हुए । इसलिए यह स्थल धार्मिक दृष्टि से परम पवित्र स्थल माना जाता है । अन्य मन्दिर मन्दिर के नीचे भाग में देवर्धि क्षमाश्रमण आदि 500 आचार्यों की प्रतिमाएँ दर्शनीय हैं। इसी परकोटे में विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराज का गुरु मन्दिर है । गाँव में एक और पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर है । प्रतिमाजी अति सुन्दर व प्राचीन है । कला और सौन्दर्य यहाँ पर देवर्धिगणि क्षमाश्रमण आदि 500 आचार्यों की प्रतिमाएँ कलात्मक ढंग से बनायी गयी है । ऐसा मन्दिर भारत में अन्यत्र नहीं है । मार्ग दर्शन 8 यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन HWANICLES 619 Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदीश्वर भगवान-वल्लभीपुर पेढ़ी श्वेताम्बर श्री जिनदास धर्मदास धार्मिक ट्रस्ट, पोस्ट : वल्लभीपुर - 364 310. जिला : भावनगर (गुज.), फोन : 02841-22433. धोला जंक्शन 19 कि. मी. है । यह स्थल अहमदाबाद-पालीताना मुख्य सड़क मार्ग पर स्थित है। पालीताना यहाँ से लगभग 55 कि. मी. दूर है। सुविधाएँ ॐ ठहरने के लिए इसी परकोटे में धर्मशाला, हॉल व ब्लॉक है, जहाँ पर भोजनशाला सहित सारी सुविधाएँ उपलब्ध है । 620 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धोलका तीर्थ इस तीर्थ का उल्लेख है जिसमें यहाँ के श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ प्रभु का उल्लेख है परन्तु वि. सं. 2032 में यह प्रतिमा यहीं जूने मोहल्ले के भाला-पोल में तीर्थाधिराज श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथ भगवान, श्री आदीश्वर भगवान मन्दिर के तलधर में थी व श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 120 सें. मी. श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ भगवान के नाम विख्यात भी (श्वे. मन्दिर)। थी, जिसका हमारे पूर्व प्रकाशित तीर्थ दर्शन में उल्लेख तीर्थ स्थल धोलका शहर में । है अतः हो सकता हैं पहिले यह प्रतिमा मूलनायक रही प्राचीनता इस नगरी का प्राचीन नाम होगी व किसी समय आक्रमणकारियों के भय से धवलक्कपुर था, ऐसा उल्लेख है । एक किंवदन्ति यह तलधर में विराजित की गयी होगी । भी है कि महाभारत के समय का विराटनगर नामक वि. सं. 2032 में ही यहाँ दर्शनार्थ पधारे प. पू. शहर यही था । पन्यास प्रवर श्री राजेन्द्र विजयजी म.सा. को प्रभु कृपा विक्रम की बारहवीं सदी से यहाँ अनेकों प्रकाण्ड से इस प्राचीन तीर्थ के पुनः जीर्णोद्धार की दिव्य प्रेरणा आचार्यों का पदार्पण होने का, अनेकों जिन मन्दिर मिली व दिव्य कृपा से वि. सं. 2033 में प्रारंभ हुवा बनने का व अनेकों प्रकार के धार्मिक कार्य होने का। कार्य निरन्तर आगे बढ़ा व वि. सं. 2038 फाल्गुन उल्लेख जगह-जगह पर मिलता है । कहा जाता है, शुक्ला 3 के पावन दिवस इस भव्य मन्दिर में उसी जब समय के प्रभाव से कलिकुण्ड तीर्थ अदृश्य हुआ प्राचीन श्री कलिकुन्ड पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा को था, तब भक्तों ने कुछ स्थानों पर कलिकुण्ड पार्श्वनाथ मूलनायक रुप में पुनः प्रतिष्ठित किया गया जो अभी भगवान के प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवायी थी, उनमें विद्यमान है । यह एक है । दूसरी जगहों का पता नहीं । यह प्रतिमा विशिष्टता युगप्रधान आचार्य श्री जिनदत्त अति ही प्राचीन है, लेकिन कब व किसने प्रतिष्ठित सूरीश्वरजी ने वि. सं. 1132 में यहाँ जन्म लेकर इस करवायी होगी, पता लगाना कठिन है । प्रतिमा पर भूमि को पावन बनाया है । सिर्फ नव वर्ष की कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है । वि. की चौदवीं सदी में बाल्यावस्था में वि. सं. 1141 में संसार त्यागकर श्री श्री विनयप्रभ उपाध्यायजी द्वारा रचित तीर्थ माला में धर्मदव उपाध्यायजी के पास यहीं पर दीक्षा ग्रहण की श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथ जिनालय-धोलका 621 Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीन मन्दिर विद्यमान हैं । कलिकुण्ड पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा अति ही चमत्कारिक है। अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त तीन मन्दिर और हैं । कला और सौन्दर्य इस प्रतिमा के अंग-प्रत्यंग के रेखांकन में भी अनोखी कला है । यदि कुछ क्षणों के लिए निर्निमेष दृष्टी से देखा जाय तो ऐसा आभास होता है, मानों भगवान मधुर स्मित के साथ भक्तों को उपकृत कर रहे हों । यहाँ और भी प्राचीन कलात्मक प्रतिमाएँ अति दर्शनीय है । शहर में भी जगह-जगह अवशेषों में कला के नमूने दिखायी देते हैं । मार्ग दर्शन यहाँ का रेल्वे स्टेशन धोलका एक कि. मी. है, जहाँ से टेक्सी व आटो का साधन है । यह स्थान बड़ोदा-पालीताना मार्ग पर स्थित है । यहाँ का बस स्टेण्ड मन्दिर से सिर्फ 200 मीटर है । मन्दिर तक कार व बस जा सकती है । गाँव में रिक्शों की सवारी का साधन है । यहाँ से अहमदाबाद 40 कि. मी. दूर है । सुविधाएँ 48 ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त विशाल धर्मशाला व ब्लॉक है, जहाँ पर भोजनशाला की भी श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथ भगवान-धोलका सुविधा है । पेढ़ी 8 श्री तेजपाल वस्तुपाल जैन चैरीटेबल ट्रस्ट, थी, जो उल्लेखनीय है । दादा गुरु ने हजारों व्यक्तियों । कलिकुण्ड तीर्थ, को उपदेश देकर जैन धर्म का अनुयायी बनाया व धर्म पोस्ट : धोलका -387810. प्रचार, प्रसार व उत्थान के जगह-जगह जो कार्य किये, जिला : अहमदाबाद, प्रान्त : गुजरात, वे जैन इतिहास में अमर रहेंगे । फोन : 079-3421738 व 3421218. ___ नवांगी टीकाकार श्री अभयदेवसूरीश्वरजी, श्री वादीदेवसूरीश्वरजी, श्री चन्द्रप्रभसूरीश्वरजी, श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी आदि अनेकों आचार्यों द्वारा यहाँ पदार्पण करके अनेकों धार्मिक कार्य करवाने का उल्लेख Naroda है । सं. 1190 में श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी ने of Godhavio 8 760 AHMADABAD Aa 'आख्यानमणि-कोश' की रचना यहां यशोनागवसती में SANAND9-27AL Sarkhe प्रारंभ करके अच्छुप्तवसति में पूर्ण की थी । ऐसे विभिन्न o Rethar आचार्यों द्वारा अनेकों ग्रन्थों की यहाँ रचनाएँ करने का Bareja var BAVLA o Kanij Shodasar Sihuj उल्लेख मिलता है । वि. सं. 1276 में श्री वस्तुपाल तेजपाल की महाराजा वीरधवल के मंत्री पद पर यहीं Nayagan MEHMEDABAD पर नियुक्ति हुई थी । इनके मंत्री पद काल में इनके DHOLKA 527 KHEDA SKHE woutrás Gl Dabhard, NA द्वारा और श्री पेथडशाह, जीणशाह व अन्य श्रेष्ठियों Okoth Limbasi द्वारा अनेकों जिन मन्दिर बनवाये गये। आज सिर्फ ADABA N evatva y Haldabas OE 61 MATAR Cha Changa ve 622 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शंखेश्वर तीर्थ तीर्थाधिराज श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 180 सें. मी. (6 फुट) (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल शंखेश्वर गाँव के मध्यस्थ । प्राचीनता प्राचीन ग्रंथों में इसका शंखपुर नाम से उल्लेख आता है । आधुनिक रचनाओं में भी इसका उल्लेख किया गया है । यह तीर्थ स्थल महान चमत्कारी होने के कारण गाँव का नाम भी शंखेश्वर पड़ा । जैन ग्रन्थों में उल्लेखानुसार प्राचीन काल में आषाढ़ी श्रावक ने चारुप, स्तंभपुर, और शंखेश्वर में जिन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करायी थीं । एक किंवदन्ति के अनुसार जरासंध व कृष्ण के बीच हुए युद्ध के समय जरासंध ने श्रीकृष्ण की सेना पर जरा फेंकी । तब इस प्रभु प्रतिमाजी का न्हवण-जल सेना पर छिड़काया जिसके प्रभाव से उपद्रव शांत हुआ । शंखेश्वर पार्श्व प्रभु की प्रतिमा का इतिहास अति ही प्राचीन व प्रभावशाली है । सिद्धराज जयसिंह के महामंत्री सज्जनशाह ने विक्रम सं. 1155 में इस तीर्थ का उद्धार कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमाचन्द्राचार्य के गुरुवर महान आचार्य श्री देवन्द्र सूरीश्वरजीके सन्निध्य में कराया था । उस समय यह स्थल जाहोजलालीपूर्ण था, ऐसा शास्त्रों में उल्लेख मिलता है । मंत्री वस्तुपाल तेजपाल ने आचार्य श्री वर्द्धमान सुरिजी के मुखारबिन्द से इस तीर्थ की महिमा सुनी, जिससे प्रभावित होकर आवश्यक जीर्णोद्धार का कार्य करवाया व इस बावन जिनालय की देरियों पर स्वर्ण कलश चढ़ाये-ऐसा शास्त्रों में उल्लेख मिलता है । यह जीर्णोद्धार लगभग विक्रम संवत् 1286 में हुआ होगा। ZΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛ जिनालय का भव्य प्रवेश द्वार - शंखेश्वर 623 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संभवतः इस उद्धार के बाद राज्य क्रान्ति में इस तीर्थ लहरों से घंटियों की झंकार गूंजती हुई सुनायी को क्षति पहुँची होगी, जिससे झींझुवाड़ा के राजा पड़ती है । दुर्जनशल्य ने विक्रम संवत् 1302 में इसका पुनः मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक के रेल्वे स्टेशन जीर्णोद्धार करवाया था । तत्पश्चात् चौदहवीं शताब्दी में । हारीज 38 कि. मी. वीरमगाँव 72 कि. मी. व अलाउद्दीन के सैनिकों ने इस तीर्थ को अति क्षति मेहसाना 95 कि. मी. व अहमदाबाद 120 कि. मी. पहुँचायी । तब श्रीसंघ ने शंखेश्वर प्रभु की प्रतिमा को दूर है । इन सभी स्थानों से बस व टेक्सी की सुरक्षित किया । विक्रम सं. 1656 में शाहजहाँ सुविधाएँ उपलब्ध है । मन्दिर तक बस व कार जा बादशाह ने अहदमाबाद के नगरसेठ शान्तिदासजी के सकती है । नजदीक के बड़े गाँव पंचासर 8 कि. मी. नाम शंखेश्वर गाँव का फरमान बनाकर दिया जिसके और बड़गाँव 18 कि. मी. दूर है । अहमदाबाद से हर दो शाही फरमान प्रसिद्ध है । गंधार निवासी मानाजी आधे घंटे बाद बस सुविधा उपलब्ध है । श्रावक द्वारा श्री विजयसेनसूरिजी के सदुपदेश से सुविधाएँ ठहरने के लिए पेढ़ी की धर्मशाला लगभग इसी समय पुनः उद्धार कराने का उल्लेख कच्छी भवन, के. पी. संघवी धर्मशाला, हालारी मिलता है । (विक्रम संवत् 1760 में पुनः धर्मशाला, दादावाड़ी पद्मावती धर्मशाला आदि जीर्णोद्धार होकर श्री विजयप्रभसुरीश्वरजी के पट्टधर सर्वसुविधायुक्त धर्मशालाएँ है, जहाँ पर भोजनशाला की श्री विजयरत्नसूरीश्वरजी के हाथों प्रतिष्ठा होने का भी उत्तम व्यवस्था है । उल्लेख है । पेढ़ी शेठ जीवनदास गोडीदास शंखेश्वर पार्श्वनाथ इन सब वृत्तान्तों से सिद्ध होता है कि यह स्थल जैन देरासर ट्रस्ट, अति ही प्राचीन है व यहाँ की जाहोजलाली हरदम पोस्ट : शंखेश्वर - 384 246. तालुका : समी, अच्छी रही । जिला : पाटण, प्रान्त : गुजरात, विशिष्टता 8 जरासंध व कृष्ण की लड़ाई के फोन : 02733-73514. समय इस प्रभु प्रतिमा का न्हवण जल सेना पर छिड़काने से उपद्रव शान्त होने का वृत्तांत प्रचलित है ही। इसके अलावा शास्त्रों में अनेकों चमत्कारों का उल्लेख मिलता है । अभी भी यहाँ पर हमेशा हजारों भक्तगण आते हैं व उनके कथनानुसार यहाँ आकर प्रभु-दर्शन करने से उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। शंखेश्वर गच्छ का उत्पति स्थान भी यही है । प्रतिवर्ष चैत्री पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिका व पौष कृष्णा दसमी के दिन मेला लगता है जब सहसों यात्रीगण इकट्ठे होकर प्रभु भक्ति में तल्लीन होते हैं । उस समय का दृश्य देखने योग्य है । अन्य मन्दिर इसके मन्दिर के निकट ही प्राचीन मन्दिर के भग्नावशेष दिखायी देते है, जो ऐतिहासिक हैं । यहाँ पर एक और आगम मन्दिर, 108 पार्श्वनाथ मन्दिर, पद्मावती माता मन्दिर व गुरु मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य प्रभु प्रतिमा अति ही सुन्दर व प्रभावशाली है । विशाल परकोटे के मध्य भाग में सुन्दर देव विमान जैसा शिखरबद्ध यह बावन जिनालय मन्दिर स्थित है, जिसमें मन्द मन्द पवन की 624 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान 625 Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपरियालाजी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, चन्दन वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 76.2 सें. मी. (श्वे. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल उपरियाला गाँव के निकट, मुख्य मार्ग पर । प्राचीनता यह तीर्थ विक्रम की 15वीं शताब्दी के पूर्व का माना जाता है। क्योंकि श्री जयसागरजी उपाध्याय द्वारा विक्रम की 15वीं शताब्दी में रचित - चैत्य परिपाटी' में इस तीर्थ का उल्लेख है । विक्रम की 16 वीं शताब्दी में यहाँ के श्रावकों द्वारा जगह-जगह पर अनेकों जिन मन्दिर बनवाने के उल्लेख मिलते हैं। विक्रम की 17 वीं शताब्दी में रचित तीर्थ माला में भी इस तीर्थ का वर्णन है । इन सबसे प्रतीत होता है कि उस जमाने में यहाँ जैनियों की अच्छी जाहोजलाली थी । कालक्रम से कुछ समय तक यह तीर्थ अलोप रहा। विक्रम संवत् 1919 वैशाख पूर्णिका के दिन इस गाँव के किसान रत्नाकुम्हार को स्वप्न में अपने खेत में जिन प्रतिमाओं के होने का संकेत मिला । उसके आधार पर खुदाई करने पर प्रतिमाएँ पुनः प्रकट हुई । भाग्यशाली किसान ने प्रभु की प्रतिमाओं को बाजों-गाज के साथ ले जाकर भक्ति भाव पूर्वक जैन श्रावकों के 626 श्री आदिनाथ भगवान मन्दिर- उपरियाला सुपुर्द किया व श्रावकों ने सानन्द उन्हें ग्रहण करके विधिपूर्वक विक्रम संवत् 1920 कार्तिक पूर्णिमा के दिन विराजित करवाया । दिनों दिन तीर्थ की ख्याति बढ़ती गयी व हजारों यात्रीगण दर्शनार्थ आने लगे । तत्पश्चात् विक्रम संवत् 1944 माघ शुक्ला त्रयोदशी के दिन प्रतिमा को सुन्दर नवनिर्मित मन्दिर में प्रतिष्ठित किया । विशिष्टता प्राचीन समय से यह चमत्कारी क्षेत्र रहा है । प्रतिमाएँ भूगर्भ से प्रकट होने के पूर्व इस स्थान पर बाघरी लोग हिंसा के कार्य करते थे, जिससे उनको नाना प्रकार के कष्ट सहने पड़ते थे । परन्तु कारण का उन्हें पता नहीं लगा । आखिर हैरान होकर जगह खाली की। तभी उनका उपद्रव शान्त हुआ । इसके कुछ समय पश्चात् ही रत्ना कुम्हार को भूगर्भ में प्रतिमाओं के होने का संकेत मिला था। कहा जाता है कि प्रतिष्ठा होने के बाद भी चमत्कार होते रहते हैं। यहाँ के पुजारी के कथनानुसार उसने तो यहाँ अनेकों चमत्कार देखे हैं । कहा जाता है कि कभी-कभी दिवाली आदि विशेष त्योहारों के दिन मन्दिर में नगाड़ों व वाद्य संगीत की स्वर लहरी सुनायी पड़ती है । यहाँ लगभग 86 वर्षों से अखण्ड ज्योति है । जिसमें निरन्तर केसरिया काजल के दर्शन होते हैं । प्रति वर्ष फाल्गुन शुक्ला अष्टमी को मेला लगता है । अन्य मन्दिर वर्तमान में यहाँ पर इसके अतिरिक्त एक और मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य यहाँ पर भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन प्रतिमाएँ अति ही सुन्दर व आकर्षक हैं । किसी पर लेख अंकित नहीं है । शिखर छोटा व निराले ढंग का है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का बड़ा गाँव पाटडी 14 कि. मी. दूर है । वीरमगाँव - दसाडा सड़क मार्ग में फुलकी व नवरंगपुरा से होकर यहाँ आना पड़ता है । अहमदाबाद व वीरमगाँव से यहाँ के लिए बसों की सुविधा उपलब्ध है । यहाँ से भोयणी 75 कि. मी. शीयाणी तीर्थ 75 कि. मी. व वीरमगाँव 31 कि. मी. दूर है। सुविधाएँ ठहरने के लिए निकट ही धर्मशाला व नये ब्लोक बने हुए है, जहाँ पर पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधाएँ उपलब्ध है । Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदीश्वर भगवान-उपरियाला पेढ़ी शेठ श्री आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी उपरियालाजी तीर्थ, पोस्ट : उपरियाला - 382 765. जिला : सुरेन्द्रनगर, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02757-26826. 627 Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रचित 'आलोयण विनति' में इस तीर्थ का व यहाँ के तीर्थाधिराज का उल्लेख है । उसके पश्चात् के इतिहास का पता लगाना कठिन है। विक्रम संवत् 1979 में यह प्रतिमा यहाँ कणबिओं के मोहल्ले में भूगर्भ से प्राप्त हुई थी । प्रतिमाजी पर कोई लेख नहीं है । इसे लोग शान्तिनाथ प्रभु की प्रतिमा भी कहते हैं । विक्रम संवत 2002 के वैशाव शुक्ला त्रयोदशी के दिन विजय उदयसूरीश्वरजी के हाथों नवनिर्मित मन्दिर में पुनः प्रतिष्ठित किया गया । विशिष्टता 8 प्रतिमा कई वर्षों तक भूगर्भ में अलोप रही । कहा जाता है कि पुण्य योग से एक महात्मा को इस स्थान पर भूगर्भ में प्रभु प्रतिमा होने का संकेत मिला था । उनके इस संकेत के आधार पर शोधन किया गया और सांकेतित स्थान पर ही प्रभु प्रतिमा प्राप्त हुई । प्रभावशाली प्रतिमा का चमत्कार देख यात्रियों की अत्यन्त भीड़ आने लगी और अनेकों चमत्कार हुए । कहा जाता है अभी भी चमत्कार होते हैं । अन्य मन्दिर वर्तमान में यहाँ पर इसके अतिरिक्त और कोई मन्दिर नहीं है । कला और सौन्दर्य यहाँ पर जगह-जगह अनेकों प्राचीन अवशेष व प्रतिमाएँ दिखायी देती हैं, जो मन्दिर का प्रवेश द्वार-वामज दर्शनीय हैं । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का स्टेशन कलोल 6 कि. मी. दूर है, जहाँ से टेक्सी व बस की श्री वामज तीर्थ सुविधा है । अहमदाबाद कलोल के बीच मैन सड़क से 8 कि. मी. आदरेज व वहाँ से वामज 5 कि. मी. दूर तीर्थाधिराज 8 श्री आदीश्वर भगवान, श्वेत है । बस व कार मन्दिर तक जा सकती है । यह वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 107 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। स्थान शेरीशा से लगभग 10 कि. मी. व अहमदाबाद तीर्थ स्थल वामज गाँव के निकट । से 30 कि. मी. दूर है । प्राचीनता प्रभु प्रतिमा की कलाकृति संप्रति सुविधाएँॐ ठहरने के लिए छोटी सी धर्मशाला काल की प्रतीत होती है । लेकिन तीर्थ की सही है, जहाँ पर पानी, बिजली की सुविधा है । शेरीशा तीर्थ प्राचीनता का पता लगाना कठिन है । कहा जाता है ठहरकर ही यहाँ आना सुविधाजनक है । किसी समय यह तीर्य अति प्रख्यात था व यहाँ से पेढ़ी 8 शेठ श्री आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी, शेराशी तक सुरंग थी । अभी भी यहाँ जगह-जगह पर पोस्ट : वामज - 382 721. अनेकों प्राचीन खण्डहर अवशेष दृष्टिगोचर होते हैं । जिला : गांधीनगर, प्रान्त : गुजरात, इससे यह भी कहा जा सकता है कि किसी समय यह एक बड़ी नगरी रही होगी । विक्रम संवत् 1562 में कविवर श्री लावण्य द्वारा 628 Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथ भगवान-वामज Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री भोयणी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री मल्लिनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, 104 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल भोयणी गाँव के निकट । प्राचीनता कहा जाता है कि यह स्थल किसी समय पद्मावती नगरी के नाम से विख्यात था । यहाँ खेतों व तालाबों में से प्राप्त अनेकों प्रतिमाओं व अवशेषों की कलाकृति से प्रतीत होता है कि यह स्थल अति प्राचीन है व किसी समय यहाँ अनेकों जिन मन्दिर रहे होंगे । यह सुन्दर व अलौकिक प्रतिमा वीर निर्वाण सं. 2399 (विक्रम सं. 1930) में यहाँ के एक खेत में कुआँ खोदते वक्त भूगर्भ से प्राप्त हुई थी, जिसे वीर निर्वाण सं. 2412 (विक्रम सं. 1943) माघ शुक्ला दशमी के दिन नव निर्मित सुन्दर व भव्य जिनालय में विशेष समारोह के साथ प्रतिष्ठित किया गया । विशिष्टता कहा जाता है कि इस जगह जब कुआँ खोदा जा रहा था, तब किसान को आवाज सुनायी दे रही थी । लेकिन आवाज आने की जगह का पता नहीं लग सका । जमीन खोदते-खोदते यह भव्य प्रतिमा प्रकट हुई व अचानक आवाज भी बन्द हो गयी । प्रतिमा का मुख नारीसा अति ही शोभनीय व कलापूर्ण है । नारी रूपसी मल्लिनाथ भगवान की इतनी प्राचीन प्रतिमा अन्यत्र नहीं है । प्रतिवर्ष माघ शुक्ला 10 को ध्वजा चढ़ाई जाती है व मेला लगता है, जब हजारों भक्तगण प्रभु भक्ति में भाग लेते है । अन्य मन्दिर र वर्तमान में यहाँ पर इसके अतिरिक्त और कोई मन्दिर नहीं है । कला और सौन्दर्य प्रभु प्रतिमा की कला अति ही सुन्दर व निराले ढंग की है । भूगर्भ से प्राप्त अन्य प्रतिमाएँ व अवशेष भी कलापूर्ण व दर्शनीय है । मार्ग दर्शन मन्दिर से लगभग 400 मीटर की दूरी भोयणी रोड़, स्टेशन है, जो कि कलोल व बेचराजी के बीच कड़ी से 16 कि. मी. दूरी पर स्थित है । नजदीक का बड़ा गाँव कड़ी है जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधा है । बस व कार मन्दिर जा सकती है । यहाँ से अहमदाबाद 60 कि. मी. दूर है । सविधाएँ ठहरने के लिए धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधा भी है । पेढ़ी श्री मल्लीनाथ महाराज कारखाना ट्रस्ट, पोस्ट : भोयणी - 382 145. तालुका : वीरमगाँव, जिला : अहमदाबाद, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02715-50204. श्री मल्लिनाथ भगवान मन्दिर-भोयणी 630 Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मल्लिनाथ भगवान-भोयणी Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को नवनिर्मित मन्दिर में प्रतिष्ठित करने के पूर्व यहाँ श्री पानसर तीर्थ के अन्य मन्दिर में विराजित किया गया था । अन्य मन्दिर इस गाँव में एक और मन्दिर है। तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, श्वेत वर्ण, ___जहाँ के मूलनायक श्री धर्मनाथ भगवान हैं । यह पद्मासनस्थ, लगभग 91.4 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । प्रतिमा भी प्राचीन है । तीर्थ स्थल पानसर गाँव के निकट जंगल में। कला और सौन्दर्य 8 इस मन्दिर में व प्राचीनता यहाँ की प्रतिमा और कलाकृतियों श्री धर्मनाथ भगवान के मन्दिर में भूगर्भ से प्राप्त अन्य का अवलोकन करने से इस तीर्थ की प्राचीनता सिद्ध प्रतिमाएँ स्थापित हैं, जिनकी कला भी दर्शनीय है। हो जाती है । भगवान महावीर की शान्त, सुन्दर तथा मार्ग दर्शन तीर्थ स्थान के निकट ही पानसर चमत्कारी यह प्राचीन प्रतिमा विक्रम संवत् 1966 के रेल्वे स्टेशन है, जो अहमदाबाद-मेहसाणा मार्ग पर श्रावण शुक्ला 9 रविवार के दिन यहाँ पर रावल स्थित है । अहमदाबाद-मेहसाणा रोड़ मार्ग से कलोल श्री जलातेजा के यहाँ प्रकट हुई थी, जिसे एक भव्य से 7 कि. मी. दूर है । मन्दिर तक बस व कार जा मन्दिर का निर्माण करवाकर विक्रम संवत् 1974 सकती है । यहाँ से मेहसाणा 40 कि. मी. शेरीशा तीर्थ वैशाख शुक्ला 6 को प्रतिष्ठित की गयी । तत्पश्चात् 14 कि. मी., महुडी 55 कि. मी. व अहमदाबाद 40 विक्रम संवत् 1991 में पाँच और प्राचीन प्रतिमाएँ यहाँ कि. मी. दूर है । पर भूगर्भ से प्राप्त हुई जिनसे यह सिद्ध होता है कि सुविधाएँ ॐ ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त यहाँ कभी अनेकों जिन मन्दिर रहे होंगे । धर्मशाला है, जहाँ भोजनशाला की सुविधा भी विशिष्टता ॐ कहा जाता है कि चरम तीर्थंकर उपलब्ध है । प्रभु वीर की भूगर्भ से चमत्कारी प्रतिमा के प्रकट होते पेढ़ी श्री पानसर महावीर स्वामीजी जैन देरासर ट्रस्ट, ही यहाँ अनेकों चमत्कार होने लगे, जिनसे सदैव पोस्ट : पानसर -382 740. जिला : गांधीनगर (गुज.) हजारों यात्रियों का जमघट रहने लगा । इस प्रतिमाजी फोन : 02764-88240. dillin श्री महावीर भगवान मन्दिर-पानसर 632 Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीर भगवान-पानसर Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महुड़ी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री पद्मप्रभ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, 53.3 सें. मी. (21 इंच) (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल 8 महुड़ी (मधुपुरी) गाँव के पूर्व दिशा में। प्राचीनता 8 प्राचीन काल में इस क्षेत्र को खडायत कहते थे जिसमें कोटार्यक भी शामिल था । महुड़ी को प्राचीन काल में मधुमती कहते थे । इस क्षेत्र में भूगर्भ से प्राप्त जिन प्रतिमाओं व कलात्मक अवशेषों से यह प्रतीत होता है कि यह तीर्थ क्षेत्र लगभग 2000 वर्ष प्राचीन है व यहाँ अनेकों जिन मन्दिर और जैन श्रावकों के घर रहे होंगे । कुछ वर्ष पूर्व चार प्राचीन प्रतिमाएँ कोटार्यक मन्दिर के निकट भूगर्भ से प्राप्त हुई थीं जिनमें श्री शान्तिनाथ प्रभु की पंचधातु से निर्मित प्रतिमा पर ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण लेख से सिद्ध होता है कि यह प्रतिमा लगभग दो हजार वर्ष पूर्व की है जो कि पंचधातु की जिन प्रतिमाओं में प्राचीनतम मानी जाती है । यहाँ के तीर्थाधिराज श्री पद्मप्रभु भगवान की प्राचीन, सुन्दर प्रतिमा को इस नवनिर्माणित मन्दिर में विक्रम संवत् 1974 में आचार्य देव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज के करकमलों द्वारा पुनः श्री घंटाकर्ण महावीर-महुड़ी श्री पद्मप्रभ भगवान मन्दिर-महुड़ी 634 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठित कराया गया । यहाँ के अति चमत्कारी व समकितधारी श्री धन्टाकर्ण महावीर के मन्दिर का प्रतिष्ठापन भी विक्रम संवत् 1980 में इन्हीं आचार्य देव द्वारा संपन्न हुआ । विशिष्टता यहाँ पर प्रत्येक वर्ष आश्विन कृष्णा 14 के दिन वार्षिकोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, जब घन्टाकर्ण महावीर के मन्दिर में जैन विधि से हवन होता है, उस अवसर पर हजारों यात्रीगण एकत्रित होकर प्रभु-भक्ति का लाभ लेते हैं । यहाँ पर घन्टाकर्ण महावीर प्रत्यक्ष व अत्यंत चमत्कारी है जो बावन वीरों में 30वें हैं । वे चौथे गुण स्थान वाले देव माने जाते हैं । यहाँ पर सदैव सैकड़ों की संख्या में भक्तगण श्रद्धा और भक्ति से आकर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं । अन्य मन्दिर 8 इस मन्दिर के पास ही 24 देव कुलिकाएँ, घन्टाकर्ण महावीर का भव्य मन्दिर व श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी का गुरुमन्दिर है । कला और सौन्दर्य यहाँ से लगभग 1.6 कि. मी. (एक मील) की दूरी पर साबरमति नदी के किनारे एक टेकरी पर कोटार्यक के मन्दिर में अनेकों कलापूर्ण प्रतिमाएँ व अवशेष दृष्टिगोचर होते है । इनमें पंचधातु से निर्मित जटायुक्त रेडियम नेत्रवाली श्री शान्तिनाथप्रभु की 129.5 सें. मी. (51 इंच) की पद्मासनस्थ कमलासन में विराजित प्रतिमा अति ही सुन्दर है जिसे केशरियाजी भगवान भी कहते हैं । ऐसी कलात्मक प्रतिमा का दर्शन अन्यत्र दुर्लभ है । इसके निकट एक और टेकरी पर भी जैन । मन्दिरों के अवशेष दिखायी देते हैं जिनमें श्री अजितनाथ भगवान की श्वेत वर्ण प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में 106 सें. मी. (लगभग 372 फुट) अति ही मनोरम प्रतीत होती है जिसपर महिकावती नगरी का लेख उत्कीर्ण है। कहा जाता है श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज यहीं पर ध्यान करते थे व प्रायः कहा करते थे कि यह स्थान जिन प्रतिमाओं व लक्ष्मी का भण्डार है । मार्ग दर्शन तीर्थ स्थान से नजदीक के रेल्वे स्टेशन बीजापुर 10 कि. मी. व पिलवाई रोड़ 5 कि. मी. दूर है, जो अहमदाबाद के पास कलोल-बीजापुर मार्ग में है । यहाँ से गाँधीनगर 33 कि. मी. कलोल 50 कि. मी. महेसाना 50 कि. मी. हिम्मतनगर 40 श्री पद्मप्रभ भगवान-महुड़ी कि. मी. व अहमदाबाद 70 कि. मी. दूर है । सुविधाएँ ठहरने के लिए धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधा भी है । एक और धर्मशाला ब्लाक सिस्टम में बनी हुई है, जहाँ पर सारी सुविधाएँ उपलब्ध है । पेढी श्री महडी (मधपरी) जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक ट्रस्ट, पोस्ट : महुड़ी - 382 855. जिला : गांधीनगर (गुज.), फोज : 02763-84626 व 84627. 635 Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शेरीशा तीर्थ तीर्थाधिराज श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, 165 सें. मी. (65 इंच) (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल शेरीशा गाँव के निकट पूर्व-दिशा में। प्राचीनता कहा जाता है कि शेरीशा किसी समय सोनपुर नगरी का एक अंग था । आज उस सोनपुर का तो नामोनिशान नहीं है, लेकिन शेरीशा आज भी एक भव्य व मनोरम तीर्थ स्थान है । इस जगह की प्राचीनता के चिन्ह, खण्डहर अवशेषों व स्तम्भों आदि में आज भी यहाँ पाये जाते हैं । विक्रम की 13वीं शताब्दी में श्री देवचन्द्राचार्यजी द्वारा श्री पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर की प्रतिष्ठापना करवाने का उल्लेख हे । उस समय पार्श्वप्रभु की प्रतिमा श्री 'लोढ़ण पार्श्वनाथ' के नाम से प्रसिद्ध थी । यहाँ पर एक खंडित प्रतिमा के परिकर पर अंकित लेख से ज्ञात होता है कि विक्रम की 13 वीं शताब्दी में मंत्री वस्तुपाल तेजपाल ने अपने भाई मालदेव व उनके पुत्र पुनसिंह के क्षेमार्थ इस शेरीशा महातीर्थ में श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा को भी प्रतिष्ठित करवाया था । इन सबसे यह सिद्ध होता है कि यह तीर्थ उससे भी प्राचीन है । कविवर लावण्यसमय ने विक्रम संवत् 1562 में बड़े ही सुन्दर ढंग से 'शेरीशा तीर्थ स्तवन की भक्तिभाव पूर्वक रचना की है । इस कारण यह भी कहा जा सकता है कि इस तीर्थ की जाहोजलाली सदियों से बनी है । यहाँ पर समय-समय पर आवश्यक जीर्णोद्धार होते रहे । विक्रम की 16वीं शताब्दी के पश्चात् किसी समय मुस्लिम आक्रमणकारों के हाथ यह तीर्थ खंडित हुआ। विक्रम संवत् 1955 में खंडित जिनालय के खंडहरों की खुदाई करने पर कुछ प्रतिमाएँ प्राप्त हुई उन्हें एक ग्वाले का घर खरीद कर उसमें विराजमान किया । विक्रम संवत् 1988 में पाँच प्रतिमाओं पर लेप करवाया गया व अहमदाबाद के श्रेष्ठी साराभाई डाह्याभाई निर्मित नूतन जिनालय की विक्रम संवत् 2002 में तीर्थोद्धारक आचार्य श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी के हाथों वैशाख शुक्ला दशम के दिन प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । अभी पुनः जीर्णोद्धार का काम प्रारंभ होने वाला है । भोयरे में विराजित श्री पार्श्व प्रभु प्रतिमा श्री शेरीशा पार्श्वनाथ मन्दिर 636 Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशिष्टता यहाँ पर भोयरे में स्थित श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा अत्यधिक सुन्दर व अपने आप में अनूठी है । यहाँ की पद्मावती देवी की प्राचीन सुन्दर प्रतिमा अभी नरोड़ा गाँव में है जो दर्शनीय है । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त और कोई मन्दिर नहीं हैं । ___ कला और सौन्दर्य यहाँ पर प्राचीन मन्दिरों के खण्डहर, अवशेष, स्तम्भ आदि दर्शनीय हैं, जिनकी कलाकृति देखने योग्य है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन कलोल 8 कि. मी. दूर है जो कि अहमदाबाद-मेहसाणा मार्ग पर स्थित है, जहाँ से बस, टेक्सी आटो आदि की सुविधा है । यहाँ से अहमदाबाद 37 कि. मी. दूर कलोल-रांचराड़ा रोड़ मार्ग पर है। श्री पार्श्वनाथ भगवान-शेरीशा सुविधाएँ ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त विशाल धर्मशाला है, जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधा है । पेढ़ी शेठ आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी, पोस्ट : शेरीशा - 382 721. जिला : गांधीनगर, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02764-24438. माता श्री अम्बिाकादेवी-शेरीशा 637 Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 638 INTRATOR 6363 श्री धर्मनाथ भगवान, हठीसिंह जिनालय-कर्णावती Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कर्णावती तीर्थ (अहमदाबाद) Pyare F ES श्री संभवनाथ भगवान-कर्णावती (अहमदाबाद) तीर्थाधिराज श्री धर्मनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 63 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल अहमदाबाद शहर में दिल्ली दरवाजे के बाहर सेठ हठीसिंहजी की वाड़ी में । प्राचीनता अहमदाबाद नगर की स्थापना वि. सं. 1468 में हुई मानी जाती है । परन्तु इसके पूर्व यहाँ आशावल व कर्णावती नगरी रहने का उल्लेख है। उपलब्ध उल्लेखानुसार आशावल (आशापल्ली) नगरी दसवीं सदी के पूर्व बस चुकी थी । दसवीं सदी में भाभा पार्श्वनाथ भगवान का एक विशाल मन्दिर था । उदयन मंत्री ने उदयन विहार नामक एक मन्दिर का निर्माण करवाया था । इनके अतिरिक्त भी अनेकों मन्दिर थे । दन्डनायक श्रेष्ठी श्री अभयड़ यहीं के थे। ग्यारहवीं सदी में श्री कर्णदव ने भीलपति आशा को पराजित करके इस नगरी को कर्णावती नगरी के नाम में परिवर्तित किया । किसी समय कर्णावती नगरी जैन धर्म का केन्द्र बन चुकी थी । सोलंकी राजा सिद्धराज के समय आचार्य श्री वादिदेवसूरीश्वरजी का यहाँ पदार्पण हुआ था । श्री साँतू मंत्री ने यहाँ विशाल जैन मन्दिर बनवाया था । आचार्य श्री हेमचन्द्राचार्य ने यहीं पर प्राथमिक शिक्षाग्रहण की थी । मंत्री श्री पेथड़शाह ने यहाँ एक बृहत् ज्ञान-भंडार की स्थापना की थी । कर्नल टोडे ने यहाँ अनेकों मन्दिर रहने का उल्लेख किया है । आज उस शहर व मन्दिरों के अवशेष नजर नहीं आते हैं । कालक्रम से हर जगह का उत्थान-पतन होता है। उसी भाँति यहाँ भी हुआ होगा । शुभ संयोगवश यहाँ पुनः एक विराट नगरी की स्थापना हुई, जो अहमदाबाद नाम से विख्यात हुई । इस नगर की स्थापना से आज तक हर वक्त सैकड़ों मन्दिर रहे। आज भी छोटे-बड़े सवा दो सौ से ज्यादा मन्दिर हैं । वर्तमान मन्दिरों में झवेरीवाड़ में स्थित श्री सम्भवनाथ भगवान का मन्दिर प्राचीन माना जाता है । हठी भाई वाड़ी का मन्दिर, कला व विशालता के लिए प्रसिद्ध हैं। गुजरात के सभी स्थापत्यों में गौरव वाले इस विशाल बावन जिनालय मन्दिर का निर्माण सेठ श्री हठीसिंहजी ने अपनी संपति का सदुपयोग करके करवाया, जो आज भी उनकी धर्मनिष्ठा की याद दिलाता है । उनकी भावना विशिष्ट समारोह के साथ प्रतिष्ठा करवाने की थी । उनके स्वर्गगमन के पश्चात उनकी धर्मपरायणा बुद्धि-निधान धर्मपत्नी सेठाणी श्री हरकोरबाई ने लाखों रुपयों की धनराशि खर्च करके इक्कीस दिन के विराट-महोत्सव के साथ वि. सं. 1903 माघ कृष्णा एकादशी गुरुवार के शुभ दिन आचार्य श्री शान्तिसागरसूरीश्वरजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा करवाई। उक्त पुनीत प्रसंग पर देश के विभिन्न स्थानों के लाखों नर-नारियों ने भाग लिया, जिससे समारोह अद्वितीय लगने लगा; दिव्यनगरी प्रतीत होती थी । उस समय जिधर देखो जैन नर-नारियों के समूह नजर आ रहे थे, जिससे यह शहर जैन नगरी-सा प्रतीत होने लगा । इस प्रकार स्वर्गस्थ सेठ श्री हठीसिंहजी की पवित्र भावना साकार हुई । विशिष्टता अहमदाबाद के पूर्व स्थापित आशावल व कर्णावती नगरी का संक्षिप्त विवरण प्राचीनता में 639 Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिया जा चुका है । अहमदाबाद की स्थापना के पूर्व से आज तक यहाँ के जैन श्रेष्ठियों द्वारा दिया गया योगदान चिरस्मरणीय है। मुसलमानों के राजत्वकाल में सेठ श्री शान्तिदासजी को नगर सेठ की उपाधि से अलंकृत किया गया। नगर सेठ द्वारा किये गये जन कल्याण के कार्य प्रशंसनीय हैं । नगर सेठ द्वारा वि. सं. 1682 में निर्मित विशाल, स्थापत्य में उत्कृष्ट, सर्वांगसुन्दर श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर को वि. सं. 1700 में मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया । इस पर पूरे गुजराज की जनता में हलचल मच गई। नगर सेठ का दिल्ली दरबार में अच्छा मान था । नगर सेठ द्वारा विदित करवाते ही शाहजहाँ ने तुरन्त मन्दिर को सही सलामत नगर सेठ को संभलाने का आदेश जारी किया, ऐसा उल्लेख है । पश्चात् शाहजहाँ के पुत्र औरंगजेब ने तो इसे ध्वस्त कर दिया । आज उसका नामोनिशान भी रहने न पाया । सं. 1717 के दुष्काल में सेठ श्री शान्तिदासजी के सुपुत्रों द्वारा दिया गया योग दान उल्लेखनीय है । वि. सं. 1746 में यहाँ 178 जैन मन्दिर व पचास हजार जैन श्रावकों के घरों की बस्ती थी, ऐसा पं. शीलविजयजी द्वारा रचित "तीर्थ माला” में उल्लेख है । 640 - झवेरीवाद में स्थित श्री संभवनाथ भगवान का मन्दिर सबसे प्राचीन माना जाता है। झवेरीवाड़ के नीशापोल में श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर लगभग वि. सं. 1600 में श्री संघ द्वारा निर्मित बताया जाता है । प्रतिमा अति ही कलात्मक व चमत्कारिक है । कहा जाता है किसी समय इस प्रतिमा के दर्शन के लिए एक स्वर्ण मुहर देनी पड़ती थी । यहाँ की चमत्कारिक घटनाएँ प्रचलित है। यह मन्दिर कलात्मकता के लिए विशेष स्थान रखता है । इस शहर में विविध जैन मन्दिरों के अतिरिक्त 11 ज्ञान भन्डार हैं, जिनमें प्राचीन हस्तलिखित महत्पवूर्ण जैन इतिहास को प्रकाश में लाने वाले हजारों ग्रन्थों के दर्शन होते हैं, जो जैन संघ की महानिधि हैं । साथ-साथ वे जैन संघ व भारतके गौरव रूप हैं । मंत्री श्री वस्तुपाल तेजपाल, राजा कुमारपाल व मंत्री श्री पेयइशाह आदि अनेक राजाओं मन्त्रियों व श्रेष्ठियों द्वारा लिखवाये गये व प्रकाण्ड आचार्यों द्वारा लिखे गये अमूल्य ग्रन्थों के यहाँ दर्शन होते है। यहाँ अनेकों जैन पुस्तकालय, उपाश्रय, शास्त्रीय व धार्मिक अध्ययन के लिए अनेक ज्ञानशालाएँ व पाठशालाएँ हैं। नगर सेठ श्री शान्तिदासजी जैसे महान व्यक्तियों के कारण उस समय से जैन संघ का नेतृत्व सम्भालने की जिम्मेदारी भी यह नगर निभा रहा है । आज भी सेठ हठीसिंह जिनालय कर्णावती (अहमदाबाद) Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह जैन-धर्म का प्रमुख केन्द्र है। अतः इसे जैन पुरी के नाम से भी संबोधित किया जाता है । __भारत के समस्त जैन संघों द्वारा स्थापित सेठ श्री आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी का संविधान ई. सं. 1880 में इसी शहर में पंजीकृत हुवा । इस पेढ़ी की स्थापना लगभग 250 वर्ष पूर्व हुई बताई जाती है, जो आज तक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ का उत्तरदायित्व निभा रही है, जिन्होंने अनेकों प्राचीन जैन तीर्थों के जीर्णोद्धार में भाग लिया है । श्री शत्रुजय महातीर्थ व गिरनारजी तीर्थ जैसे कई तीर्थों का कार्य भार संभाल रही है । अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त वर्तमान में यहाँ छोटे-बड़े 325 से ज्यादा मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य हर मन्दिर में विभिन्न प्रकार की कला नजर आती है । हठीसिंह जिनालय की निर्माण कला बेजोड़ है । मन्दिर में उत्कीर्ण शिल्प कला का जितना वर्णन करें कम है । यहाँ की कला का निरीक्षण करते ही आबू देलवाड़ा का स्मरण हो आता ALA श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ भगवान-कर्णावती (अहमदाबाद) __फरग्यूसन, जेम्स सेम्यूलसन, आनन्दकुमार स्वामी व रत्नमणि राव आदि ने यहाँ के शिल्पकला की मुक्त-कंठ से प्रशंसा की हैं । झवेरीवाड़ के वाघणपोल में श्री अजितनाथ भगवान के मन्दिर में पंच-धातु से निर्मित कायोत्सर्ग मुद्रा में श्री अतिजनाथ भगवान की प्रतिमा अति दर्शनीय है, जिसपर सं. 1112 का लेख उत्कीर्ण है। यहाँ लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर है, जिसमें हजारों ग्रन्थ, प्राचीन चित्र, शिल्प, मूर्तियों आदि पुरातत्व व कला की सामग्री का अमूल्य व विपुल संग्रह है । इतना बड़ा महत्वपूर्ण संग्रह अन्यत्र नहीं है। यह भी यात्रियों के लिए दर्शनीय स्थल है । मार्गदर्शन 8 मन्दिर से अहमदाबाद स्टेशन की दूरी 3 कि. मी. है । स्टेशन से टेक्सी, बस व आटो रिक्शों की सुविधा उपलब्ध है । सुविधाएँ ठहरने के लिए इस मन्दिर के निकट ही सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला, ब्लाक व हाल है, जहाँ पर भोजनशाला व नास्ते की भी सुविधा उपलब्ध है अलग उपाश्रयों की भी सुविधा है । इसके अतिरिक्त शहर में निम्न धर्मशालाएँ है, जहाँ पर भोजनशाला के अतिरिक्त सारी सुविधाएँ उपलब्ध है। 1. शेठ दलपतभाई भगुभाई श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन धर्मशाला, पता : रतनपोल, मरचिपोल, अहमदाबाद । 2. बाईइच्छा, धर्मपत्नी रायचन्द्र जैचन्द्र श्वेताम्बर जैन धर्मशाला, पता : रतनपोल, मरचिपोल, अहमदाबाद । 3. बाईजमुना, शाह बालचन्द्र बेहचरदास की पुत्री, जैन धर्मशाला, पता : रतनपोल, गोलवाड़, अहमदाबाद । पेढी श्री धर्मनाथ भगवान जैन मन्दिर, शेठ हठीसिंह केशरीसिंह ट्रस्ट, दिल्ली दरवाजा के बाहर पोस्ट : अहमदाबाद - 380 004. (गुजरात), फोन : 079-2180774 व 21 20455. 641 Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मातर तीर्थ तीर्थाधिराज साचादेव सुमतिनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 76 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल मातर गाँव के मुख्य मार्ग पर । प्राचीनता यह साचादेव सुमतिनाथ प्रभु की प्राचीन चमत्कारी प्रतिमा खेड़ा जिले के महुवा गाँव के पास स्थित सुंहुंज गाँव में भूगर्भ से निकली थी, जिसपर विक्रम संवत 1523 वैशाख कृष्ण 7 रविवार के दिन श्रीलक्ष्मीसागरसूरिजी के हाथों प्रतिष्ठित होने का लेख अंकित है । इस चमत्कारिक प्रतिमा को मातर लाया गया व यहाँ भव्य मन्दिर बनवाकर विक्रम संवत् 1854 ज्येष्ठ शुक्ला 3 गुरुवार के दिन पुनः प्रतिष्ठित किया गया । तत्पश्चात् कुछ जीर्णोद्धार हुए । विशिष्टता प्रतिमाजी अति ही चमत्कारी है । जब यह प्रतिमा रथ पर हजारों नर-नारियों के साथ सुंहुंज गाँव से मातर लायी जा रही थी, तब खेड़ा के पास वान्तक व सेडी नदि के संगम स्थान पर भारी वर्षा के कारण बाढ़ आयी हुई थी । उपस्थित सारे भक्तगणों ने वहीं रुककर जाने का सोचा परन्तु गाड़ीवाहक को पानी के बदले रेत ही दिखायी दे रही थी जिससे गाड़ी व सारे भक्तगण निर्विघ्न नदी पार हो गये । उस समय सारे नर-नारियों ने जयध्वनि करके 'साचा देव है' कहा । उसी दिन से साचादेव सुमतिनाथ कहलाये । मातर गाँव में प्रतिष्ठा होने के बाद भी अनेकों चमत्कार होते आ रहे हैं, जैसे-रात्रि में मन्दिर में नाट्यारंभ होने की आवाज आना, शत्रुजय महातीर्थ में अंजनशलाका के अवसर पर रोग फैलने का संकेत मिलना, गोठी द्वारा अधिष्ठायक देव के कहे अनुसार न करने पर उसे मार महसूस होना, प्रतिमाओं का दैविक शक्ति से पलट जाना, प्रतिमाओं पर छीटे लगना आदि अनेकों वृत्तान्त प्रख्यात हैं । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त यहाँ पर कोई मन्दिर नहीं है । इसी मन्दिर में श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की भव्य, प्राचीन व अति चमत्कारिक प्रतिमा है जो खेड़ा गाँव के खेत में से प्राप्त हुई थी। कला और सौन्दर्य चमत्कारी प्रभु प्रतिमा की व मन्दिर की कला दर्शनीय है । श्री सुमतिनाथ जिनालय-मातर 642 Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साचादेव श्री सुमतिनाथ भगवान-मातर मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन नड़ीयाद लगभग 16 कि. मी. दूर है व नजदीक का बड़ा गाँव खेड़ा 5 कि. मी. दूर है । इन जगहों से बस व टेक्सियों की सुविधाएँ है । मन्दिर तक पक्की सड़क है । अहमदाबाद से यह स्थल लगभग 45 कि. मी. व बडोदा से 64 कि. मी. दूर है । सविधाएँ ठहरने के लिए सामने ही सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधा है। मन्दिर के पास उपाश्रय भी है । पेढ़ी श्री साचादेव कारखाना पेढ़ी, पोस्ट : मातर -387 530. जिला : खेड़ा (गुज.), फोन : 02694-85530. 643 Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीड़दा ने श्री स्थंभन पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर का निर्माण करवाया था । विक्रम संवत् 1360 के आसपास श्री संघ द्वारा पुनः भव्य मन्दिर बनवाकर उत्साहपूर्वक प्रतिमाजी प्रतिष्ठित करवाने का उल्लेख है। कालान्तर में समय समय पर अनेकों जीर्णोद्धार हुए। अन्तिम जीर्णोद्धार विक्रम संवत् 1984 में हुआ व तीर्थोद्धारक शासन सम्राट आचार्य श्री नेमिसूरीश्वरजी के हस्ते प्रतिष्ठा संपन्न हुई । विशिष्टता कहा जाता है कि इसी प्रतिमाजी के न्हवण जल से श्री अभयदेवसूरिजी का देह निरोग हुआ था । कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य ने विक्रम सं. 1150 में यहीं पर दीक्षा ग्रहण कर शिक्षा प्रारम्भ की थी । कहा जाता है कि उस समय यहाँ अनेकों करोड़पति श्रावकों के घर थे जिन्होंने सैकड़ों मन्दिरों का निर्माण करवाया था । राजा श्री कुमारपाल के मंत्री श्री उदयन भी यहीं के थे, जिन्होंने उदयवसही नामक मन्दिर का निर्माण करवाया था । विक्रम सं. 1277 श्री स्थंभन पार्श्वनाथ मन्दिर-खंभात में यहाँ के दण्डनायक श्री वस्तुपाल ने ताड़पत्री पर अनेकों ग्रन्थ लिखवाये । यहाँ पर जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरिजी ,श्री सोमसुन्दरसरिजी, श्री विजयसेनसरिजी आदि आचार्यों ने अनेकों जिन मन्दिरों की प्रतिष्ठापना करवायी तथा अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचनाएँ कीं। तीर्थाधिराज श्री स्थम्भनपार्श्वनाथ भगवान, यहाँ सोनी तेजपाल, संघवी उदयकरण, श्री गांधीकुंवरजी नील वर्ण, पद्मासनस्थ, 23 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। __ श्रेष्ठी रामजी आदि श्रावकों ने भी अनेक मन्दिर तीर्थ स्थल खम्भात के खारवाड़ा मुहल्ले में । बनवाये। यहाँ के दानवीर सेठ वाजीया, राजीया, श्रीराम और पर्वत आदि श्रेष्ठियों ने दुष्काल में अनेकों दानशालाएँ प्राचीनता इसका प्राचीन नाम त्रंबावती नगरी व भोजनशालाएँ खुलवाई थीं । था । जैन शास्त्रानुसार इस प्रभाविक प्रभु प्रतिमा का इतिहास बहुत पुराना है । बीसवें तीर्थंकर के काल से ____ कविवर श्री रिषबदासजी की भी यही जन्मभूमि है लेकर अंतिम तीर्थंकर के काल तक यहाँ अनेकों जिन्होंने अनेकों रास ग्रन्थों की रचना यहीं की थी । चमत्कारिक घटनाएँ घटी हैं । तत्पश्चात् वर्षों तक ये सारे तथ्य इस तीर्थ की प्राचीनता और महत्ता को प्रतिमा लुप्त रही । सिद्ध करते हैं । प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला तृतीया को विक्रम सं. 1111 में नवांगी टीकाकार श्री अभयदेव वार्षिकोत्सव मनाया जाता है । सूरिजी ने दैविक चेतना पाकर सेड़ी नदी के तट पर अन्य मन्दिर वर्तमान में यहाँ पर इसके भक्ति भाव पूर्वक जयतिहअण स्तोत्र की रचना की, अतिरिक्त 16 और मन्दिर है । और श्री हेमचन्द्राचार्य जिससे अधिष्ठायक देव प्रसन्न हुए व यह अलौकिक स्मृति मन्दिर भी है । चमत्कारी प्रतिमा वहीं पर भूगर्भ से अनेकों भक्तगणों कला और सौन्दर्य 88 यहाँ के श्री चिन्तामणि के सम्मुख पुनः प्रकट हुई । वर्तमान मन्दिर में स्थित पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर में भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन एक शिला पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार विक्रम सं. कलात्मक प्रतिमाएँ तथा अवशेष विद्यमान हैं । ऐसी 1165 में मोढ़वंशीय बेला श्रेष्ठी की धर्मपत्नी बाई कलात्मक प्राचीन प्रतिमाएँ अन्यत्र दुर्लभ है । 644 श्री खंभात तीर्थ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Foo श्री स्थंभन पार्श्वनाथ भगवान खंभात मार्ग दर्शन मन्दिर से लगभग 1 कि. मी. दूरी पर खंभात रेल्वे स्टेशन हैं, मन्दिर तक पक्की सड़क है। बड़ोदा से खंभात 80 कि. मी. अहमदाबाद से 90 कि. मी. दूर है । सुविधाएँ ठहरने के लिए मन्दिर से कुछ ही दूर निम्न धर्मशालाएँ है, जहाँ पानी, बिजली, वस्त्र व भोजनशाला की भी सुविधा है । 1. श्री जैन धर्मशाला व भोजनशाला, दंतारवाड़ा खंभात फोन : 02698-20477. AGE 10 2. श्री बंशीलाल अम्बालाल जैन यात्रिक भवन, मानेक चौक, खंभात, फोन : 02698-20117. पेढ़ी श्री स्थमभन पार्श्वनाथ जैन मन्दिर ट्रस्ट, खारवाडा, पोस्ट: खंभात 388 620. जिला : आनन्द, प्रान्त गुजरात, फोन : 02698-21816, 20221 व 25616. 645 Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PAVAGADH Superst श्री पार्श्वनाथ भगवान (दि.) - पावागढ़ श्री पावागढ़ तीर्थ तीर्थाधिराज @ 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ (दि. मन्दिर पहाड़ पर ) । 2. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण (श्वे. मन्दिर, तलहटी में ) । की तीर्थ स्थल चांपानेर गाँव के निकट समुद्र सतह से 945 मीटर ऊँचे एक पर्वत पर । प्राचीनता यह तीर्थ क्षेत्र बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान के समय का अथवा अयोध्यापति श्री रामचन्द्रजी के समय का माना जाता है। ई. सन् 140 में ग्रीस देश का महान भूगोलवेत्ता श्री टोलेमी ने अपने भारत प्रवास शोध में इसे अति प्राचीन और पवित्र जैन तीर्थधाम बताया है । कहा जाता है सम्राट अशोक के वंशधर राजा गंगासिंह ने ई. सन् 800 में यहाँ का किला सुधराया तब यहाँ के मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया था । सं. 1540 में मुस्लिम सुलतान मोहम्मद बेगड़ा ने यहाँ पर आक्रमण करके यहाँ के मन्दिरों को भारी क्षति पहुँचायी सं. 1931 में यहाँ का पुनः उद्धार हुआ। 646 सं. 1937 माघ शुक्ला 13 के दिन दिगम्बर भट्टारक श्री कनककीर्तिजी महाराज के हस्ते इस दि. मन्दिर की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । श्वेताम्बर उल्लेखानुसार भी यह तीर्थ इतना ही प्राचीन है । तेरहवीं शताब्दी में मंत्री श्री तेजपाल द्वारा यहाँ सर्वहतोभद्र नाम का मन्दिर बनवाने का उल्लेख है । वि. सं. 1638 में श्री जयवन्त सेठ द्वारा यहाँ मन्दिर बनवाकर आचार्य श्री विजयसेनसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा करवाने का उल्लेख है। वि.सं. 1746 में गणी शीलविजयजी महाराज ने यहाँ श्री नेमिनाथ भगवान के मन्दिर का उल्लेख किया है। उन्नीसवीं शताब्दी में भी श्री दीपविजयजी महाराज द्वारा रचित "श्री जीरावली पार्श्वनाथ स्तवन" में यहाँ के मन्दिरों का वर्णन है । श्वेताम्बर मान्यतानुसार यह तीर्थ शत्रुंजय सम माना जाता था । पहाड़ पर बिखरे खण्डहर प्राचीनता की याद दिलाते हैं । हमारे तीर्थ-दर्शन पूर्व प्रकाशन के समय यहाँ कोई भी पूजित श्वेताम्बर जैन मन्दिर नहीं था प्रशन्नता है कि आज यहाँ की तलहटी में श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ भगवान का भव्य श्वे. मन्दिर भी है जिसका निर्माण कुछ वर्षों पूर्व पंजाब केशरी श्रीमद् विजयबल्लभसुरिजी के पट्टधर प.पू. आचार्य भगवंत श्री इन्द्रदिव्न सूरीश्वरजी द्वारा इस प्राचीन तीर्थ के पुनः उद्धार हेतु प्राप्त दिव्य प्रेरणा व उनके एवं आचार्य भगवंत श्री जगत्चन्द्रसूरीश्वरजी के प्रयास से हुवा था । पहाड़ पर भी मन्दिर निर्माण का कार्य शीघ्र ही प्रारंभ करने के प्रयास में है । इस दिगम्बर मन्दिर में प्रतिवर्ष माघ शुक्ला 13 को ध्वजा चढ़ती है व मेला लगता है । विशिष्टता अयोध्यापति श्री रामचन्द्रजी के पुत्र श्री लव कुश तथा लाट नरेन्द्र एवं अनेकों मुनिगण यहाँ घोर तपश्चर्या करके मोक्ष सिधारे हैं, ऐसा निर्वाण काण्ड में उल्लेख है। इसलिए यह सिद्धक्षेत्र माना जाता है । पूर्वकाल में जैन धर्म के अनुयायी हजारों क्षत्रिय व अन्य परिवारों को मार्ग दर्शन व आवश्यक सहयोग देने का कार्य आचार्य भगवंतों की प्रेरणा व निर्देशन में यहाँ की श्वेताम्बर पेढ़ी द्वारा निरन्तर चल रहा है। इससे कई परिवार लाभान्वित हुवे है। उनमें कईयों ने तो दिक्षा भी ग्रहण की है, कई अध्यापक बने हैं तो कई पुजारी आदि । Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंक्शन से शिवराजपुर रेल मार्ग में पावागढ़ स्टेशन है। बड़ौदा से पावगढ़ स्टेशन 42 कि. मी. दूर है । जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधाएँ है । तलहटी को ही पावागढ़ स्टेशन व चाम्पानेर गाँव कहते है । तलहटी के मन्दिरों तक बस व कार जा सकती है । जहाँ से पहाड़ की चढ़ाई लगभग 5 कि. मी. पैदल ही चढ़नी यहाँ का यह कार्य अतीव सराहमीय व अनुकरणीय है । श्वे. मन्दिर में प्रतिष्ठित श्री मणीभद्रवीर की प्रतिमा अत्यन्त प्रत्यक्ष व चमत्कारिक है । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त पहाड़ पर सात और दिगम्बर मन्दिर है । तलहटी के चांपानेर गाँव में 2 दिगम्बर मन्दिर है । कला और सौन्दर्य यहाँ कई प्राचीन मन्दिरों के खण्डहर पड़े हैं जिनमें अनेकों कलात्मक अवशेष पाये जाते हैं, जिनकी कलाकृति आकर्षक है । प्राकृतिक सौन्दर्य यहाँ देखते ही बनता है । मार्ग दर्शन तीर्थ स्थल के नजदीक का स्टेशन पावागढ़ है । बड़ौदा-रतलाभ रेल मार्ग में चांपानेर रोड सुविधाएँ तलहटी में ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त दिगम्बर व श्वेताम्बर धर्मशालाएँ है, जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधाएँ उपलब्ध है । पेढ़ी 1. श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र कोठी, पावागढ़, पहाड़ पर दिगम्बर मन्दिर दृश्य-पावागढ़ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोस्ट : पावागढ़-389360. जिला : पंचमहल, प्रान्त : गुजरात फोन : 02676-45624. 2. श्री परमार क्षत्रिय जैन सेवा समाज, श्री श्वेताम्बर जैन मन्दिर, पोस्ट : पावागढ़ - 389 360. (गुजरात), फोन : 02676-45606. श्री पार्श्वनाथ भगवान (श्वे.)-तलेटी पावागढ़ श्री पार्श्वनाथ जिनालय (श्वे.)-तलेटी पावागढ़ 648 Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कावी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान एवं धर्मनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल कावी गाँव के पास समुद्र तट पर। प्राचीनता इसका प्राचीन नाम कंकावती था । श्री आदीश्वर भगवान के इस मन्दिर का जीर्णोद्धार विक्रम संवत् 1645 में बड़नगर निवासी श्री लाड़ीक गांधी के पुत्र श्री बटुक व गंगाधर गांधी ने करवाकर श्री विजयसेनसूरिजी के हाथों प्रतिष्ठापना करवायी तथा मन्दिर का नाम श्री सर्वजीत प्रासाद रखा । यहाँ तक उल्लेख मिलता है । लेकिन इससे पूर्व का उल्लेख नहीं है । श्री धर्मनाथ भगवान का मन्दिर विक्रम संवत् 1655 में लाडीक गांधी के वंशज श्री कुंवरजी गांधी की धर्म पत्नी श्रीमती वीरा बाई ने निर्मित करवाकर श्री विजयसेनसूरिजी के हाथों प्रतिष्ठा करवायी। मन्दिर का नाम श्री रत्नप्रसाद तिलक रखा, ऐसा उल्लेख श्री आदीश्वर भगवान मन्दिर-कावी श्री धर्मनाथ भगवान मन्दिर-कावी 649 Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 માવામાં પં(આતિથ્ય 104 KAVI THEHED " श्री आदीश्वर भगवान-कावी मिलता है । कालान्तर में समय-समय पर इन मन्दिरों के आवश्यक जीर्णोद्धार हुए । विशिष्टता ये मन्दिर सास बहू के बनवाये कहे जाते हैं । किंवदन्ति है कि श्रीमती हीरा बाई व उनकी पुत्र वधु वीरा बाई प्रभु दर्शन हेतु सर्वजीत प्रासाद मन्दिर गयीं । तब मन्दिर का प्रवेश द्वार छोटा होने के कारण बहू के सिर में लगने पर सास जी से कहा कि आपने मन्दिर तो विशाल बनवाया लेकिन प्रवेश द्वार बहुत छोटा बनवाया । इस पर सास जी ने ताना मारकर कहा कि तुम पीहर से धन लाकर ऊँचे दरवाजे वाला बनाओं । इसी बात पर बहू ने मन्दिर बनवाने की प्रतिज्ञा की । साथ ही मन्दिर निर्माण का कार्य शीघ्रातिशीध्र प्रारम्भ कर पाँच वर्ष की अवधि में ही पूरा करवाकर प्रतिष्ठा करवायी । प्रतिवर्ष माघ कृष्ण 7 को वार्षिकोत्सव व कार्तिक पर्णिमा एवं चैत्री पूर्णिमा को मेले होते हैं । अन्य मन्दिर इन मन्दिरों के अतिरिक्त यहाँ वर्तमान में कोई अन्य मन्दिर नहीं है । कला और सौन्दर्य 8 रत्न प्रासाद मन्दिर के 650 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TEELIMILLLLLLLLLudhi श्री धर्मनाथ भगवान-कावी शिखरों की कला व बाहरी भव्य दृश्य बहुत ही आकर्षक है । समुद्र के उस पार स्थित खम्भात का दृश्य यहाँ से सुन्दर लगता है । मार्ग दर्शन तीर्थ स्थल से लगभग 3/4 कि. मी. की दूरी पर कावी रेल्वे स्टेशन है । बडौदा से 96 कि. मी. भडौच से 80 कि. मी. जंभुसर होकर यहाँ आना पड़ता है । कावी इस रेल्वे मार्ग का अंतीम स्टेशन है। सड़क मार्ग द्वारा भी बड़ौदा व भडौच से जंभुसर होकर आना पड़ता है । सुविधाएँ ठहरने के लिए धर्मशाला है, जहाँ भोजनशाला की सुविधा भी है । पेढ़ी 8 श्री रिखबदेवजी महाराज जैन देरासर, पोस्ट : कावी - 392 170. जिला : भडौच (गुज.), फोन : 02644-30229. Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री गन्धार तीर्थ तीर्थाधिराज श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्वेत । वर्ण, पद्मासनस्थ 70 इंच (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल समुद्र के किनारे, गंधार गाँव के निकट । प्राचीनता यह एक प्राचीन बन्दरगाह था । इस गाँव ने अब तक न जाने कितने उत्थान पतन देखे है । किसी समय यहाँ अनेकों जैन मन्दिर थे । स्थापित प्रतिमा पर अंकित एक लेख के अनुसार विक्रम संवत् 1664 माघ शुक्ला 10 के दिन श्री विजय सेन सूरिजी के हाथों प्रतिमा की प्रतिष्ठा हुई थी। प्रतिमाजी पर विलेपन किया हुआ है । विशिष्टता विक्रम की 17वीं शताब्दी में जगतगुरु हीरविजयसूरीश्वरजी अपने विशाल समुदाय के साथ यहाँ चातुर्मास में विराजमान थे । उस समय बादशाह अकबर ने उन्हें फतेहपुर सिकरी आने के लिए निमंत्रण यहीं पर भेजा था । जगत्गुरु ने वहाँ धर्म की प्रभावना व अनेकों धार्मिक कार्य सम्पन्न हो सकने की सम्भावना को देखते हुए श्री संघ की सलाह और अनुमति से आमंत्रण स्वीकार कर लिया था । यह स्थान भरुच पंचतीर्थी का एक मुख्य तीर्थ माना जाता है । अन्य मन्दिर इसी परकोटे में श्री महावीर भगवान का एक मन्दिर है जिसमें स्थापित प्रभु महावीर की प्रतिमा पर विक्रम संवत् 1664 का लेख उत्कीर्ण हैं । इस गाँव से 19 कि. मी. (12 मील) की दूरी पर स्थित दहेज गाँव में यहाँ से ले जाई गयी अनेक प्रतिमाएँ हैं जिनमें जगत्गुरु हीरविजयसूरीश्वरजी की भी (30.5 सें मी.) एक फुट ऊंची प्राचीनतम प्रतिमा है जिसपर उत्कीर्ण लेख से ज्ञात होता है कि इस प्रतिमा को भी विक्रम संवत् 1664 माघ शुक्ला 10 के दिन प्रतिष्ठित किया था । कला और सौन्दर्य समुद्र के किनारे छोटे से गाँव के पास जंगल में स्थित यहाँ का दृश्य बहुत ही TODA मन्दिरों का बाह्य दृश्य-गंधार 652 Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GANDA 927 1011 श्री पार्श्वनाथ भगवान-गंधार सुविधाएँ ठहरने के लिए धर्मशाला है, जहाँ बर्तन,पानी ,बिजली , ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला सुन्दर और मनभावन लगता है । प्रतिमा भी अपने आप में सुन्दर और प्रभावशाली हैं । मार्ग दर्शन तीर्थ स्थल से नजदीक का रेल्वे स्टेशन परवाजन, भरूच-कावी रेल मार्ग में 13 कि. मी. की दूरी पर है । यह स्थल लगभग भरूच से 45 कि. मी. व कावी तीर्थ से 65 कि. मी. दूर है । सभी जगहों से बस व टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है । पेढ़ी 8 श्री गन्धार जैन देरासर ट्रस्ट, पोस्ट : गन्धार - 392 140. तालुका : वागरा, जिला : भरूच, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02641-32345. 653 Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रखा गया । तत्पश्चात् राजा सम्प्रति, श्री सिद्धसेन श्री भरुच तीर्थ दिवाकर के उपदेश से राजा विक्रमादित्य, आंध्र प्रदेश के राजा सातवाहन (जिसके धवज दंड की प्रतिष्ठा आचार्य तीर्थाधिराज श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान, श्री पादलिप्तसूरिजी द्वारा हुई) । राजा कुमारपाल के श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर)। मंत्री उदयन के पुत्र अम्बड़ (जिसकी प्रतिष्ठा आचार्य श्री तीर्थ स्थल समुद्र और नर्मदा नदी के तट पर। हेमचन्द्राचार्य द्वारा हुई व राजा कुमारपाल ने आरती स्थित भरुच गाँव के श्रीमाली पोल में । उतारी) आदि ने उस मन्दिर के जीर्णोद्धार करवाएँ । प्राचीनता भृगुकक्ष, भृगुकुल, भ्रागपुर, भरुअच्च बाद में कालक्रम से कहा जाता है कि शासकों ने कई आदि भरुच के प्राचीन के नाम हैं । लाट देश का यह हिन्दू व जैन मन्दिर मस्जिदों में परिवर्तित किये जिनमें एक प्रमुख शहर था । अश्वमेध यज्ञ के लिये तैयार यह मन्दिर भी एक था । पुरातत्व वेत्ताओं का मत है किये गये अश्व को भगवान मुनिसुव्रत स्वामी ने यहीं कि कला और आकृतियों को देखने पर ऐसा कहा जा प्रतिबोध दिया था जो मृत्यु को प्राप्त कर देव हुआ । सकता है कि वर्तमान जामा मस्जिद ही वह प्राचीन उसने अपने पिछले जन्म के उपकारक प्रभु के मन्दिर । मन्दिर होना चाहिए । अनुमान लगाया जाता है कि का निर्माण कराया । उसी मन्दिर को अश्वावबोध कहते उक्त परिवर्तन समय में प्रभु प्रतिमा कहीं सुरक्षित रखी थे । सिंहल द्वीप के सिंहल राजा की पुत्री सुदर्शना को गयी होगी जिसे कालान्तर में इस नए मन्दिर का अपने पिछले भव में हुए चील का वृत्तांत जाति स्मरण । निर्माण करवाकर उसी प्राचीन प्रतिमा को प्रतिष्ठित ज्ञान से ज्ञात होने पर उसने उस मन्दिर का जीर्णोद्धार किया गया होगा । वि. सं. 2039 में यहाँ का पुनः करवाया, तब इस मन्दिर का नाम शकुनिका विहार जीर्णोद्धार प. पूज्य आचार्य भगवंत श्री विक्रमसरीश्वरजी श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान मन्दिर-भरुच 654 Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान-भरुच Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मा0%AP श्रीमानीया विजयसेनसूरि आदि । उन्होंने यहाँ रहकर अनेकों ग्रन्थों की रचनाएँ की, मन्दिरों की प्रतिष्ठाएँ करवायीं व धर्म उत्थान व जन कल्याण के अनेकों महत्वपूर्ण कार्य किये जो अत्यन्त प्रशंसनीय है । अन्य मन्दिर इस मन्दिर के अतिरिक्त यहाँ और मन्दिर नहीं हैं । इसी मन्दिर के भूमिगृह में भक्तामर मन्दिर है । __ कला और सौन्दर्य श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान के समय की देवनिर्मित यह प्रतिमा अतीव प्रभावशाली है । मन्दिर के भूमीगृह में नवनिर्मित भक्तामर मन्दिर में श्री आदिनाथ प्रभु की प्रतिमा अतीव सौम्य है । प्राचीन नगर होने के कारण यहाँ स्थान-स्थान पर प्राचीन कलाकृतियों के दर्शन होते हैं । मार्ग दर्शन यह स्थान बम्बई-अहमदाबाद रेल्वे व रोड़ मार्ग पर स्थित है । मन्दिर से भरुप स्टेशन व बस स्टेण्ड 172 कि. मी. की दूरी पर स्थित है, जहाँ से आटो, टेक्सी आदि के साधन है । यहाँ से लगभग बड़ौदा 70 कि. मी. झगड़ीया तीर्थ 33 कि. मी. व गन्धार तीर्थ 45 कि. मी. दूर है । सुविधाएँ 8 मन्दिर के निकट ही सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधा है। पेढ़ी 8 श्री मुनिसुव्रतस्वामी जैन देरासर पेढ़ी, श्रीमाली पोल, पोस्ट : भरुप - 392 001. जिला : भरूच, (गुज.) फोन : 02642-62586 पिढ़ी), 02642-21750 (धर्मशाला) । श्री आदिनाथ भगवान भक्तामर मन्दिर-भरुच म. सा. की पावन निश्रा में प्रारंभ हुवा जो सम्पूर्ण होकर पुनः प्रतिष्ठा वि. सं. 2045 में उनके गुरुभाई आचार्य नवीनसूरीश्वरजी व उनके शिष्यरत्न प. पू आचार्य भगवंत श्री राजयशसूरीश्वरजी की पावन निश्रा में हर्षोल्लास पूर्वक सुसम्पन्न हुई । प्रतिमा वही प्राचीन मूलनायक रुप में विराजमान है । विशिष्टता भगवान मुनिसुव्रतस्वामी ने अश्व को यहीं पर प्रतिबोध दिया था । गणघर गौतमस्वामीजी ने अष्टापद तीर्थ पर रचित जगचिन्तामणि स्तोत्र में भरुप में विराजित भगवान मुनिसुव्रत स्वामी की भी स्तवना की है । अनेकों प्रकाण्ड आचार्यों के यहाँ पदार्पण हुए, जैसे शासन सम्राट आचार्य वज्रभूति, बपुट्टाचार्य, कालकाचार्य, मल्लवादीसूरि, पादलिप्तसूरि, 656 Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री झगड़िया तीर्थ तीर्थाधिराज ॐ श्री आदिनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ । लगभग 104 सें. मी. । तीर्थ स्थल झगड़िया गाँव के मध्य । प्राचीनता प्रतिमाओं पर अंकित लेख इस तीर्थ की प्राचीनता के प्रमाण हैं । विक्रम संवत् 1921 में इस गाँव के निकट के खेतों में से कुछ प्राचीन प्रतिमाएँ निकली थीं । जिनमें श्री चक्रेश्वरी देवी की प्रतिमा पर अंकित लेख के अनुसार ये प्रतिमाएँ विक्रम सं. 1200 माघ शुक्ला 10 के दिन मंत्री पृथ्वीपाल द्वारा प्रतिष्ठित हुई थी । तत्कालीन नरेश श्री गंभीरसिंहजी ने मन्दिर बनवाकर वि. सं. 1928 माघ कृष्ण 5 के दिन इन प्रतिमाओं को दुबारा प्रतिष्ठित करवाया। तत्पश्चात् वीर निर्वाण सं. 2428 विक्रम संवत् 1959 में यहाँ के श्री संघ ने राणा गंभीर सिंहजी के पुत्र राणा छत्र सिंहजी से मन्दिर का कार्यभार संभालकर पुनः जीर्णोद्धार करवाया। विशिष्टता भूगर्भ से प्राप्त यहाँ की प्राचीन प्रतिमाओं को पाने के लिए बड़ौदा और भडौच नगरों के जैन श्रावक राणा के पास गये । तब राणा ने कहा कि वर्तमान में मेरे नगर में एक भी जैन श्रावक का घर नहीं है और न कोई मन्दिर है । फिर भी इन प्रतिमाओं को आप लोगों के सुपुर्द करना मेरे अथवा राज्य के लिए कलंक की बात होगी । मैं स्वयं यहाँ मन्दिर का कलात्मक दृश्य-झगड़िया 657 Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिर बनवाऊंगा, और आप लोगों से आग्रह है कि यहाँ आकर बसें । आप लोगों को व्यापार आदि की सारी सुविधाएँ दी जायेंगी । इस प्रकार राणा ने मन्दिर का निर्माण करवाकर 30 वर्ष तक संभाला और बाद में श्री संघ को सुपुर्द किया । इस प्रकार के वृत्तान्त सुनने को कम मिलते हैं । प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला 4 को ध्वजा चढ़ाई जाती है व कार्तिक पूर्णीमा एवं चैत्री पूर्णीमा को मेले का आयोजन होता है । अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में इसके अतिरिक्त यहाँ एक और मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य इस मन्दिर के शिखर व बाहर के तोरण द्वार की कला दर्शनीय है । मार्ग दर्शन मन्दिर से 3/4 कि. मी. दूर पर झगड़िया रेल्वे स्टेशन अंकलेश्वर-राजपिपली रेल मार्ग में है । मन्दिर तक पक्की सड़क है। यहाँ से लगभग भरुच 33 कि. मी. व सुरत 90 कि. मी. दूर है । सुविधाएँ मन्दिर के निकट ही धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की भी सुविधाएँ है । पेढी श्री जैन रिखबदेवजी महाराज की पेढ़ी, पोस्ट : झगड़िया - 393 110. जिला : भरूच, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02645-20883. श्रुत देवी माता श्री सरस्वती-झगड़िया KHAMBHAT. AMBHATS Undel Kathana VADODA Shakerpoi? Dhuwaran Garasad Porto Mand Siloam Saroda Katanya Gadased Kayavai Vadu PAAAARTH SETTE Makarpuralo VAD a Degam 64 Gajerao Masar Road JAMBUSAP MAMUT KARJAN Zasio Miyagam Sa AMOD Charanda Sarbhamo Kerwada Palej Fankan. Nareshwar 65 VAGRA MOD) PA SamniMot Karol Pahe Bhadkodara Devia Malsar ERS ETTPLI BHATI Bhalado Gandha Trelsa Chavaj Kabirvad BHARUCH / Shukletarth 42 V BHARUN 19 1671 BR Dahej 66 - ANKLESHWARZ ZAGADA h acoli 658 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदीश्वर भगवान-झगड़िया Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री दर्भावती तीर्थ तीर्थाधिराज श्री लोढण पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 1.2 मीटर ( श्वे. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल प्राचीनता डबोई नगर के एक मुहल्ले में । प्रभु प्रतिमा की कलाकृति व उपलब्ध इतिहास आदि से प्रतीत होता है कि यह तीर्थ अति ही प्राचीन है । कहा जाता है कि यह वही प्रतिमा है जो कि राजा वीर धवल के मंत्री श्री तेजपाल ने यहाँ के एक विशाल दुर्ग का जीर्णोद्धार कराते वक्त एक भव्य जिनालय का भी निर्माण कर उसमें प्रतिष्ठित किया था । यह भी कहा जाता है कि यह प्रतिमा दीर्घ समय तक जलगर्भ में रही जो अकस्मात् राजा सागरदत्त सार्थवाह के समय जलगर्भ से पुनः प्रकट हुई । इसका चमत्कार और प्रभाव देखकर राजा सागरदत्त ने भव्य जिनालय का निर्माण कराकर इस चमत्कारिक प्रतिमा 660 श्री शामला पार्श्वनाथ भगवान-दर्भावती श्री लोढण पार्श्वप्रभु मन्दिर दर्भावती को पुनः प्रतिष्ठित कराया। इस तीर्थ का अन्तिम जीर्णोद्धार विक्रम संवत् 1990 में हुआ । विशिष्टता प्रभु प्रार्श्व की बालू की बनी यह भव्य प्रतिमा दीर्घ समय तक जलगर्भ में रहने पर भी, बालू का एक कण भी प्रतिमा से अलग नहीं हुआ व जलगर्भ से प्रकट होने पर लोढ़े जैसी प्रतीत होने लगी । जिससे भक्त गण प्रभु को लोढ़ण पार्श्वनाथ कहने लगे। कहा जाता है कि किसी समय यह एक विशाल जैन नगरी थी । मंत्री श्री पैथडशाह द्वारा विक्रम संवत् 1320 में यहाँ श्री चन्द्रप्रभ भगवान का एक भव्य मन्दिर बनवाने का उल्लेख मिलता है । 'स्याद्वाद रत्नाकर' सुप्रसिद्ध जैन न्याय ग्रंथ के रचयिता श्री वादीदेवसूरिजी के गुरु श्री मुनिचन्द्रसूरीश्वरजी की यह जन्म भूमि है । तार्किक शिरोमणि उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज का स्वर्गवास विक्रम संवत् 1743 में यहीं हुआ । अन्य मन्दिर इसके निकट ही एक प्राचीन शामला पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर है व उसके अतिरिक्त 3 और मन्दिर हैं । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ witlLULIYANIMAL Bus : પિઅલબનના. મા મનોભાલે કરાવી 24 श्री लोढण पार्श्वनाथ भगवान-दर्भावती कला और सौन्दर्य प्रभु प्रतिमा की कला धर्मशाला है, जहाँ भोजनशाला की भी सुविधा हैं । अत्यन्त अद्भुत व निराले ढंग की है । पेढी शेठ देवचन्द धर्मचन्द नी पेढ़ी, मार्ग दर्शन तीर्थ स्थल से निकट का रेल्वे श्रीमाली वागा, शामलाजी नी शेरी, स्टेशन डबोई मन्दिर से लगभग 2 कि. मी. व बस पोस्ट : डबोई - 391 110. जिला : बड़ौदा (गुज.), स्टेण्ड से 12 कि. मी. दूर है । इन जगहों से टेक्सी, फोन : 02663-52150 व 52218 पी.पी. आटो की सुविधाएँ है । बड़ौदा से डबोई लगभग 33 कि. मी. दूर है । मन्दिर तक पक्की सड़क है । सुविधाएँ ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त 661 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की गयी है जिनमें कुछ भाग्यशालियों ने अपनी शिक्षा पूर्ण कर दीक्षा भी अंगीकार की है । वर्तमान काल में इस प्रकार के धर्मप्रचार कार्य अत्यन्त सराहनीय हैं । प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला 7 को ध्वजा चढ़ाई जाती है । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त अन्य कोई मन्दिर नहीं है । कला और सौन्दर्य यहाँ का नव निर्मित मन्दिर बहुत ही कलात्मक और सुन्दर है । प्रभु प्रतिमा भव्य, शान्त और चमत्कारिक है । मार्ग दर्शन 8 तीर्थ स्थल से बोडेली रेल्वे स्टेशन सिर्फ लगभग 100 मीटर की दूरी पर है । जहाँ से टेक्सी, आटो आदि की सुविधाएँ उपलब्ध है । यह स्थान खण्डवा-बड़ौदा मार्ग पर स्थित है । आखिर तक पक्की सड़क हे । यहाँ से लगभग डबोई 40 कि. मी. बड़ौदा 62 कि. मी. व लक्षमणी तीर्थ 92 कि. मी दूरी पर है । एँ यहाँ पर ठहरने के लिए धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की भी सुविधाएँ उपलब्ध है । पेढी श्री परमार क्षत्रिय जैन धर्म प्रचारक सभा पोस्ट : बोड़ेली - 391 135. जिला : बडौदा, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02665-22067. मन्दिर का मनमोहक दृश्य-बोड़ेली y cant श्री बोड़ेली तीर्थ Sarsa ANG तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, 104 सें. मी. (41 इंच) (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल बोड़ेली नगर के मध्यस्थ । प्राचीनता इस मन्दिर की प्रतिष्ठापना वि. सं. 2011 वैशाख शुक्ला 9 के शुभ दिन पंजाबकेशरी श्रीमद् विजयवल्लभसूरिजी के पट्टधर आचार्य विजय समुद्रसूरीश्वरजी के हस्ते सम्पन्न हुई । विशिष्टता यहाँ पर हजारों परमार क्षत्रियों को पुनः जैन धर्म अंगीकार कराने के लिए यहाँ की पेढ़ी द्वारा धर्म प्रचार का कार्य सुचारु रूप से चल रहा है। छोटे छोटे गाँवों में मन्दिर और पाठशालाओं की स्थापना DAR Sevalias Timbat sampa 32. THASRA Yo Tuwa Dakort Tulsigan GODHRA Road Qhunadara Vejalpurd GHOGHAMBA Desar UMAETH) Delolvasda DEVGADHI BASA Hey SKALOLSA Gollain Champane Terkheda Malav SAVLI Bhadara Sgarlaya HALO Kanpur Tunday Warod beavagad Damankuwe o kadi Sankhedá A s oreya Shivrajper Chhani Nimet Away JAMBUGHODA Bodelid * VADODARA PAVI PARA Thuvavi rakarpuralo VADODARA SANKHEDA Kosindra Mandala DABHOI 68 Road 39 Dhadhar Buletha NASVADI JAN 1 Bujetha Kayavarohan 169 Koyali W WAGHODIA JETPUR ad 662 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीर भगवान-बोड़ेली Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पारोली तीर्थ तीर्थाधिराज श्री नेमिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल पारोली गाँव के मध्य । प्राचीनता प्रभु प्रतिमा का इतिहास अति प्राचीन माना जाता है । कहा जाता है कि मुगल बादशाह मोहम्मद बेगड़ा के समय (वि. सं. 1540 में) यह प्रतिमा धनेश्वर गाँव में थी । भक्तजनों ने आक्रमण के भय से प्रतिमाजी को नदी में सरक्षित किया था । वर्षों बाद छाणी गाँव के निवासी श्री नाथा भाई के कुटुम्वीजनों को स्वप्न में जिन प्रतिमा नदी में रहने का दैविक संकेत मिला । तदनुसार शोध करने पर प्रभु प्रतिमा प्रकट हुई । वेजलपुर व अन्य गाँवों के निवासियों ने प्रतिमाजी को अपने अपने गाँव ले जाने का आग्रह किया, तय हुआ कि प्रतिमाजी बैलगाड़ी में विराजित की जाय व बैल गाड़ी जहाँ पर जाकर ठहरे वहीं मन्दिर बनवाया जाय । बैल गाड़ी पर प्रतिमाजी विराजमान की गई व जन समूह के साथ रवाना हुई। गाड़ी पारोली गाँव में इसी जगह आकर रुकी, जहाँ श्री संघ द्वारा भव्य मन्दिर का निर्माण करवाकर प्रतिमाजी विधिपूर्वक प्रतिष्ठित करवाई गई। विशिष्टता यह अति चमत्कारिक स्थल है । अनेकों जैनेतर भी दर्शनार्थ प्रायः आते रहते हैं । प्रभु को ‘साचादेव श्री नेमिनाथ' कहते है । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर नही है । कला और सौन्दर्य प्रकट प्रभावी श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा की कला अति शोभनीय हैं । मार्ग दर्शन यह तीर्थ स्थल वेजलपुर (गोधरा) से सिर्फ 16 कि. मी. दूर है, जहाँ से बस व टेक्सी ys स्वागतयROppoOORAPE मन्दिर का भव्य दृश्य-पारोली 664 Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नेमिनाथ भगवान-पारोली जिला : पंचमहल, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02676-34539 व 34510 पी.पी. की सुविधा है । यहाँ से लगभग गोधरा 30 कि. मी, बड़ौदा 60 कि. मी. व बोड़ेली 50 कि. मी. दूर है । मन्दिर तक कार व बस जा सकती है । सुविधाएँ ठहरने के लिए धर्मशाला है, जहाँ पर भोजनशाला सहित सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं । पेढ़ी ॐ श्री परोली जैन तीर्थ कमेटी, पोस्ट : परोली - 389 365. तालुका : देवगढ़ बारिया, 665 Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्य प्रदेश 668 670 672 674 676 678 681 684 686 688 690 692 694 696 698 700 1. लक्ष्मणी 2. तालनपुर 3. बावनगजाजी 4. पावागिरी 5. सिद्धवरकूट 6. माण्डवगढ़ 7. धारानगरी 8. मोहनखेड़ा 9. भोपावर 10. अमीझरा 11. इंगलपथ 12. बिबडौद 13. सेमलिया 14. परासली 15. दशपुर 16. वही पार्श्वनाथ 17. भलवाड़ा पार्श्वनाथ 18. कुंकुटेश्वर पार्श्वनाथ 19. अवन्ती पार्श्वनाथ 20. उन्हेल 21. अलौकिक पार्श्वनाथ 22. बदनावर 23. मक्षी 24. विदिशा 25. सोनागिर 26. थुवौनजी 27. अहारी 28. पपोराजी 29. नैनागिरि 30. द्रोणगिरि 31. खजुराहो 32. कुण्डलपुर 702 704 Ringnod Tal 706 ज Piploda Jaora 708 710 712 RATLAM Sailana 714 717 Nami/13 ogarh Nagda Khachrod 720 RATLAM 722 724 726 Runija 728 730 Badnawar Barnagar Petlawad 731 734 Raipura Rajod 79 666 Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jawad gaon NIMACH Manasa NIMACH an 18 Malhargarh Narayangarh Pipalia MANDSAUR 12 garh 16 Berasia Gunaga lar o 79 Halali MANDSAUR 15 Digau Kalan habra BHOPAL JHABUA Islamnagar Nanpur Kund Alirajpur Rampura Gandhi Sagar Bori Jobat Bujo Sitamau Rama M Sanchi Kukshi Rahimgarh RAISEN JHABUA Rajgarh Kanas Garot Bagh BARWANI Patio Singhana 8 Narwar Palsud 17 VIDISHA Bhanpura Bolia Suwasra Bawangaja Silawad Nawab Basq 24 10 Tanda DHAR Bandheri 23 Det RA Sardarpur 18 Y Chikalda Narmada DHAR Gandhwani Manawar 53 Dharmapuri Anjad Rajpur Julwania BARWANI MANGASER RATLAM ACHAR RAJASTHAN Mandu ASHAJAPUR DEWAS INDORE KHARGON KHANOWA RAJGARH MORENA BHOPAL MAHARASHTRA Khalghat SHIVPURI Thikri GWALIOR JAIN PILGRIM CENTRES STATE CAPITAL DISTRICT HEADQUARTERS DISTRICT BOUNDARIES BHILSA SAGAR DAMOH RAISEN HOSHANGABAD BETUL DATIA Dikthan Bagri Segaon KHARGON 59 THANGARH CHHATRAPUR Ghat Bilod Betma Gujri UTTAR PRADESH NARSINGHPUR CHHINDWARA PANNA SATNA JABALPUR ANDHRA PRADESH For Route Maps of other centres refer Page No. 710, 721, 723, 727, 729, and 733. Nagda BAL AGHAT Hatod INDORE 59 Manpur Khurda REMA MANDLA Kasrawad Maheshwar 40 Mandleshwar Dival SIDHI SHAHOOL AMEKAPUR JAGDALPUR BIHAR Mhow BILASPUR RAIGARH ORISSA Mangya INDORE Barwah Sanawad WEST NIMAR Bhikangaon Dhangaon 48 667 Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री लक्ष्मणी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री पद्मप्रभ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 1.2 मी. (4 फुट) (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल अलीराजपुर गाँव से 8.0 कि. मी. दूर जंगल में, मुख्य मार्ग पर । प्राचीनता 8 भूगर्भ से प्राप्त मन्दिर व अनेकों प्रतिमाओं से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह तीर्थ लगभग 2000 वर्ष प्राचीन होगा । विक्रम की 16 वीं शताब्दी तक यहाँ की जाहोजलाली अच्छी थी, ऐसा शास्त्रों से ज्ञात होता है। 15वीं शताब्दी में श्री जयानन्दमुनिजी द्वारा रचित प्रवास गीति में उल्लेख मिलता है कि विक्रम संवत् 1427 में यहाँ लगभग दो हजार श्रावकों के घर व 101 शिखरबन्द मन्दिर थे। शुक्र सागर (सुख सागर) ग्रन्थ के अनुसार माण्डवगढ़ के मन्त्री झांडण शाह द्वारा निकाला गया शत्रुजय यात्रा संघ यहाँ दर्शनार्थ ठहरा था । इस तीर्थ का अंतिम जीर्णोद्धार विक्रम संवत् 1994 में हुवा । विशिष्टता इस त्रिशिखरीय भव्य जिनालय का सभा मण्डप विशाल है । मन्दिर के भीतरी भाग में नये पाषाणों में निर्मित श्रीपाल जीवनी के 137 कलापूर्ण, रंग-बिरंगे पट दर्शनीय हैं । यहाँ पर चैत्र व कार्तिक पूर्णिमा को मेले का आयोजन होता है । अन्य मन्दिर 8 मन्दिर के निकट ही आचार्य प्रवर श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज का गुरु मन्दिर है। कला और सौन्दर्य भूगर्भ से प्राप्त अनेकों मूर्तियों की कला और सुन्दरता दर्शनीय है । अनेकों स्तम्भ अपने काल में मानों कीर्तिस्तम्भ रहे हों । मार्ग दर्शन 8 तीर्थ स्थल से निकट के रेल्वे स्टेशन दाहोद लगभग 80 कि. मी. बड़ौदा 153 कि. मी. छोटा उदयपुर 56 कि. मी. व इन्दौर 225 कि. मी. दूर है । निकट का बड़ा गाँव अलीराजपुर है जो खण्डवा-बड़ौदा मार्ग में 8 कि. मी. दूर है । जहाँ पर आटो व टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है । मन्दिर तक सुविधाएँ मन्दिर के पास ही ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त 2 धर्मशालाएँ है, जहाँ पर भोजनशाला की सुविधा भी उपलब्ध हैं । पेढ़ी श्री पद्मप्रभ कल्याणजी श्वेताम्बर जैन चेरिटेबल ट्रस्ट, लक्षमणी तीर्थ, पोस्ट : अलीराजपुर - 457 887. जिला : झाबुआ, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07394-33874 व 33545. कामागासरसतीश लक्ष्मणतिर्थला LCHDI मन्दिर का बाह्य दृश्य-लक्ष्मणी 668 Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HALBIDITIES श्री पद्मप्रभ भगवान-लक्ष्मणी 669 Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तालनपुर तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदिनाथ भगवान, फिरोजा वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग (107 सें. मी.) (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल 8 नगर कुक्षी के निकट । प्राचीनता ॐ इस स्थान के प्राचीन नाम तारापुर, तारणपुर तथा तुंगियापत्तन आदि थे । श्वेताम्बर मन्दिर की एक प्रतिमा पर विक्रम सं. 612 चैत्र शुक्ल 5 सोमवार को आचार्य जगचन्द्र सूरीश्वरजी के हाथों धन कुबेर शाहचन्द्र द्वारा प्रतिमा प्रतिष्ठित कराने का उल्लेख मिलता है । इस सम्बन्ध में यह भी कहा जाता है कि विक्रम सं. 1898 में एक किसान को खेत में भूगर्भ से प्राचीन प्रतिमाएँ प्राप्त हुई जिन्हें श्वेताम्बर और दिगम्बर बंधुगण द्वारा अलग-अलग सम्बन्धित नवनिर्मित मन्दिरों में प्रतिष्ठित किया गया । निकट ही नगर कुक्षी में श्री पार्श्वनाथ भगवान का श्वेताम्बर मन्दिर है जहाँ की प्रतिमाजी पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार शासन, प्रभावक आचार्य श्री बप्पभट्टसूरिजी ने विक्रम संवत् 1022 में गोड़ी पार्श्व प्रभु की प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया था । यह प्रतिमा भी यहाँ (तालनपुर) एक बावड़ी में से विक्रम संवत् 1928 में चमत्कारिक घटनाओं के साथ प्रकट हुई थी। इन सब से यह सिद्ध होता है कि यह क्षेत्र अति प्राचीन है । विशिष्टता यहाँ की प्रतिमाएँ जिस पाषाण की बनी हैं वैसे रंग की मजबूत प्रतिमाएँ अन्यत्र दुर्लभ हैं। माण्डवगढ़ के मंत्री पैथड़ शाह द्वारा 13वीं सदी में यहाँ मन्दिर निर्माण करवाने का वर्णन मिलता है । 16वीं सदी में परमदेवसूरि जी ने यहाँ पर चतुर्मास कर के श्री महावीर जिन श्राद्धकुलक नामक ग्रंथ लिखा था । इससे यह पता चलता है कि यहाँ शताब्दियों पूर्व शताब्दियों तक जैन नगरी रही होगी । यहाँ अनेकों प्राचीन बावड़ियाँ हैं और विशाल तालाब हैं । __ कुक्षी नगर में विराजित प्राचीन प्रभावशाली गोड़ी पार्श्वनाथ भगवान की नीलवर्ण प्रतिमा के चक्षु व तिलक प्रतिमा के अन्दर ही जुड़े हुए हैं जो उस की विशेषता है । उस प्रतिमा की पुनः प्रतिष्ठापना श्रीमद् आचार्य श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी के हार्थों, विक्रम सं. 1950 में हुई थी । चैत्री पूर्णीमा व कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ मेला लगता है जब हजारों भक्तगण इकट्ठे होकर प्रभु भक्ति का लाभ लेते हैं । अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में इसके अतिरिक्त निकट ही एक दिगम्बर मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य यह एक प्राचीन व ऐतिहासिक स्थान होने के कारण यहाँ पर अनेकों सुन्दर कलात्मक अवशेष मन्दिरों में व गाँव के आस पास जंगल में नजर आते है । मार्ग दर्शन 8 तीर्थ स्थल से निकट का रेल्वे स्टेशन महु लगभग 161 कि. मी. की दूरी पर है । नजदीक का बड़ा गाँव कुक्षी जो खण्डवा-बड़ौदा मार्ग पर 5 कि. मी. की दूरी पर हैं,जहाँ से बस, टेक्सी की सुविधा है। मन्दिर तक पक्की सड़क है । यहाँ से बड़ौदा लगभग 200 कि. मी. इन्दौर 175 कि. मी, लक्षमणी 40 कि. मी. व मोहनखेड़ा 40 कि. मी. दूर मन्दिर का बाह्य दृश्य-तालनपुर 670 Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथ प्रभु-तालनपुर सुविधाएँ मन्दिर के निकट ही श्वेताम्बर व पोस्ट : तालनपुर - 454 331. तालुका : कुक्षी, दिगम्बर धर्मशालाएँ है, एक राजराजेन्द्र जयन्तसेन जिला : धार, प्रान्त : मध्यप्रेदश, विहार नाम की विशाल सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, फोन : 07297-33306. जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधा उपलब्ध हैं । 2. श्री तालनपुर दिगम्बर मन्दिर पेढ़ी, पेढ़ी 1. श्री पार्श्वनाथ राजेन्द्र जैन श्वेताम्बर पेटी पोस्ट : तालनपुर - 454331. (मध्यप्रेदश) । 671 Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री बावनगजाजी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदिनाथ भगवान, भूरा वर्ण, खड्गासन मुद्रा में सुन्दर, भव्य 25.6 मीटर (84 फुट) उत्तंग (दि. मन्दिर) । तीर्थ स्थल जंगल में सुरम्य सतपुड़ा पर्वत की उच्चतम चाटी चूलगिरि पर । प्राचीनता पहाड़ पर अंकित शिला-लेखों और प्रतिमाओं की प्राचीन कलाकृतियों से इस तीर्थ की प्राचीनता अपने आप सिद्ध हो जाती है। आदिनाथ प्रभु की प्रतिमा पर कोई लेख नहीं है । कलाकार, प्रतिष्ठाकारक व प्रतिष्ठाचार्य ने ऐसी विश्व विख्यात मूर्ति का निर्माण करके भी अपना नाम कहीं भी अंकित नहीं किया, यह सचमुच ही उदारता की पराकाष्ठा है। कहा जाता है कि लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व इस प्रतिमा का निर्माण होकर प्रतिष्ठा हुई होगी । विशिष्टता श्री आदिनाथ भगवान की कायोत्सर्ग मुद्रा में चूलगिरि के मध्य एक ही पाषाण में उत्कीर्ण इतनी भव्य रमणीक और आकर्षक प्रतिमा भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व में शायद ही कोई हो । भगवान के मुख पर जो वीतरागता और शान्ति के भाव अंकित हैं उन्हें देखकर दर्शक स्वतः अभिभूत हो जाता है । इस प्रतिमा का शिल्प विधान ही अनूठा है । अंग प्रत्यंग सुडौल हैं । मुख पर विराग, करुणा और हास्य की संतुलित छबि अंकित है । ऐसा लगता है कि कलाकार ने प्रभु की ठीक 84 फुट ऊँची प्रतिमा निर्माणित कर प्रभु से प्रार्थना की हो कि प्रभु भक्तों को 84 लाख योनियों से मुक्ति दिलावें । पुराने जमाने म इस प्रदेश में एक हाथ को ही कच्चा गज मानते थे, प्रतिमा लगभग 52 हाथ रहने के कारण बावनगजाजी कहने लगे होंगे । शास्त्रों में उल्लेखानुसार लंकापति रावण के अनुज कुम्भकर्ण व पुत्र इन्द्रजीत अनेकों मुनियों के साथ यहाँ पर मुक्ति को सिधारे थे । इनकी प्राचीन चरण पादुकाएँ यहाँ पर दर्शनीय है । __ यहाँ महामस्तकाभिषेक 12 वर्षों में एक बार होता है तब भारत के कोने-कोने से हजारों यात्रीगण आकर प्रभु भक्ति में भाग लेते है । अन्य मन्दिर इस पर्वत पर 10 और प्राचीन मन्दिर हैं जिनमें अनेकों प्राचीन प्रतिमाएँ है । इनमें से एक प्रतिमा भगवान शान्तिनाथ की 4.0 मीटर (13 फुट) खड्गासन में अति प्राचीन है । ऐसा कहा जाता है कि यह प्रतिमा यहीं पर जमीन से निकली थी। तलहटी में 21 मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य 8 यहाँ की प्राचीनतम मूर्ति कला दर्शनीय है । पहाड़ पर घने जंगल में कलाकारों ने कितनी लगन, श्रद्धा से योजना बनाकर इसका निर्माण किया होगा, इसका अन्दाजा लगाना सरल नहीं। इस पहाड़ पर से, सामने ही नर्मदा नदी कल-कल बहती दिखायी देती है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन महु लगभग 130 कि. मी. खण्ड़वा 185 कि. मी., इन्दौर 160 कि. मी. व बड़ौदा 220 कि. मी. दूर है। जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधाएं उपलब्ध है । यहाँ से निकट का गाँव बड़वानी 10 कि. मी. की दूरी पर है। यह खण्डवा-बड़ौदा मार्ग पर स्थित है । बड़वानी से ही पहाड़ की चढ़ाई प्रारंभ हो जाती है, जहाँ से 8 कि. मी. की दूरी पर चूलगिरि की तलहटी है । वहाँ तक पक्की सड़क है । तलहटी से 1 कि. मी. की दूरी पर तीर्थ स्थल है जहाँ 800 सीढ़ियाँ बनी हुई है। यात्रियों को पैदल ही जाना पड़ता है, लेकिन वयोवृद्ध यात्रियों के लिए डोली का साधन है । सविधाएँ बडवानी से 8 कि. मी की दूरी पर स्थित पहाड़ पर चूलगिरि की तलहटी में ठहरने के लिए 5 सर्वसुविधायुक्त गेस्ट हाऊस, 4 धर्मशालाएँ व हॉल है, जहाँ पर चाय , नास्टा व भोजनशाला की भी सुविधाएँ उपलब्ध हैं । पेढ़ी8 श्री प्रबन्धक कमेटी, श्री चुलगिरि दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र ट्रस्ट, (बावनगजाजी) । पोस्ट : बड़वानी - 451 551. जिला : बड़वानी, प्रान्त : मध्यप्रेदश, फोन : 07290-22084 व 22425. 672 Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदीश्वर भगवान-बावनगजाजी Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पावागिरी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री शान्तिनाथ भगवान, खड्गासन मुद्रा, लगभग 12V2 फीट (दि. मन्दिर)। तीर्थ स्थल 8 ऊन गाँव के निकट चिरूढ़ नदी के किनारे एक छोटी पहाड़ी पर । प्राचीनता दिगम्बर मान्यतानुसार निर्वाणकाण्ड में वर्णित पावागिरि सिद्धक्षेत्र यही है, जहाँ से चन्द्र प्रभु भगवान के काल में, स्वर्णभद्र आदि मुनिगण चेलना नदी के तटपर बसे पावागिरि, जिसे आज ऊन कहते हैं, पर मोक्ष जाने का उल्लेख है । ऊन के समीप की चिरूढ़ नदी ही चेलना होगी । यहाँ पर जगह-जगह भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन जिन प्रतिमाओं आदि से भी यहाँ की प्राचीनता सिद्ध होती है। यह मन्दिर बारहवीं सदी में राजा बल्लाल द्वारा निर्मित हुवा बताया जाता है । इस मन्दिर के मूलनायक श्री शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा पर वि. सं. 1263 ज्येष्ठ वदी 13 आचार्य श्री यश कीर्ति प्रणमति उत्कीर्ण है । मन्दिर उससे भी प्राचीन है । कहा जाता है यहाँ के राजा बल्लाल द्वारा निर्मित निन्वानवें मन्दिरों में से यह एक मन्दिर है । श्री शान्तिनाथ भगवान-पावागिरि ऊन श्री शान्तिनाथ जिनालय-पावागिरि ऊन 674 Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस मन्दिर का प्रथम जीर्णोद्धार सं. 1935-40 में व पुनः जीर्णोद्धार 1994 में होने का उल्लेख है । यहीं धर्मशाला की नींव खोदती वक्त, श्री संभवनाथ भगवान की प्रतिमा व चरणपादुका प्राप्त हुई थी । प्रतिमा पर वि. सं. 1218 का लेख उत्कीर्ण है । यहाँ के पुजारी को स्वप्न में हुवे दैविक संकेत के आधार पर, यहीं पहाड़ी पर जमीन खोदने पर श्री महावीर भगवान की सुन्दर प्रतिमा प्राप्त हुई, जिसपर निम्न प्रकार का लेख उत्कीर्ण है । "आचार्य श्री प्रभाचन्द्रप्रणमति नित्यं । संवत् 1252 माघ सुदी 5 रवि चित्र कुन्टान्ववै साघु बाल्हु भार्या शाल्ह तथा मन्दोदरी सुत गोल्ह रतन मालु की प्रणमति नित्यं ।" उक्त उल्लेखों से यहाँ की प्राचीनताः स्वतः सिद्ध होती है । विशिष्टता दिगम्बर मान्यतानुसार भगवान श्री चन्द्रप्रभु के काल में, स्वर्णभद्र आदि मुनिगण यहीं पर मोक्ष सिधारे, अतः निर्वाणकाण्ड में वर्णित पावागिरि सिद्ध क्षेत्र यही माना जाने के कारण यहाँ की महान विशेषता है । यहाँ के प्राचीन मन्दिरों के भग्नावशेष व भूगर्भ से प्राप्त होती आ रही जिन प्रतिमाएँ, यहाँ के पूर्व काल में रही प्रसिद्ध व जाहोजलाली की याद दिलाते हैं । यहाँ के प्राचीन अवशेषों की कला भी, आबू - देलवाड़ा व खजुराहों के मन्दिरों की शिल्प कला के मुकाबले की हैं। चमत्कारिक घटना के साथ प्रकटित प्रभु महावीर की प्रतिमा अतिशयकारी है, अतः यह सिद्धक्षेत्र, अतिशय क्षेत्र पुरातनक्षेत्र एवं कलाक्षेत्र भी हैं । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त इसी पहाड़ी पर पाँच और मन्दिर व धर्मशाला के प्रांगण में एक मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य यहाँ पर प्राचीन मन्दिरों व प्रतिमाओं की कला अतीव दर्शनीय है जो आबू देलवाड़ा व खजुराहो के मन्दिरों की याद दिलाती हैं । मार्ग दर्शन यह क्षेत्र खंडवा-बड़ौदा राज्य मार्ग 26 पर स्थित है । यहाँ से खंडवा 103 कि. मी. इन्दौर 160 कि. मी. तालनपुर 110 कि. मी. सिद्धवरकूट 112 कि. मी. व बावनगजाजी 78 कि. मी. दूर है । सभी जगहों पर सवारी का साधन है । 1000 DADDY श्री महावीर भगवान पावागिरि ऊन बस स्टेण्ड के निकट ही धर्मशाला है । मन्दिर तक कार व बस जा सकती है । हवाई अड्डा इन्दौर है । सुविधाएँ ठहरने हेतु सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला हैं, जहाँ भोजनशाला की भी सुविधा उपलब्ध हैं । पेढ़ी श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र पावागिरि ऊन, पोस्ट : ऊन - 451440. जिला खरगौन, प्रान्त मध्य प्रदेश, फोन : 07282-61328. 675 Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सिद्धवरकूट तीर्थ विक्रम संवत् 1545 में श्री सोमसेन स्वामी जी द्वारा प्रतिष्ठापित की गयी है । इस मन्दिर का पुनः जीर्णोद्धार विक्रम संवत् 1951 में हुआ था । यहाँ पर तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, श्याम वार्षिक मेला फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी से पूर्णिमा तक वर्ण,कायोत्सर्ग मुद्रा में लगभग 122 सें. मी. (4 फुट) लगता है । पूर्णिमा के दिन मंडल विधान की समाप्ति, (दि. मन्दिर)। विमान जुलूस एवं कलशाभिषेक होते हैं। तीर्थ स्थल नर्मदा नदी के किनारे, ओंकारेश्वर विशिष्टता 8 यहाँ पर श्री सनत कुमार एवं (मान्धाता) गाँव के निकट कावेरी नदी के तट पर । मंधवा दो चक्रवर्ती तथा वत्सराज आदि 10 कामदेव प्राचीनता जैन शास्त्रों के अनुसार यह तीर्थ अनेकों मुनियों के साथ मोक्ष को प्राप्त हुए थे, ऐसा अनेको मुनिया के साथ मोक्ष का प्राप्त हु अति प्राचीन माना जाता है । वर्तमान में भी यहाँ के निर्वाण कांड में व शास्त्रों में उल्लेख मिलता है । अन्य मन्दिरों की प्रतिमाओं पर उनकी प्राचीनता के अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त इसी लेख अंकित हैं । श्री आदीश्वर भगवान की प्रतिमा पर परकोटे में दस और मन्दिर हैं । विक्रम संवत् 11 का लेख उत्कीर्ण हैं । कला और सौन्दर्य यह क्षेत्र नर्मदा और इस मन्दिर में श्री चन्द्रप्रभ भगवान की भव्य प्रतिमा कावेरी नदी के संगम के पश्चिम दिशा में पर्वतों के मन्दिर-समूहों का दृश्य-सिद्धवरकूट 676 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीर भगवान-सिद्धवरकूट मध्य स्थित रहने के कारण अवर्णनीय छटा-युक्त है । मार्ग दर्शन तीर्थ स्थल के निकट के रेल्वे स्टेशन बड़वाह 19 कि. मी. व ओंकारेश्वर रोड़ 11 कि. मी. दूर है । खण्डवा और इन्दौर लाईन पर स्थित मोरटक्का स्टेशन को ओंकारेश्वर रोड़ भी कहते हैं । ओंकारेश्वर गाँव को मांधाता भी कहते हैं । कावेरी-नर्मदा नदी के एक तट पर ओंकारेश्वर व दूसरे तट पर यह तीर्थ स्थल है । बड़वाह से सिद्धवरकूट 18 कि. मी. दूर है, जहाँ पर टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है । यहाँ से इन्दौर 80 कि. मी. व खंडवा 78 कि. मी. दूर है। सुविधाएँ यात्रियों के ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है । सुचना पर भोजन की भी व्यवस्था हो सकती है । पेढ़ी श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र सिद्धबरकट ट्रस्ट, पोस्ट : मांधाता (ओंकारेश्वर)-450554. जिला : खंडवा, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07280-71229. Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री माण्डवगढ़ तीर्थ तीर्थाधिराज श्री सुपार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, लगभग 91.4 सें. मी. (3 फुट) (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल विंध्य पर्वत के एक उच्च शिखर पर स्थित माण्डव दुर्ग (जो आजकल 'माण्डु' के नाम से प्रसिद्ध है) में विशाल परकोटे के अन्दर । प्राचीनता वीर वंशावली के अनुसार श्री संग्राम सेानी ने मक्षी में श्री पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर की प्रतिष्ठापना करवायी । उन दिनों माण्डवगढ़ में भी श्री सुपार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर की प्रतिष्ठा करवायी थी, इससे संभवतः विक्रम संवत् 1472 में यह तीर्थ पुनः सुसंपादित हुआ है । तत्पश्चात् और भी जीर्णोद्धार हुए हैं, ऐसा प्रतीत होता है । विशिष्टता 8 वीर निर्वाण की 18 वीं से 22 वीं शताब्दियों के अन्तर्गत यहाँ अनेकों शूर-वीर जैन मन्त्री तथा श्रावक हुए । मंत्री पेथड शाह, झांझण शाह, पुंजराज, मुंजराज, उप मंत्री - मंडन, गोपाल, खजांची -संग्रामसोनी, दीवान- जीवन और मेघराज, श्रावक-जावड़ शाह, जेठा शाह इत्यादि पुण्यवानों ने अपनी चलायमान सम्पत्ति का पूर्ण सदुपयोग कर, कई मन्दिर बनवाये, अनेकानेक यात्रा संघ निकलवाये और अनेकों धार्मिक कार्य करके, जैन धर्म की असीम प्रतिष्ठा बढ़ायी थी । उन साधकों की साधना आज भी जैन धर्म के इतिहास में अमर मानी जाती है । श्री सुपार्श्वनाथ भगवान मन्दिर-माण्डवगढ़ 678 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुपार्श्वनाथ भगवान-माण्डवगढ़ 670 Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पेथइशाह द्वारा, श्रीधर्मघोषसूरिजी के आगमन के भव्य स्वागतपर, सम्पूर्ण नगरी का श्रृंगार करने का कार्य उल्लेखनीय है । उसी भाँति झांझण शाह द्वारा करोड़ों रुपये खर्च करके निकाला हुआ 'श्री शत्रुंजय यात्रा संघ' प्रशंसनीय एवं उल्लेखनीय है । उप मन्त्री मण्डन ने मण्डन शब्दान्त वाले अनेकों ग्रन्थ लिखे जो आज भी उपलब्ध हैं । श्री संग्राम सोनी ने बुद्धि सागर ग्रन्थ की रचना की और स्वर्णाक्षरों से 'आगम' लिखवाये जिससे बादशाह मुहम्मद खिलजी के राज दरबार में उन्हें भव्य रूप से सम्मानित किया गया था । श्री जावड़ शाह ने अनेकानेक धार्मिक एवं उदारता के अनुपम कार्य किये थे, जिससे प्रेरित होकर बादशाह गयासुद्दीन ने उन्हें 'श्रीमाल भूपाल' तथा लघु साली भद्र' की उपाधियाँ प्रदान की थीं। अनेक प्रमाणों के आधार पर यह भी कहा जाता है कि एक जमाने में यहाँ पर, सात सौ जिन मन्दिर व पौषधशालाएँ थीं तथा छ लाख से भी अधिक जैनों की महा नगरी आबाद थी । नवीन रूप से बसने वाले प्रत्येक जैन भाई को हर घर से एक स्वर्ण मुहर और एक ईंट दी जाती थी। स्वधर्मीय बन्धु के प्रति इस प्रकार की सहयोग भावना सराहनीय मानी जाती है। यह पावन स्थल यहाँ की पंचतीर्थी का एक मुख्य स्थल है। अन्य मन्दिर इसी परकोटे में श्री शान्तिनाथ भगवान का एक और पुरातन मन्दिर हैं। कुछ वर्ष पूर्व श्री पार्श्वनाथ भगवान के नूतन मन्दिर का व श्री शत्रुंजय, श्री सम्मेतशिखरजी व श्री जंबूद्वीप रचनात्मक मन्दिरों का निर्माण हुवा है । कला और सौन्दर्य माण्डव दुर्ग यानी माण्डु भारत में एक प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थल है जहाँ प्राचीन कला और सौन्दर्य के असंख्य अवशेष आज भी दिखायी देते हैं । मार्ग दर्शन यहाँ से निकट का रेल्वे स्टेशन इन्दौर लगभग 97 कि. मी. और बड़ा गाँव धार 33 कि. मी. व रतलाभ 127 कि. मी. की दूरी पर स्थित है । इन स्थानों से बस व टेक्सी का साधन उपलब्ध है । बस स्टेण्ड से मन्दिर 100 मीटर है । मन्दिर तक पक्की सड़क है । 680 सुविधाएँ ठहरने के लिए मन्दिर के पास सर्वसुविधायुक्त विशाल धर्मशाला है, जहाँ पर भोजनशाला सहित सारी सुविधाएँ उपलब्ध है। संघ वालों के लिए अलग से भोजन कक्ष व रसोडे की व्यवस्था है । उपाश्रय भी बने हुए है I पेढ़ी श्री जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी, माण्डवगढ़, पोस्ट : माण्डु - 454010. जिला धार, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07292-63229. Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री केशरियाजी भगवान प्राचीन प्रतिमा-धारानगरी श्री धारानगरी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण (श्वे. मन्दिर) धार शहर के मध्य महावीर मार्ग पर तीर्थ स्थल प्राचीनता प्राचीन काल की धारा नगरी आज धार शहर के नाम से विख्यात है। यह नगरी पुंवार राजाओं द्वारा विक्रम की दशवीं सदी प्रारंभ में बसाई जाने का उल्लेख है । विक्रम की ग्यारवीं सदी में राजा भोज के समय यहाँ वादिवेताल श्री शांतिसुरि व सूराचार्य जैसे प्रकाण्ड आचार्य व धनपाल जैसे प्रखर विद्वान हुए अतः इनके समय में भी कई मन्दिरों का निर्माण अवश्य हुवा होगा परन्तु उसके पूर्व के व उस सदी के मन्दिर आज विद्यमान नहीं है । हो सकता है किसी कारणवस उन प्राचीन मन्दिरों को क्षति पहुँची हो । श्री शीतलनाथ भगवान प्राचीन प्रतिमा-धारानगरी आज यहाँ विद्यमान मन्दिरों में यह श्री आदिनाथ भगवान का मन्दिर प्राचीनतम है जिसकी प्रतिष्ठा वि. सं. 1203 में आचार्य श्री क्षेमसुरिजी के हाथों हुए का उल्लेख है। हो सकता है उस समय किसी प्राचीन मन्दिर का जीर्णोद्धार होकर पुनः प्रतिष्ठा भी हुई हो । कुछ भी हो यह तीर्थ विक्रम की तेरहवीं सदी प्रारंभ का तो अवश्य है । विशिष्टता वादिवेताल जैनाचार्य श्री शांतीसुरि व सूराचार्य जैसे विद्वान आचार्य भगवंतों ने यहाँ पर पराक्रमी व संस्कार प्रिय राजा मुंज व भोज की राज्य सभा में अनेकों बार विजयी होकर जैन धर्म का गौरव बढ़ाया था । यहाँ पर हुवे धनपाल जैसे प्रखर पण्डितों से यहाँ के राजाओं की राज्य सभा अजर मानी जाती थी । धनपाल पण्डितवर्य द्वारा रचित कई ग्रंथ आज भी जैन साहित्य के अमूल्य ग्रंथों के रूप में प्रशंसनीय है । यह तीर्थ स्थल भी मालवे के पंचतीर्थी का एक मुख्य स्थल माना जाता है । 681 Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान प्राचीन प्रतिमा-धारानगरी श्री शान्तिनाथ भगवान प्राचीन प्रतिमा-धारानगरी यहाँ के मणीभद्र बाबा की प्रतिमा अत्यन्त चमत्कारिक है इस क्षेत्र में मोतीबाबजी के नाम से विख्यात है। यहाँ जैन-जैनेतर सभी धर्मावलम्बी आकर अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं । अन्य मन्दिर वर्तमान में यहाँ पर इसके अतिरिक्त 2 और मन्दिर है, व लगभग 2 कि. मी. दूरी पर नवनिर्मित श्री भक्तामर महातीर्थ अभ्युदय-धाम तीर्थ है । कला और सौन्दर्य यहाँ के मूलनायक भगवान व मन्दिर में विराजित अन्य प्राचीन प्रतिमाएँ अतीव कलात्मक, दर्शनीय व प्रभावशाली है, दर्शनमात्र से चित्त आनन्दित हो उठता है । श्री पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर में भी कुछ प्राचीन प्रतिमाएँ कलात्मक व दर्शनीय है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक के रेल्वे स्टेशन इन्दोर 65 कि. मी. मेघनगर 85 कि. मी. व रतलाम लगभग 90 कि. मी. दूर है, जहाँ पर टेक्सी व आटो की सवारी का साधन है । यहाँ से मांडवगढ़ 30 कि. मी. मोहनखेड़ा 40 कि. मी. भोपावर 35 कि. मी. व अमीझरा तीर्थ 25 कि. मी. दूर है । यहाँ का बस स्टेण्ड लगभग 1/2/2कि. मी. दूर है । गांव में टेक्सी व आटो की सवारी का साधन है । नजदीक का हवाई अड्डा इन्दोर है । सविधाएँ ठहरने के लिये वर्तमान में यहाँ से सिर्फ 2 कि. मी. दूर हाईवे पर श्री भक्तामर महातीर्थ अभ्यूदय-धाम नया तीर्थ है, जहाँ पर सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला व भोजनशाला की भी सुविधा उपलब्ध है । पेढ़ी 8 श्री आदीश्वर जैन श्वे. मन्दिर ट्रस्ट, महावीर मार्ग, बनियावाड़ी । पोस्ट : धार - 454 001. जिला : धार (म. प्रदेश), फोन : 07292-32245, 32563 घार 682 Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DOCTODa श्री आदीश्वर भगवान मूलनायक-धारानगरी Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मोहनखेड़ा तीर्थ हुई। आज यहाँ पर एक भव्य पावन तीर्थ स्थल बना हुआ है । यहाँ अनेकों यात्रियों का आना जाना लगा रहता है जिससे जंगल में मंगल-सा प्रतीत होता है । तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, श्वेत आचार्य प्रवर श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजी का समाधि वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 107 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। स्थान भी यहीं है जिनका अन्तिम संस्कार विक्रम संवत् तीर्थ स्थल राजगढ़ गाँव से लगभग डेढ़ मील 1963 के पोष शुक्ला सप्तमी को हुआ था । प्रति वर्ष की दूरी पर एकान्त में विशाल परकोटे के अन्दर । यहाँ कार्तिक पूर्णिमा, चैत्र पूर्णिमा तथा पोष शुक्ला प्राचीनता आचार्य प्रवर श्री राजेन्द्र सरीश्वरजी सप्तमी को मेले लगते हैं जिनमें हजारों भक्तगण भाग महाराज के शुभ हस्ते विक्रम संवत् 1940 के मिगशर लेकर प्रभु भक्ति का लाभ उठाते हैं । शुक्ला सप्तमी के शुभ दिन श्री मोहन खेड़ा तीर्थ की अन्य मन्दिर इसी परकोटे में मन्दिर के निकट प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी । ही आचार्य प्रवर श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज व विशिष्टता मालवे की पंचतीर्थी का यह भी व्याख्यान वाचस्पति श्री यतिन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के एक मुख्य स्थान है । आचार्य प्रवर श्री राजेन्द्र विशाल कलात्मक समाधि मन्दिर है । सूरीश्वरजी महाराज जब इस इलाके में विचरण कर कला और सौन्दर्य तीर्थ स्थल ऐसे समतल रहे थे, तब उन्होंने यहाँ के सुरम्य, सुन्दर प्राकृतिक एवं सुरम्य स्थान पर निर्मित है जिससे यहाँ के वातावरण से युक्त शांतमय स्थान को देखकर बताया था आन्तरिक एवं बाह्य दृश्य अतीव आकर्षक है । कि इस भूमि का पुण्योदय होकर यहाँ एक महान तीर्थ मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन बनेगा। उनकी अमृतमयी वाणी कालान्तर में सत्य सिद्ध मेध नगर लगभग 65 कि. मी. व इन्दौर 113 कि. मन्दिर का सुन्दर दृश्य-मोहनखेड़ा 684 Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ALPANALणण्ण्ण्ण्ण OOMARA श्री आदिनाथ भगवान-मोहनखेड़ा मी. दूर है । नजदीक का बड़ा गाँव धार 45 कि. मी. व राजगढ़ सिर्फ 3 कि. मी. दूरी पर स्थित है । इन सभी जगहों से बस व टेक्सी की सुविधाएँ उपलब्ध है। मन्दिर तक पक्की सड़क है । सुविधाएँ 88 ठहरने के लिए इसी परकोटे में सर्वसुविधायुक्त विशाल धर्मशालाएं है, जहाँ भोजनशाला व भाता की भी सुविधा है । पेढ़ी श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वेताम्बर ट्रस्ट, श्री मोहनखेड़ा जैन तीर्थ, पोस्ट : राजगढ़ - 454116. जिला : धार, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07296-32225 व 34369. 685 Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री भोपावर तीर्थ तीर्थाधिराज श्री शान्तिनाथ भगवान, श्याम वर्ण, कायोत्सर्ग मुद्रा में लगभग 3.66 मीटर (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल 8 यहाँ की मही नदी के निकट । प्राचीनता इस क्षेत्र के संबंध में एक किंवदन्ति प्रचलित है कि इसका प्राचीन नाम भोजकूटनगर था । श्री रुकमण कुमार ने, अपनी बहिन राजकुमारी रुक्मणी को लोकरंजक श्री कृष्ण के द्वारा अपहरण कर लेने पर श्री कृष्ण से यहीं पर युद्ध किया था । युद्ध में असफल हो जाने के कारण यहीं रहना निश्चित कर इस गाँव को बसाया व दर्शनार्थ एक भव्य जिनालय का निर्माण कराया था । प्रतीत होता है इस तीर्थ का उद्धार अनेकों बार हुआ होगा । वर्तमान में इस मन्दिर के अहाते में ही इसके पूर्व का मन्दिर भूगर्भ में रहने का संकेत मिलता है । श्री शान्तिनाथ भगवान की प्रतिमा अतीव प्राचीन श्री नेमिनाथ भगवान के काल की बताई जाती है । हो सकता है कालक्रम में मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाकर शिखर का भव्य दृश्य-भोपावर WN WHEELER NECOELF URNAACHAREL HDHL श्री शान्तिनाथ जिनालय भीतरी दृश्य-भोपावर 686 Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीन प्रतिमा की पुनः प्रतिष्ठापना की गई होगी । विशिष्टता यहाँ पर प्रति वर्ष पोष कृष्ण दशमी को ध्वजा चढ़ाई जाती है व मेला लगता है । इस अवसर पर हजारों यात्रीगण इकट्ठे होते है । इस इलाके के भील लोग भी हजारों की तादाद में आकर श्रद्धा व भक्ति पूर्वक प्रभु का गुणगान करते हैं। इन भील लोंगों में श्री शान्तिनाथ प्रभु, श्री कालाबाबा व खामणा देव के नाम से प्रचलित हैं । इस तीर्थ स्थल पर अनेकों प्रकार के चमत्कार प्रायः होते रहते हैं । एक समय चन्द दिनों तक नागदेव आकर प्रभु प्रतिमा से लिपट जाते थे । उस समय उपस्थित भक्त जनों की श्रद्धा व विनती पर अदृश्य हो जाया करते थे । एक अन्य अवसर पर प्रभु की प्रतिमा से लगातार अमृत रूपी अमी झरकर प्रभु के चरणों में केशरिया दूध सा प्रतीत होने लगा । उस अवसर पर उपस्थित अनेकों भक्त जनों को भगवान के इस दिव्य रूप के दर्शन का पावन लाभ मिला था । बहुत ही जल्द मन्दिर के जीर्णोद्धार की योजना है । यह भी मालवे की पंचतीर्थी का एक स्थान है । अन्य मन्दिर वर्तमान में यहाँ पर यही एक मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य मन्दिर में काँच, सिपनी व मीनाकारी आदि का काम विभिन्न कलायुक्त, अति सुन्दर प्रतीत होता है । कलाकारों ने मन्दिर में कोई जगह खाली नहीं रखी । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन इन्दौर लगभग 81 कि. मी. है । नजदीक का बड़ा गाँव धार 35 कि. मी. राजगढ़ 10 कि. मी. व सरदारपुरा 5 कि. मी. दूर है । इन स्थानों से बस व टेक्सी की सुविधाएँ है। मन्दिर तक पक्की सड़क है । सुविधाएँ ठहरने के लिए मन्दिर के निकट ही धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की भी सुविधाएँ उपलब्ध है। पेढी श्री शान्तिनाथ भगवान जैन श्वेताम्बर मन्दिर ट्रस्ट, श्री भोपावर तीर्थ, पोस्ट : भोपावर - 454 111. तालुका : सरदारपुरा, जिला : धार, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07296-66861 व 66830. 07296-32401 (राजगढ़ आफिस) । FULLuuuuuuuuuny சமாராராமா श्री शान्तिनाथ भगवान-भोपावर 6.8 Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारण भक्त जन प्रभु को अमीझरापार्श्वनाथ भगवान कहने लगे। जब कुन्दनपुर गाँव सिन्धिया नरेश के अधीनस्थ हुआ, तब नरेश ने प्रभु की चमत्कारिक घटनाओं से प्रभावित होकर इस गाँव को भी अमझरा नाम से परिवर्तित किया। प्रभु कृपा से लम्बी अवधि के पश्चात् अभी-अभी दिनांक 21-9-2000 गुरुवार सायं 6 बजे से 11 बजे तक लगातार प्रभु के नयनों से अमी वृषा हुई जिसके प्रत्यक्ष दर्शनका लाभ 7-8 हजार भाग्यशालियों ने लिया । मालवे की पंचतीर्थी का यह भी एक मुख्य स्थान है । ___ अन्य मन्दिर वर्तमान में यहाँ पर इस मन्दिर के सिवाय दूसरा कोई मन्दिर नहीं हैं । कला और सौन्दर्य प्रतिमा असीम कलात्मक एवं सौन्दर्य के विविध तथ्यों से ओतप्रोत हैं । मार्ग दर्शन यहाँ से निकट का रेल्वे स्टेशन इन्दौर लगभग 88 कि. मी. की दूरी पर स्थित है । इसके निकट का गाँव धार 32 कि. मी. व मोहनखेड़ा तीर्थ 25 कि. मी. दूर है । इन स्थानों से बस व टेक्सी की सुविधाएँ उपलब्ध है। मन्दिर तक पक्की सड़क है । सुविधाएँ 48 ठहरने के लिए मन्दिर के निकट ही धर्मशाला एवं उपाश्रय है, जहाँ पानी और बिजली की सुविधाएं उपलब्ध है । पेढी श्री अमीझरा पार्श्वनाथ श्वेताम्बर मन्दिर, पोस्ट : अमझरा - 454 441. जिला : धार, प्रान्त : मध्यप्रदेश फोन : 07292-61444 पी.पी. 07292-32401 (राजगढ़ पेढ़ी) । शिखर का दिव्य दृश्य-अमीझरा श्री अमीझरा तीर्थ तीर्थाधिराज ॐ श्री अमीझरा पार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासन की मुद्रा में लगभग साढ़े चार फुट (137 सें. मी.) (श्वे. मन्दिर)।। तीर्थ स्थल अमझरा गाँव के अन्तर्गत एक मोहल्ले में । प्राचीनता अमझरा का प्राचीन नाम कुन्दनपुर था । प्रतिमा पर अंकित लेख से ज्ञात होता है कि विक्रम संवत् 1548 माघ कृष्ण पक्ष के तृतीय दिवस को आचार्य श्री विजयसोमसूरिजी ने अपने सुहस्ते इस दिव्य व चमत्कारिक प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवायी थी । _ विशिष्टता किसी समय भगवान की प्रतिमा से अमृत रूपी अमी असीम मात्रा में झरते रहने के 688 Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अमीझरा पार्श्वनाथ भगवान-अमीझरा Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री इंगलपथ तीर्थ तीर्थाधिराज श्री नेमिनाथ भगवान, कसोटी पाषाण की, पद्मासनस्थ, लगभग 100 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) | तीर्थ स्थल रिंगणोद गांव के बाहर । प्राचीनता आज का रिंगणोद पूर्वकाल में इंगलपुरपत्तन के नाम विख्यात था । विक्रम की बारहवीं सदी में यह शहर अत्यन्त जाहोजलालीपूर्ण रहने व अनेकों जिन मन्दिरों के रहने का उल्लेख है। एक जगह यहाँ नववसही के नाम से विख्यात नव शिखरबंद मन्दिरों के रहने का भी उल्लेख है। कालक्रम से मन्दिरों को क्षति पहुँची । कई मन्दिरों आदि के भग्नावशेष आज भी लगभग 9 कि. मी. विस्तार में यहाँ-तहाँ नदी आदि में बिखरे पड़े नजर आते हैं जो यहाँ की प्राचीनता को प्रमाणित करते हैं। आज यहाँ यही एक शिखरबंद मन्दिर विद्यमान है जिसमें विराजित प्रतिमाएँ यहाँ एक मकान के कच्चे चोतरे (ओटला) के नीचे खुदाई के समय वि. सं. 1992 में प्राप्त हुई जिनमें श्री नेमिनाथ भगवान की यह प्रतिमा भी थी जिसपर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है परन्तु शिल्पकला से सम्प्रति कालीन मानी जाती है । अन्य प्रतिमाएँ भी प्राचीन है। एक प्रतिमा पर वि. सं. 1219 का लेख उत्कीर्ण है । 690 0400 BEGEE श्री नेमिनाथ जिनालय इंगलपथ इस प्राचीन ऐतिहासिक स्थान, जहाँ किसी समय अनेकों जिन मन्दिर थे, वहाँ पर पुनः एक मन्दिर का निर्माण करवाने हेतु तात्कालीन देवास नरेश ने उपयुक्त स्थान पर विशाल जगह प्रदान की वहाँ इस मन्दिर का निर्माण करवाकर वि. सं. 1982 में उन प्राचीन प्रतिमाओं को पुनः प्रतिष्ठित करवाया गया जो अभी विद्यमान है । यहाँ पर एक प्राचीन उपाश्रय है जो लगभग आठ सौ वर्ष पूर्व का माना जाता है । उपाश्रय में एक भयरा है व भौयरे के नीचे पुनः एक भयरा है जो कम जगह पाया जाता है। विशिष्टता सहस्रों वर्ष पूजित श्री नेमीनाथ प्रभु की प्राचीन प्रतिमा अतीव प्रभाविक व चमत्कारिक है। दर्शनार्थियों को दिन में समय-समय पर प्रभु के अलग-अलग रूप में दर्शन होते हैं। श्रद्धालु भक्तजनों की मनोकामना पूर्ण होती है । प्रतिवर्ष मिगसर कृष्णा 10 को वार्षिक ध्वजा चढ़ाई जाती है। अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त श्री पार्श्वनाथ भगवान का एक और प्राचीन भव्य मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य यह स्थान प्राचीन रहने के कारण अभी भी प्राचीन कला के नमूने जगह-जगह पर नजर आते हैं, प्रभु प्रतिमाएँ अतीव प्रभाविक व दर्शनीय है । गांव के बाहर खुले मैदान में चारों और हरियाली के साथ स्थित यह शिखरबंद मन्दिर बड़ा ही सुन्दर व आकृषित लगता है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन जावरा लगभग 12 कि. मी. दूर है जहाँ पर टेक्सी, बस व आटो की सुविधा उपलब्ध है। नजदीक के बड़े शहर रतलाम 45 कि. मी. ईन्दौर 160 कि. मी. व उज्जैन 120 कि. मी. दूर है। मन्दिर तक कार व बस जा सकती है। नजदीक का हवाई अड्डा इन्दौर है। सुविधाएँ ठहरने के लिये मन्दिर के निकट ही सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है। पूर्व सूचना पर भोजन की भी व्यवस्था हो सकती हैं । पेड़ी श्री जैन श्वे. नेमीनाथ तीर्थ मन्दिर पोस्ट : रिंगणोद - 457336 जिला रतलाम (म. प्र. ) फोन : 07414-64234 पी.पी. Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नेमिनाथ भगवान-इंगलपथ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्य मन्दिर 88 इसी परकोटे में इस मन्दिर के श्री बिबडौद तीर्थ अतिरिक्त और पाँच मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य यहाँ के परकोटे के तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, श्याम अन्तर्गत का दृश्य अति मनोरम प्रतीत होता है । प्रभु वर्ण, पद्मासनस्थ लगभग 76 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। प्रतिमा की कला विशिष्ट है । तीर्थ स्थल बिबडौद गाँव के पास विशाल मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन परकोटे में, जो कि केशरियाजी के मन्दिर के नाम से रतलाम जंक्शन 8 कि. मी. व रतलाम शहर 4 कि. भी प्रचलित हैं । मी. दूरी पर मुम्बई-दिल्ली व खण्डवा-अजमेर लाईन प्राचीनता प्रतिमा की कलात्मक आकृति के पर स्थित है । जहाँ से बस, टेक्सी व आटो की दर्शन से ही यह प्रतीत होता है कि यह तीर्थ अति सुविधाएँ उपलब्ध है। तीर्थ स्थल तक पक्की सड़क है। प्राचीन है । इसकी प्रतिष्ठापना विक्रम संवत् की 13 वीं शताब्दी से पूर्व हुई होगी, ऐसा उल्लेख मिलता है। सुविधाएँ यहाँ पर एक विशाल धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र, उसके पश्चात् छोटे-बड़े कुछ जीर्णोद्धार अवश्य हुवे होंगे। गत जीर्णोद्धार वि. सं. 2021-2022 में हुवे का ___भोजनशाला व भाते की सुविधाएँ उपलब्ध हैं । उल्लेख है । अभी भव्य जीर्णोद्धार का काम चालू है। पेढ़ी 8 श्री बिबडौद तीर्थ, विशिष्टता प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव प्रभु श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जिनालय मल्लिनाथ ट्रस्ट की इतनी सुन्दर, भव्य व प्रशान्त, बालू की बनी प्रतिमा -बोर्ड । मोती पूज्यजी का मन्दिर, चौमुखीपुल । का अन्यत्र दर्शन दुर्लभ है । यहाँ हर वर्ष पौष वद पोस्ट : रतलाम - 457 001. प्रान्त : मध्यप्रदेश, दशमी से अमावश तक मेला लगता है । उन दिनों फोन : 07412-36277. हजारों यात्रीगण प्रभु के दर्शनार्थ यहाँ इकट्ठे होते है । 07412-22400 (ट्रस्ट ऑफिस) । तीर्थ का बाह्य दृश्य-बिम्बडौद 692 Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदीश्वर भगवान-बिम्बडौद 693 Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सेमलिया तीर्थ चार कलात्मक स्थंभ आज भी मन्दिर में है जो यहाँ की प्राचीनता प्रमाणित करते है जिन पर सं. 933 उत्कीर्ण है । प्रायः स्थंभों पर लेख उत्कीर्ण कहीं नजर नहीं आता । संभवतः कालक्रम से मन्दिर को भारी क्षति पहुँची हो । जीर्णोद्धार के समय अखण्डित रहे ये चार स्थंभ पुनः काम में लिये गये हो, अन्यथा सिर्फ चार स्थंभों को पश्चात् जोडना संभवसा नहीं लगता । उक्त वार्णित उल्लेखों से इस तीर्थ की प्राचीनता स्वतः सिद्ध होती है । वर्तमान में प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला 13 को ध्वजा चढ़ाई जाती है । विशिष्टता महाराजा सम्प्रति कालीन बालू से बनी इस भव्य प्रभु प्रतिमा को श्री सम्प्रति महाराजा द्वारा निर्मित मन्दिर में उन्हीं के द्वारा प्रतिष्ठित करवाये जाने का उल्लेख होने के कारण यहाँ की मुख्य विशेषता श्री शान्तिनाथ जिनालय-सेमलिया है । अन्य कहावत के अनुसार किन्ही यतिवर्य द्वारा कहीं से यह मन्दिर यहाँ लाया गया हो तो भी घटित उस चमत्कारिक घटना के लिये यहाँ की विशेषता में और भी प्रमुखता है । वि. सं. 2015 से प्रतिवर्ष भादवा शुक्ला द्वितीया को तीर्थाधिराज श्री शान्तिनाथ भगवान, श्याम मन्दिरजी में निरन्तर अमि झरती आ रही है । कहा वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 47 इंच बालू से बनी जाता है कि कई वर्षों पूर्व तक दूधसी अमि झरती आ (श्वे. मन्दिर)। रही थी । गत कुछ वर्षों से पानीसी अमि झरनी प्रारंभ तीर्थ स्थल सेमलिया गाँव में । हुई जो अभी भी प्रतिवर्ष भाद्रवा शक्ला द्वितीया को प्राचीनता इस मन्दिर का निर्माण कब व । झरती है तब हजारों दर्शनार्थी इसके दर्शन का लाभ लेते किसने करवाया उसका सही पता लगाना कठिन है । हैं । यह घटना भी यहाँ की मुख्य विशेषता है क्यों कि प्रतिमा पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है परन्तु प्रतिमा प्रतिवर्ष उसी दिन निरन्तर अमि झरना बहुत ही कम अवश्य श्री सम्प्रति महाराजा के समय की प्रतीत होती है। जगह होगा । कहा जाता है कि श्री सम्प्रति महाराजा ने ही यहाँ अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर का निर्माण करवाकर बालू से बनी भव्य मन्दिर नहीं हैं । चमत्कारिक प्रतिमा की प्रतिष्ठा खुद ने करवाई थी । कला और सौन्दर्य यहाँ के प्राचीन कलात्मक यह भी कहा जाता है कि किसी समय किन्ही चार स्तंभ व प्रभु प्रतिमा अद्वितीय है । यतिवर्य द्वारा यह मन्दिर कहीं से यहाँ लाया गया था, मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन जैसा राजस्थान के नाडुलाई गांव में एक मन्दिर लाये रतलाभ लगभग 16 कि. मी. व नामली 4 कि. मी. जाने का उल्लेख आता है । यह भी किंवदन्ती है कि दूर हैं, जहाँ पर टेक्सी, बस का साधन है। मन्दिर तक किन्ही यतिवर्य द्वारा आकाश मार्ग से कहीं जा रहे चार कार व बस जा सकती है । स्थंभों को यहाँ उतारा था । सुविधाएँ ठहरने के लिये निकट ही _ वि. सं. 933 में श्रावक भीमा द्वारा यह मन्दिर सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला हैं, जहाँ सूर्योदय से सूर्यास्त जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख है । वि. सं. 1533 में पुनः जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख आता है । अन्तिम तक भाता दिया जाता है । जीर्णोद्धार कुछ ही वर्ष पूर्व प्रारंभ हुवा था जो अभी तक पेढ़ी श्री शांतीनाथ जैन श्वे. मन्दिर ट्रस्ट, चल रहा है । पोस्ट : सेमलिया - 457 222. व्हाया : नामली, प्रभु प्रतिमा वही प्राचीन समय-समय पर पुनः जिला : रतलाम, प्रान्त : मध्यप्रदेश, प्रतिष्ठित की गई जो अभी भी विद्यमान है । प्राचीन, फोन : 07412-81210. 694 Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शान्तिनाथ भगवान-सेमलिया Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री परासली तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासन की मुद्रा में, लगभग 76.2 सें. मी. (22 फुट ) ( श्वे. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल छोटे से परासली गाँव में । प्राचीनता प्रतिमा पर लेख के अनुसार इस मन्दिर की प्रतिष्ठापना विक्रम सं. 688 माघ शुक्ला दशमी के दिन श्री गुलराज हंसराज बोहरा ने, आचार्य प्रवर श्री उदयसागरजी म. सा. के सुहस्ते करवाई थी। विशिष्टता किंवदन्तियों के अनुसार यह तीर्थ अनेकों चमत्कारों का स्थल है । बताया जाता है कि आज भी विभिन्न प्रकार के चमत्कार यहाँ होते रहते है। उदाहरण स्वरूप प्रभु के न्हवण जल से पण्डित श्री रामेश्वरजी की आँखों को रोशनी मिलना, स्वधर्मी वात्सल्य में वस्तुओं की कमी पड़ने पर दैविक शक्ति से उसकी पूर्ति होना, विक्रम संवत् 1956 के भंयकर अकाल की अवधि में पुजारी को प्रतिदिन चाँदी की अनी मन्दिर में गुप्त रूप से प्राप्त होना, इत्यादि भक्त जनों से अभिहित किया जाता है । प्रतिवर्ष 696 फाल्गुन शुक्ला 13 को यहाँ मेला लगता है । इस अवसर पर हजारों भक्तगण इकट्ठे होते है । अन्य मन्दिर निकट ही श्री शान्तिनाथ भगवान का मन्दिर व एक दादावाड़ी है जिसमें श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी तथा दादा श्री जिनकुशलसूरीश्वरजी की सुन्दर प्रतिमाएँ है । कला और सौन्दर्य आदीश्वर भगवान की प्राचीन प्रतिमा अति ही सुन्दर व प्रभावशाली है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन श्यामगढ़ लगभग 12 कि. मी. की दूर है । श्यामगढ़ स्टेशन के सामने ही विश्राम के लिए धर्मशाला व दर्शनार्थ मन्दिर है । श्यामगढ़ से परासली के लिए बस व टेक्सी की सुविधा है। यहाँ से नागेश्वर तीर्थ 52 कि. मी. व मन्दसौर 87 कि. मी. दूर है । सुविधाएँ ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त विशाल धर्मशाला है, जहाँ पर भोजनशाला एवं भाते की भी सुविधाएँ उपलब्ध हैं । उपाश्रय भी है । पेढ़ी : श्री जैन श्वेताम्बर परासली तीर्थ पेढ़ी, पोस्ट : परासली - 458883. जिला : मन्दसौर, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07425-32855. श्री आदीश्वर भगवान मन्दिर-परासली Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदीश्वर भगवान-परासली Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री दशपुर तीर्थ युगप्रवर्तक विद्वान आर्य रक्षितसूरिजी का जन्म वि. सं. 52 में इसी पावन भूमी में हुवा । वि. सं. 74 में आचार्य तोषलीपुत्र के पास दिक्षित होकर वि. सं. तीर्थाधिराज श्री विघ्नहर पार्श्वनाथ भगवान, 114 में युगप्रधानपद पर विभूषित होकर वि. सं. 127 पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, (श्वे. मन्दिर) । में यहीं पर देवलोक सिधारने का उल्लेख है । तीर्थ स्थल मन्दसौर शहर के खिलचीपुरा में। किसी समय यहाँ पश्चिम मालवे की राजधानी रहने प्राचीनता इस पावन तीर्थ का इतिहास __व मालवगण का प्रधान नगर रहने का उल्लेख आता भगवान महावीर के समय से प्रारंभ होता है ।। है । संभवतः वैशाली विनाश के समय लिच्छवीगण यहाँ आकर रहे हों । भगवान महावीर के समय प्रभु के परम भक्त उक्त वृतांतों से प्रतीत होता है कि यह अतीव सिंधू-सौवीर, वीतभयपत्तन के नरेश उदायन व उनके जाहोजलालीपूर्ण शहर रहा होगा व कई मन्दिरों का साथी दश राजाओं द्वारा यह शहर बसाकर यहाँ मन्दिर निर्माण हुवा होगा परन्तु बीच के इतिहास का पता नहीं का निर्माण करके श्री विद्युन्माली देव द्वारा महहिमवंत हैं । विक्रम की पन्द्ररवीं सदी में मान्डवगढ़ के संग्राम पर्वत के गोशीर्ष चन्दन से निर्मित जीवंत स्वामी प्रभु सोनी द्वारा यहाँ एक मन्दिर बनाने का उल्लेख है । वीर की प्रतिमा प्रतिष्ठित किये जाने का उल्लेख हैं । उसके पश्चात् का पता नहीं । वर्तमान में यहाँ श्खें. के उक्त मन्दिर के निभाव खर्च हेतु उज्जैन के राजा कुल 11 मन्दिर विद्यमान है, जिनमें श्वे. मन्दिरों में श्री चंडप्रधोतन द्वारा कई गांवों को भेंट देने का उल्लेख खिलचीपुर के श्री पार्श्वनाथ भगवान का यह मन्दिर है। पश्चात् राजा चंडप्रधोतन द्वारा भी उज्जैन में मन्दिर सबसे प्राचीन माना जाता है। जिसकी प्रतिष्ठा वि. सं. का निर्माण करवाकर जीवित स्वामी प्रभु वीर की 1438 में हुई थी, संभवतः उस वक्त जीर्णोद्धार होकर प्रतिमा प्रतिष्ठित किये का उल्लेख है । हो सकता है भी पुनः प्रतिष्ठा हुई हो । अंतिम जीर्णोद्धार वि. सं. यह प्रतिमा दूसरी भी हो क्योंकि प्रभु वीर की कुछ 1838 में हुवा था। प्रतिमाएँ जीवंत स्वामी के रूप में प्रतिष्ठित किये का विशिष्टता प्रभुवीर के भक्त श्री उदायन राजा उल्लेख आता है । को पुण्य योग से प्राप्त प्रभुवीर की गोशीर्ष चन्दन से बनी जीवंत प्रतिमा को उज्जैन के राजा चंडप्रघोत छल-कपटकर उदायन के वहाँ से ला रहे थे । राजा उदायन को मालुम पड़ने पर भीषण युद्ध हुवा । उदायन के साथ उनकी सेना व अन्य दश राजा भी थे। युद्ध में जीतकर लौटती वक्त बीच में चातुर्मास प्रारंभ हो जाने के कारण यहाँ पर ही पड़ाव डाला था । __कहा जाता है कि दैविक संकेत के आधार पर यहीं पर मन्दिर का निर्माण करवाकर प्रभु प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया व जगह का नाम दशपुर रखा जो आज तक विख्यात है। पर्युषण पर्व की आराधना के समय पता लगा कि कैदी राजा चंडप्रघोत भी जैन धर्मावलम्बी है अतः तुरन्त ही उससे क्षमा मांगकर रिहा किया गया । स्वधर्मी का पता लगते ही क्षमा मांगते हुवे शत्रु को भी तुरन्त रिहा करना, दैविक संकेत के आधार पर मन्दिर का निर्माण करवाकर उसी प्रतिमा को, जिसके लिये युद्ध किया, श्री विघ्नहर पार्श्वनाथ जिनालय - दशपुर वहीं प्रतिष्ठित करवाना यह सभी वृतांत यहाँ की मुख्य विशेषता है । 698 Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उज्जैन राजा चंडप्रधोत ने भी उज्जैन जाकर उक्त मन्दिर के निभाव खर्च हेतु अनेकों गांव भेंट अर्पित करने का भी उल्लेख है । तत्पश्चात् विदिशा के अन्तर्गत भाइलस्वामीगढ़ बसाकर वहाँ मन्दिर का निर्माण करवाकर वहाँ पर भी प्रभुवीर की जीवंत प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाने का भी उल्लेख है संभवतः वह अन्य प्रतिमा ही होगी, क्योंकि प्रभुवीर के समय कई जीवंत प्रतिमाएँ भराने का उल्लेख आता है । युगप्रवर्तक विद्वानरत्न आर्य रक्षितसूरीश्वरजी म.सा. की यह जन्म, दिक्षा व स्वर्गारोहण भूमी मानी जाने के कारण भी यहाँ की मुख्य विशेषता हैं । आचार्य भगवंत ने अपना जीवन प्रायः इसी क्षेत्र में बिताया व शासन के अनेकों कार्य किये । कहा जाता है आचार्य भगवंत ने ही अनुयोग शास्त्रों को पाटलीपुत्र में रहते समय धर्मकथानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग व गणितानुयोग में विभाजित किया था जो तीसरी आगम वाचना की तरह प्रसिद्ध हुई। वे ग्रंथ आज भी अतीव उपयोगी माने जाते हैं । आपने अनुयोग द्वार सूत्र की संकलना यहीं पर रहकर की थी । कहा जाता है कि इसके निकट ही दशार्ण राजा द्वारा बसाया दशार्णपुर गांव था । उस गांव के उत्तर-पूर्व में दशार्णकूट पर्वत था जिसका नाम गजाग्रपद व इन्द्रपद भी था । वृहत कल्पसूत्र में इसका वर्णण आता है । भगवान महावीर द्वारा राजा दशार्णभद्र को वहीं पर दिक्षा देने का उल्लेख है । यह भी इस क्षेत्र की मुख्य विशेषता है । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त 10 श्वे. मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य प्राचीन विशालकाय भव्य प्रभु प्रतिमा अतीव सौम्य, प्रभावशाली व भावात्मक है। ऐसी प्रतिमा के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ है । यहाँ से लगभग 7 कि. मी. दूर सौन्दगी गांव में यशोधर्म द्वारा निर्मित कीर्ति स्थम्भ आज भी विद्यमान है जो यहाँ के प्राचीन इतिहास की याद दिलाता है । मन्दिर में अन्य प्राचीन प्रतिमाएँ भी दर्शनीय है । मार्ग दर्शन यहाँ का मन्दसौर रेल्वे स्टेशन लगभग 2 कि. मी. दूर है व मन्दसोर शहर 112 कि. मी. दूर है । मन्दिर तक पक्की सड़क है । मन्दिर तक कार व बस जा सकती है । यहाँ से रतलाम लगभग 85 कि. मी. भानपुरा 135 कि. मी. व वई पार्श्वनाथ श्री विघ्नहर पार्श्वनाथ भगवान - दशपुर 15 कि. मी. दूर है । सभी स्थानों में हर तरह की सवारी का साधन है । सुविधाएँ ॐ फिलहाल यहाँ शहर में धर्मशाला है, परन्तु वर्तमान में बिस्तर, बर्तन आदि की सुविधा नहीं है । पेढ़ी श्री विघ्नहर पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर तीर्थ एवं धार्मिक संस्थान, खिलचीपुरा, पोस्ट : मन्दसौर - 458001 प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : पी.पी. 07424-50240, 75305. 699 Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वही पार्श्वनाथ तीर्थ प्रतिवर्ष पोष कृष्णा दशमी को मेले का आयोजन होता है । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त एक तीर्थाधिराज श्री वही पार्श्वनाथ भगवान, और मन्दिर है, जिसमें वर्तमान भूत व भविष्य के श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 123 सें. मी. तीर्थंकरों की प्रतिमाएं एवं अधिष्टायक देव-देवियों की (श्वे. मन्दिर)। प्रतिमाएँ अतीव दर्शनीय हैं व एक भव्य दादावाड़ी है । तीर्थ स्थल वही गाँव में ।। कला और सौन्दर्य 8 यहाँ के मन्दिर व प्रभु प्राचीनता इस मन्दिर का निर्माण लगभग प्रतिमा की निर्माण शैली बिलकुल भिन्न प्रकार की रहने 1100 वर्ष पूर्व होने का उल्लेख है । प्रभु प्रतिमा के कारण अतीव शोभायमान व दर्शनीय है । लगभग 2000 वर्ष पूर्व की प्रतीत होती है । प्रतिमा मन्दिर के निकट ही एक तालाब है । उसमें खिले पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है । कमल के फूल व पानी भूमीतल से सीधे मन्दिर तक ___ मन्दिर निर्माण के पश्चात् अभी तक कोई जीर्णोद्धार । आने की व्यवस्था थी । ऐसा कहा जाता है । होने का उल्लेख नहीं है । इतना प्राचीन मन्दिर होते मार्ग दर्शन नजदीक के रेल्वे स्टेशन पिपलिया हुवे भी अभी तक जीर्णोद्धार की आवश्यकता नहीं पड़ना कोई दैविक शक्ति का ही कारण है । इस तरह का लगभग 5 कि. मी. व मन्दसौर 15 कि. मी. दूर है, उल्लेख बहुत ही कम जगह पाया जाता है । जहाँ से आटो व बस की सुविधा है । मन्दिर तक जीर्णोद्धार की अभी भी कोई आवश्यकता नजर नहीं पक्की सड़क है । बस भी मन्दिर तक जा सकती है। आ रही है । सविधाएँ ठहरने हेतु मन्दिर के निकट ही विशिष्टता मन्दिर निर्माण शैली प्राचीन किले सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला हैं, जहाँ भोजनशाला व भाते के आकार जैसी है जो प्राचीनता प्रमाणित करती है। की भी व्यवस्था है । ___बालु से निर्मित प्रभु प्रतिमा की निर्माण शैली भी पेढ़ी श्री वही पार्श्वनाथ श्वे. जैन मन्दिर पेढ़ी, बिलकुल भिन्न प्रकार की हैं, वैसी अन्यत्र कहीं नहीं। पोस्ट : वही पार्श्वनाथ - 458 664. है । एक हजार वर्ष से पूर्व का मन्दिर होते हुवे भी स्टेशन : पिपल्यामण्डी, जिला : मन्दसोर (म.प्र.), अभी तक जीर्णोद्धार नहीं होना भी मुख्य विशेषता है। फोन : 07424-41430, पी.पी. 41035. श्री वही पार्श्वनाथ जिनालय 700 Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PARAN श्री वही पार्श्वनाथ भगवान Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहा जाता है कि यह क्षेत्र दशवीं से बारहवीं सदी में जैन शासकों द्वारा शासित रहा है, उस काल में इस इलाके में सैकड़ों जिनालयों के निर्माण हुए का उल्लेख है । उनमें कुछ ध्वस्त मन्दिर व भग्नावशेष निकट के केथूली, कूकल्डा, अंत्रालिया, मोड़ी, नीमथूर आदि गांवों में आज भी नजर आते हैं । नीमथूर गांव से निकले एक शिलालेख में “गढ़ अभिनव गिरनार" का उल्लेख हैं तथा पहाड़ी पर भव्य खण्डित जैन प्रतिमाएँ व देवियों की प्रतिमाएँ हैं । उनमें से एक को गोरां देवी मानकर गांव वाले पूजन करते हैं । प्रतिमा के मस्तक पर तीर्थंकर का चिन्ह उत्कीर्ण है । संभवतः उस गांव का नाम नेमीपुर रहा होगा । जिसका अपभ्रंश नीमथूर हो गया हो । यहाँ पर आज १ मन्दिर हैं उनमें यह श्री भलवाड़ा पार्श्वप्रभ का मन्दिर प्राचीनतम व अतिशयकारी है। इसकी प्रतिष्ठा वि. सं. 1548 में होने का उल्लेख है। हो सकता है उस समय मन्दिर का जीर्णोद्धार होकर पुनः प्रतिष्ठा हुई हो, क्योंकि इसी मन्दिर में एक श्री आदिनाथ प्रभु की भव्य, अलौकिक प्रतिमा श्री सम्प्रति राजा के समय की प्रतीत होती है जिसपर कोई लेख नहीं है । विशिष्टता इस क्षेत्र में जैन धर्म का प्रभाव इतना अधिक रहा कि जैन मूर्तियाँ, जैन शिलालेख श्री भलवाडा पार्श्वनाथ जिनालय-भानपुरा आदि आज भी जगह-जगह नजर आते है । इस क्षेत्र में हुई पुरातत्व विभाग की खुदाई में सिंधुघाटी सम्यता के अवशेष भी मिले हैं । प्रागऐतिहासिक युग के बाद इस क्षेत्र में ऐतिहासिक युग के अवशेष भी मिलते हैं। इस तीर्थ में कई चमत्कारिक घटनाएँ भी घटती तीर्थाधिराज 8 श्री भलवाड़ा पार्श्वनाथ भगवान, रहती है जैसे पर्दूषण महापर्व पर रात्री में वाद्यों की श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 55 सें. मी. संगीतमय ध्वनि सुनाई देना, शासनदेव द्वारा मनोवांछित (श्वे. मन्दिर)। फल पूरा करना, गुरुदेव का पुजारी को ईमानदारी से कार्य करते रहने के लिये प्रोत्साहित करना आदि । तीर्थ स्थल भानपुरा नगर के मध्य । प्रतिवर्ष बसन्त पंचमी को ध्वजा चढ़ाई जाती है। प्राचीनता यह क्षेत्र अतीव प्राचीन है । इस क्षेत्र में पाषाणकाल युग से मराठा काल तक के अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त 4 पुरावशेष मिलते है जो यहाँ के प्राचीनता की याद और श्वे. मन्दिर 4 दि. मन्दिर व एक दादावाड़ी हैं । दिलाते हैं । प्राप्त कई अवशेष विक्रम विश्वविद्यालय के कला और सौन्दर्य यहाँ पर सभी मन्दिरों में पुरातत्व संग्रहालय में सुरक्षित रखे हैं । प्राचीन प्रतिमाओं की कला दर्शनीय है ।। यहाँ कई जगह नींव खोदते वक्त मूर्तियाँ, भग्नावशेष, यहाँ पर हमेशा जल से भरी रहनेवाली तक्षकेश्वर शिलालेख आदि निकलते हैं । कई मूर्तियाँ दिगम्बर नाम की झील व वर्षा काल में प्राकृतिक दृश्यों से बंधुओं ने एकत्रित कर नसियाँ व मन्दिरों में रखी है। भरपूर कई स्थल अतीव दर्शनीय है । विशाल गांधी श्री भलवाड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ 702 Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपर श्री भलवाडा पार्श्वनाथ भगवान-भानपुरा सागर भी इसी क्षेत्र में है । अतः यहाँ का पूरा क्षेत्र कला व प्राकृतिक सौन्दर्य से भरा देखने योग्य है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन शामगढ़ 45 कि. मी. भवानीमण्डी 24 कि. मी. झालावाड़ रोड़, 19 कि. मी. एवं मन्दसोर 130 कि. मी. दूर है। सभी स्थानों पर बसें व टेक्सी का साधन है । मन्दिर तक कार जा सकती है । सुविधाएँ ठहरने के लिये मन्दिर के निकट ही जयानन्द भवन है, जहाँ बिजली, पानी व बर्तनों की सुविधा है । कहने पर भोजन की व्यवस्था भी हो जाती है । पेढ़ी श्री श्वे. जैन मूर्तिपूजक संघ, श्री भलवाड़ा पार्श्वनाथ जैन श्वे. मन्दिर, सदर बाजार, पोस्ट : भानपुरा-458775. जिला : मन्दसौर (म.प्र.), फोन : 07427-36317, 36251. 703 Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कुर्कुटेश्वर तीर्थ तीर्थाधिराज श्री कुर्कुटेश्वर पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्याम वर्ण, लगभग 77 सें. मी. (श्वे. मन्दिर ) । कुकडेश्वर गाँव में । तीर्थ स्थल प्राचीनता इस तीर्थ की प्राचीनता प्रभु श्री पार्श्वनाथ भगवान के समय की लगभग 2860 वर्ष पूर्व की मानी जाती है । वर्तमान का कुकडेश्वर गाँव प्राचीन काल में कुर्कुटश्वर नाम से विख्यात था। कहा जाता है कि यहाँ से निकट राजपुर के राजा श्री ईश्वर ने प्रभु श्री पार्श्वनाथ के समय ही इस नगर की स्थापन की व मन्दिर निर्माण करवाकर प्रभु का श्री कुर्कु टेश्वर पार्श्वनाथ व नगर का नाम कुर्कुटेश्वर रखा था । कल्पसूत्र पावन आगमग्रंथ में वर्णित प्रसंगों के अनुसार प्रभुश्री पार्श्वनाथ भगवान छद्मावस्था में विचरते ये तब कलिकुंड, कुर्कुटेश्वर व जीवीत स्वामी आदि कुछ तीर्थो की स्थापना हुई थी वह कुर्कुटेश्वर यही स्थान माना जाता है । अतः इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है। 704 समय-समय पर जीर्णोद्धार की आवश्यकता रहती है, उसी भांति यहाँ पर भी जीर्णोद्धार हुए ही होंगे । वि. सं. 1676 में जीर्णोद्धार होकर पुनः प्रतिष्ठा हुए का उल्लेख है । विशिष्टता कल्पसूत्र पावन आगम ग्रंथ में वर्णित प्रसंगों के अनुसार प्रभु श्री पार्श्वनाथ भगवान छद्मावस्था में विचरते थे तब कुर्कुटेश्वर तीर्थ की भी स्थापना हुई थी अतः यह यहाँ की मुख्य विशेषता है। एक मतानुसार प्रभु श्री पार्श्वनाथ भगवान छद्मावस्था में यहाँ ध्यानावस्थ थे उस समय यहाँ से निकट गाँव के राजा ईश्वर दर्थनार्थ आये थे । दर्शन करते-करते उन्हें महसूस हुवा कि ऐसे तपस्वी को कहीं देखा है, सोचते-सोचते उन्हें जाति स्मरण ज्ञान हुवा कि पूर्व भव में इनका मेरे पर बहुत उपकार रहा है, ये देवों के भी देव हैं अतः वहीं पर एक गांव की स्थापना करके प्रभु की प्रतिमा बनाकर मन्दिर का निर्माण किया व प्रभु एवं गांव का नाम कुर्कुटेश्वर रखा । कुकुटेश्वर नाम पड़ने के अलग-अलग मत भी है परन्तु यह सही है कि मन्दिर निर्माता ने प्रभु को कुर्कुट के ईश्वर की उपमा दी है । प्रभु की अधिष्ठायिका मातेश्वरी श्री पद्मावती देवी का वाहन कुर्कुट सर्प है। किसी प्राचीन देवता का नाम भी कुर्कुट श्री कुंकुंटेश्वर पार्श्वनाथ मन्दिर दृश्य Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कुंकुंटेश्वर पार्श्वनाथ भगवान बताते है व कुर्कुट का अर्थ स्फुलिंग भी होता है जो शब्द उवसग्गहरं पाठ में भी वर्णित है । अतः निश्चय ही प्रभु को देवों के ईश्वर की उपमा दी है । समय-समय पर अनेकों चमत्कारिक घटनाओं के घटने का उल्लेख है । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त एक और मन्दिर श्री आदिनाथ भगवान का हैं । कला और सौन्दर्य प्रभु की प्राचीन प्रतिमा के दर्शन से दर्शनार्थी आनन्दित होता है। मन्दिर का प्राचीन शिल्प भी अपने आप में अनूठा है । मन्दिर में विराजित अन्य प्राचीन प्रतिमाएँ भी दर्शनीय है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक के रेल्वे स्टेशन नीमच 40 कि. मी. पिपल्या 52 कि. मी. मन्दसौर 71 कि. मी. व झालावाड़ रोड़ 140 कि. मी. दूर है। इन सभी जगहों से टेक्सी व बस का साधन है । मन्दिर तक पक्की सड़क है । सुविधाएँ ठहरने की मन्दिर के निकट ही सुविधा है । पूर्व सूचना पर भोजन की भी व्यवस्था हो सकती है । पेढ़ी श्री जैन श्वे. मूर्तिपूजक श्री संघ, पोस्ट : कुकडेश्वर - 458116. जिला : नीमच (म. प्र.), फोन : पी.पी. 07421-31251, 31353. 705 Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TRALIA से इस तीर्थ का अनेकों बार उत्थान पतन हुआ व समय-समय पर शासन प्रभावक आचार्य भगवन्तों ने अपनी अमूल्य शक्ति का सदुपयोग करके इस तीर्थ की महिमा बढ़ायी जो उल्लेखनीय है । विशिष्टता चरम तीर्थंकर भगवान महावीर के समय यहाँ के राजा श्री चन्द्र प्रद्योत ने प्रभु वीर की प्रतिमा चन्दन में बनवायी थी । राजा श्री चन्द्रप्रद्योत द्वारा यहाँ मन्दिर निर्माण करवाकर इस चन्दन की प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाने का भी उल्लेख है । इसके दर्शनार्थ आर्य सुहस्तीसूरिजी का यहाँ आवागमन होता रहता था, उन्होंने राजा संप्रति, अवन्तीसुकुमाल, महाकाल आदि को यहीं पर प्रतिबोधित किया था । शासन प्रभावक आचार्य चन्द्ररुद, आर्य रक्षितसूरि,श्री चन्द्रगुप्त, आर्य आषाढ़ इत्यादियोंने समय-समय पर यहाँ रहकर धर्म प्रभावना बढ़ायी थी । कालक्रम से जब इस तीर्थ पर शैवमत के शासकों का अधिकार हुआ, तब विक्रमादित्य राजा की राज्य सभा के विद्वान रत्न धर्म प्रभावक आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर ने राजा के सम्मुख श्री कल्याण मन्दिर स्तोत्र की रचना की जिसके प्रभाव से मन्दिर में स्थित ज्येतिर्मय शिवलिंग में से यह श्री पार्श्वनाथ प्रभु की मनोहर प्रतिमा पुनः प्रकट हुई और जैन धर्म की प्रतिष्ठा बढ़ी । विक्रम की सातवीं सदी में आचार्य श्री मानतुंगसूरिजी ने यहीं पर बृहद् राजा भोज को भक्तामर स्त्रोत्र की रचना द्वारा चमत्कार दिखाकर प्रभावित किया था । ग्यारहवीं सदी में श्री शान्तिसूरि जी विद्या प्रिय परमार वंशी राजा भोज की राज्य सभा में 84 वादियों को जीतकर यहीं पर सुसम्मानित हुए थे । इस भांति जैन धर्म के प्रचार व प्रसार सम्बन्धी अनेकों घटनाएँ इस तीर्थ से जुड़ी हुई है । प्रतिवर्ष जेठ शुक्ला 6 को ध्वजा चढ़ती है व पौष कृष्णा 10 को मेले का आयोजन होता है । अन्य मन्दिर वर्तमान में यहाँ पर इसके अतिरिक्त अन्य 24 मन्दिर विद्यमान है । कला और सौन्दर्य इस तीर्थ का अनेकों बार उत्थानपतन होने के कारण प्राचीन कला कम नजर आती है । लेकिन प्रभु पार्श्व की प्राचीन प्रतिमा अति ही सौम्य है । मार्ग दर्शन मन्दिर से लगभग 12 कि. मी. की दूरी पर प्रमुख रेल्वे स्टेशन उज्जैन है जहाँ पर श्री अवन्ती पार्श्वप्रभु मन्दिर का प्रवेशद्वार श्री अवन्ती पार्श्वनाथ तीर्थ तीर्थाधिराज श्री अवन्ती पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, अर्द्ध पद्मासनस्थ, लगभग 1.2 मीटर (चार फुट) (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल उज्जैन शहर में क्षीप्रा नदी के निकट । प्राचीनता इस नगरी के प्राचीन नाम अवन्तिका, पुष्कर रजिनी आदि थे । जैन शास्त्रानुसार भद्रा सेठाणी के सुत्रुत्र अवन्तीसुकुमाल ने आर्य सुहस्तीसूरिजी से प्रतिबोध पाकर दीक्षा अंगीकार की व जंगल में संथारे में रहते हए तपश्चर्या में ही मक्ति पद को प्राप्त हाए। उनके पुत्र श्री महाकाल ने आर्य सुहस्तीसूरिजी के सदुपदेश से अपने पिताजी के स्मरणार्थ इस भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया । यह वृत्तान्त वीर निर्वाण संवत् 250 का माना जाता है । तत्पश्चात् कालक्रम 706 Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अवन्ती पार्श्वनाथ भगवान-उज्जैन आटो, टेक्सी की सुविधाएँ उपलब्ध है। मन्दिर तक पक्की सड़क है । इन्दौर लगभग 56 कि. मी. दूर है। सविधाएँ ठहरने के लिए मन्दिर के निकट ही सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ पर भोजनशाला व भाते की भी सुविधाएँ उपलब्ध है। पेढ़ी 88 श्री अवन्ती पार्श्वनाथ तीर्थ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मारवाड़ी समाज ट्रस्ट, अनन्त पेठ, दानी दरवाजा । पोस्ट : उज्जैन - 456 001. प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 0734-555854, 555553 ट्रस्ट आफिस)। 707 Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय-उन्हेल यह तीर्थ दसवीं सदी पूर्व का है । कुछ अवशेष गुप्तकालीन भी पाये जाते है जो प्राचीनता को सिद्ध करते हैं । सब स्थानों की भाँति इस तीर्थ का भी अनेकों बार जीर्णोद्धार हुआ होगा । अन्तिम जीर्णोद्धार विक्रम सं. 1700 में उन्हेल श्री संघ द्वारा करवाया गया था । अभी पुनः जीर्णोद्धार का काम चालू है । विशिष्टता यह प्राचीन तीर्थ क्षेत्र तो है ही । साथ-साथ अतिशय क्षेत्र भी है । कहा जाता है कभी-कभी पर्व-तिथि के समय रात्री में मन्दिर में भजनों की संगीत लहरी सुनाई देती है । प्रतीत होता है जैसे प्रभु की आरती उतारी जा रही हो । कुछ वर्षों पूर्व प्रभु के नेत्रों में से अमृत रूपी धारा बहती रही । कुछ भक्तों ने नेत्र को साफ करके भी देखा परन्तु धारा प्रवाह चालू रही । जो बाद में अक्समात बन्द हुई । कहा जाता है कि आराधना करने पर भक्तजनों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । अनेकों तरह की चमत्कारिक घटनाएँ घटने के संकेत मिलते हैं । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर नहीं है । कला और सौन्दर्य प्रभु प्रतिमा की कला अद्वितीय है । सप्त-फणों के साथ दोनों ओर इन्द्र महाराज की प्रतिमाएँ हैं जो संभवतः अन्यत्र नहीं है। मार्ग दर्शन यह स्थल उज्जैन-नागदा मार्ग में उन्हेल रेल्वे स्टेशन से 10 कि. मी. दूर है, जहाँ पर टेक्सी का साधन उपलब्ध है । उज्जैन से लगभग 30 कि. मी. नागदा से 22 कि. मी. व नागेश्वर तीर्थ से 75 कि. मी. दूर है । उज्जैन व नागदा जंक्शन से बस व टेक्सी का साधन है । सुविधाएँ ठहरने के लिए मन्दिर के निकट ही धर्मशाला है,जहाँ पानी,बिजली,बर्तन आदि की सुविधाएँ उपलब्ध है।पूर्व सुचना पर भोजन व भाते की सुविधा हो सकती है । पेढ़ी श्री पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ की पेढ़ी, जैन मन्दिर रोड़, पोस्ट : उन्हेल - 456 221. जिला : उज्जैन, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन :07366-20258 व 20237 पी.पी. श्री उन्हेल तीर्थ तीर्थाधिराज श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 105 से. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल उन्हेल गाँव के मध्य जैन मन्दिर गली में । प्राचीनता इस गाँव का प्राचीन नाम तोरण था। कहा जाता है जब नागदा में श्री जन्मेजय ने नाग-यज्ञ किया था उस समय चारों दिशाओं में तोरण द्वार बांधे गये थे तब एक तोरण इस स्थान पर भी बाँधा गया था । और यहाँ नगर बस जाने के परिणाम स्वरूप इसका नाम तोरण पड़ गया था । वर्तमान नाम मुसलमान काल में परिवर्तन किया गया होगा, ऐसा प्रतीत होता है। प्रतिमा की कलाकृति व मन्दिर में उपलब्ध 10वीं व 11वीं सदी के अवशेषों से यह प्रमाणित होता है कि 708 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान - उन्हेल 709 Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अलौकिक पार्श्वनाथ जिनालय श्री अलौकिक पार्श्वनाथ तीर्थ तीर्थाधिराज श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 110 सें. मी. ( श्वे. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल हसामपुरा गाँव के मध्यस्थ । प्राचीनता मन्दिर में स्थित प्राचीन कलात्मक अवशेष, स्तम्भ व परिकर आदि के अवलोकन से पता लगता है कि यह मन्दिर लगभग विक्रम की दसवीं सदी के पूर्व का होगा । बारहवीं सदी की बनी धातु की चौबीसी मन्दिर में विद्यमान है। मुसलमानों के शासनकाल में अनेकों मन्दिरों को क्षति पहुँची, उसमें यह मन्दिर भी रहा होगा, ऐसा अनुमान लगाया जाता है । पुनः जीर्णोद्धार विक्रम सं. 1649 में होने का उल्लेख है। अभी पुनः जीर्णोद्धार का काम चालू । । विशिष्टता कहा जाता है राजा विक्रमादित्य के काल में उज्जैन नगरी का यह एक मोहल्ला था व राजा विक्रमादित्य का महल यहाँ पर था । इसके निकट रानी का महल था जिसे आज रानीकोट कहते हैं । यहाँ अनेकों चमत्कारिक घटनाएँ घटने के प्रमाण मिलते हैं । कहा जाता है एक वक्त कुछ प्रवासियों ने 710 इसके निकट माँस पकाने का उपक्रम किया । तुरन्त अदृश्य रूप से उनपर पत्थरों की बौछार होने लगी जिससे वे भाग खड़े हुए । एक बार कुछ श्रावक प्रतिमाऐं उज्जैन ले जाना चाहते थे । वार्तालाप के बाद श्रावकगण दर्शनार्थ मन्दिर में आये तब प्रभु प्रतिमा के पास सर्प बैठा नकारात्मक संकेत करता नजर आया उसपर उन्होंने अपना विचार स्थगित किया । ऐसे और भी अनेकों घटनाओं के वृत्तान्त भक्तों द्वारा बताये जाते है । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर नहीं है । कला और सौन्दर्य श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा अलौकिक व कलात्मक है। प्रतिमा की हस्तमुद्रा के नीचे दो सर्प बनें हैं जो अपने आप में अद्वितीय है । यहाँ स्तम्भों पर भी प्राचीन कला के विभिन्न प्रकार के नमूने उत्कीर्ण हैं । 11वीं सदी का पूर्ण परिकर कलात्मक प्रस्तरखण्ड आदि दर्शनीय है । मार्ग दर्शन नजदीक का बड़ा स्टेशन उज्जैन लगभग 14 कि. मी. दूर है, जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है। यहाँ से नागेश्वर 135 कि. मी. माण्डवगढ़ 160 कि. मी. व मक्षी तीर्थ 50 कि. मी. दूर है। सुविधाएँ मन्दिर के पास धर्मशाला है, जहाँ बिजली, पानी, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधाएँ उपलब्ध है। पेढ़ी श्री अलौकिक पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी. गाँव : हसामपुरा, पोस्ट : तालोद 456 006. जिला : उज्जैन, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 0734-610245 व 610246. 19 UJJAIN impura alnur Tajpur Patehabad Sanwer 40 20 3 Maksi o Sia Berchha Tonk Khurd Sonkach DEWAS Nagda Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ გიბიიიიიიი იიიიი PODOC BOUDODOVOD09 Pongo 000000ognon იიიიიიიიიიიიიიიიიიიიიიი იიიიიიიიი श्री अलौकिक पार्श्वनाथ भगवान - हसामपुरा Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होकर वि. सं. 1984 में पन्यासजी श्री मोती-विजयजी के सुहस्ते पुनः प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी । विशिष्टता यह अत्यन्त चमत्कारिक स्थल है, जब ही तो गत शताब्दियों में मन्दिरों पर अनेकों प्रहार होने पर भी इस प्रतिमा को कोई आँच नही आई । अभी भी चमत्कारिक घटनाएँ घटती रहती हैं । प्रति वर्ष भादरवा शुक्ला प्रतिपदा को जन्मावांचन के पश्चात् श्रावकगण बाजों-गाजों सहित प्रभु के दर्शनार्थ जाते है व आरती उतारी जाती है । कहा जाता है उस समय भोयरे में दिवालों पर पानी की बून्हें प्रकट होती हैं । हमेशा भक्तजनों को प्रभु के तीन रूप के दर्शन होते हैं, यानी बालावस्था, युवावस्था व प्रौढावस्था । जैनेतर भी काफी मात्रा में दर्शनार्थ आते रहते हैं । __ अन्य मन्दिर 8 मन्दिर के निकट ही एक और मन्दिर है जो लगभग 200 वर्ष प्राचीन बताया जाता है । वहाँ का भी जीर्णोद्धार चालू है । यहाँ के मणीभद्रस्वामी की मूर्ति अत्यन्त प्रभाविक व चमत्कारिक श्री आदीश्वर भगवान मन्दिर-बदनावर श्री बदनावर तीर्थ तीर्थाधिराज 8 श्री आदीश्वर भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 120 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल विंध्य पर्वतमाला के पठार पर समुद्र की सतह से 1650 फुट ऊँचाई पर स्थित बदनावर गाँव में । प्राचीनता कहा जाता है लगभग 2250 वर्ष पूर्व सम्राट अशोक के पौत्र श्री संप्रति राजा द्वारा इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा हुई थी । यहाँ उपलब्ध भग्नावशेषों से पता चलता है कि किसी समय यहाँ अनेकों जैन मन्दिर थे व यह एक विराट नगरी थी । मन्दिर भोयरे में है । अनेकों बार जीर्णोद्धार होने का भी संकेत मिलता हैं । अंतिम जीर्णोद्धार यहाँ के श्री संघ द्वारा 712 कला और सौन्दर्य मन्दिर का नवनिर्माण हो जाने के कारण प्राचीन कला कम नजर आती है । लेकिन यहाँ के विशाल प्राचीन जैन मन्दिरों के अवशेष और कई खण्डित मूर्तियाँ आदि प्राचीनता की याद दिलाते हैं । मार्ग दर्शन यहाँ से निकट का रेल्वे स्टेशन बड़नगर 18 कि. मी. दूर है, यह स्थल धार-रतलाम मुख्य मार्ग पर स्थित है । रतलाम यहाँ से 40 कि. मी. व उज्जैन 55 कि. मी. दूर है । रतलाम, इन्दौर धार, उज्जैन, राजगढ़ (धार), मन्दसोर से यहाँ के लिए सीधी बसे उपलब्ध है । यहाँ के बस स्टेण्ड से मन्दिर सिर्फ 400 मीटर दूर है । आखिर मन्दिर तक कार जा सकती है, लेकिन बस 200 मीटर दूर ठहरानी पड़ती है । सुविधाएँ ठरहने के लिए धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली की सुविधा उपलब्ध है। पेढ़ी 8 श्री आदिनाथ नाथूलाल जैन श्वेताम्बर मर्तिपूजक पेढी, पोस्ट : बदनावर (वर्धमानपुर) - 454 660. जिला : धार, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07295-33814 व 33736 पी.पी. Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदीश्वर भगवान-बदनावर 713 Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मक्षी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री मक्षी पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 105 सें. मी. । तीर्थ स्थल ग्राम मक्षी के अन्तर्गत सुरम्य सरोवर के तट पर एक भव्य परकोटे के मध्य I प्राचीनता इस प्रभु प्रतिमा का इतिहास अति प्राचीन बताया जाता है । ई. पू. सातवीं शताब्दी अर्थात् चौथे आरे की बताते है । ई. पू. दूसरी शताब्दी में यहाँ अनेकों जैन श्रावक व श्राविकाओं के रहने का उल्लेख है । ई. की दसवीं शताब्दी में परमार नरेशों द्वारा यहाँ जिन मन्दिर बनवाने के उल्लेख हैं । यह भी कहा जाता है कि ई. की ग्यारहवीं शताब्दी में जब मोहम्मद गजनवी ने भारत में विभिन्न मन्दिरों व मूर्तियों को क्षति पहुँचायी तब यह मन्दिर विद्यमान था व वे यहाँ भी आये थे । यहाँ आने पर भयानक रूप में बीमार पड़ गये व चमत्कार का अनुभव करने लगे । अतः फौज को आदेश दिया कि वे इस मन्दिर व प्रतिमा को कोई क्षति न पहुँचावें एवं यादगार स्वरूप मन्दिर के द्वार पर पाँच कंगूरे भी बनवाकर गये । 714 श्री पार्श्वनाथ भगवान-मक्षी कहा जाता है बड़ीयार देश के लोलाड़ा गाँव निवासी माण्डवगढ़ के खजाँची श्री संग्राम सोनी (श्री संग्राम सोनी पालनपुर निवासी होने का भी मत है) ने वि. सं. 1472 में इस मन्दिर का निर्माण करवाया था व प्रतिष्ठा आचार्य श्री सोमसुन्दरसूरीश्वरजी के सुहस्ते सम्पन्न हुई थी । एक और मतानुसार मन्दिर अति प्राचीन बताया जाने के कारण, हो सकता है खजांची संग्राम सोनी ने मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया हों । पार्श्व प्रभु की प्रतिमा अति ही सुन्दर, भव्य व चमत्कारिक है । यहाँ पर चमत्कारिक घटनाओं की अनेकों किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं । कहा जाता है कि एक समय प्रभु के छत्र धारक श्री धरणेन्द्र देव ने अपने फणों से दुग्ध धारा बहायी थी जिससे मन्दिर के मूल स्थान में दूध भर गया था । उपस्थित अनेकों भाग्यशाली भक्तों ने इस चमत्कारी घटना के दिव्य दर्शन का लाभ उठाया । विशिष्टता श्वेताम्बर व दिगम्बर बंधुगण अपनी-अपनी विधिपूर्वक बनाये हुए नियमानुसार पूजा करते है । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके निकट ही एक दिगम्बर मन्दिर विद्यमान है । उसके मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथ भगवान है । कला और सौन्दर्य प्रभु प्रतिमा का शिल्प सौन्दर्य यात्रीगणों को निरन्तर आकृष्ट करता रहता है। मार्ग दर्शन मक्षी रेल्वे स्टेशन से मन्दिर 11/2 कि. मी. दूर है, जहाँ से आटो की सुविधा है। मक्षी गाँव बम्बई - आगरा मार्ग पर उज्जैन से 40 कि. मी, व इन्दौर से 70 कि. मी. दूर है । मन्दिर तक पक्की सड़क है । सुविधाएँ स्टेशन के निकट ही दिगम्बर जैन धर्मशाला है, मन्दिर के निकट श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ है, जहाँ बिजली, पानी, बर्तन व भोजनशाला की भी सुविधा उपलब्ध है । पेढ़ी 1. श्री आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी, जैन श्वेताम्बर मन्दिर, पोस्ट : मक्षी - 465106. जिला : शाजापुर, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07363-32037 ( मक्षी ) । 2. श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिरान पेढ़ी, पोस्ट मक्षी - 465106. (म.प्र.), फोन : 07363-32028. Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IMAR श्री पार्श्वनाथ भगवान-मक्षी 715 Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पार्श्वनाथ भगवान-मक्षी 716 Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री विदिशा तीर्थ श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान (श्वे.)-विदिशा तीर्थाधिराज 1. श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, (श्वे. मन्दिर) । 2. श्री शीतलनाथ भगवान (दि. मन्दिर) । तीर्थ स्थल विदिशा के भग्नप्राय किले में । प्राचीनता विदिशा शहर को पूर्व में भेलसा । कहते थे । यहाँ के स्टेशन का नाम भी विदिशा है । पूर्वकाल में इसके नाम भाइलस्वामीगढ़, भद्रपुर, भदिलपुर, भद्रिलपुर आदि नामों से विख्यात रहने का व प्राचीनकाल में दशार्ण देश की यह राजधानी रहने का उल्लेख है अतः भाइलस्वामीगढ़, भद्दिलपुर आदि इसके अंग रहे होंगे । ये नगर वेत्रवती बितवा) नदी के तट पर स्थित है । __ श्री शीतलनाथ भगवान के तीन कल्याणकों (च्यवन, जन्म व दीक्षा) की भूमि भद्दिलपुर भी यही रहने का संकेत है । एक और मतानुसार प्रभु के ये कल्याणक बिहार प्रांत में गया जिले के अंतर्गत हटवारिया के निकट रहने का भी उल्लेख है । गया के निकट एक पहाड़ीपर प्रभु की तपोभूमी व मोक्ष स्थान भी बताते हैं। यह पूर्ण अनुसंधान का विषय है । परन्तु इस क्षेत्र में जगह जगह पर स्थित व भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन मन्दिरों, प्रतिमाओं, कलात्मक ध्वंसावशेषों व विभिन्न उल्लेखों से यह अवश्य सिद्ध होता है कि यह प्राचीन क्षेत्र है । अतः श्री शीतलनाथ भगवान की यह कल्याणक भूमि रहने की मान्यता संभवतः सही हो सकती है । श्री नेमिनाथ भगवान का यहाँ पदार्पण होने का भी उल्लेख है भगवान महावीर का पाँचवा चातुर्मास यहाँ होने का भी उल्लेख है । कहा जाता है कि सप्रति राजा का यहाँ महल था । प्रभ वीर के समय श्री विद्यन्माली देव द्वारा गोशीर्ष चन्दन से निर्मित प्रभु की प्रतिमा, जो जीवित स्वामी के नाम विख्यात थी, यहाँ रहने का व आर्य महागिरि व सहस्तिगिरि का यहाँ प्रतिमाजी के दर्शनार्थ आने का उल्लेख है । कुमारपाल राजा प्रतिबोधक आचार्य श्री हेमचन्द्राचार्य ने इस प्रभु प्रतिमा को राजकुमार के योग्य अलंकारों से सुशोभित बताया है । पुरातत्ववेता श्री उमाकांतशाह ने इस प्रतिमा को श्री विधुन्मालीदेव द्वारा ई. सं. पूर्व 561 के आसपास बनाई बताया है। एक अन्य मतानुसार यह प्रतिमा उज्जैन के राजा चन्डप्रद्योतन के पास व सिंधुसौवीर के राजा उदापन के पास भी रहने का भी उल्लेख है । परन्तु आज वह प्राचीन प्रतिमा कहाँ व किस मन्दिर में है, उसका पता नहीं है। यहाँ से निकट लगभग 4 कि. मी. दूर उदयगिरि पहाड़ी में जो विंध्याचल पर्वत का एक भाग है, व लगभग 2 कि. मी. लम्बाई व 350 फीट ऊँचाई में है, जहाँ 20 गुफाएँ हैं; जो स्थापत्यकला की दृष्टि से देश में सर्वाधिक प्राचीन गुफाओं में है । इनमें प्रथम व अंतिम गुफा जैन धर्म से सम्बंधित है, जहाँ जिनेश्वर भगवतों व यक्ष-यक्षी की प्रतिमाएँ विभिन्न आसनों व आकृतियों में अतीव दर्शनीय है । अंतिम गुफा में स्थित श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा अतीव मनोरम, कलात्मक व भावात्मक है जो आर्य भद्रशाखा के आर्य कुल के शूरवीर महासुभा को हराने वाले जन समूह के मान्य गौशरा के पुत्र श्री शंकर द्वारा सं. 106 में 717 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठित करवाने का उल्लेख है । इसी गुफा में श्री शीतलनाथ प्रभु की व श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाएँ भी अतीव प्रभाविक है । उपरोक्त स्थापत्य के अलावा भी यहाँ पर, व, यहाँ के निकटवर्ती स्थानों में, जगह-जगह प्राचीन मन्दिरों व मूर्तियों के भग्नावशेष नजर आते हैं । हाल ही में यहाँ उदयगिरि पहाड़ी के निकट उत्थखनन के समय अजोड़ जिन प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं । इसके निकट के स्थावर्त पर्वत पर आर्य वज्रस्वामी अपने 500 शिष्यों के साथ निर्वाण पद को प्राप्त होने का उल्लेख है । ऐसे महत्वपूर्ण स्थान पर अनेकों जिन मन्दिरों का निर्माण समय-समय पर हुवा ही होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं । परन्तु आज उन प्राचीन मन्दिरों के कुछ भग्नावशेष मात्र इधर-उधर नजर आते हैं, कालक्रम से उन्हें क्षति पहुँची होगी व कई भूमीगत हुवे होंगे, जैसा, अन्य कई जगहों पर पाया जाता है । वर्तमान स्थित मन्दिरों में श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान का श्वे. मन्दिरों में व श्री शीतलनाथ भगवान का दिगम्बर मन्दिरों में प्राचीनतम माना जाता है । 718 विशिष्टता इस पावन स्थल पर एक मान्यतानुसार प्रभु शीतलनाथ भगवान के (च्यवन, जन्म व दीक्षा) तीन कल्याणक होने के कारण यहाँ की मुख्य विशेषता है । इस भूमि में श्री महावीर प्रभु का भी चातुर्मास हुवा। प्रभु की प्रतिमा भी जीवितस्वामी के रूप में यहाँ रही, अतः यह भी यहाँ की महान विशेषता है । यहाँ प्राचीन गुफाओं में प्राचीन प्रभु प्रतिमाओं के दर्शन होना यह भी मुख्य विशेषता में है । भारत में कुछ ही पहाड़ों पर प्राचीन गुफाएँ हैं, जहाँ ऐसी कलात्मक प्राचीन प्रभु प्रतिमाएँ आदि दर्शनीय है । आर्य वज्रस्वामी का अपने 500 शिष्यों के साथ यहाँ स्वर्गारोहण को प्राप्त होना भी इस भूमि की महानता है । विदिशा से 30 कि. मी. दूर ग्यारसपुर में तथा 70 कि. मी. दूर बड़ोहह पठारी में प्राचीन जैन मन्दिर हैं जो केन्द्रीय पुरातत्व विभाग के आधीन हैं । अन्य मन्दिर वर्तमान में इनके अतिरिक्त एक श्री वासुपूज्य भगवान का श्वे. मन्दिर व 10 दि. मन्दिर है । कला और सौन्दर्य यहाँ पर गुफाओं म प्राचीन कलात्मक प्रतिमाएँ अतीव दर्शनीय हैं । गुफाओं श्री मुनिसुव्रतस्वामी जिनालय (श्वे) - विदिशा Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शीतलनाथ भगवान (दिगम्बर)-विदिशा के अलावा भी निकटवर्ती स्थानों पर अनेक कलात्मक अवशेष व भग्नावशेष दर्शनीय है । मार्ग दर्शन विदिशा सेन्ट्रल रेल्वे की मुख्य लाईन पर भोपाल और बीनाजंकशनों के मध्य रेल्वे स्टेशन है । यहाँ से रेल्वे स्टेशन एक कि. मी. दूर है। जहाँ से टेक्सी व आटो की सवारी का साधन है । यहाँ से इन्दौर लगभग 250 कि. मी. उज्जैन 250 कि. मी. व भोपाल 54 कि. मी. दूर है । सभी स्थानों पर हर प्रकार की सवारी का साधन है । सुविधाएँ ठहरने हेतु दि. धर्मशाला है । श्वे. धर्मशाला निर्माणाधीन है । भोजनशाला की योजना है। पेढ़ी 8 1. श्री जैन श्वेताम्बर समाज पेढ़ी, श्री मुनिसुव्रतस्वामी श्वे. मन्दिर अन्दर किला, ___ 2. श्री शीतलनाथ दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर ट्रस्ट, अन्दर किला, पोस्ट : विदिशा - 464 001. प्रान्त : मध्य प्रदेश, फोन : 07592-323 58 व 33172 (श्वे.) पी.पी 07592-32088 व 32369 (दि.) पी.पी श्री शीतलनाथ भगवान जिनालय (दिगम्बर)-विदिशा 719 Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 720 श्री चन्द्रप्रभ भगवान जिनालय प्रवेश द्वार श्री सोनागिर तीर्थ तीर्थाधिराज श्री चन्द्रप्रभ भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा में लगभग 3.66 (12 फुट ) (दि. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल सनावल गाँव के पास अनेकों मन्दिरों के साथ एक पहाड़ी पर सुशोभित । प्राचीनता प्राचीन काल में इसे श्रवणगिरि कहते थे । विक्रम संवत् 335 में इस तीर्थ के जीर्णोद्धार होने का उल्लेख है । इसके पूर्व इतिहास का पता लगाना कठिन है । मन्दिर को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि विक्रमी संवत् 335 के बाद अनेकों बार इस मन्दिर का जीर्णोद्धार हुआ होगा । विशिष्टता दि. जैन शास्त्रों के अनुसार नंग, अनंग आदि अनेकों मुनियों ने यहाँ निर्वाण प्राप्त किया । अष्टम तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभ भगवान का समवशरण यहाँ पर भी रचा गया था, ऐसा उल्लेख मिलता है । अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त शिखर युक्त अन्य 126 मन्दिर भी इस पहाड़ी पर हैं जिनके शिखरों का दूर से दर्शन होता है। पहाड़ी की तलहटी में 25 मन्दिर हैं । श्री चन्द्रप्रभ भगवान मन्दिर-सोनगिर Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कला और सौन्दर्य इस रमणीक पहाड़ी पर मन्दिर निर्माण कला का सौन्दर्य एवं शैली की विशेषता सहज ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेते हैं । यहाँ जितने मन्दिर हैं, उन सबों की निर्माण शैली एक दूसरे से भिन्न है । पहाड़ पर नारियल कुण्ड है जो एक शिला में नारियल के आकार का फटा हुआ है । एक और शिला है जिसे बजाने पर धातु जैसी स्वर ध्वनि पैदा होती है । इसी कारण उसे बजनी शिला कहते हैं। पहाड़ी पर स्थित इन मन्दिरों के समूह का दृश्य आकर्षक है । तीर्थ स्थल की सफाई तथा अन्य व्यवस्थाएँ प्रशंसनीय है । मार्ग दर्शन तीर्थ स्थल के नजदीक का रेल्वे स्टेशन सोनागिर है जो तलहटी से 4 कि. मी. की दूरी है । स्टेशन से बस और टेक्सी की सुविधा है । ग्वालियर से झाँसी सड़क मार्ग पर स्थित दतिया गाँव से सोनगिरि 5 कि. मी. की दूरी पर है । यहाँ से ग्वालियर 65 कि. मी. व झाँसी 40 कि. मी. दूर है। तलहटी तक पहुँचने के लिए पक्की सड़क है तथा पहाड़ी पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है । सुविधाएँ तलहटी में यात्रियों के ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त 21 धर्मशालाएँ है, जिनमें भोजनशाला की भी सुविधाएँ उपलब्ध है । पेढी श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र सोनागिर संरक्षणी कमेटी, पोस्ट : सोनागिर - 475 685. जिला : दतिया, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07522-62222, 62223 व 62375. itarwar 75 Bhander DATIA श्री चन्द्रप्रभ भगवान-सोनगिर Udaawan Unao 721 Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री थुवौनजी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, खड्गासन, लगभग 9.14 मी. ( 30 फुट) (दि. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल बुन्देलखंड की पावन तीर्थ श्रंखला में उर्वणी और लीलावती इन युगल सरिताओं के मध्य विंध्याचल पर्वतमाला की गोद में बसा युवौनजी गांव में । प्राचीनता यहाँ प्राप्त अवशेषों से ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि किसी समय यहाँ एक विशाल नगरी रही होगा व अनेकों जिन मन्दिर रहे होंगे । सेठ श्री पाना शाह के द्वारा 12वीं शताब्दी में यहाँ मन्दिर बनवाने का उल्लेख है । अन्य मन्दिर इसके बाद क्रमशः बने हैं। इससे प्रतीत होता है कि सदियों तक यहाँ जाहोजलाली रही । विशिष्टता इस भाँति की बनावट के मन्दिर भारत में अन्यत्र नहीं मिलेंगे, जहाँ प्रतिमाएँ शिखर से बड़ी हो । मन्दिर के प्रवेश द्वार से प्रभु की पूर्ण प्रतिमा का दर्शन होना सम्भव नहीं है । क्योंकि प्रभु प्रतिमा 722 का लगभग आधा भाग प्रवेश द्वार की सतह से नीचा है । ऐसा लगता है कि पहले मूर्ति की स्थापना कर, बाद में शिखर बनवाये गये हैं । कहा जाता है कि फाल्गुन, आषाढ़ श्रावण तथा भादों माहों की अर्ध रात्रि में, मन्दिरों में कभी-कभी देवों द्वारा भक्ति से परिपूर्ण, सुमधुर गीतों की स्वर लहरी सुनायी देती है । आस-पास के ग्रामीण लोग यहाँ आकर श्रद्धा और भक्ति के साथ फल-फूल चढ़ाते हैं । उनके कथानुसार यहाँ आकर मनौती मानने से उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है । अन्य मन्दिर इस मन्दिर के अतिरिक्त निकट ही 26 और जिनालय है । कला और सौन्दर्य युगल सरिताओं के मध् य स्थित इस क्षेत्र का प्राकृतिक सुषमा तो अवर्णनीय है ही, उसके साथ साथ यहाँ की प्राचीन शिल्पकला भी अपना विशिष्ट स्थान रखती है । यहाँ स्थित सभी मन्दिरों की प्रतिमाएँ खड्गासन में, विभिन्न कलाओं का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती हैं । मार्ग दर्शन यहाँ से निकट का रेल्वे स्टेशन अशोक नगर 30 कि. मी. की दूरी पर स्थित है । जहाँ मन्दिरों का दूर दृश्य-थुवौनजी Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से बस व टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है । यहाँ से ललितपुर 50 कि. मी. दूर है, जहाँ से राजघाट बाँध और चन्देरी होकर आना पड़ता है । यहाँ से चन्देरी लगभग 18 कि. मी. दूर है । - सुविधाएँ ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त धर्मशालाएँ है, जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधाएँ उपलब्ध है । पेढी श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र थुवौनजी, पोस्ट : थुवौनजी - 473 331. तहसील : चन्देरी, जिला : गुना, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07547-56209 व 56210. श्री आदिनाथ प्रभु-थुवौनजी 723 Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अहारजी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री शान्तिनाथ भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा, हरित वर्ण, लगभग 5.5 मीटर (दि. मन्दिर) । तीर्थ स्थल अहार गाँव के निकट मदनेस सागर एवं सुरम्य पहाड़ियों के मध्य । प्राचीनता प्राचीन काल में मदनेसपुर, मदनेसागरपुर, वसुहारिकपुर तथा नन्दनपुर आदि नामों से यह तीर्थ स्थल प्रसिद्ध था । श्री मल्लिनाथ भगवान के समय मदनकुमार केवली का निर्वाण यहीं हुआ था । इसी कारण प्राचीन काल में इसका नाम मदनेसपुर पड़ा था, ऐसी किंवदन्ती है । कहा जाता है कि 724 श्री पाना शाह जिन दिनों यहाँ पड़ाव डाले हुए थे, उन दिनों अनेकों मुनिराजों का यहाँ पारण ( अहार) हुआ करता था । इसलिए इस स्थान का नाम अहार पड़ा। यह एक प्राचीन तीर्थ है । यहाँ पर अनेकों जिन मन्दिर ये जिनके अवशेष आज भी यहाँ के आसपास की पहाड़ियों पर पाये जाते हैं । प्रतिमा पर अंकित शिलालेख के अनुसार, कलाकार श्री पापट द्वारा निर्मित इस भव्य शान्त प्रतिमा का प्रतिष्ठापन यहाँ के राजा श्री मदन वर्मा के शासन काल में सेठ रलहण जी ने विक्रमी सं. 1237 में करवाया था । यहाँ के शिलालेखों में जैन समाज की 32 अन्तर्जातियों का व भट्टारकों के शिष्य प्रशिष्यों एवं आर्यकाओं की शिष्यणी, प्रशिष्यणियों का वि. सं. 1200 से 1607 तक का उल्लेख मिलता है । आहारजी मन्दिर का दूर दृश्य Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशिष्टता यहाँ से लगभग चार फल्ग (1.0 कि. मी.) की दूरी पर एक स्थल कोटे पर्वत के नाम से प्रसिद्ध है । कहा जाता है यहीं पर मदनेस कुमार और विस्कंवल केवलियों ने निर्वाण प्राप्त किया था इसके पूर्व दिशा में मदनेसागर है, जो पहाड़ियों से घिरा हुआ है । श्री पानाशाह द्वारा खरीदा हुआ रांगा मूर्ती बननेवाली शिला से स्पर्श होने से चाँदी बन जाने की कथा प्रचलित है । यहाँ पर अभी भी अनेकों प्रकार की चमत्कारिक घटनाएँ घटती रहती हैं । प्रति वर्ष मार्गशीर्ष शुक्ला 13 से पूर्णिमा तक वार्षिक मेला होता है । तब हजारों यात्रीगण इकट्ठे होकर प्रभु-भक्ति का लाभ लेते हैं । अन्य मन्दिर इसी परकोटे में सात और मन्दिर हैं । चार फलाँग (1.0 कि. मी.) दूर एक पर्वत पर मदनेशकुमार और विस्कंवल केवलियों के निर्वाण स्थान पर, एक प्राचीन मन्दिर है जिसका जीर्णोद्धार हाल ही में हुआ था । कला और सौन्दर्य प्रतिमा सुन्दर और कलात्मक है जिसे देखने पर ऐसा लगता है कि प्रतिमा पन्ने की बनी है । एक ही शिला में निर्मित दसवीं सदी का एक युगल मानस्तम्भ दर्शनीय है । तीर्थ स्थान के निकट तीन मील (4.8 कि. मी.) लम्बा पुरातन मदनेश सागर है । मार्ग दर्शन यहाँ से निकट का रेल्वे स्टेशन ललितपुर 82 कि. मी. तथा निपाडी 92 कि. मी. है। यह स्थल बलदेवगढ़-छत्तरपुर मार्ग में टीकमगढ़ से 24 कि. मी. व झाँसी से 120 कि. मी. दूर है। इन स्थानों से टेक्सी व बसों की सुविधाएँ हैं । आखिर तक पक्की सड़क है । सुविधाएँ ठहरने के लिए मन्दिर के निकट ही सर्वसुविधायुक्त विशाल धर्मशालाएँ है, जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधाएँ उपलब्ध है । पेढ़ी 8 श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र, अहारजी । पोस्ट : अहार - 472 001. जिला : टीकमगढ़, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07684-55230 पिढ़ी) 07683-32345 (मंत्री कार्यालय टीकमगढ़) श्री शान्तिनाथ भगवान-आहारजी 725 Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पपोराजी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, श्याम वर्ण पद्मासनस्थ, लगभग ढाई फुट (दि. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल टीकमगढ़ से तीन मील दूर टीकमगढ़ - जबलपुर राजकीय मार्ग में समतल भूमि पर विस्तृत परकोटे के बीच विशाल गगन चुम्बी शिखरों युक्त 108 मन्दिरों के साथ | प्राचीनता कहा जाता है कि इसका प्राचीन नाम पम्पापुर था । इस प्राचीन तीर्थ स्थल के मन्दिरों में कई प्रतिमाओं पर विक्रम की 12 वीं सदी के लेख उत्कीर्ण हैं । इस तीर्थ का अन्तिम जीर्णोद्धार विक्रम सं. हुआ जब प्रतिष्ठा आचार्य श्री धर्मकीर्तिजी, भट्टारकजी श्रीपद्मकीर्तिजी व सकल कीर्तिजी द्वारा सम्पन्न हुई थी । तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान की प्राचीन प्रतिमा भोयरे में है जिसपर सं. 1202 का लेख उत्कीर्ण है । 1718 726 * विशिष्टता तीर्थ स्थल के आस-पास फैले हुए घने जंगल को रमन्ता (रामारण्य) कहते हैं । कहा जाता है रघुपति श्री रामचन्द्रजी ने अयोध्या से ओरछा के प्रवास काल में इन वनों में निवास किया था । यहाँ पर अनेकों प्रकार की चमत्कारिक घटनाएँ घटती आ रही हैं जैसे बावड़ी के अन्दर से मनचाहे बर्तन निकलना, मन्दिर प्रतिष्ठा के समय कुएँ में अकस्मात ही पानी भर आना, ज्वर, तिजारी और एकतरा बीमारी से भक्तजनों का मुक्त होना आदि अनेकों उदाहरण मिलते हैं । यह कुआँ कभी खाली नहीं होता । कुएँ का नाम 'पतराखन' है । आज भी अनेक भक्तगण यहाँ आकर बीमारी से मुक्त होते हैं । प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ला 13 से कार्तिक पूर्णिमा तक मेला लगता है । अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त इसी विशाल परकोटे में गगनचुम्बी शिखरों युक्त विभिन्न शैली के 108 मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य यहाँ पर भोयरे में स्थित मूर्तियाँ प्राचीन, अति आकर्षक व सुन्दर हैं । एक ही गगनचुम्बी शिखरों युक्त मन्दिरों का दृश्य पपोराजी Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदीश्वरजी भगवान-पपोराजी पेढ़ी श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, पपोराजी पोस्ट : पपौराजी - 472 001. जिला : टीकमगढ़, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07683-44378. स्थान पर इतने मन्दिरों का समूह दूर से अति रोचक व दिव्य नगरी जैसा प्रतीत होता है । मार्ग दर्शन यहाँ से निकट के रेल्वे स्टेशन ललितपुर 55 कि. मी. व झाँसी 96 कि. मी. दर है। निकट का बड़ा गाँव टीकमगढ़ केवल 5 कि. मी. दूरी पर है । इन जगहों से टेक्सी व बस की सुविधाएँ है। मन्दिर तक पक्की सड़क है । सुविधाएँ यहाँ पर ठहरने के लिए 4 सर्वसुविधायुक्त विशाल धर्मशालाएँ है, जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधाएँ उपलब्ध है । TIKAMGARH 27 Baldevgarh Khargapur STIKAMGARH & TIKAMGARH 727 Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नैनागिरि तीर्थ तीर्थाधिराज श्री पार्श्वनाथ भगवान, बादामी वर्ण, पद्मासनस्थ, खड्गासन 335 सें. मी. (दि. मन्दिर)। तीर्थ स्थल छोटे से रेषन्दीगिरि गाँव के निकट के एक साधारण ऊँची पहाड़ी पर । प्राचीनता यह तीर्थ पार्श्वनाथ भगवान के समय का बताया जाता है । लेकिन सदियों तक यह तीर्थ अलोप रहा व लगभग दो सौ वर्ष पूर्व एक भक्त को आये स्वप्न के आधार पर इस पर्वत पर खुदाई करायी गयी । वहाँ पर एक प्राचीन मन्दिर भूगर्भ से निकला जो पार्श्वनाथ मन्दिर कहलाता है । मन्दिर की दीवार पर उत्कीर्ण एक शिलालेख में सं. 1109 में इस मन्दिर के निर्माण होने का उल्लेख मिलता है । भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन प्रतिमाएँ भी इसी काल की बतायी जाती है । विशिष्टता कहा जाता है कि पार्श्वनाथ भगवान का समवसरण यहाँ भी हुआ था व समवसरण में स्थित मुनीन्द्रदत्त, इन्द्रदत्त, वरदत्त, गुणदत्त व सारदत्त मुनियों ने यहीं पर तप करके निर्वाण प्राप्त किया था। इन पाँचों मुनियों की मूर्तियाँ भी इसी श्री पार्श्वप्रभु की अलौकिक प्राचीन प्रतिमा श्री नैनागिरि मन्दिर समूहों का दृश्य-श्री नैनागिरि 728 Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिर में हैं । यहाँ पर चमत्कारिक घटनाएँ भी अनेकों बार घटती रहती हैं । क्षेत्र के निकट नदी की धारा के मध्य 1524 सें. मी. (50 फुट) ऊँची एक पाषाण शिला है। कहा जाता है वरदत्त आदि मुनिगण इसी शिला पर तपश्चर्या करते हुए मुक्त हुए थे । इसे सिद्ध-शिला कहते हैं । यहाँ पर प्रति वर्ष मिगसर शुक्ला 13 से पूर्णिमा तक वार्षिक मेला होता है । अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त पहाडी पर 40 मन्दिर और हैं । इनके अलावा तलहटी में और 14 मन्दिर हैं । इनमें एक मन्दिर सरोवर के मध्य में पावापुरी के समान बना हुआ है । उसे जल मन्दिर कहते हैं । कला और सौन्दर्य विक्रम के 12वीं शताब्दी की भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन प्रतिमाएँ दर्शनीय हैं । यहाँ का प्राकृतिक दृश्य मनोरम है । मार्ग दर्शन यहाँ से निकट का रेल्वे स्टेशन सागर 56 कि. मी. की दूरी पर स्थित है । यहाँ से नजदीक के गाँव शाहगढ़ 40 कि. मी. तथा वक्सवा 24 कि. मी. दूर है । इन स्थानों से बस व टेक्सी की सुविधाएँ है । तलहटी तक जाने के लिए पक्की सड़क है । सागर-छत्तरपुर के बीच में दलपतपुर होकर यहाँ आना पड़ता है । यहाँ से दलपतपुर 13 कि. मी. है। सुविधाएँ तलहटी में ठहरने के लिए 5 धर्मशालाएँ है, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की भी सुविधाएँ उपलब्ध है । __ पेढ़ी 8 श्री सिद्ध क्षेत्र रेषन्दीगिरि (नैनागिरि) पोस्ट : नैनागिरि - 470339. (शाहगढ़), जिला : छत्तरपुर, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07583-22020. Hirapur / Shahgarh. Baraitha akswahoo Rurawan Mariado Gaisabad Son Dalpatpuro 18629 Banda Hatta Batiagarh 321 Paterao Kartapur Patharia श्री पार्श्वनाथ भगवान-श्री नैनागिरि DAMOH DAMOH SAR Sagon Garhakota 729 Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त इस पहाड़ पर 31 मन्दिर और हैं । यहाँ एक गुफा है । कहा जाता है कि इसी गुफा में मुनिवर श्री गुरुदत्तजी ने कठोर तपस्या की थी । मुनिवर की चरण पादुकाएँ इस गुफा में विद्यमान हैं । तलहटी में दो मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य विविध प्रकार की जड़ी बूटियों युक्त इस सुरभि से सुगन्धित पर्वत पर, विभिन्न जिनालयों का अनुपम दिव्य दृश्य बड़ा ही अद्भुत सा लगता है । मार्गदर्शन 8 यहाँ से निकट के रेल्वे स्टेशन हरपालपुर 96 कि. मी. तथा सागर 103 कि. मी. है। यहाँ से निकट का गाँव बड़ामलहरा है जो छत्तरपुर-सागर रोड़ पर स्थित है । बड़ामलहरा से इस स्थान की दूरी 7 कि. मी. है । इन स्थानों से आटो, टेक्सी व बसों की सुविधाएँ उपलब्ध है । तलहटी तक पक्की सड़क है । तलहटी से पहाड़ की चढ़ाई 1 कि. मी. है । पहाड़ पर चढ़ने के लिए 150 सीढ़ियाँ बनी हुई है । यहाँ से छत्तरपुर 60 कि. मी. टीकमगढ़ 60 कि. मी., पपोराजी तीर्थ 56 कि. मी., अहारजी तीर्थ 51 कि. मी. व रेषन्दीगिरि तीर्थ 81 कि. मी. दूर है। सुविधाएँ तलहटी में ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधाएँ उपलब्ध है ।। पेढ़ी 8 श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र द्रोणगिरि ट्रस्ट, पोस्ट : द्रोणगिरि - 471 311. जिला : छत्तरपुर, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07689-52209 व 52206. श्री आदीश्वर भगवान-द्रोणगिरि श्री द्रोणगिरि तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 61 सें. मी. (दि. मन्दिर)। तीर्थ स्थल द्रोणगिरि गाँव के निकट एक छोटे से पहाड़ पर, जिसे द्रोणगिरि सन्थप्पा भी कहते हैं । प्राचीनता पहाड़ पर स्थित अनेकों मन्दिरों और प्राचीन अवशेषों से ज्ञात होता है कि यह तीर्थ अति प्राचीन है जिसकी प्राचीनता का निश्चित पता लगाना कठिन है । विशिष्टता यह गुरुदत्त मुनिजी की तपोभूमि है । यहाँ पर उन्होंने कठोर तपस्या की थी । यहाँ पर यह किंवदन्ति भी प्रचलित है कि अयोध्यापति श्री राम व लंकापति रावण के बीच हुए युद्ध में घायल हुए श्री राम के अनुज श्री लक्ष्मण की प्राण-रक्षा के लिए भक्त शिरोमणि श्री हनुमानजी इसी पर्वत से संजीवनी बूटी ले गये थे । 730 Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के निर्माण कराये जाने का तथ्य व मन्दिर की पूजा व्यवस्था के लिए श्री पाहिल द्वारा सात वाटिकाओं के भेंट का उल्लेख है मूलनायक श्री शान्तिनाथ भगवान की प्रतिमा की पीठिका पर संवत् 1084 का लेख है। विशिष्टता शिल्प और कला की दृष्टि से खजुराहो पूरी दुनियाँ में प्रसिद्ध है । पत्थरों पर खुदी हुई यहाँ की कलात्मक प्रतिमाओं का अन्यत्र दर्शन दुर्लभ है । अन्य मन्दिर 125.6 मीटर (412 फुट) लंबे और 76.2 मीटर (250 फुट) चौड़े, अर्थात् 103000 वर्ग फुट भूमि परिवेष्टित परकोटे के अन्दर कुल 34 मन्दिर हैं जिनमें 22 शिखरयुक्त हैं । इस मन्दिर समूह के पश्चिम में निकट ही एक प्राचीन जैन मन्दिर के अवशेष है जिसे घोटाई मन्दिर कहते है । उपरोक्त मन्दिरों के अतिरिक्त श्री शान्तिनाथ संग्रहालय है । उसमें अनेक सुन्दर कलाकृतियों का संग्रह है । कला और सौन्दर्य 8 यहाँ के जैन मन्दिर विशेषतः श्री पार्श्वनाथ मन्दिर, श्री आदिनाथ मन्दिर व श्री शान्तिनाथ मन्दिर अपनी विशालता, कलागत विशेषता तथा सौन्दर्य के कारण विश्व-विख्यात हैं । छोटे बड़े शताधिक शिखरों से सज्जित श्री पार्श्वनाथ मन्दिर की श्री पार्श्वनाथ भगवान कलात्मक मन्दिर-खजुराहो शिखर संयोजना नयनाभिराम है । प्रवेश द्वार के मुख्य तोरण के बीच में दो अर्हत् प्रतिमाओं का अंकन करके इनके दोनों ओर छः छः साधु उनकी वन्दना करते हुए श्री खजुराहो तीर्थ दिखाये गये हैं । गर्भगृह के द्वार पर गंगा, यमुना, चक्रेश्वरी, सरस्वती तथा नवग्रह आदि का अत्यन्त तीर्थाधिराज श्री शान्तिनाथ भगवान, कायोत्सर्ग, सजीव अंकन हुआ है । परिक्रमा में देव-देवियों, लाल वर्ण, 4.27 मीटर (14 फुट) (दि. मन्दिर)। अप्सराओं आदि के बड़े मनोहर अंकन हैं तथा बीच-बीच तीर्थ स्थल खजुराहो से लगभग एक किलोमीटर में तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं । तीर्थंकर प्रतिमाओं को केन्द्र बनाकर कुबेरयुगल, द्वारपाल, दिग्पाल तथा गजारूढ़ पूर्व की ओर खुड़नदी के तट पर ।। जैन शासन देवताओं का अंकन है । इस मन्दिर में प्राचीनता 8 खजुराहो के जैन मन्दिरों का श्रृंगार करती हुई सुन्दरी, पगतल मे आलता लगाती निर्माण चन्देलों के राजत्वकाल में विक्रम की नवमी हुई कामिनी, नेत्र को अंजनशलक का स्पर्श देती हुई शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी तक हुआ । चन्देल सुलोचना, नूपुर बांधती हुई नृत्योधता किन्नर बाला, पंच नरेश धंग के राजत्वकाल (संवत् 950 से 1002 तक) शर हाथ में लिये हुए कामदेव, हाथों में सुरभित में राज्य सम्मान प्राप्त जैन श्रेष्ठि पाहिल के द्वारा पुष्पमाल लिये हुए विद्याधर युगल, नाना वादिभ बजाते सुविशाल व मनोरम श्री पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर हुए गन्धर्व किन्नर किन्नरियों आदि की विख्यात छबियाँ का निर्माण कराया गया । इस मन्दिर के द्वार पर अंकित हैं । प्रसिद्ध पुरातत्वज्ञ व कलामर्मज्ञ श्री विक्रम संवत् 1011 का उत्कीर्ण एक शिलालेख है ____फर्ग्युसन के शब्दों मे “समूचे मन्दिर का निर्माण जिसमें महाराजा धंग के राज्यकाल में इस जिनालय वास्तव में इस दक्षता के साथ हुआ है कि संभवतः 731 Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थापत्य में इसके जोड़ की कोई रचना नहीं है, जो इस मन्दिर के अत्यन्त सुन्दर आकार और शिखरसंयोजन की सूक्ष्म विवेचना से युक्त कलागत समृद्धि की समानता कर सकें ।" श्री आदिनाथ मन्दिर अपने ऊँचे शिखर की सादगी और उस पर रखे हुए कलश की भव्यता, ऊपर के सूचीचक्र, आमलक और कुंभकलश की मनोहरता के लिए प्रसिद्ध है । प्रवेश द्वार पर दोनों ओर गंगा, यमुना और द्वारपाल अंकित हैं । बाह्य भित्तियों के ऊपर की छोटी पंक्तियों में गन्धर्व किन्नर और विद्याधर तथा शेष दो पंक्तियों में शासन देवता, तथा अप्सरायें आदि अंकित हैं । इन पट्टिकाओं के कोणों पर आदिनाथ के शासन सेवक गोवदन का बड़ा सुन्दर और वैचित्रपूर्ण अंकन है। आरसी देखकर सीमत में सिन्दूर आलेखन करती हुई रूपगविंता, आरसी देखकर नयन आंजती हुई सुनयना, अप्रिय संवाद भरा पत्र पढ़ती हुई चिन्तित अप्सरा, बालक पर ममता उँडेलती हुई जननी आदि के चित्रण भी बहुत ही सजीब बन पड़े है । श्री शान्तिनाथ मन्दिर में भगवान शान्तिनाथ की मनोज्ञ प्रतिमा तो है ही । साथ ही साथ उसमें अन्य श्री धरणेन्द्र पद्मावती की अद्वितीय प्राचीन प्रतिमा मन्दिर का बाह्यय दृश्य-खजूराहो 732 Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनेक विशिष्ट कलाकृतियों के अतिरिक्त धरणेन्द्र पद्मावती की एक अत्यन्त चित्ताकर्षक प्रतिमा है, जो अद्वितीय है। मार्ग दर्शन तीर्थ स्थल के नजदीक के रेल्वे स्टेशनों में मध्य रेल्वे की झांसी, मानिकपुर लाईन पर अवस्थित हरपालपुर व महोबा तथा हावडा-बम्बई लाईन पर अवस्थित सतना स्टेशन प्रमुख है। इन सभी स्टेशनों से खजुराहों के लिए बसे व टेक्सीयाँ उपलब्ध है। यहाँ पर झाँसी, भोपाल, सतना व सागर से भी सीधी बसें नियमित रूप से आती है । खजुराहो वायु मार्ग से भी जुड़ा है । दिल्ली से काठमांडु वाया आगरा, खजुराहो व वाराणासी जानेवाला वायुयान नित्य प्रति खजुराहो आता जाता है । यह स्थान महोबा से 55 कि. मी. दक्षिण, पन्ना से 43 कि. मी. पश्चिमोतर तथा छत्तरपुर से 46 कि. मी. पूर्व में पड़ता है । यहाँ से सतना 120 कि. मी., द्रोणगिरि तीर्थ 100 कि. मी. व रेषन्दीगिरि तीर्थ 165 कि. मी. दूर है । __ सुविधाएँ 8 ठहरने के लिए मन्दिर के परकोटे में ही सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधा उपलब्ध है । __ पेढ़ी श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र खजुराहो, पोस्ट : खजुराहो - 471 606. जिला : छत्तरपुर, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07686-74148. Y.P] NowgongM alhara Chandla Maharajpur CHHATARPUR Rajnagar श्री शान्तिनाथ भगवान-खजूराहो Isanagar Khajuraho Basari 75 .Ganj/31 CHHATARPUR o Gulganj Nonapanji PANNA 733 Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कुण्डलपुर तीर्थ तीर्थाधिराज 8 श्री आदिनाथ भगवान, (बड़े बाबा) लाल वर्ण, पद्मासनस्थ, (लगभग 15 फुट) । (दि. मन्दिर)। तीर्थ स्थल तलेटी में बसे हुए कुण्डलपुर गाँव से लगे हुए कुण्डलाकर पर्वत पर । प्राचीनता तीर्थ बहुत प्राचीन है जिसकी प्राचीनता का पता लगाना कठिन है । यह भव्य चमत्कारिक प्रभु प्रतिमा भी लगभग पच्चीस सोह वर्ष पूर्व की मानी जाती है, जो सदियों से बड़े बाबा के नाम से विख्यात है । हर तीर्थ का समय-समय पर जीर्णोद्धार होता ही है उसी भान्ति यहाँ का भी जीर्णोद्धार वि. सं. 1548 में हुवा था, ऐसा उल्लेख है । वर्तमान में संतशिरोमणी प. पूज्य 108 आचार्य भगवंत श्री विद्यासागरजी म. सा. से प्रेरणा पाकर अभी पुनः भव्य जीर्णोद्धार कार्य प्रारंभ किया गया है ।। विशिष्टता यह तीर्थ श्रीधर केवली का मुक्ति स्थान है । कहा जाता है कि वि. सं. 1142 में नन्दी संग के आचार्य प. पूज्य श्री पद्मनन्दीजी ने इसी क्षेत्र में रहकर चूलिका सिद्धांतवृति की 1200 श्लोक प्रमाण की रचना की थी । प्रभु की गादी में दो शेर बने रहने के कारण पूर्व में कई पण्डित श्री महावीर भगवान की प्रतिमा मान रहे थे अतः पूर्व प्रकाशित तीर्थ-दर्शन में भी मूलनायक श्री महावीर भगवान बताया है । परन्तु उसी गादी में दोनों तरफ बने प्रभु के यक्ष-यक्षिणी के आयुध आदि का निरक्षण करने पर निश्चय हुवा कि श्री आदिनाथ प्रभु की प्रतिमा है। प्रभु प्रतिमा बहुत ही अतिशयकारी व सौम्य है जो यहाँ के ग्रामवासियों में बड़े बाबा के नाम से विख्यात है । यहाँ पर ग्रामवासी लोग एवं अन्य यात्रीगण हमेशा सैकड़ों की संख्या में बड़े ही भक्ति व श्रद्धा पूर्वक आते रहते है । यहाँ अनेकों चमत्कारिक घटनाएँ घटती रहती हैं । पद्मासन में इतनी प्राचीन भव्य श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा संभवतः अन्यत्र कहीं नहीं है । अन्य मन्दिर इस मन्दिर के अतिरिक्त पहाड़ पर 46 और मन्दिर हैं तथा तलहटी में 18 मन्दिर हैं। कला और सौन्दर्य बड़े बाबा की कलात्मक भव्य चमत्कारिक प्रतिमा का जितना भी वर्णन किया जाय, कम है । पहाड़ पर मन्दिर समूहों का दृश्य अति ही रोचक हैं । पहाड़ की तलहटी में एक विशाल वर्धमान सागर' नामक तालाब है जो इस स्थान की शोभा और भी बढ़ाता है । मन्दिर समुहों का अलौकिक दृश्य-कुण्डलपुर 734 Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदीश्वर भगवान (बड़ेबाबा) कुण्डलपुर मार्ग दर्शन तीर्थ स्थल के नजदीक का रेल्वे स्टेशन दमोह है जो बीना-कटनी रेल्वे जंक्शन के मध्य व जबलपुर-सागर के सड़क मार्ग के मध्य स्थित है। जो यहाँ से 38 कि. मी. दूर है । यहाँ से नजदीक 3 कि. मी. दूर है । यहा से नजदीक का बड़ा गाँव 'हटा' लगभग 16 कि. मी. है । दमोह और हटा से बस और टेक्सी की सुविधाएँ हैं । धर्मशाला तक पक्की सड़क है। सुविधाएँ ठहरने के लिए यहाँ पर सर्वसुविधायुक्त 5 धर्मशालाएँ व 4 रेस्ट हाऊस है, जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधा है । पहाड़ पर भी पानी, बिजली की सुविधा हैं । तलेटी से पहाड़ पर जाने के लिए पक्की सीढ़ियाँ हैं । पेढ़ी 8 श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर, पोस्ट : कुण्डलपुर - 470 775. तहसील : हटा जिला : दमोह, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन : 07605-72230, 72227 व 72293. 735 Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन प्रार्थना मंदिर (चेन्नई) प्रासायनिक मन्दिर निर्माण सम्बंधि समारोहों में 卐 पावन निश्रा ओवं आशीष प्रदाता) खात ऐवं शिलान्यास मुहूर्त प्रदाता - प.पु. आचार्य भगवंत श्री पद्मसागर सूरीश्वरजी म.सा. खात मुहूर्त व शिलान्यास समारोह - प.पु. आचार्य भगवंत श्री नवीनसूरीश्वरजी म.सा. आदि. प्रभु प्रतिमाओं भराकर प्रतिष्ठा करवाने - प.पू. आचार्य भगवंत श्री अशोक रत्न सूरीश्वरजी म.सा. आदि. के चटावों का समारोह मन्दिर निर्माण कार्य प्रारंभिक समारोह - प.प. आचार्य भगवंत श्री भुवन भानु सूरीश्वरजी म.सा. आदि. अंजनशलाका व प्रतिष्ठा समारोह - प.पु. आचार्य भगवंत श्री कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. आदि. 736 Page #261 --------------------------------------------------------------------------  Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ STIMA Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ વર Page #264 -------------------------------------------------------------------------- _