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________________ श्री माण्डवगढ़ तीर्थ तीर्थाधिराज श्री सुपार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, लगभग 91.4 सें. मी. (3 फुट) (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल विंध्य पर्वत के एक उच्च शिखर पर स्थित माण्डव दुर्ग (जो आजकल 'माण्डु' के नाम से प्रसिद्ध है) में विशाल परकोटे के अन्दर । प्राचीनता वीर वंशावली के अनुसार श्री संग्राम सेानी ने मक्षी में श्री पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर की प्रतिष्ठापना करवायी । उन दिनों माण्डवगढ़ में भी श्री सुपार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर की प्रतिष्ठा करवायी थी, इससे संभवतः विक्रम संवत् 1472 में यह तीर्थ पुनः सुसंपादित हुआ है । तत्पश्चात् और भी जीर्णोद्धार हुए हैं, ऐसा प्रतीत होता है । विशिष्टता 8 वीर निर्वाण की 18 वीं से 22 वीं शताब्दियों के अन्तर्गत यहाँ अनेकों शूर-वीर जैन मन्त्री तथा श्रावक हुए । मंत्री पेथड शाह, झांझण शाह, पुंजराज, मुंजराज, उप मंत्री - मंडन, गोपाल, खजांची -संग्रामसोनी, दीवान- जीवन और मेघराज, श्रावक-जावड़ शाह, जेठा शाह इत्यादि पुण्यवानों ने अपनी चलायमान सम्पत्ति का पूर्ण सदुपयोग कर, कई मन्दिर बनवाये, अनेकानेक यात्रा संघ निकलवाये और अनेकों धार्मिक कार्य करके, जैन धर्म की असीम प्रतिष्ठा बढ़ायी थी । उन साधकों की साधना आज भी जैन धर्म के इतिहास में अमर मानी जाती है । श्री सुपार्श्वनाथ भगवान मन्दिर-माण्डवगढ़ 678
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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