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शत्रुंजय तलेटी का दिव्य दृश्य
को यात्रा करने व पूजा का लाभ लेने हजारों यात्रीगण आकर अपने अपने मनोरथ पूर्ण कर, पुण्योपार्जन करते हैं । अक्षय तृतीया को वर्षीतप का पारणा करने हजारों तपस्यार्थी जगह-जगह से आते हैं। इसलिए यात्रीगणों की खूब भरमार होने के कारण उस दिन यहाँ का दृश्य अतीव मनोरंजक प्रतीत होता है ।
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प्रायः यात्री संघों का आना-जाना भी बना रहता है जिससे यहाँ नित्य मेला सा लगा रहता है । वार्षिक मेले निम्न प्रकार होते हैं ।
1. कार्तिक पूर्णिमा
2. फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी प्रदक्षिणा
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छह कोस की
3. चैत्री पूर्णिमा
4. वैशाख शुक्ला तृतीया (अक्षय तृतीया) वर्षीतप के पारणे का पर्व ।
5. वैशाख कृष्ण छठ मंत्री करमा शाह द्वारा सोलहवें उद्धार का प्रतिष्ठा दिवस (दादा के मुख्य जिनालय की साल गिरह का दिन )
अन्य मन्दिर पालीताना गाँव से लेकर तलहटी तक अनेकों मन्दिर हैं, प्रायः हर धर्मशाला में मन्दिर हैं। उन सबका वर्णन संभव नहीं । पहाड़ पर चढ़ते
वक्त तलहटी पर पादुकाओं के सम्मुख गिरिराज का चैत्य वन्दन करके यात्रीगण अपनी यात्रा आरम्भ करते 苦 । प्रथम अजीमगंज निवासी धनपतसिंहजी लक्ष्मीपतसिंहजी के द्वारा विक्रम संवत् 1950 के माघ शुक्ला 10 को प्रतिष्ठित एक भव्य बावन जिनालय मन्दिर आता है, जिसे धनवसही ट्रंक कहते हैं। आगे
बढ़ने पर प्रायः हर विश्राम गृह के सामने कुछ देरियाँ हैं, जिनमें भरत चक्रवर्ती, नेमिनाथ भगवान के गणधर वरदत्त, आदीश्वर भगवान व पार्श्वनाथ भगवान की चरण पादुकाएँ एवं द्राविड़ वारिखिल, नारदजी, राम, भरत यावच्चापुत्र शुकपरिव्राजक, शेलकसूरी, जाली, मयाली, उवयाली व देवी इत्यादियों की मूर्तियाँ हैं । बीच में कुमारपाल कुण्ड, शाला कुण्ड आदि आते हैं । शाला कुण्ड के पास जिनेन्द्र ट्रैक है, जिसमें गुरुपादुकाएँ एवं मूर्तियाँ हैं । लगभग (40.6 से. मी.) 16 इंच की प्रभावशाली एवं सुन्दर पद्मावती देवी की मूर्ति है । सामने एक रास्ता नौ ट्रॅकों की ओर जाता है एवं एक दूसरा रास्ता मुख्य टँक श्री आदीश्वर भगवान की ट्रॅक की ओर । इस भव्य ट्रॅक की ओर जाने पर पहले रामपोल फिर वाघणपोल आते हैं। आगे हाथीपोल में प्रवेश करते समय सूरज कुण्ड, भीम कुण्ड, एवं ईश्वर कुण्ड मिलते हैं। एक विशाल टाँका भी हैं, जिसका पानी भगवान के प्रक्षालन के लिए उपयोग में लाया
है । नवकों का विवरण निम्र प्रकार है :1. सेठ नरशी केशवजी की ट्रॅक सेठ नरशी केशवजी द्वारा विक्रम संवत् 1921 में निर्मित मूलनायक श्री शान्तिनाथ भगवान ।
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2. चौमुखजी टँक - गिरि राज पर सर्वोच्च टँक है। बहुत दूर से ही इस ट्रॅक का शिखर दिखायी देता है, जिसका नव निर्माण विक्रम संवत् 1675 में सेठ सदासोमजी द्वारा किया गया था । इस ट्रैक के पीछे पाण्डवों के मन्दिर में पाँच पाण्डव, माता कुन्ती व सती द्रौपदी की मूर्तियाँ हैं । इसी ट्रॅक में श्री मरुदेवी माता का भी मन्दिर है, जो विशेष प्राचीन है। ट्रैक के