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________________ श्री शत्रुजय तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, शान्त व सुन्दर, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ (7 फुट 1 इंच) लगभग 2.16 मीटर (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल शेQजी नदी के किनारे पालीताना गाँव से करीब 6 कि. मी. दूर पर्वत पर । पर्वत की चढ़ाई लगभग 4 कि. मी. ।। प्राचीनता जैन शास्त्रानुसार यह तीर्थ, शास्वत तीर्थ माना जाता है । पुराने जमाने में इसे पुंडरीक गिरि कहते थे । शास्त्रों में इस महान तीर्थ के 108 नाम दिये गये हैं । इस तीर्थ के अनेकों उद्धार हुए, जिनमें इस अवसर्पिणी काल में निम्नांकित सोलह उद्धार हुए । पहला - श्री आदीश्वर भगवान के पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती द्वारा । दूसरा - श्री दण्डवीर्य राजा द्वारा । तीसरा - पहले व दूसरे तीर्थंकरों के बीच काल में श्री इशानेन्द्र द्वारा । चौथा - श्री महेन्द्र इन्द्र द्वारा । पाँचवाँ - पाँचवें देव लोक के इन्द्र द्वारा । छठवाँ - श्री इन्द्र चमरेन्द्र द्वारा । सातवाँ - श्री अजितनाथ भगवान के काल में श्री सगर चक्रवर्ती द्वारा । आठवाँ - श्री अभिनन्दन भगवान के काल में श्री व्यंतरेन्द्र द्वारा । नवाँ - श्री चन्द्रप्रभ भगवान के काल में राजा श्री चन्द्रयशा द्वारा । दसवाँ - श्री शान्तिनाथ भगवान के सुपुत्र श्री चक्रायुध द्वारा । ___ ग्यारहवाँ - श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान के काल में श्री रामचन्द्रजी द्वारा । बारहवाँ - श्री नेमिनाथ भगवान के काल में पाण्डवों द्वारा । तेरहवाँ - विक्रम संवत् 108 में महवा निवासी श्री जावड़ शाह द्वारा । चौदहवाँ - विक्रम संवत 1213 में राजा श्री कुमारपाल के समय श्री वाहड़ मन्त्री द्वारा । पन्द्रहवाँ - विक्रम संवत् 1371 में श्री समराशाह द्वारा । सोलहवाँ - विक्रम संवत् 1587 वैशाख कृष्ण 6 को चित्तौड़ निवासी श्री करमाशाह द्वारा । इनके अतिरिक्त राजा सम्प्रति, राजा विक्रमादित्य आम राजा, खंभात निवासी श्री तेजपाल सोनी तथा श्वेताम्बर जैन संघ द्वारा स्थापित आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी वगैरहों ने आवश्यक जीर्णोद्धार कराये । विशिष्टता 8 जैन शास्त्रानुसार यहाँ पर अनेक आत्माओं ने सिद्धपद प्राप्त किया, जैसे चैत्री पूर्णिमा को श्री आदीश्वर भगवान के प्रथम गणधर श्री पुण्डरीक स्वामी कार्तिक पूर्णिमा को द्राविड़, वारिखिल अनेक मुनियों के साथ मोक्ष सिधारे । फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी के दिन भावी तीर्थंकर श्री कृष्ण-वासुदेव के पुत्र शाम्ब व प्रद्युम्न शत्रुजय गिरिराज की सदभद्र नाम के चोटी पर से, जो पीछे से 'भाड़वा के डुंगर' के नाम से प्रसिद्ध हुई, अनेक मुनिवरों के साथ मोक्ष सिधारे, उस प्रसंग की स्मृति में छ: कोस (19.3 कि. मी.) की फेरी दी जाती है व बड़ा मेला लगता है । इन के अलावा सूर्ययशा, नमि, विनमि, नारदजी, श्री आदिनाथ भगवान के वंशज श्री आदित्य यशा राजा से लेकर श्री सगर चक्रवर्ती तक, श्री शेलकसूरि, श्री शुक परिव्राजक, पाँच पाण्डव इत्यादि अनेकों मुनियों के साथ मोक्ष को प्राप्त हुवे । श्री आदिश्वर भगवान का यहाँ अनेकों बार पदार्पण हुआ था । भगवान श्री नेमिनाथ के अतिरिक्त अन्य 23 तीर्थंकरों ने यहाँ पदार्पण करके इस महान पुण्य तीर्थस्थल की पुनः प्रतिष्ठा बढ़ायी । इस तीर्थ के रक्षक कपर्दी यक्ष हैं, जिनकी श्री कृष्ण ने यहाँ एक गुफा में साधना की थी, ऐसी दन्त कथा प्रचलित है । ___ भगवान आदीश्वर पूर्वनवाणु बार सिद्धाचल गिरिराज पर पधारे थे । इस पुण्य अवसर की पावन स्मृति में नवाणु यात्रा व चतुर्मास करने भारत के कोने-कोने से यात्रीगण यहाँ आते हैं । साधु सम्प्रदाय यहाँ हर समय सैकड़ों की संख्या में विराजते है । कार्तिक पूर्णिमा, चैत्र पूर्णिमा, फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी व अक्षय तृतीया 611
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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