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________________ प्राय कि श्री जयन्त श्रावक ने नरेली से यहाँ अपने ससुराल श्री चाणश्मा तीर्थ के गाँव आकर निवास किया जब अंचलगच्छ के आचार्य श्री अजीतसिंहसूरिजी के सदुपदेश से यहाँ तीर्थाधिराज श्री भटेवा पार्श्वनाथ भगवान, सुन्दर मन्दिर का निर्माण करवाकर श्री भटेवा पार्श्वप्रभु धरणेन्द्र पद्मावती सहित, परिकरयुक्त पद्मासानस्थ, ताम्र प्रतिमा की प्रतिष्ठा वीर नि. सं. 1804 (विक्रम संवत् वर्ण, लगभग (23 सें. मी.) नौ इंच (श्वे. मन्दिर)। 1335) में करवायी थी । तीर्थ स्थल चाणश्मा गाँव के मध्य मोटी एक और उल्लेख से पता चलता है कि चाणश्मा वाणीयावाड़ मोहल्ले में । के रविचन्द्र श्रावक ने यहाँ मन्दिर बनवाकर वि. सं. प्राचीनता प्रमाणिक उल्लेखों से ज्ञात होता है 1535 में इस प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया था । हो कि इस तीर्थ की स्थापना विक्रम की चौदहवीं शताब्दी सकता है कि उस समय पुनः उद्धार हुआ हो । इन के पूर्व हुई होगी । कहा जाता है कि सदियों पहले सारे वृत्तांतों से सिद्ध होता है कि यह मनोरम प्रभु ईडर नगर के निकट भाटुआर गाँव के निवासी श्रावक प्रतिमा अति ही प्राचीन है, कालक्रम से अनेकों बार सूरचन्द को पुण्ययोग से यह प्रतिमा भूगर्म से प्राप्त उत्थान-पतन होने के कारण कुछ काल तक भूगर्भ में हुई। तत्पश्चात् दिन प्रतिदिन सूरचन्द श्रावक के घर में रही होगी । भाटुआर गांव में भूगर्भ से प्रकट होने के रिद्धि-सिद्धि की बृद्धि होती रही, जिससे उनकी ख्याति कारण प्रभु को भटेवा पार्श्वनाथ कहने लगे होंगे । बढ़ने लगी । सुसम्पन्न श्रावक के प्रति ईडर के राजा विशिष्टता बालू से निर्मित यह प्रतिमा अति के दिल में ईर्ष्या भाव पैदा हुई व प्रभु-प्रतिमा की माँग ही प्रभावशाली है । सूरचन्द श्रावक को प्रतिमा प्राप्त करने लगा । उस पर श्रावक ने प्रतिमाजी को भूगर्भ होते ही उनके घर में रिद्धि-सिद्धि अवर्णनीय रूप से में सुरक्षित रखा । बढ़ी थी । आज भी श्रद्धालु भक्तजनों को यह अतिशय वीशा श्रीमाली कुल की वंशावली से ज्ञात होता है प्रतीत होता है । मन्दिर का बाह्य दृश्य-चाणश्मा 546
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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