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________________ श्री नवलखा पार्श्वनाथ मन्दिर-दीव श्रावकों के अनेकों घर थे, जिन्होंने धर्मप्रभावना के अनेकों कार्य किये । विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी में भी प्रभाषपाटण तीर्थ के जीर्णोद्धार में भाग लिया था । गिरनार एवं पालीताना के तीर्थो के जीर्णोद्धार में भी काफी योगदान दिया था । विजयहीरसूरीश्वरजी का ऊना में स्तूप बनवाने वाली श्राविका लाड़िका बहिन भी यहीं की थी । एक उल्लेखानुसार कहा जाता है, किसी वक्त प्रभु का मुकुट, हार व अंगी नव-नव लाख की बनाई गई थी । संभवतः इसी कारण प्रभु का नाम नवलखा पार्श्वनाथ प्रचलित हुआ होगा । __ अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त मन्दिर के पास ही 2 और मन्दिर है । __ कला और सौन्दर्य समुद्र के बीच बसे इस टापू का प्राकृतिक दृश्य अति मन लुभावना है । प्रभु प्रतिमा अति ही मनोहर व प्रभावशाली है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन देलवाड़ा 8 कि. मी. व ऊना 13 कि. मी. हैं, जहाँ से बस व आटो की सुविधा है । बस स्टेण्ड मन्दिर के निकट ही है । आखिर तक पक्की सड़क है । सुविधाएँ 8 ठहरने के लिए मन्दिर के परकोटे में ही कुछ कमरे बने हुए है, जहाँ सिर्फ पानी, बिजली की सुविधा उपलब्ध है । अजाहरा तीर्थ में ठहरकर आना ही सुविधाजनक है । पेढ़ी श्री अजाहरा पार्श्वनाथ पंचतीर्थ जैन कारखाना पेढ़ी, पोस्ट : दीव - 362 520. व्हाया : ऊना, जिला : जूनागढ़, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02875-22233 (ऊना) । श्री दीव तीर्थ तीर्थाधिराज श्री नवलखा पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, पीत वर्ण, लगभग 76 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल समुद्र के बीच बसे दीव गाँव के मध्य भाग में । प्राचीनता यह स्थान अति ही प्राचीन माना जाता है । जैसा अजाहरा के इतिहास में कहा गया है, राजा श्री अजयपाल ने अपनी सेना के साथ यहीं पर पडाव डाला था । 'बृहत कल्पसूत्र' में भी इस तीर्थ का उल्लेख है । चौदहवीं शताब्दी में उपाध्याय श्री विनयविजयजी द्वारा यहाँ की यात्रा करने का उल्लेख है । श्री कुमारपाल राजा द्वारा यहाँ श्री आदिनाथ भगवान का मन्दिर बनवाने का उल्लेख मिलता है । विक्रम सं 1650 में श्री हीरविजयसूरीश्वरजी श्री शत्रुजय की यात्रा करके यहाँ चतुर्मास करने पधारे थे। इन सबसे यह सिद्ध होता है कि यह प्राचीन क्षेत्र है व पूर्व शताब्दियों में यहाँ की जाहोजलाली अच्छी थी । प्रभु-प्रतिमा की कलाकृति से भी यहाँ की प्राचीनता सिद्ध हो जाती है। विशिष्टता यह सौराष्ट्र के अजाहरा पंचतीर्थी का एक तीर्थ माना जाता है । किसी समय यहाँ जैन 39 Somnath Prachi Ghontvad AVALO Patan Sindha Alidar Girgadhada SUTRAPADA UNA Ahmedpi43 Muldwarka KODINAR Mandvi 6 Delvada Sarkhadi. Gu 42 Prayag Velan 41 DIU IDAMAN R DIU) 588
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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