________________
श्री मातर तीर्थ
तीर्थाधिराज साचादेव सुमतिनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 76 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल मातर गाँव के मुख्य मार्ग पर ।
प्राचीनता यह साचादेव सुमतिनाथ प्रभु की प्राचीन चमत्कारी प्रतिमा खेड़ा जिले के महुवा गाँव के पास स्थित सुंहुंज गाँव में भूगर्भ से निकली थी, जिसपर विक्रम संवत 1523 वैशाख कृष्ण 7 रविवार के दिन श्रीलक्ष्मीसागरसूरिजी के हाथों प्रतिष्ठित होने का लेख अंकित है । इस चमत्कारिक प्रतिमा को मातर लाया गया व यहाँ भव्य मन्दिर बनवाकर विक्रम संवत् 1854 ज्येष्ठ शुक्ला 3 गुरुवार के दिन पुनः प्रतिष्ठित किया गया । तत्पश्चात् कुछ जीर्णोद्धार हुए ।
विशिष्टता प्रतिमाजी अति ही चमत्कारी है । जब यह प्रतिमा रथ पर हजारों नर-नारियों के साथ सुंहुंज गाँव से मातर लायी जा रही थी, तब खेड़ा के पास वान्तक व सेडी नदि के संगम स्थान पर भारी वर्षा के कारण बाढ़ आयी हुई थी । उपस्थित सारे
भक्तगणों ने वहीं रुककर जाने का सोचा परन्तु गाड़ीवाहक को पानी के बदले रेत ही दिखायी दे रही थी जिससे गाड़ी व सारे भक्तगण निर्विघ्न नदी पार हो गये । उस समय सारे नर-नारियों ने जयध्वनि करके 'साचा देव है' कहा । उसी दिन से साचादेव सुमतिनाथ कहलाये । मातर गाँव में प्रतिष्ठा होने के बाद भी अनेकों चमत्कार होते आ रहे हैं, जैसे-रात्रि में मन्दिर में नाट्यारंभ होने की आवाज आना, शत्रुजय महातीर्थ में अंजनशलाका के अवसर पर रोग फैलने का संकेत मिलना, गोठी द्वारा अधिष्ठायक देव के कहे अनुसार न करने पर उसे मार महसूस होना, प्रतिमाओं का दैविक शक्ति से पलट जाना, प्रतिमाओं पर छीटे लगना आदि अनेकों वृत्तान्त प्रख्यात हैं ।
अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त यहाँ पर कोई मन्दिर नहीं है । इसी मन्दिर में श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की भव्य, प्राचीन व अति चमत्कारिक प्रतिमा है जो खेड़ा गाँव के खेत में से प्राप्त हुई थी।
कला और सौन्दर्य चमत्कारी प्रभु प्रतिमा की व मन्दिर की कला दर्शनीय है ।
श्री सुमतिनाथ जिनालय-मातर
642