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श्री मोहनखेड़ा तीर्थ
हुई। आज यहाँ पर एक भव्य पावन तीर्थ स्थल बना हुआ है । यहाँ अनेकों यात्रियों का आना जाना लगा
रहता है जिससे जंगल में मंगल-सा प्रतीत होता है । तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, श्वेत आचार्य प्रवर श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजी का समाधि वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 107 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। स्थान भी यहीं है जिनका अन्तिम संस्कार विक्रम संवत्
तीर्थ स्थल राजगढ़ गाँव से लगभग डेढ़ मील 1963 के पोष शुक्ला सप्तमी को हुआ था । प्रति वर्ष की दूरी पर एकान्त में विशाल परकोटे के अन्दर । यहाँ कार्तिक पूर्णिमा, चैत्र पूर्णिमा तथा पोष शुक्ला
प्राचीनता आचार्य प्रवर श्री राजेन्द्र सरीश्वरजी सप्तमी को मेले लगते हैं जिनमें हजारों भक्तगण भाग महाराज के शुभ हस्ते विक्रम संवत् 1940 के मिगशर लेकर प्रभु भक्ति का लाभ उठाते हैं । शुक्ला सप्तमी के शुभ दिन श्री मोहन खेड़ा तीर्थ की अन्य मन्दिर इसी परकोटे में मन्दिर के निकट प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी ।
ही आचार्य प्रवर श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज व विशिष्टता मालवे की पंचतीर्थी का यह भी व्याख्यान वाचस्पति श्री यतिन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के एक मुख्य स्थान है । आचार्य प्रवर श्री राजेन्द्र विशाल कलात्मक समाधि मन्दिर है । सूरीश्वरजी महाराज जब इस इलाके में विचरण कर कला और सौन्दर्य तीर्थ स्थल ऐसे समतल रहे थे, तब उन्होंने यहाँ के सुरम्य, सुन्दर प्राकृतिक एवं सुरम्य स्थान पर निर्मित है जिससे यहाँ के वातावरण से युक्त शांतमय स्थान को देखकर बताया था आन्तरिक एवं बाह्य दृश्य अतीव आकर्षक है । कि इस भूमि का पुण्योदय होकर यहाँ एक महान तीर्थ मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन बनेगा। उनकी अमृतमयी वाणी कालान्तर में सत्य सिद्ध मेध नगर लगभग 65 कि. मी. व इन्दौर 113 कि.
मन्दिर का सुन्दर दृश्य-मोहनखेड़ा
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