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श्री अजाहरा तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री अजाहरा पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, केशर वर्ण, लगभग 46 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल अंजारा गाँव के एक छोर पर ।
प्राचीनता प्रभु प्रतिमा अति ही प्राचीन है, जिसकी प्राचीनता का अनुमान लगाना कठिन है । कहा जाता है वर्तमान चौबीसी के बीसवें तीर्थंकर के काल में रघुवंश के वीर प्रतापी राजा अजयपाल का रोग निवारण जलकुण्ड से प्राप्त इस प्रभु प्रतिमा के न्हवण जल से हुआ था, जिसके कारण राजा अजयपाल ने यह गाँव बसाकर मन्दिर निर्मित करवाके इस चमत्कारिक प्रभु प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया था । यहाँ पर सैकड़ों प्राचीन बावड़ियाँ अभी भी मौजूद हैं व अनेकों प्राचीन प्रतिमाएँ भूगर्भ से प्राप्त हुई थी । चौदहवीं शताब्दी में उपाध्याय श्री विनयविजयजी द्वारा रचित 'तीर्थ माला' में भी इस तीर्थ का वर्णन आता है । भूगर्भ से प्राप्त काउसग्गिया मूर्तियों पर सं. 1323 जेठ शुक्ला 8 गुरुवार को श्री उदयप्रभसूरिजी के पट्टालंकार श्री महेन्द्रसूरीश्वरजी द्वारा प्रतिष्ठित होने का उल्लेख है । यहाँ पर प्राप्त एक घंटे पर 'श्री अजारा पार्श्वनाथ सं. 1014 शाह रायचन्द जयचन्द' उत्कीर्ण है । इन सबसे यह सिद्ध होता है कि यह प्राचीन क्षेत्र है व सदियों से यहाँ जाहोजलाली रही ।
विशिष्टता यह सौराष्ट्र के अजाहरा पंचतीर्थी का मुख्य स्थान है । कहा जाता है कि रत्नासार नाम का व्यापारी अपने जहाज में अनेकों व्यापारियों को साथ लेकर विदेश जा रहा था । समुद्र के बीच उसका जहाज अटक गया । जब सारे लोग अति व्याकुल होने लगे, इतने में दैविक अदृश्य आवाज हुई कि समुद्र में जहाज के नीचे श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा है, जिसके न्हवण जल से 107 रोगों से पीड़ित पराक्रमी राजा श्री अजयपालका रोग निवारण होगा । रत्नासार ने समुद्र से प्रभु प्रतिमा निकलवायी । प्रतिमा का दर्शन करने पर उसके हर्ष का पार न रहा । उसका जहाज भी सही सलामत समुद्र किनारे आ लगा । उस समय राजा अजयपाल अपनी सेना के साथ दीव बन्दर में पड़ाव डाले हुए थे व अनेकों रोगों से पीड़ित होते हए
हात हुए
अजाहरा पार्श्व प्रभु मन्दिर प्रवेश द्वार
भी अनेकों योद्धाओं को हराते आ रहे थे । रत्नासार ने तुरन्त ही राजा अजयपाल को इस घटना का वृत्तांत कहलाया । राजा तुरन्त ही आकर प्रभु प्रतिमा को आदर-सत्कार पूर्वक बाजों-गाजों के साथ अपने यहाँ ले गये, सिर्फ 9 दिनों में राजा एकदम निरोग हो गये। उन्होंने यहीं पर अजयपुर नाम का नगर बसाकर भव्य मन्दिर का निर्माण करवाके इस प्रभु प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया । प्रभु प्रतिमा के न्हवण जल से राजा अजयपाल रोग से मुक्त होने के कारण भक्तगण प्रभु को अजाहरा पार्श्वनाथ कहने लगे । उसके बाद भी अनेकों चमत्कारिक घटनाएँ घटी हैं । अभी भी श्रद्धालु भक्तजनों के कई प्रकार के रोग इस प्रतिमा के न्हवण जल से निवारण होते है । अनेकों बार मन्दिर में रात्रि में देवों द्वारा नाट्यारंभ होने की आवाजें आती है । कहा जाता है कि एक वक्त यहाँ पर केशर की मामूली वर्षा हुई थी । श्री अजयपाल राजा द्वारा
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