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________________ PAVAGADH Superst श्री पार्श्वनाथ भगवान (दि.) - पावागढ़ श्री पावागढ़ तीर्थ तीर्थाधिराज @ 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ (दि. मन्दिर पहाड़ पर ) । 2. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण (श्वे. मन्दिर, तलहटी में ) । की तीर्थ स्थल चांपानेर गाँव के निकट समुद्र सतह से 945 मीटर ऊँचे एक पर्वत पर । प्राचीनता यह तीर्थ क्षेत्र बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान के समय का अथवा अयोध्यापति श्री रामचन्द्रजी के समय का माना जाता है। ई. सन् 140 में ग्रीस देश का महान भूगोलवेत्ता श्री टोलेमी ने अपने भारत प्रवास शोध में इसे अति प्राचीन और पवित्र जैन तीर्थधाम बताया है । कहा जाता है सम्राट अशोक के वंशधर राजा गंगासिंह ने ई. सन् 800 में यहाँ का किला सुधराया तब यहाँ के मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया था । सं. 1540 में मुस्लिम सुलतान मोहम्मद बेगड़ा ने यहाँ पर आक्रमण करके यहाँ के मन्दिरों को भारी क्षति पहुँचायी सं. 1931 में यहाँ का पुनः उद्धार हुआ। 646 सं. 1937 माघ शुक्ला 13 के दिन दिगम्बर भट्टारक श्री कनककीर्तिजी महाराज के हस्ते इस दि. मन्दिर की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । श्वेताम्बर उल्लेखानुसार भी यह तीर्थ इतना ही प्राचीन है । तेरहवीं शताब्दी में मंत्री श्री तेजपाल द्वारा यहाँ सर्वहतोभद्र नाम का मन्दिर बनवाने का उल्लेख है । वि. सं. 1638 में श्री जयवन्त सेठ द्वारा यहाँ मन्दिर बनवाकर आचार्य श्री विजयसेनसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा करवाने का उल्लेख है। वि.सं. 1746 में गणी शीलविजयजी महाराज ने यहाँ श्री नेमिनाथ भगवान के मन्दिर का उल्लेख किया है। उन्नीसवीं शताब्दी में भी श्री दीपविजयजी महाराज द्वारा रचित "श्री जीरावली पार्श्वनाथ स्तवन" में यहाँ के मन्दिरों का वर्णन है । श्वेताम्बर मान्यतानुसार यह तीर्थ शत्रुंजय सम माना जाता था । पहाड़ पर बिखरे खण्डहर प्राचीनता की याद दिलाते हैं । हमारे तीर्थ-दर्शन पूर्व प्रकाशन के समय यहाँ कोई भी पूजित श्वेताम्बर जैन मन्दिर नहीं था प्रशन्नता है कि आज यहाँ की तलहटी में श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ भगवान का भव्य श्वे. मन्दिर भी है जिसका निर्माण कुछ वर्षों पूर्व पंजाब केशरी श्रीमद् विजयबल्लभसुरिजी के पट्टधर प.पू. आचार्य भगवंत श्री इन्द्रदिव्न सूरीश्वरजी द्वारा इस प्राचीन तीर्थ के पुनः उद्धार हेतु प्राप्त दिव्य प्रेरणा व उनके एवं आचार्य भगवंत श्री जगत्चन्द्रसूरीश्वरजी के प्रयास से हुवा था । पहाड़ पर भी मन्दिर निर्माण का कार्य शीघ्र ही प्रारंभ करने के प्रयास में है । इस दिगम्बर मन्दिर में प्रतिवर्ष माघ शुक्ला 13 को ध्वजा चढ़ती है व मेला लगता है । विशिष्टता अयोध्यापति श्री रामचन्द्रजी के पुत्र श्री लव कुश तथा लाट नरेन्द्र एवं अनेकों मुनिगण यहाँ घोर तपश्चर्या करके मोक्ष सिधारे हैं, ऐसा निर्वाण काण्ड में उल्लेख है। इसलिए यह सिद्धक्षेत्र माना जाता है । पूर्वकाल में जैन धर्म के अनुयायी हजारों क्षत्रिय व अन्य परिवारों को मार्ग दर्शन व आवश्यक सहयोग देने का कार्य आचार्य भगवंतों की प्रेरणा व निर्देशन में यहाँ की श्वेताम्बर पेढ़ी द्वारा निरन्तर चल रहा है। इससे कई परिवार लाभान्वित हुवे है। उनमें कईयों ने तो दिक्षा भी ग्रहण की है, कई अध्यापक बने हैं तो कई पुजारी आदि ।
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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