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श्री भद्रेश्वर तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 61 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)।
तीर्थ स्थल समुद्र के किनारे बसे भद्रेश्वर गाँव के बाहर, पूर्व भाग में लगभग आधा मील दूर एकान्त रमणीय स्थान पर ।
प्राचीनता इसका प्राचीन नाम भद्रावती नगरी था । इस नगरी का महाभारत में भी उल्लेख मिलता है । यहाँ भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन ताम्रपत्र में, विक्रम से लगभग पाँच सदी पूर्व व चरम तीर्थंकर भगवान महावीर के निर्वाण के 23 वर्ष पश्चात् भद्रावती नगरी
के श्रावक श्री देवचन्द्र ने इस भूमि का शोधन करके तीर्थ का शिलारोपण किया व प्रभु के निर्वाण के 45 वर्षों के बाद परमपूज्य कपिल केवली मुनि के सुहस्ते भगवान श्री पार्श्वप्रभु की मनोहर प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई । उक्त सुअवसर पर इस नगरी के निवासी अखण्ड ब्रह्मचारी श्री विजय सेठ व विजया सेठाणी ने भगवती दीक्षा अंगीकार की थी, ऐसा उल्लेख है । विक्रम सं. 1134 में श्रीमाली भाइयों द्वारा व विक्रम सं. 1312-13 में सेठ जगइशाह द्वारा इस तीर्थ का उद्वार करवाने का उल्लेख है । कालक्रम से बाद में कभी इस नगरी को क्षति पहुँची । तब इस मन्दिर में स्थित पार्श्वप्रभु की प्रतिमा को एक तपस्वी मुनि ने सुरक्षित किया था । विक्रम सं. 1682 से 1688 के
मन्दिर का अलौकिक दृश्य-भद्रेश्वर
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