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भी अगर खोद कार्य किया जाय तो अति महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त होने की पूर्ण संभावना है ।
मार्ग दर्शन नजदीक का रेल्वे स्टेशन भीलड़ी है, जो कि मन्दिर से 1 कि. मी. दूर है । बस स्टेण्ड सिर्फ 100 मीटर दूर है । कार व बस मन्दिर तक जा सकती है । यह स्थान डीसा से 20 कि. मी. व पालनपुर - राधनपुर हाई वे मार्ग में राधनपुर से 60 कि. मी. दूर है। जहाँ से टेक्सी व बस की सुविधा उपलब्ध है ।
सुविधाएँ 8 ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त विशाल धर्मशाला व ब्लाक है, जहाँ पर भोजनशाला सहित सारी सुविधाएँ उपलब्ध है ।
पेढ़ी 8 श्री भीलडियाजी पार्श्वनाथ जैन देरासर तीर्थ पेढ़ी, पोस्ट : भीलड़ी - 385 530. जिला : बनासकांठा, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02744-33130.
चले गये । जली हुई ईंटें, राख, कोयले आदि आज भी यहाँ पर भूगर्भ से जगह-जगह प्राप्त होते हैं।
तत्पश्चात् विक्रम सं. 1872 में श्री धरमचन्द्र भाई कामदार ने इस प्राचीन मन्दिर के पास भीलड़िया गाँव पुनः बसवाया । उस समय यह मन्दिर जीर्णावस्था में विद्यमान था । पार्श्वप्रभु की यह प्रतिमा व अन्य प्रतिमाएँ भोयरे में विराजमान थीं । मन्दिर के आसपास भयानक जंगल हो चुका था । पार्श्वप्रभु की महिमा से प्रभावित होकर अनेकों भक्तगण प्रायः आते रहते थे । भीलड़ी के श्रावकों ने इसका कार्य भार संभालकर वि. सं. 1936 में जीर्णोद्धार करवाया था । अन्तिम जीर्णोद्धार वि. सं. 2027 में होकर ज्येष्ठ शुक्ला 10 के शुभ दिन आचार्य श्री भद्रसूरीश्वरजी महाराज के सुहस्ते प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । उपरोक्त सब वृत्तान्तों से इस क्षेत्र की प्राचीनता व कालक्रम से हुए हेर-फेर के बारे में ज्ञात हो जाता है ।
विशिष्टता यह प्रतिमा भी श्री कपिल केवलीमुनी के हाथों प्रतिष्ठित मानी जाने के कारण यहाँ की महान विशेषता है । विक्रम की सोलहवीं शताब्दी में भीमपल्ली गच्छ की स्थापना इसी तीर्थ क्षेत्र पर हुई बताई जाती है । कहा जाता है भीलड़िया गाँव पुनः बसने के पूर्व सरीयद गाँव के श्रावकों ने इस प्रभु प्रतिमा को अपने गाँव ले जाने का प्रयत्न किया था। उस समय यह मन्दिर विनाश हुए इस गाँव के भंयकर जंगल में खण्डहर रूप में था व यह प्रतिमा इस मन्दिर के भोंयरे में थी । श्रावकों ने प्रतिमा उत्थापन करके दरवाजे के बाहर लाने का प्रयत्न किया लेकिन दैविक शक्ति से प्रतिमा ने विराट रूप धारण किया व हजारों जंगली भँवरे मँडराने लगे । इस अतिशय को देखकर श्रावकों ने प्रतिमाजी को उस जगह पर पुनः स्थापित कर दिया। ऐसी अनेकों चमत्कारी घटनाएँ घटने के वृत्तांत मिलते हैं व अभी भी यहाँ आने से श्रद्धालु भक्तजनों के मनोरथ पूर्ण होते हैं । प्रति वर्ष पौष कृष्ण 10 के दिन मेला लगता है ।
अन्य मन्दिर से इसके अतिरिक्त गाँव में एक और मन्दिर व स्टेशन पर एक मन्दिर है । __ कला और सौन्दर्य यह स्थान प्राचीन रहने व भंयकर उत्थान पतन होने के कारण अभी भी भूगर्भ में व जगह-जगह पर कलात्मक अवशेष पाये जाते हैं। प्राचीन कलात्मक प्रतिमाएँ अति दर्शनीय हैं । यहाँ पर
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