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________________ अकबर प्रतिबोधक विजय हीरसूरीश्वरजी महाराज श्री ऊना तीर्थ विक्रम सं. 1652 भादरखा शुक्ला 11 को यहीं देवलोक सिधारे थे । उनके स्मारक हेतु राजा अकबर तीर्थाधिराज श्री आदिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, ने जो 100 बीघा जमीन श्री संघ को भेंट दी, वहीं पीत वर्ण, लगभग 76 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । पर अग्नि संस्कार हुआ था। उस स्थान को शाहीबाग तीर्थ स्थल ऊना गाँव के मध्यस्थ । कहते हैं । कहा जाता है कि यहाँ पर अनेकों चमत्कार प्राचीनता 8 इसका प्राचीन नाम उन्नतपुर था । होते रहते हैं । अकबर ने गुरुदेव के इच्छानुसार बाद यह अति ही प्राचीन स्थल माना जाता है । यह भी । में अनेकों फरमान जारी किये । प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला कहावत है कि “ऊना, पूना अने गढ़जूना ऐ त्रण 11 को ध्वजा चढ़ती है । जूना" । इस मन्दिर का निर्माण राजा श्री सम्प्रतिकाल अन्य मन्दिर इस मन्दिर के निकट ही 5 और का बताया जाता है । चौदहवीं शताब्दी में उपाध्याय मन्दिर व एक उपाश्रय हैं । इस उपाश्रय को श्री विनयविजयजी ने 'तीर्थ माला' में भी इस तीर्थ की विजयहीरसूरीश्वरजी का उपाश्रय कहते हैं । यहीं पर व्याख्या की है। सत्रहवीं शताब्दी में अकबर प्रतिबोधक आचार्य श्री स्वर्ग सिधारे थे । यहाँ से आधा मील दूरी विजयहीरसूरीश्वरजी यहीं पर स्वर्ग सिधारे । कहा पर दादावाड़ी है जिसे शाहीबाग कहते हैं । जाता है एक समय यह खूब जाहोजलालपूर्ण विशाल विजयहीरसूरीश्वरजी महाराज के अग्निसंस्कार के स्थल नगरी थी । यहाँ सात सौ जैन पौषधशालाएँ थीं। पर छत्री बनी है, जहाँ चरण स्थापित है । इसी शाही विशिष्टता यह स्थान सौराष्ट्र अजाहरा की। बाग में कुल 12 देरियाँ है जहाँ पर इनके पंचतीर्थी का एक मुख्य तीर्थ है । जिस समय यहाँ पट्टधर विजयसेनसूरीश्वरजी आदि की चरणपादुकाएँ हैं। 700 पौषधशालाएँ थीं उस समय यह शहर कितना कला और सौन्दर्य वैसे तो यहाँ की सारी जाहोजलालीपूर्ण रहा होगा ? इस मन्दिर के भोयरे में प्राचीन प्रतिमाओं की कला दर्शनीय है ही, चौथे मन्दिर स्थित आदिनाथ भगवान की विशाल प्रतिमा दर्शनीय है। के मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा अति इसी के पास एक और भोयरे में श्री अमीझरा ही दर्शनीय है। पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा है । जिसमें अनेकों बार मार्ग दर्शन यहाँ का रेल्वे स्टेशन ऊना मन्दिर अमी झरती है । कभी-कभी एक वृद्ध सर्प प्रभु प्रतिमा से लगभग 1 कि. मी. दूर है, जहाँ से आटो व टेक्सी पर छत्र करता हुआ नजर आता है । की सुविधा उपलब्ध है | आखिर तक पक्की सड़क है। श्री आदिनाथ भगवान मन्दिर-ऊना 591
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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