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________________ संभवतः इस उद्धार के बाद राज्य क्रान्ति में इस तीर्थ लहरों से घंटियों की झंकार गूंजती हुई सुनायी को क्षति पहुँची होगी, जिससे झींझुवाड़ा के राजा पड़ती है । दुर्जनशल्य ने विक्रम संवत् 1302 में इसका पुनः मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक के रेल्वे स्टेशन जीर्णोद्धार करवाया था । तत्पश्चात् चौदहवीं शताब्दी में । हारीज 38 कि. मी. वीरमगाँव 72 कि. मी. व अलाउद्दीन के सैनिकों ने इस तीर्थ को अति क्षति मेहसाना 95 कि. मी. व अहमदाबाद 120 कि. मी. पहुँचायी । तब श्रीसंघ ने शंखेश्वर प्रभु की प्रतिमा को दूर है । इन सभी स्थानों से बस व टेक्सी की सुरक्षित किया । विक्रम सं. 1656 में शाहजहाँ सुविधाएँ उपलब्ध है । मन्दिर तक बस व कार जा बादशाह ने अहदमाबाद के नगरसेठ शान्तिदासजी के सकती है । नजदीक के बड़े गाँव पंचासर 8 कि. मी. नाम शंखेश्वर गाँव का फरमान बनाकर दिया जिसके और बड़गाँव 18 कि. मी. दूर है । अहमदाबाद से हर दो शाही फरमान प्रसिद्ध है । गंधार निवासी मानाजी आधे घंटे बाद बस सुविधा उपलब्ध है । श्रावक द्वारा श्री विजयसेनसूरिजी के सदुपदेश से सुविधाएँ ठहरने के लिए पेढ़ी की धर्मशाला लगभग इसी समय पुनः उद्धार कराने का उल्लेख कच्छी भवन, के. पी. संघवी धर्मशाला, हालारी मिलता है । (विक्रम संवत् 1760 में पुनः धर्मशाला, दादावाड़ी पद्मावती धर्मशाला आदि जीर्णोद्धार होकर श्री विजयप्रभसुरीश्वरजी के पट्टधर सर्वसुविधायुक्त धर्मशालाएँ है, जहाँ पर भोजनशाला की श्री विजयरत्नसूरीश्वरजी के हाथों प्रतिष्ठा होने का भी उत्तम व्यवस्था है । उल्लेख है । पेढ़ी शेठ जीवनदास गोडीदास शंखेश्वर पार्श्वनाथ इन सब वृत्तान्तों से सिद्ध होता है कि यह स्थल जैन देरासर ट्रस्ट, अति ही प्राचीन है व यहाँ की जाहोजलाली हरदम पोस्ट : शंखेश्वर - 384 246. तालुका : समी, अच्छी रही । जिला : पाटण, प्रान्त : गुजरात, विशिष्टता 8 जरासंध व कृष्ण की लड़ाई के फोन : 02733-73514. समय इस प्रभु प्रतिमा का न्हवण जल सेना पर छिड़काने से उपद्रव शान्त होने का वृत्तांत प्रचलित है ही। इसके अलावा शास्त्रों में अनेकों चमत्कारों का उल्लेख मिलता है । अभी भी यहाँ पर हमेशा हजारों भक्तगण आते हैं व उनके कथनानुसार यहाँ आकर प्रभु-दर्शन करने से उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। शंखेश्वर गच्छ का उत्पति स्थान भी यही है । प्रतिवर्ष चैत्री पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिका व पौष कृष्णा दसमी के दिन मेला लगता है जब सहसों यात्रीगण इकट्ठे होकर प्रभु भक्ति में तल्लीन होते हैं । उस समय का दृश्य देखने योग्य है । अन्य मन्दिर इसके मन्दिर के निकट ही प्राचीन मन्दिर के भग्नावशेष दिखायी देते है, जो ऐतिहासिक हैं । यहाँ पर एक और आगम मन्दिर, 108 पार्श्वनाथ मन्दिर, पद्मावती माता मन्दिर व गुरु मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य प्रभु प्रतिमा अति ही सुन्दर व प्रभावशाली है । विशाल परकोटे के मध्य भाग में सुन्दर देव विमान जैसा शिखरबद्ध यह बावन जिनालय मन्दिर स्थित है, जिसमें मन्द मन्द पवन की 624
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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