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________________ श्री दशपुर तीर्थ युगप्रवर्तक विद्वान आर्य रक्षितसूरिजी का जन्म वि. सं. 52 में इसी पावन भूमी में हुवा । वि. सं. 74 में आचार्य तोषलीपुत्र के पास दिक्षित होकर वि. सं. तीर्थाधिराज श्री विघ्नहर पार्श्वनाथ भगवान, 114 में युगप्रधानपद पर विभूषित होकर वि. सं. 127 पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, (श्वे. मन्दिर) । में यहीं पर देवलोक सिधारने का उल्लेख है । तीर्थ स्थल मन्दसौर शहर के खिलचीपुरा में। किसी समय यहाँ पश्चिम मालवे की राजधानी रहने प्राचीनता इस पावन तीर्थ का इतिहास __व मालवगण का प्रधान नगर रहने का उल्लेख आता भगवान महावीर के समय से प्रारंभ होता है ।। है । संभवतः वैशाली विनाश के समय लिच्छवीगण यहाँ आकर रहे हों । भगवान महावीर के समय प्रभु के परम भक्त उक्त वृतांतों से प्रतीत होता है कि यह अतीव सिंधू-सौवीर, वीतभयपत्तन के नरेश उदायन व उनके जाहोजलालीपूर्ण शहर रहा होगा व कई मन्दिरों का साथी दश राजाओं द्वारा यह शहर बसाकर यहाँ मन्दिर निर्माण हुवा होगा परन्तु बीच के इतिहास का पता नहीं का निर्माण करके श्री विद्युन्माली देव द्वारा महहिमवंत हैं । विक्रम की पन्द्ररवीं सदी में मान्डवगढ़ के संग्राम पर्वत के गोशीर्ष चन्दन से निर्मित जीवंत स्वामी प्रभु सोनी द्वारा यहाँ एक मन्दिर बनाने का उल्लेख है । वीर की प्रतिमा प्रतिष्ठित किये जाने का उल्लेख हैं । उसके पश्चात् का पता नहीं । वर्तमान में यहाँ श्खें. के उक्त मन्दिर के निभाव खर्च हेतु उज्जैन के राजा कुल 11 मन्दिर विद्यमान है, जिनमें श्वे. मन्दिरों में श्री चंडप्रधोतन द्वारा कई गांवों को भेंट देने का उल्लेख खिलचीपुर के श्री पार्श्वनाथ भगवान का यह मन्दिर है। पश्चात् राजा चंडप्रधोतन द्वारा भी उज्जैन में मन्दिर सबसे प्राचीन माना जाता है। जिसकी प्रतिष्ठा वि. सं. का निर्माण करवाकर जीवित स्वामी प्रभु वीर की 1438 में हुई थी, संभवतः उस वक्त जीर्णोद्धार होकर प्रतिमा प्रतिष्ठित किये का उल्लेख है । हो सकता है भी पुनः प्रतिष्ठा हुई हो । अंतिम जीर्णोद्धार वि. सं. यह प्रतिमा दूसरी भी हो क्योंकि प्रभु वीर की कुछ 1838 में हुवा था। प्रतिमाएँ जीवंत स्वामी के रूप में प्रतिष्ठित किये का विशिष्टता प्रभुवीर के भक्त श्री उदायन राजा उल्लेख आता है । को पुण्य योग से प्राप्त प्रभुवीर की गोशीर्ष चन्दन से बनी जीवंत प्रतिमा को उज्जैन के राजा चंडप्रघोत छल-कपटकर उदायन के वहाँ से ला रहे थे । राजा उदायन को मालुम पड़ने पर भीषण युद्ध हुवा । उदायन के साथ उनकी सेना व अन्य दश राजा भी थे। युद्ध में जीतकर लौटती वक्त बीच में चातुर्मास प्रारंभ हो जाने के कारण यहाँ पर ही पड़ाव डाला था । __कहा जाता है कि दैविक संकेत के आधार पर यहीं पर मन्दिर का निर्माण करवाकर प्रभु प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया व जगह का नाम दशपुर रखा जो आज तक विख्यात है। पर्युषण पर्व की आराधना के समय पता लगा कि कैदी राजा चंडप्रघोत भी जैन धर्मावलम्बी है अतः तुरन्त ही उससे क्षमा मांगकर रिहा किया गया । स्वधर्मी का पता लगते ही क्षमा मांगते हुवे शत्रु को भी तुरन्त रिहा करना, दैविक संकेत के आधार पर मन्दिर का निर्माण करवाकर उसी प्रतिमा को, जिसके लिये युद्ध किया, श्री विघ्नहर पार्श्वनाथ जिनालय - दशपुर वहीं प्रतिष्ठित करवाना यह सभी वृतांत यहाँ की मुख्य विशेषता है । 698
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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