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________________ बीड़दा ने श्री स्थंभन पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर का निर्माण करवाया था । विक्रम संवत् 1360 के आसपास श्री संघ द्वारा पुनः भव्य मन्दिर बनवाकर उत्साहपूर्वक प्रतिमाजी प्रतिष्ठित करवाने का उल्लेख है। कालान्तर में समय समय पर अनेकों जीर्णोद्धार हुए। अन्तिम जीर्णोद्धार विक्रम संवत् 1984 में हुआ व तीर्थोद्धारक शासन सम्राट आचार्य श्री नेमिसूरीश्वरजी के हस्ते प्रतिष्ठा संपन्न हुई । विशिष्टता कहा जाता है कि इसी प्रतिमाजी के न्हवण जल से श्री अभयदेवसूरिजी का देह निरोग हुआ था । कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य ने विक्रम सं. 1150 में यहीं पर दीक्षा ग्रहण कर शिक्षा प्रारम्भ की थी । कहा जाता है कि उस समय यहाँ अनेकों करोड़पति श्रावकों के घर थे जिन्होंने सैकड़ों मन्दिरों का निर्माण करवाया था । राजा श्री कुमारपाल के मंत्री श्री उदयन भी यहीं के थे, जिन्होंने उदयवसही नामक मन्दिर का निर्माण करवाया था । विक्रम सं. 1277 श्री स्थंभन पार्श्वनाथ मन्दिर-खंभात में यहाँ के दण्डनायक श्री वस्तुपाल ने ताड़पत्री पर अनेकों ग्रन्थ लिखवाये । यहाँ पर जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरिजी ,श्री सोमसुन्दरसरिजी, श्री विजयसेनसरिजी आदि आचार्यों ने अनेकों जिन मन्दिरों की प्रतिष्ठापना करवायी तथा अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचनाएँ कीं। तीर्थाधिराज श्री स्थम्भनपार्श्वनाथ भगवान, यहाँ सोनी तेजपाल, संघवी उदयकरण, श्री गांधीकुंवरजी नील वर्ण, पद्मासनस्थ, 23 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। __ श्रेष्ठी रामजी आदि श्रावकों ने भी अनेक मन्दिर तीर्थ स्थल खम्भात के खारवाड़ा मुहल्ले में । बनवाये। यहाँ के दानवीर सेठ वाजीया, राजीया, श्रीराम और पर्वत आदि श्रेष्ठियों ने दुष्काल में अनेकों दानशालाएँ प्राचीनता इसका प्राचीन नाम त्रंबावती नगरी व भोजनशालाएँ खुलवाई थीं । था । जैन शास्त्रानुसार इस प्रभाविक प्रभु प्रतिमा का इतिहास बहुत पुराना है । बीसवें तीर्थंकर के काल से ____ कविवर श्री रिषबदासजी की भी यही जन्मभूमि है लेकर अंतिम तीर्थंकर के काल तक यहाँ अनेकों जिन्होंने अनेकों रास ग्रन्थों की रचना यहीं की थी । चमत्कारिक घटनाएँ घटी हैं । तत्पश्चात् वर्षों तक ये सारे तथ्य इस तीर्थ की प्राचीनता और महत्ता को प्रतिमा लुप्त रही । सिद्ध करते हैं । प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला तृतीया को विक्रम सं. 1111 में नवांगी टीकाकार श्री अभयदेव वार्षिकोत्सव मनाया जाता है । सूरिजी ने दैविक चेतना पाकर सेड़ी नदी के तट पर अन्य मन्दिर वर्तमान में यहाँ पर इसके भक्ति भाव पूर्वक जयतिहअण स्तोत्र की रचना की, अतिरिक्त 16 और मन्दिर है । और श्री हेमचन्द्राचार्य जिससे अधिष्ठायक देव प्रसन्न हुए व यह अलौकिक स्मृति मन्दिर भी है । चमत्कारी प्रतिमा वहीं पर भूगर्भ से अनेकों भक्तगणों कला और सौन्दर्य 88 यहाँ के श्री चिन्तामणि के सम्मुख पुनः प्रकट हुई । वर्तमान मन्दिर में स्थित पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर में भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन एक शिला पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार विक्रम सं. कलात्मक प्रतिमाएँ तथा अवशेष विद्यमान हैं । ऐसी 1165 में मोढ़वंशीय बेला श्रेष्ठी की धर्मपत्नी बाई कलात्मक प्राचीन प्रतिमाएँ अन्यत्र दुर्लभ है । 644 श्री खंभात तीर्थ
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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