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________________ श्री केशरियाजी भगवान प्राचीन प्रतिमा-धारानगरी श्री धारानगरी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण (श्वे. मन्दिर) धार शहर के मध्य महावीर मार्ग पर तीर्थ स्थल प्राचीनता प्राचीन काल की धारा नगरी आज धार शहर के नाम से विख्यात है। यह नगरी पुंवार राजाओं द्वारा विक्रम की दशवीं सदी प्रारंभ में बसाई जाने का उल्लेख है । विक्रम की ग्यारवीं सदी में राजा भोज के समय यहाँ वादिवेताल श्री शांतिसुरि व सूराचार्य जैसे प्रकाण्ड आचार्य व धनपाल जैसे प्रखर विद्वान हुए अतः इनके समय में भी कई मन्दिरों का निर्माण अवश्य हुवा होगा परन्तु उसके पूर्व के व उस सदी के मन्दिर आज विद्यमान नहीं है । हो सकता है किसी कारणवस उन प्राचीन मन्दिरों को क्षति पहुँची हो । श्री शीतलनाथ भगवान प्राचीन प्रतिमा-धारानगरी आज यहाँ विद्यमान मन्दिरों में यह श्री आदिनाथ भगवान का मन्दिर प्राचीनतम है जिसकी प्रतिष्ठा वि. सं. 1203 में आचार्य श्री क्षेमसुरिजी के हाथों हुए का उल्लेख है। हो सकता है उस समय किसी प्राचीन मन्दिर का जीर्णोद्धार होकर पुनः प्रतिष्ठा भी हुई हो । कुछ भी हो यह तीर्थ विक्रम की तेरहवीं सदी प्रारंभ का तो अवश्य है । विशिष्टता वादिवेताल जैनाचार्य श्री शांतीसुरि व सूराचार्य जैसे विद्वान आचार्य भगवंतों ने यहाँ पर पराक्रमी व संस्कार प्रिय राजा मुंज व भोज की राज्य सभा में अनेकों बार विजयी होकर जैन धर्म का गौरव बढ़ाया था । यहाँ पर हुवे धनपाल जैसे प्रखर पण्डितों से यहाँ के राजाओं की राज्य सभा अजर मानी जाती थी । धनपाल पण्डितवर्य द्वारा रचित कई ग्रंथ आज भी जैन साहित्य के अमूल्य ग्रंथों के रूप में प्रशंसनीय है । यह तीर्थ स्थल भी मालवे के पंचतीर्थी का एक मुख्य स्थल माना जाता है । 681
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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