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________________ कहा जाता है पाटण के पुनः उद्धार के समय इस शाह द्वारा आबू व गिरनार पर किये गये कार्य जग मन्दिर का भी उद्धार हुआ था । लेकिन वही प्राचीन विख्यात है । विक्रम सं. 1371 में शत्रुजय का उद्धार प्रतिमा अभी भी विद्यमान है । करवाने वाले श्री समरशाह भी यहीं के थे । ऐसे यहाँ विशिष्टता 8 पाटण ही एक ऐसी नगरी है, जहाँ के अन्य श्रेष्ठियों ने भी धर्म कार्य में अपनी शक्ति का पर (विक्रम सं. 802 से) नगरी की स्थापना से लेकर पूर्ण सदुपयोग किया है । पाटण के ज्ञान भण्डार भी आज तक सैकड़ों जिन मन्दिर रहे । बीच में बिलकुल विख्यात है । पाटण अपनी शूरता, सत्यता, पवित्रता, थोड़े समय के लिए तीर्थ विच्छेद रहा । वह समय तो व साहसिकता के लिए प्रसिद्ध है । पाटण में जैन यहाँ के लिए ही नहीं, सारे देश के लिए पतन का समय था । जैनाचार्य द्वारा जैन विधिविधान से नगरी साहित्य, कला व संस्कृति का खजाना है । की स्थापना करवाने का अवसर संभवतः यहीं प्रथम अन्य मन्दिर 88 इसके अतिरिक्त आज भी यहाँ हुआ, जो जैन इतिहास में उल्लेखनीय है । पाटण के के 55 मोहल्लों में 84 विशाल मन्दिर व 115 देरासर राजाओं, मंत्रीयों व श्रेष्ठियों ने यहाँ पर ही नहीं, लेकिन हैं । श्री हेमचन्द्राचार्य ज्ञान मन्दिर व अन्य अनेकों विभिन्न तीर्थ स्थानों, व कई जगहों में जिनालय बनवाये संस्थाएँ भी है । व धार्मिक एवं जन कल्याण के अनेकों कार्य किये ___ कला और सौन्दर्य यहाँ पर अनेकों प्राचीन जिनका जगह-जगह पर उल्लेख आता है । विक्रम की मन्दिर हैं, जिनमें प्राचीन प्रतिमाएँ व अन्य कलाकृतियों नवमी से चौदहवीं सदी तक यहाँ खूब जाहोजलाली के दर्शन होते हैं उन सबका वर्णन संभव नहीं । इनके रही। इस बीच सारे शूरवीर व धर्मवीर जैन राजा व मंत्री हुए । राजा वनराज चावड़ा के मंत्री भीनमाल अतिरिक्त कई मस्जिदों की कलाकृतियों के अवलोकन निवासी जैन श्रेष्ठी श्री नानाशाह के वंशज, लहर, वीर, करने से प्रतीत होता है कि पाटण के विनाश के समय नेढ़, विमल, धवल, आनन्द, पृथ्वीपाल वगैरह मंत्री कलात्मक मन्दिर मस्जिदों में परिवर्तित किये गये हों। हुए। इनके अतिरिक्त जाम्ब, चम्पक, मुंजाल, सांतु, यह नगर प्राचीन काल से अति जाहोजलाली पूर्ण रहने सज्जन, उदयन, बाहड़, आशुक, आलिग, सोलाक, के कारण यहाँ जगह जगह प्राचीन कला के नमूने कपर्दि, कुमारसिंह, वाधुयन, अम्बड़ आदि भी धर्म प्रेमी नजर आते है । व राजनीतिज्ञ जैन मंत्री व श्रेष्ठी हुए, जिन्होंने जगह मार्ग दर्शन 8 मन्दिर से पाटण रेल्वे स्टेशन व जगह पर धर्म प्रभावना के अनेकों कार्य किये जो सराहनीय है । श्री सोमप्रभसूरिजी द्वारा रचित कुमारपाल बस स्टेण्ड 2 कि. मी. है । यहाँ से मेहसाना लगभग प्रतिबोध में बताया गया है कि जब श्री हेमचन्द्राचार्य 50 कि. मी. सिद्धपुर 30 कि. मी., चारुप तीर्थ 12 ने पाटण में प्रवेश किया तब इस नगरी का घेराव 13 कि. मी., शंखेश्वर 70. कि. मी. चाणस्मा 19 कि. मी, कि. मी. का था व 84 चौक व 84 बाजार थे । प्रवेश डीसा 50 कि. मी. व अहमदाबाद लगभग 130 कि. अवसर पर 1800 करोड़पति श्रावक इकट्ठे हुए थे व मी. दूर है । सभी जगहों से बस व टेक्सी की सुविधा सारी नगरी लाखों दीपकों से झगमगा उठी थी । है। कार व बस मन्दिर तक जा सकती है । हेमचन्द्राचार्य ने यहाँ अनेकों ग्रन्थों की रचना की । सुविधाएँ ठहरने के लिये सर्वसुविधायुक्त 2 ___ श्री हेमचन्द्राचार्य, श्री अभयदेवसूरि, श्री मलयगिरि, ____धर्मशालाएँ व अतिथिगृह आदि है । जहाँ पर भोजनशाला, श्री यशचन्द्र, श्री सोमप्रभाचार्य, प्रज्ञाचक्षु, राजकवि, चाय, नास्ता व भाते की भी सुविधा है । श्रीपाल आदि विद्वानों से पाटण एक विद्या केन्द्र बन चुका था । लगभग सारे गच्छों के जैन आचार्यों ने यहाँ पेढ़ी श्री पंचासरा पार्श्वनाथजी जैन देरासर पदार्पण करके धर्म प्रचार में भाग लिया था । ट्रस्ट, हेमचन्द्राचार्य रोड़, आजाद चौक, बी. एम. हाई देवसुरिजी को वादी की पदवी से विभुषित यहीं किया। स्कुल के पास । गया था । यहाँ के राजा भीमदेव के दण्डनायक पोस्ट : पाटण - 384 265. जिला : पाटण (गुज.), विमलशाह व राजा सिद्धराज के दण्डनायक सज्जन फोन : 02766-22278 व 20559. 512
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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