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यहाँ यही एक मन्दिर विद्यमान है जो लगभग सातवीं श्री देवपत्तन तीर्थ
सदी पूर्व का माना जाता है, हो सकता है, उस वक्त
जीर्णोद्धार हुवा हो क्योंकि मूलनायक भगवान की तीर्थाधिराज श्री पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, प्रतिमा राजा श्री सम्प्रति द्वारा भराई गई प्रतीत होती श्वेत वर्ण (श्वे. मन्दिर) ।
है । मन्दिर में अन्य 6 प्रतिमाएँ भी प्राचीन है । तीर्थ स्थल दावड़ गाँव में ।
विशिष्टता 8 इस प्राचीन तीर्थ पर स्थित प्राचीनता 8 आज का छोटासा दावड़ गांव प्राचीन सात वावडियाँ व 20 एकड के घेराव वाला प्राचीनकाल में दावड़पुर, देवकीपटन, देवपत्तन आदि ।
विशाल तालाब व एक शिखरबंद मन्दिर यहाँ की मुख्य नामों से विख्यात था ।
विशेषता है । यह विशाल तालाब श्री सिद्धराज जयसिंह यहाँ की टूटी-फूटी प्राचीन कलात्मक वावड़िया,
की राणी हांसलदेवी द्वारा निर्मित है जो हांसलेसर के मन्दिर, देवालय आदि के खण्डहरों से प्रतीत होता है।
नाम से विख्यात है । कि पूर्व में यह एक विराट नगरी रही होगी।
मूलनायक प्रभु की प्रतिमा अतीव चमत्कारिक है । __ यहाँ एक मकान की नींव खोदते समय लगभग
यहाँ के अधिष्ठायक कभी-कभी नागदेव के स्वरुप में 200 खण्डित जिनप्रतिमाएँ प्राप्त हुई थी, जो पुनः
दर्शन भी देते हैं । तालाब में विसर्जन कर दी गई थी । यहीं एक और मकान की नींव खोदते समय श्री महावीर भगवान व
आचार्य कमलसुरिजी के उपदेश से प्रभावित होकर धरणेन्द्र-पद्मावती सहित श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमाएँ प्राप्त यहाँ के जागीरदार ने यहाँ तालाब में मछली पकडने पर हुई थी जो यहाँ विराजित है । इससे प्रतीत होता है। प्रतिबंध लगाकर शिलालेख लगाया था जो आज भी कि किसी समय यहाँ अनेकों मन्दिर रहे होंगे । आज अमल में हैं ।
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श्री पार्श्वनाथ भगवान मन्दिर-देवपत्तन
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