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श्री दर्भावती तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री लोढण पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 1.2 मीटर ( श्वे. मन्दिर ) ।
तीर्थ स्थल
प्राचीनता
डबोई नगर के एक मुहल्ले में ।
प्रभु प्रतिमा की कलाकृति व
उपलब्ध इतिहास आदि से प्रतीत होता है कि यह तीर्थ अति ही प्राचीन है । कहा जाता है कि यह वही प्रतिमा है जो कि राजा वीर धवल के मंत्री श्री तेजपाल ने यहाँ के एक विशाल दुर्ग का जीर्णोद्धार कराते वक्त एक भव्य जिनालय का भी निर्माण कर उसमें प्रतिष्ठित किया था । यह भी कहा जाता है कि यह प्रतिमा दीर्घ समय तक जलगर्भ में रही जो अकस्मात् राजा सागरदत्त सार्थवाह के समय जलगर्भ से पुनः प्रकट हुई । इसका चमत्कार और प्रभाव देखकर राजा सागरदत्त ने भव्य जिनालय का निर्माण कराकर इस चमत्कारिक प्रतिमा
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श्री शामला पार्श्वनाथ भगवान-दर्भावती
श्री लोढण पार्श्वप्रभु मन्दिर दर्भावती
को पुनः प्रतिष्ठित कराया। इस तीर्थ का अन्तिम जीर्णोद्धार विक्रम संवत् 1990 में हुआ ।
विशिष्टता
प्रभु प्रार्श्व की बालू की बनी यह भव्य प्रतिमा दीर्घ समय तक जलगर्भ में रहने पर भी, बालू का एक कण भी प्रतिमा से अलग नहीं हुआ व जलगर्भ से प्रकट होने पर लोढ़े जैसी प्रतीत होने लगी । जिससे भक्त गण प्रभु को लोढ़ण पार्श्वनाथ कहने लगे। कहा जाता है कि किसी समय यह एक विशाल जैन नगरी थी । मंत्री श्री पैथडशाह द्वारा विक्रम संवत् 1320 में यहाँ श्री चन्द्रप्रभ भगवान का एक भव्य मन्दिर बनवाने का उल्लेख मिलता है । 'स्याद्वाद रत्नाकर' सुप्रसिद्ध जैन न्याय ग्रंथ के रचयिता श्री वादीदेवसूरिजी के गुरु श्री मुनिचन्द्रसूरीश्वरजी की यह जन्म भूमि है । तार्किक शिरोमणि उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज का स्वर्गवास विक्रम संवत् 1743 में यहीं हुआ ।
अन्य मन्दिर इसके निकट ही एक प्राचीन शामला पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर है व उसके अतिरिक्त 3 और मन्दिर हैं ।