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श्री भीलडियाजी तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री भीलड़िया पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, 53 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)।
तीर्थ स्थल भीलड़ी गाँव के बाहर मुख्य मार्ग पर ।
प्राचीनता जैन शास्त्रो में इसका प्राचीन नाम भीमपल्ली होने का उल्लेख आता है । परन्तु इसका इतिहास मिलना कठिन सा है । प्रभु प्रतिमा अति ही प्राचीन व परमपूज्य श्री कपिल केवली के सुहस्ते प्रतिष्ठित मानी जाती है। एक और किंवदन्ति के अनुसार संप्रति राजा के सयम की भी मानी जाती है। एक किंवदन्ति के अनुसार श्री श्रेणिक कुमार ने एक रूपवती भीलड़ी कन्या से शादी की थी व उसके जात के नाम पर यह नगरी बसाई थी । कालांतर में यह नगरी त्रंबावती के नाम से प्रसिद्ध हुई । कहा जाता है उस समय यहाँ सवा सौ शिखरबंध मन्दिर, सवा सौ कुएँ, अनेकों बावड़ियाँ, सुन्दर बाजार एवं इस मन्दिर
के पश्चिम भाग में राजगद्दी थी । वह स्थान आज भी गद्दीस्थल के नाम से प्रसिद्ध है । वि. सं. 1218 फाल्गुन कृष्ण 10 के दिन भीमपल्लीपुर के जिनालय में श्री जिनचंद्रसूरिजी ने श्री जिनपतिसूरिजी को दीक्षा दी थी ऐसा उल्लेख है । विक्रम सं. 1317 में ओशवाल श्रेष्ठी श्री भुवनपाल शाह द्वारा इस मन्दिर के जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख है ।
विक्रम सं. 1344 में श्रेष्ठी श्री लखमसिंहजी द्वारा यहाँ श्री अम्बिका देवी की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाने का भी उल्लेख मिलता है । उल्लेखों से प्रतीत होता है कि यह नगरी (भीमपल्ली) विक्रम की 14 वीं सदी में जलकर भस्म हुई थी, संभवतः अलाउद्दीन ने वि. सं. 1353 में पाटण शहर पर आक्रमण किया, उसी समय इस नगरी का भी विनाश किया होगा । कहा जाता है आचार्य श्री सोमप्रभसूरीश्वरजी का उस समय यहाँ चतुर्मास था । उनको श्रुतज्ञान से ज्ञात हुआ कि इस नगरी का विनाश जल्दी होने वाला है । यह जानकर आचार्य देव व श्रावकगण प्रथम कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी को ही चौमासी प्रतिक्रमण करके नगर छोड़कर राधनपुर
श्री भीलड़िया पार्श्वनाथ मन्दिर-भीलड़ी
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