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________________ कहा जाता है थराद के राजा थिरपाल धरु द्वारा वि. सं. 136 में थराद के मन्दिर में प्रतिष्ठित यह प्रतिमा आक्रमण-कारियों के भय से यहाँ लायी गयी थी । प्रतिमाजी के परिकर पर अंकित लेख में सं. 136 वर्ष श्रा. व. 15 बुधे.........इत्यादि लिखा प्रतीत होता है। विशिष्टता 8 जनश्रुति के अनुसार यह मूर्ति यहाँ से 12 कि. मी. की दूरी पर स्थित थराद (थारापद्र) नगर में थी । सोने की मूर्ति थराद में है , यह सुनकर जब बादशाह अलाउद्दीन थराद पर चढ़ाई करनेवाला था, तब दूरदर्शी श्रावणकगण सुरक्षा के लिए इस प्रभावमयी मूर्ति को वाव नगर ले आये । कहा जाता है जब बादशाह थराद आया उस वक्त भक्तों ने एक दूसरी प्रतिमाजी पर सोने के वरक अच्छी तरह चिपका दिये थे ताकि बादशाह को शंका न हो । कितने दूरदर्शी, हिम्मती व प्रभु भक्त थे हमारे पूर्वज । प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला छठ को ध्वजा चढ़ती है । अन्य मन्दिर इस मन्दिर के निकट ही श्री गौडी पार्श्वनाथ भगवान का एक और मन्दिर है । __ कला और सौन्दर्य तीर्थाधिराज श्री अजितनाथ भगवान की परिकरयुक्त पंचधातु से निर्मित यह प्रतिमा अत्यन्त प्रभावशाली और चमकीली है । ऐसी अलौकिक प्रतिमा के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ हैं । मार्ग दर्शन नजदीक का रेल्वे स्टेशन डीसा 70 कि. मी. हैं, जहाँ पर बस व टेक्सी की सुविधा है। यहाँ से भोरोल तीर्थ 22 कि. मी. ढीमा तीर्थ 12 कि. मी. व थराद तीर्थ 12 कि. मी. दूर है । इन जगहों से भी बस का साधन है । मन्दिर तक बस व कार जा सकती है । यहाँ से पक्का रास्ता ओक थराद, सांचोर होता हुवा राजस्थान तरफ जाता है, दूसरा पालनपुर होता हुवा अहमदाबाद आदि जाता है, तीसरा राधनपुर होता हुवा कच्छ व काठियावाड़ तरफ जाता है। सुविधाएँ गाँव में ठहरने के लिए संघ की वाड़ी है, जहाँ पानी, बिजली की सुविधा हैं । पेढ़ी 8 श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, पेढ़ी । पोस्ट : वाव - 385575. जिला : बनासकांढा (गुज.) फोन : 02740-27113. श्री अजितनाथ भगवान मन्दिर-वाव श्री वाव तीर्थ तीर्थाधिराज 8 श्री अजितनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, सर्वधातुमयी प्रतिमा लगभग 85 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल 8 वाव गाँव के मध्यस्थ । प्राचीनता यह तीर्थ क्षेत्र तेरहवीं सदी का माना जाता है । कहा जाता है जब थराद के चौहाण राजा श्री पूंजाजी, मुसलमानों के साथ युद्ध में मारे गये तब उनकी पत्नी सौढ़ी राणी अपने पुत्र बजाजी को लेकर यहाँ से नजदीक युंडला टेकरी पर दीपा भील के आश्रय में रही थी । बजाजी ने बड़े होने पर यहाँ एक वाव बनायी थी, वि. सं. 1244 में उन्होंने यहाँ अपनी राजधानी बसायी व नाम वाव रखा । 504
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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